भारत इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा करने वाला दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा देश बन चुका है. भारत ने 2014 में 17 लाख टन इलेक्ट्रॉनिक और इलेक्ट्रिकल उपकरण कचरे के रूप में निकाले. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है|
तकनीकी के इस ज़माने में हर उस शब्द जिसके कि साथ 'ई' जुड़ जाता है प्रगति का पर्याय बन जाता है. इस समय इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के बिना जीवन की कल्पना करना भी मुश्किल है। मोबाइल,कम्प्युटर, लैपटॉप, टै बलेट, आदि जैसे इलेक्ट्रौनिक गैजेट हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गए हैं। नई तकनीक के साथ अपने आप को जोड़े रखने के इस जुनून में हम भूल जाते हैं कि पुराने कंप्यूटर का क्या होगा? कंप्यूटर ही क्यों, मोबाइल, सीडी, टीवी, रेफ्रिजरेटर, एसी जैसे तमाम इलेक्ट्रॉनिक उपकरण हमारी जिंदगी का इतना अहम हिस्सा बन गए हैं कि पुराने के बदले हम फौरन नयी तकनीक वाला खरीदने को तैयार रहते हैं। लेकिन पुरानी सीडी व दूसरे ई-वेस्ट को कूड़ेदान में डालते वक्त हम कभी ध्यान ही नहीं देते कि कबाड़ी वाले तक पहुंचने के बाद यह कबाड़ हमारे लिए कितना खतरनाक हो सकता है, वैसे पहली नजर में ऐसा लगता भी नहीं है। बस, यही है ई-वेस्ट का शांत खतरा। लोगों की बदलती जीवन शैली और बढ़ते शहरीकरण के चलते इलेक्ट्रोनिक उपकरणों का ज्यादा प्रयोग होने लगा है मगर इससे पैदा होने वाले इलेक्ट्रोनिक कचरे के दुष्परिणाम से आम आदमी बेखबर है |
तकनीक की इस दौड़ में हम कभी इस तथ्य की ओर नहीं सोचते कि जब इन उपकरणों की उपयोगिता खत्म हो जायेगी तब इनका क्या किया जाएगा | ई-कचरे के अंतर्गत वे सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण आते हैं जिनकी उपयोगिता समाप्त हो चुकी है। ई-कचरा या ई वेस्ट एक ऐसा शब्द है जो तरक्की के इस प्रतीक के दूसरे पहलू की ओर इशारा करता है वह पहलू है पर्यावरण का विनाश ।
पिछले साल दुनिया में सबसे ज्यादा 1.6 करोड़ टन ई-कचरा एशिया में पैदा हुआ. इनमें चीन में 60 लाख टन,जापान में 22 लाख टन और भारत में 17 लाख टन ई-कचरा पैदा हुआ. वहीं यूरोप में सबसे जयादा ई-कचरा करने वाले देशों में नॉर्वे पहले, स्विट्जरलैंड दूसरे, आइसलैंड तीसरे, डेनमार्क चौथे और ब्रिटेन पांचवें पायदान पर रहा. वहीं सबसे कम 19 लाख टन ई-कचरा अफ्रीका में पैदा हुआ. रिपोर्ट के मुताबिक, 2018 में ई-कचरे की मात्रा 21 फीसदी तक बढ़कर 5 करोड़ टन पहुंचने की संभावना है|जहां अमेरिका में पिछले पांच सालों में ई कचरे में 13 फीसदी बढ़ोतरी हुई है वहीं चीन में दोगुनी वृद्धि हुई है. आशंका है कि 2017 तक चीन अमेरिका को भी पीछे छोड़ देगा.पिछले साल पैदा हुए ई-कचरा में महज सात फीसदी मोबाइल फोन, कैलकुलेटर, पीसी,प्रिंटर और छोटे आईटी उपकरण रहे, वहीं करीब 60 फीसदी हिस्सा घरों और कारोबार में इस्तेमाल होने वाले वैक्यूम क्लीनर, टोस्टर्स, इलेक्ट्रिक रेजर्स, वीडियो कैमरा, वॉशिंग मशीन और इलेक्ट्रिक स्टोव जैसे उपकरणों का था.ई-कचरे का सबसे अधिक उत्सर्जन विकसित देशों द्वारा किया जाता है जिसमे अमेरिका अव्वल है. विकसित देशों में पैदा होने वाला अधिकतर ई-कचरा प्रशमन के लिए एशिया और पश्चिमी अफ्रीका के गरीब अथवा अल्प-विकसित देशों में भेज दिया जाता है |यह ई-कचरा इन देशों के लिए भीषण मुसीबत का रूप लेता जा रहा है. भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा दिए गए आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में प्रतिवर्ष लगभग ४ लाख टन ई-कचरा उत्पन्न होता है. राज्यसभा सचिवालय द्वारा 'ई-वेस्ट इन इंडिया' के नाम से प्रकाशित एक दस्तावेज के अनुसार भारत में उत्पन्न होने वाले कुल ई-कचरे का लगभग सत्तर प्रतिशत केवल दस राज्यों और लगभग साठ प्रतिशत कुल पैंसठ शहरों से आता है. दूसरे शब्दों में कहें तो भारत में ई-कचरे के उत्पादन में मामले में महाराष्ट्र और तमिल नाडु जैसे समृृद्ध राज्य और मुंबई और दिल्ली जैसे महानगर अव्वल हैं. एसोचैम की एक रिपोर्ट के अनुसार देश का लगभग ९० प्रतिशत ई-कचरा असंगठित क्षेत्र केअप्रशिक्षित लोगों द्वारा निस्तारित किया जाता है. इस क्षेत्र में काम करने वाले लोग इस कार्य के लिए आवश्यक सुरक्षा मानकों से अनभिज्ञ हैं. एक अखबार में प्रकाशित खबर के अनुसार इस वक़्त देश में लगभग १६ कम्पनियाँ ई-कचरे के प्रशमन के काम में लगी हैं. इनकी कुल क्षमता साल में लगभग ६६,००० टन ई-कचरे को निस्तारित करने की है जो कि देश में पैदा होने वाले कुल ई-कचरे के दस प्रतिशत से भी काम है.
विगत कुछ वर्षों में ई-कचरे की मात्रा में लगातार तीव्र वृद्धि हो रही है और प्रतिवर्ष लगभग 20 से 50 मीट्रिक टन ई-कचरा विश्व भर फेंका जा रहा है। ग्रीनपीस संस्था के अनुसार ई-कचरा विश्व भर में उत्पन्न होने वाले ठोस कचरे का लगभग पाँच प्रतिशत है। साथ ही विभिन्न प्रकार के ठोस कचरे में सबसे तेज़ वृद्धि दर ई-कचरे में ही देखी जा रही है क्योंकि लोग अब अपने टेलिविजन,कम्प्युटर, मोबाइल, प् रिंटर आदि को पहले से अधिक जल्दी बदलने लगे है। इनमें सबसे ज्यादा दिक्कत पैदा हो रही है कम्प्युटर और मोबाइल से क्योंकि इनका तकनीकी विकास इतनी तीव्र गति से हो रहा है कि ये बहुत ही कम समय में पुराने हो जाते हैं और इन्हें जल्दी बदलना पड़ता है। भविष्य में ई-कचरे की समस्या कितनी विकराल हो सकती है इस बात का अंदाज़ा इन कुछ तथ्यों के माध्यम से लगाया जा सकता है कि पिछले कुछ वर्षों में विकसित देशों में कम्प्युटर और मोबाइल उपकरणों की औसत आयु घट कर मात्र दो साल रह गई है। घटते दामों और बढ़ती क्र्य शक्ति के फलस्वरूप इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों जैसे मोबाइल, टीवी, कम्प्युटर, आदि की संख्या और प्रतिस्थापना दर में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है|जिससे निकला ई कचरा सम्पूर्ण विश्व में एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आ रहा है|भारत जैसे देश में जहाँ शिक्षा और जागरूकता का अभाव है वहां सस्ती तकनीक ई कचरे जैसी समस्याएं ला रही है|
घरेलू ई-कचरे जैसे अनुपयोगी टीवी और रेफ्रिजरेटर में लगभग एक हजार विषैले पदार्थ होते हैं जो मिट्टी एवं भू-जल को प्रदूषित करते हैं। इन पदार्थों के संपर्क में आने पर सरदर्द, उल्टी , मतली, आँखों में दर्द जैसी समस्याएँ हो सकती हैं। ई-कचरे का पुनर्चक्रण एवं निस्तारण अत्यंत ही महत्वपूर्ण विषय है जिसके बारे में गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है। भारत सरकार ने ई-कचरे के प्रबंधन के लिए विस्तृत नियम बनाए हैं जो कि 1 मई 2012 से प्रभाव में आ गए हैं। ई-कचरा (प्रबंधन एवं संचालन नियम) 2011 के अंतर्गत ई-कचरे के पुनर्चक्रण एवं निस्तारण के लिए विस्तृत निर्देश दिये गए हैं। हालांकि इन दिशा निर्देशों का पालन किस सीमा तक किया जा रहा है यह कह पाना कठिन है। जानकारी के अभाव में ई-कचरे के शमन में लगे लोग कई प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त हो रहे हैं। अकेले दिल्ली में ही एशिया का लगभग 85 प्रतिशत ई-कचरा शमन के लिए आता है परंतु इसके निस्तारण के लिए जरूरी सुविधाओं का अभाव है। आवश्यक जानकारी एवं सुविधाओं के अभाव में न केवल ई-कचरे के निस्तारण में लगे लोग न केवल अपने स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहे हैं बल्कि पर्यावरण को भी दूषित कर रहे हैं। ई-कचरे में कई जहरीले और खतरनाक रसायन तथा अन्य पदार्थ जैसे सीसा, कांसा, पारा,कैडमियम आदि शामिल होते हैं जो उचित शमन प्रणाली के अभाव में पर्यवरण के लिए काफी खतरा पैदा करते हैं। एसोचैम की रिपोर्ट के अनुसार भारत अपने ई-कचरे के केवल 5 प्रतिशत का ही पुनर्चक्रण कर पाता है।
ई-कचरे के प्रबंधन की ज़िम्मेदारी उत्पादक, उपभोक्ता एवं सरकार की सम्मिलित हिस्सेदारी होनी चाहिए । उत्पादक की ज़िम्मेदारी है कि वह कम से कम हानिकारक पदार्थों का प्रयोग करें एवं ई-कचरे के प्रशमन का उचित प्रबंधन करें,उपभोक्ता की ज़िम्मेदारी है कि वह ई-कचरे को इधर उधर न फेंक कर उसे पुनर्चक्रण के लिए उचित संस्था को दें तथा सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह ई-कचरे के प्रबंधन के ठोस और व्यावहारिक नियम बनाए और उनका पालन सुनिश्चित करे.
राष्ट्रीय सहारा में 04/05/15 को प्रकाशित लेख
No comments:
Post a Comment