Wednesday, February 25, 2015

यादों का कोई कॉपी राईट नहीं होता

प्रिय परी
इतने दिनों बाद तुम्हें  मेरा पत्रनुमा मेल पाकर बड़ा अजीब सा लगेगा.मैं सस्पेंस ख़त्म करता हूँ ये वेलेंटाइन डे भी बीत गया और मैं तुम्हारे मेसेज का हमेशा की तरह इंतज़ार करता रहा.  तुम भूल गयी होगी पर मैं नहीं भूलाभूल भी कैसे सकता हूँ रोज़ डे पर जब तुम्हें गुलाब देना भूल गया था तो तुम कितना बुरी तरह से मुझसे  नाराज हो गये थे फिर जब हम वेलेंटाइन डे पर मिले थे तो हमने कैसे वेलेंटाइन वीक के सारे दिन एक साथ मनाये थे.ये तो तुम जानती ही हो तुम्हारी यादों का पेटेंट मेरे पास है वैसे भी  यादों का तो कोई कॉपी राईट नहीं होता पर तुमसे जुड़ी यादें तो बस मेरी ही हैं .यादों के एक ऐसे ही मौसम ने इस वेलेंटाइन डे पर फिर दस्तक दी और मेरी उंगलियाँ कंप्यूटर के की बोर्ड पर तुम्हें मेल करने के लिए नाच उठीं.मैं जानता हूँ तुम्हें नाचना बहुत पसंद है.हमें अलग हुए सालों भले ही बीत चुके हैं पर मुझे उम्मीद है तुम्हारा यह शौक अभी भी बरकरार होगा.और तुम गाहे बगाहे अभी थिरक पड़ती होगी जब कोई गाना कहीं बजता होगा.मैं जानता हूँ तुम मुझे भूल गयी होगी हमेशा के लिए पर मैं कुछ भी नहीं भूला हूँ,पर इसका यह मतलब नहीं कि मैं तुम्हारी सेटल होती  ज़िन्दगी में कोई उथल पुथल चाहता हूँ बस मैं तो अपने उस एक मात्र अधिकार का इस्तेमाल कर रहा हूँ जो कभी तुमने बड़े हक़ से जाते हुए दिया था सुनो जब तुम्हें मुझसे बात करने का मन करे मुझे फोन कर लेना” सच कहूँ उसके बाद तुम्हें फोन करने की कभी हिम्मत ही नहीं पडी.क्या कहूँगा  तुमसे जब तुम पूछोगे कैसे हो’ और मेरा पुराना टेप रिकोर्ड बजना शुरू हो जाएगा जिसमें फिर वही गुजारिश होगी अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा पर अपने जाने का फैसला बदल लो और तुम बात बदल दोगे .अजीब सी कशमकश है हम दोस्त हो नहीं सकते और अपने रिश्ते को कोई नाम भी दे नहीं सकते.फिर किस हैसियत से तुमसे मिलूं और तुमसे पूछूं कैसी हो.क्या अब भी कभी कभी मैं तुम्हें  याद आ जाता हूँ.खैर बातों बातों में मैं भी क्या ले बैठा ,छोडो ये बताओ इस बार  वेलेंटाइन डे कैसा बीता ?मेरे नाम का कोई दिया जला या  ज़िन्दगी के आगे बढ़ने का जश्न हुआ.देखो न ज़िन्दगी भी क्या चीज है कभी हम पल पल जुड़े रहते थे,तुम्हारे सोने खाने से लेकर दोस्तों के साथ हैंग आउट करने तक की हर खबर मुझे रहा करती थी और आज ये दिन है कि मुझे इतने सालों बाद सिर्फ यह जानने के लिए मेल लिखना पढ़ रहा है कि तुम कैसी हो और यह भी भरोसा नहीं कि इस मेल का जवाब आएगा या नहीं .तुम व्यस्त होगे हमेशा की तरह जानता हूँ अपने करियर और फ्यूचर को लेकर और होना भी चाहिए.ज़िन्दगी महज जज्बातों और बातों से नहीं चलती लेकिन मुझे तुम्हारी काबिलियत पर आज भी भरोसा है तुम जहाँ भी होगे और जैसे भी होगे आगे बढ़ रहे होगे क्योंकि तुम  वीराने बसाने का हुनर जानते हो.मैं यह बताना तो भूल ही गया मैं आज भी जब परेशान होता हूँ तो वो गाने सुन लिया करता हूँ जो हम दोनों को पसंद थे.अब यह लिखने की बात तो है  नहीं कि तुम अब भी याद आते हो पर मैंने नियति से समझौता कर लिया कि हमारा अफसाना अंजाम तक नहीं पहुँच सकता था तो अच्छा ही हुआ कि हम अपनी अपनी राहों में आगे बढ़ चले.तुम दिनों में बहुत भरोसा करते थे और मैं हमेशा तुम्हें  टोंका करता था भावनाओं का कोई दिन नहीं होता बस ख़ास बात ये  है कि जो रिश्तें हम बनायें उसे निभाएं क्योंकि ये रिश्ते हमारे होने का अहसास कराते हैं और जब आपके पास रिश्ते होते हैं तो एक भरोसा मिलता है ज़िन्दगी में आगे बढ़ने का.वैसे क्या तुम अभी भी उसी खनकदार हंसी में हँसते हो जिस हंसी को कभी मैंने अपने फोन की रिंग टोन बनाने के बारे में सोचा था ये अलग बात है कि मैं उस हंसी को कभी रिकॉर्ड कर ही नहीं पाया यूँ कहें मौका नहीं मिला तुम्हारा आना और जाना सब कुछ एक सपने जैसा रहा और सपने सहेजे नहीं जाते वे आते हैं और चले जाते हैं यादों की हल्की सी निशानी देकर पर तुम भरोसा रखो मैंने तुम्हारी हर एक चीज सहेज रक्खी है,चाहे वो तुम्हारी बातें हों या यादें.मैं जानता हूँ तुम यादें सहेजने के मामले में थोड़े कमजोर हो तो ये मेल पढ़कर हो सकता है तुम्हें भी कुछ याद आये.वैसे यादें इंसान को कमज़ोर बनाती हैं पर तुम मज़बूत बनोगे और हमारे उन सब सपनों को पूरा करोगे जो कभी हमने साथ देखे थे .
जवाब का इन्तजार रहेगा .
आई नेक्स्ट में 26/02/15 को प्रकाशित 

खत्म होते प्रबंधन संस्थान

भारत की अर्थव्यवस्था में तेज़ी आने के साथ ही जगह जगह कुकुरमुत्तों की भांति प्रबंधन संस्थान उग आए थे। पर हाल ही के दिनों में अर्थव्यवस्था के पटरी से उतरने के साथ ही प्रबंधन गुरु पैदा करने का दावा करने वाले इन संस्थानों की दुकानों पर भी ताले लगने शुरू हो गए हैं। आल इंडिया काउन्सिल फॉर टेक्नीकल एजुकेशन (ए आई सी टी ई ) के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2012 से 2015 के दौरान लगभग तीन सौ  प्रबंधन संस्थानों की दुकानों पर ताला लग चुका है। इतनी तेज़ी से बंद होते इन संस्थानों के हालात इस बात की ओर इशारा करते हैं कि विगत कुछ वर्षों में भारतीय मध्यम  वर्ग पर प्रबंधन शिक्षा का जो खुमार चढ़ा था वह अब धीरे धीरे उतरने लगा है। अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद के अनुसार आज की तारीख में भारत में प्रबंधन की डिग्री अथवा डिप्लोमा देने वाले 3217 संस्थान हैं जबकि वर्ष 2011-12 के दौरान यह आंकड़ा 3541 था। यह हमारे देश में प्रबंधन डिग्री की घटती लोकप्रियता की ओर इशारा है। केवल झारखंडबिहार और केरल को छोड़कर देश के सभी राज्यों में प्रबंधन संस्थानों की संख्या में गिरावट आई है। बंद होने वाले प्रबंधन संस्थानों की संख्या के मामले में महाराष्ट्र पहले स्थान पर है जहां चौबीस प्रबंधन संस्थानों ने अपना काम काज समेटा जबकि दूसरा स्थान तमिलनाडू का है जहां तेईस ऐसे संस्थानों पर ताला लगा। अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद के अनुसार वर्ष 2007 से वर्ष 2012 के दौरान हमारे देश में लगभग नौ सौ  से भी अधिक प्रबंधन संस्थान खुले। यह वह दौर था जब हमारी अर्थव्यवस्था की विकास दर सात प्रतिशत के करीब थी। पर जैसे ही पिछले कुछ सालों में अर्थव्यवस्था में मंदी आने लगी तो उसका असर इन प्रबंधन संस्थानों के ऊपर भी पड़ा और इन्हें मजबूरन अपना काम काज समेटना पड़ा। साथ ही कॉर्पोरेट जगत को भी यह बात समझ में आ गयी कि गली गली खुले इन प्रबंधन संस्थानों में से निकलने वाले विद्यार्थी उनके किसी काम के नहीं हैं। इसलिए उन्होने कुछ चुनिन्दा प्रबंधन संस्थानों से ही पढे विद्यार्थियों को ही लेने का निर्णय किया। वर्ष 2014 में भारत में प्रबंधन की शिक्षा पर आई एक रिपोर्ट में भारत के प्रबंधन संस्थानों में शिक्षा के गिरते स्तर को लेकर काफी चिंता जाहिर की गयी है। इस रिपोर्ट के अनुसार चूंकि अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद केवल अनुमोदन के लिए ही अधिकृत है और इन संस्थानों में पढ़ाये जाने वाले पाठ्यक्रम या पढ़ाने के तरीकों पर हस्तक्षेप करने का अधिकार उसे प्राप्त नहीं है इसलिए भी इन संस्थानों में शिक्षा का स्तर बनाए रखना मुश्किल है। इन प्रबंधन संस्थानों में शिक्षा के गिरते स्तर का एक कारण यह भी कि पिछले कुछ वर्षों में प्रबंधन की सीटों में जितना इजाफा हुआ है छात्रों का रुझान उतना ही कम हुआ है और इसी वजह से स्नातक की डिग्री रखने वाला कोई भी छात्र किसी न किसी प्रबंधन संस्थान में स्थान पा ही जाता है। एक अमेरिकी गैर सरकारी संस्था एसोशिएसन टू एडवांस कौलीजियेट स्कूल ऑफ़ बिजनेस  के अनुसार भारत में प्रबंधन की डिग्री प्रदान करने वाले संस्थानों की संख्या लगभग चार हजार है जो कि अमेरिका से लगभग दुगनी है। पर हमारे देश में मौजूद प्रबंधन संस्थानों की हालत का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2015 में फ़ाइनेंशियल टाइम्स द्वारा जारी एक वैश्विक रैंकिंग में सिर्फ तीन भारतीय  संस्थान हैं जिनमें से दो सरकारी और एक गैर-सरकारी है। इनमें से कोई भी पहले दस में भी स्थान बनाने में सफल नहीं हुआ है और अहमदाबाद स्थित भारतीय प्रबंधन संस्थान - जो की देश में प्रबंधन की शिक्षा देने वाला  सर्वश्रेष्ठ संस्थान माना जाता है – सिर्फ छबीस्वें पायदान तक पहुँच पाया। क्रिसिल द्वारा वर्ष 2014 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार भारतीय प्रबंधन संस्थानों में उपलब्ध सीटों में लगभग अस्सी प्रतिशत सीटें ऐसे संस्थानों के पास हैं जिनके पास न तो मूलभूत सुविधाएं हैं और न ही स्तरीय शिक्षक। ऐसे में इन संस्थानों से डिग्री प्राप्त करने वाले छात्रों के ज्ञान के स्तर का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। यही वजह है की इन संस्थानों के प्रति छात्रों का रुझान कम होता जा रहा है। इसी रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि वर्ष 2013-14 के दौरान  अधिकतर प्रबंधन संस्थानों में तीस प्रतिशत से चालीस  प्रतिशत तक  सीटें खाली रह गईं थीं। यदि इन शिक्षण संस्थानों की यही स्थिति रही तो आने वाले कुछ वर्षों में इनके लिए छात्र ढूंढ पाना मुश्किल हो जाएगा क्योंकि अधिकतर छात्र या तो उन पेशेवर पाठ्यक्रमों का रुख करेंगे जो उन्हें नौकरी दिला सकें अथवा वे सिर्फ सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन संस्थानों में ही दाखिला पाने की कोशिश करेंगे। इन आंकड़ों से यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि यदि इन प्रबंधन संस्थानों ने अपने को बहतर नहीं बनाया तो आने वाले कुछ वर्षों में प्रबंधन की डिग्रियाँ बांटने वाले इन संस्थानों कि हालत और भी बदतर हो जाएगी। 
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 अमर उजाला में 25/02/15  को प्रकाशित 

Monday, February 23, 2015

संचार का तरीका बदलती तकनीक


इसमें कोई शक नहीं कि मानव सभ्यता के इतिहास को बदलने में सबसे बड़ा योगदान आग और पहिये के आविष्कार ने दिया। लेकिन यह भी सच है कि इंटरनेट की अवधारणा ने इस सभ्यता का नक्शा हमेशा के लिए बदल दिया। यह समय का एक चक्र पूरा हो जाने जैसा है। इंसान ने संचार के लिए सबसे पहले चित्रों का सहारा लिया था, जिनके साक्ष्य आदिकालीन गुफाओं में देखे जा सकते हैं। फिर भाषा और लिपि का विकास हुआ और सभ्यता लगातार आगे बढ़ती रही। संवाद के लिए भाषा पर ज्यादा निर्भरता रही। पर इंटरनेट के आगमन और सोशल नेटवर्किंग साइट्स के बढ़ते चलन ने संचार के उस युग को दुबारा जीवित कर दिया जो सभ्यता की शुरु आत में हमारा साथी था। संवाद के लिए तस्वीरें और स्माइली का प्रयोग अब ज्यादा बढ़ रहा है। स्माइली ऐसे चिह्न हैं जिनसे भाव प्रेषित किए जाते हैं। मोबाइल इंटरनेट इस्तेमाल करने वाली कुल आबादी का पचहत्तर प्रतिशत हिस्सा बीस से उन्तीस वर्ष के युवा वर्ग से आता है। इसमें खास बात यह है कि यह युवा वर्ग सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर सबसे ज्यादा सक्रिय है। जल्दी ही वह वक्त इतिहास हो जाने वाला है जब आपको कोई एसएमएस मिलेगा कि क्या हो रहा है और आप लिखकर जवाब देंगे। अब समय दृश्य संचार का है। आप तुरंत एक तस्वीर खींचेंगे या वीडियो बनाएंगे और पूछने वाले को भेज देंगे या एक स्माइली भेज देंगे। यानी आपको कुछ कहने या लिखने की जरूरत नहीं, कहने का काम अब तस्वीरें करेंगी। फोटो या छायाचित्र बहुत पहले से संचार का माध्यम रहे हैं, पर सोशल नेटवर्किंग साइट्स और इंटरनेट के साथ ने इन्हें इंस्टेंट कम्युनिकेशन मोड (त्वरित संचार माध्यम) में बदल दिया है। अब महज शब्द नहीं, भाव और परिवेश भी बोल रहे हैं। वह भी तस्वीरों और स्माइली के सहारे। इस संचार को समझने के लिए न तो किसी भाषा विशेष को जानने की अनिवार्यता है और न ही वर्तनी और व्याकरण की बंदिशें। तस्वीरें पूरी दुनिया की एक सार्वभौमिक भाषा बनकर उभर रही हैं। दुनिया के किसी भी कोने में रहने वाला व्यक्ति तस्वीरों और वीडियो के माध्यम से अपनी बात दूसरों तक पहुंचा पा रहा है। एसी नील्सन के नियंतण्र मीडिया खपत सूचकांक 2012 से पता चलता है कि एशिया (जापान को छोड़कर) और ब्रिक देशों में इंटरनेट मोबाइल फोन पर टीवी व वीडियो देखने की आदत पश्चिमी देशों व यूरोप के मुकाबले तेजी से बढ़ रही है। मोबाइल पर लिखित एसएमएस संदेशों की संख्या में लगातार गिरावट आ रही है। वायरलेस उद्योग की अंतरराष्ट्रीय संस्था सीटीआईए की रिपोर्ट के अनुसार साल 2012 में 2.19 ट्रिलियन एसएमएस संदेशों का आदान-प्रदान पूरी दुनिया में हुआ, जो 2011 की तुलना में भेजे गए संदेशों की संख्या से पांच प्रतिशत कम रहा। वहीं मल्टीमीडिया मेसेज (एमएमएस) जिसमें फोटो और वीडियो शामिल हैं, की संख्या साल 2012 में 41 प्रतिशत बढ़कर 74.5 बिलियन हो गई। एक साधारण तस्वीर से संचार, शब्दों और चिह्नों के मुकाबले कहीं आसान है। उन्नत होती तकनीक और बढ़ते स्मार्टफोन के प्रचलन ने फोटोग्राफी को अतीत की स्मृतियों को सहेजने की कला से आगे बढ़ाकर एक त्वरित संचार माध्यम में तब्दील कर दिया है। फोन पर इंटरनेट और नएनए एप्स लगातार संचार के तरीकों को बदल रहे हैं। स्नैप चैट एक ऐसा ही मोबाइल एप्लीकेशन है जो प्रयोगकर्ता को वीडियो और फोटो भेजने की सुविधा प्रदान करता है। इसमें फोटो-वीडियो देखे जाने के बाद अपने आप हमेशा के लिए नष्ट हो जाता है। स्नैप चैट के प्रयोगकर्ता प्रतिदिन 200 मिलियन चित्रों का आदान-प्रदान कर रहे हैं। फेसबुक पर लोग प्रतिदिन 300 मिलियन चित्रों का आदान-प्रदान कर रहे हैं और साल भर में यह आंकड़ा 100 बिलियन का है। चित्रों का आदान-प्रदान करने वाले लोगों में एक बड़ी संख्या स्मार्टफोन प्रयोगकर्ताओं की है जो स्मार्टफोन द्वारा सोशल नेटवर्किंग साइट्स का इस्तेमाल करते हैं और यह चीज संचार के क्षेत्र में बड़ा बदलाव ला रही है। तथ्य यह भी है कि सोशल नेटवर्किंग साइट्स के बढ़ते इस्तेमाल में संचार के पारंपरिक तरीके, जिसका आधार भाषा हुआ करती थी, वह कुछ निश्चित चिह्नों/प्रतीकों में बदल रही है। इसे हम इमोजीस या फिर इमोटिकॉन के रूप में जानते हैं जो चेहरे की अभिव्यक्ति जाहिर करते हैं। 1982 में अमेरिकी कंप्यूटर विज्ञानी स्कॉट फॉलमैन ने इसका आविष्कार किया था। स्कॉट फॉलमैन ने जब इसका आविष्कार किया था, तब उन्होंने नहीं सोचा था कि एक दिन ये चित्र प्रतीक मानव संचार में इतनी बड़ी भूमिका निभाएंगे। व्हाट्सएप के अलावा सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक में भी इनका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल संचार के लिए हो रहा है। सिर्फ एप्पल के आईफोन में ही दो करोड़ बार इमोजी डाउनलोड किए गए हैं। बहुत से स्मार्टफोनों में सात सौ बीस से ज्यादा स्माइली आइकन मौजूद हैं। स्मार्टफोन या फिर चैट एप में पारंपरिक स्माइली वाले चेहरे से लेकर दैत्य रूपी या फिर चुलबुले चेहरे वाले आइकन मौजूद हैं। मोबाइल अब एक आवश्यक आवश्यकता बन कर हमेशा हमारे साथ रहता है। सिस्को के अनुसार वर्ष 2016 में दुनिया भर में दस अरब मोबाइल फोन काम कर रहे होंगे। गूगल के एक सर्वे के मुताबिक, भारत में स्मार्टफोन इस्तेमाल करने वाले लोगों की तादाद फिलहाल अमेरिका के 24.5 करोड़ स्मार्टफोन धारकों के आधे से भी कम है, पर उम्मीद है कि 2016 तक मोबाइल फोन इंटरनेट तक पहुंचने का बड़ा जरिया बनेंगे और 350 करोड़ संभावित इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों में से आधे से ज्यादा मोबाइल के जरिये ही इंटरनेट का इस्तेमाल करेंगे और निश्चय ही तब छायाचित्र संचार का दायर और बढ़ जाएगा। हालांकि इस बात में कोई संदेह नहीं है कि तकनीकी उन्नति के रथ पर सवार तस्वीरें आने वाले वक्त में मानव संचार की दुनिया बदल देंगी, पर तस्वीर पूरी रंगीन हो ऐसा भी नहीं है। छायाचित्र संचार के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण तकनीक है। भारत जैसे तीसरी दुनिया के देशों में डिजीटल डिवाइड बढ़ रहा है। नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन की रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले दस वर्ष में ग्रामीण क्षेत्रों में करीब 0.4 प्रतिशत परिवारों को ही घर में इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध थी। इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के मुताबिक भारत की ग्रामीण जनसंख्या का दो प्रतिशत ही इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहा है। यह आंकड़ा इस हिसाब से बहुत कम है क्योंकि इस वक्त ग्रामीण इलाकों के कुल इंटरनेट उपयोगकर्ताओं में से अट्ठारह प्रतिशत को इसके इस्तेमाल के लिए दस किलोमीटर से ज्यादा का सफर करना पड़ता है। तकनीक के इस डिजीटल युग में हम अब भी रोटी, कपड़ा और मकान जैसी मूलभूत समस्याओं के उन्मूलन में बेहतर प्रदशर्न नहीं कर पा रहे हैं। लिहाजा, तस्वीर उतनी चमकीली भी नहीं है। इसके अतिरिक्त तस्वीरों और स्माइली पर बढ़ती निर्भरता संचार के लिए दुनिया भर की भाषाओं के लिए खतरा भी हो सकती है। इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है।
राष्ट्रीय सहारा में 23/02/15 को प्रकाशित 

Friday, February 20, 2015

बुरी नजर के साए में है हमारे बच्चे

बच्चे मन के सच्चे यूँ ही नहीं कहा जाता सच ही तो है बच्चे आमतौर पर छल कपट से दूर होते हैं उनका भोलापन ही बचपने की पहचान है पर जब समय से पहले उनका भोलापन छीना जा रहा हो तो चेतने की जरुरत हो जाती हैभारत में लगभग चार करोड तीस लाख  (430 मिलियन) बच्चे हैंजो देश की  कुल आबादी का एक-तिहाई हैं। यह संख्या विश्व की कुल बाल आबादी का पांचवा हिस्सा हैं। जब संख्या इतनी ज्यादा हो तो उनकी जरूरतों और उम्मीदों पर समाज में जागरूकता होनी चाहिए पर भारत में कम से कम ऐसा हो नहीं रहा है |वे यौन शोषण का शिकार होकर अपना बचपना खो रहे हैं और बहुत सी मनोवैज्ञानिक समस्याओं का शिकार भी हो रहे हैं |
संयुक्त राष्ट्र की परिभाषा के मुताबिक : “एक बच्चे और उम्रदराज़ अथवा ज्यादा समझदार बच्चे अथवा वयस्क के बीच संपर्क अथवा बातचीत (अजनबीसहोदर अथवा अधिकार प्राप्त शख्सजैसे अभिभावक अथवा देखभाल करने वाला)के दौरान जब बच्चे का इस्तेमाल एक उम्रदराज़ बच्चे अथवा वयस्क द्वारा यौन संतुष्टि के लिए वस्तु के तौर पर किया जाए। बच्चे से ये संपर्क अथवा बातचीत ज़ोर-जबरदस्तीछल-कपटलोभधमकी अथवा दबाव में की जाए।
महिलाओं के प्रति यौन अपराधों के विरोध में एक सशक्त जनमत का निर्माण हो रहा है और महिलायें भी अब पहले से ज्यादा मुखरता से अपने प्रति हुए अपराधों पर खुलकर सामने आ रही हैं पर हमारे समाज में बच्चों के प्रति होने वाली यौन हिंसा के बारे में लोगों का रवैया उदासीन है | तथ्य यह भी है कि किसी समाज की  संवेदनशीलता का स्तर उसके अपने बच्चों के साथ किये गए व्यवहार से परिलक्षित होता है|यौन हिंसा किसी भी सामजिक स्थिति में स्वीकार्य नहीं होती है,पर जब बात बच्चों की हो तो समस्या की गंभीरता बढ़ जाती है|
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक देश में बाल यौन उत्पीडन  के मामले तीन सौ छत्तीस प्रतिशत बढ़ गए हैं | साल 2001 2011 के बीच कुल 48,338 बच्चों से यौन हिंसा के मामले दर्ज किये गए,साल 2001 में जहाँ इनकी संख्या 2,113 थी वो 2011 में बढ़कर 7,112 हो गई ` |महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि ये ऐसे मामले हैं जो रिपोर्ट किये गए हैं|रिपोर्ट के मुताबिक़ बच्चों के प्रति बढ़ती यौन हिंसा बहुत तेज बढ़ रही है| हमारा सामाजिक ताना बाना और सेक्स शिक्षा के अभाव में किसी भी पीड़ित बच्चे के साथ ऐसा कुछ भी होता है तो उसे समझ ही नहीं आता कि वो क्या करे|
बच्‍चों के साथ हुए ऐसे कृत्य के परिणाम बहुंत गंभीर होते हैं जिससे पूरा समाज प्रभावित होता है| तथ्य यह भी है कि हमारी समाजीकरण प्रक्रिया में अभी तक बच्चों के पास इस पाशविक व्यवहार के लिए कोई शब्द विज्ञान या भाषा ही नहीं है उनके पास महज हाव भाव ही होते हैं और हर अभिभावक इतना जागरूक और पढ़ा लिखा हुआ हो ये जरूरी नहीं|
 भारत आबादी के लिहाज से दुनिया के ऐसे देशों में आगे है जिसकी आबादी का बड़ा हिस्सा युवा वर्ग से बनता है आर्थिक विकास परिप्रेक्ष्य में यह वरदान सरीखा हैलेकिन अपने युवाओं की सही देखभाल न कर पाने से देश  अपने जनसांख्यिकीय लाभ का पूरी तरह फायदा पाने में पिछड सकता है कारण बाल उत्पीडन की संख्या में हो रही लगातार वृद्धि|हालंकि सरकार ने यौन-अपराध बाल संरक्षण अधिनियम(POCSO) लागू कर दिया है  जिसके अंतर्गत  बाल-उत्पीड़न के सभी प्रकारों को पहली बार भारत में विशिष्ट अपराध बना दिया गया लेकिन पर्याप्त जागरूकता के अभाव और संसाधनों की कमी के चलते व्यवहार में  कोई ठोस बदलाव होता नहीं दिख रहा है|बच्चे लगभग हर जगह उत्पीडन के शिकार हैं  अपने घरों के भीतरसड़कों परस्कूलों मेंअनाथालयों में और सरकारी संरक्षण गृहों में भी संयुक्त राष्ट्र की संस्था एशियन सेंटर फॉर ह्यूमन राईट्स के प्रकाशन इंडियाज हेल हाउस यह बताता है कि बच्चे बाल संरक्षण गृहों में भी सुरक्षित नहीं इस रिपोर्ट में कुल 39 मामलों को आधार बनाया गया है इन 39 मामलों में से बाल यौन हिंसा के ग्यारह मामले सरकार द्वारा संचालित बाल संरक्षण गृहों में हुए|
  इस समस्या का एक साँस्कृतिक पक्ष भी है|हम एक युवा आबादी वाले देश में पुरातन पितृसत्तात्मक सोच के साथ बच्चों को पालते हैं और अपनी सोच को उन पर इस तर्क के साथ थोप देते हैं कि ये तो बच्चे हैंपरिणाम बाल विवाह,ऑनर किलिंग और भ्रूणहत्या जिनका समाधान सिर्फ कानून बना कर नहीं हो सकता है|पारिवारिक ढांचे में यह  सच है कि बच्चों की कोई नहीं सुनता वो भी यौन शोषण जैसे संवेदनशील विषय पर तब सम्बन्धों,परिवार की मर्यादा आदि की आड़ लेकर बच्चों को चुप करवा दिया जाता है,इसलिए बाल उत्पीडन के वही मामले दर्ज होते हैं जिसमें शारीरिक क्षति हुई होती है|बाल यौन उत्पीडन एक स्वस्थ बाल मस्तिष्क को हमेशा के लिए क्षतिग्रस्त कर देता है जिससे बच्चों में व्यवहार संबंधी अनेक तरह की मनोवैज्ञानिक समस्याएं पैदा हो जाती हैं जिसका परिणाम एक खराब युवा मानव संसाधन के रूप में आता है | प्रख्यात बाल लेखक जैनज़ कोरज़ाक ने कहा  था कि- 'बच्चे और किशोरमानवता का एक-तिहाई हिस्सा हैं। इंसान अपनी जिंदगी का एक-तिहाई हिस्सा बच्चे के तौर पर जीता है। बच्चे...बड़े होकर इंसान नहीं बनतेवे पहले से ही होते हैं,हमें बच्चों के अंदर के इंसान को जिन्दा रखना होगा |

नव भारत टाईम्स में 20/02/15 को प्रकाशित लेख 

Saturday, February 14, 2015

प्यार बिना कैसी ज़िन्दगी .........

वेलेन्टाइन डे , प्यार का दिन प्यार है तो दिल भी होगा दिल है तो जिन्दगी भी आज दिल के इस दिन में जो कुछ लिखूंगा दिल से लिखूंगा क्योंकि दिल के मामले में दिमाग की कोई जरुरत नहीं होनी चाहिए शायद इसी लिए हमारी ज़िन्दगी ज्यादा मुश्किल होती जा रही है कि हम दिल के मामले में भी दिमाग का इस्तेमाल करने लग गए हैं अब प्यार जताने का एक दिन है उसमे ज्यादा  क्या सोचना कोई अच्छा लगा कह दिया|वैसे भी जब प्यार है फिजाओं में तो ज़माने को ये तो कह ही सकते हैं"होश वालों को क्या ख़बर जिन्दगी क्या चीज़ है इश्क कीजिये ख़ुद समझिये जिन्दगी क्या चीज़ है"(सरफ़रोश )वैसे प्यार और जिन्दगी का हमेशा से एक गहरा रिश्ता रहा है ये और बात है कि वेलेन्टाइन डे को विपरीत लिंग  से जोड़ दिया गया है लेकिन प्यार ही तो जिन्दगी को जिन्दगी बनता है "जीने को जीते हैं सभी प्यार बिना क्या है जिन्दगी " (ये वादा रहा )मेरे लिए तो जिन्दगी एक प्यार का नगमा है जिससे हमारी आपकी सबकी कहानी जुडी हुई है | 
                                         
 प्यार किया नही जाता हो जाता है हो सकता है आप न माने चलिए आप को एक राज़ की बात बताता हूँ जिन्दगी में हम अपने आप से कब प्यार करना शुरू कर देते हैं इसका एहसास हमें खुद भी नहीं होता बड़ी मजेदार बात है कि हम अपने आप से प्यार को किसी रिश्ते के नाम से नहीं बांधते,न ही कोई शर्तें लगाते हैं बस अपने आप से प्यार किए जाते हैं कुछ इस गाने की तरह "कितना प्यार तुम्हें करते हैं आज हमें मालूम हुआ जीते नहीं तुम पर मरते हैं " (एक लड़का एक लडकी ) जरा सोचिये प्यार के बगैर जिन्दगी या जिन्दगी बगैर प्यार कैसा होगा वो घर के करीब का पेड़, गमले में खिले गुलाब के फूल , वो चिडिया जो यूँ ही आप के आँगन में आकर बैठ जाती है वो अपनों से जुडी चीज़ें जिनसे आपको अपनेपन का एहसास होता है उनसे आपका कोई रिश्ता नहीं फ़िर भी वो सब आपको प्यारे हैं ऐसा ही है प्यार , प्यार को प्यार रहने दो इसे रिश्तों का कोई नाम न दो| अपने आप से प्यार करना जितना आसान है दूसरों को प्यार देना उतना मुश्किल ख़ुद सोच कर देखिये हम दिन भर में कितने लोगों से प्यार से बातें करते हैं भले ही हम कितने स्ट्रेस में क्यों न हों .मुश्किल है न लेकिन हम एक्स्पेक्ट ये करते हैं कि सब हम से प्यार से बातें करें |
                                                हम छोटी छोटी चीजों पर लड़ पड़ते हैं , वो भी उनसे जिनसे हम प्यार करते हैं वो परेंट्स से लेकर गर्ल फ्रेंड या बॉय फ्रेंड तक कोई भी हो सकता है और कारण हमेशा एक ही होता है कि मैं ऐसा चाहता हूँ और अगर ऐसा नहीं हो रहा है तो समस्या  ,ये मैं जब तक किसी के व्यक्तित्व  पर हावी रहेगा वो घर परिवार  या काम करने की जगह पर प्यार नहीं बाँट पायेगा . ग़ालिब ने यूँ ही नहीं कहा था ये इश्क नहीं आसां एक आग का दरिया है और डूब के जाना है| आप सब सोच रहे होंगे कि ये प्यार की कहानी वो भी वेलेन्टाइन डे पर आपकी प्यार की परिभाषा  से मिलती नहीं है . बात सीढी  है हमने खुद ही प्यार को सीमाओं में बाँध दिया है प्यार कोई बंधन नहीं वेलेन्टाइन डे सबका है प्यार पाने और बांटने का अधिकार सबको है तो इस बार वेलेन्टाइन डे पर जरा गौर कीजिये कि आप आस पास ऐसे बहुत से लोग हैं जो आपकी जिन्दगी का एक अहम् हिस्सा हैं लेकिन जिन्दगी की भाग दौड़ में कभी आप अपना प्यार जता ही नहीं पाये वो घर में काम करने वाली बूढी अम्मा से लेकर वो दोस्त जो कभी हमारे बहुत  अज़ीज़ थे लेकिन आज बहूत दूर हो गए हैं , ऑफिस के बाहर वो चाय वाला जिसकी चाय के बगैर आपका दिन नहीं पूरा होता वो शिक्षक  जो अभी तक आपके रोल मॉडल हैं हाँ सबसे अहम् हमारे अभिभावक  जिनसे हम हैं |
                                                             ये वो लोग हैं जो बगैर शर्त हमें प्यार करते हैं और हम हैं कि प्यार की तलाश में जिन्दगी काट देते हैं | इनको वेलेन्टाइन डे पर जरूर इस बात का एहसास कराइए कि आप इनके प्यार की कद्र करते हैं बात फ़िर वहीं पहुँच गयी है जहाँ से शुरू हुई थी कि अगर आप अपने आप से प्यार करते हैं तो अपनों से भी प्यार कीजिये .
प्यार के इस मौसम में आप सभी को वेलेन्टाइन डे की दिल से  शुभकामनायें

Monday, February 9, 2015

रोज़ डे से प्यार का आगाज़ होता है और होलिका दहन के साथ द एंड

दुनिया वाकई बहुत तेजी से बदल रही है और प्यार करने और उसे जताने के तरीके भी अब देखिये न हमारे ज़माने में गाना बजता था "कितना प्यार तुम्हें करते हैं आज हमें मालूम हुआ, जीते नहीं तुम पर मरते हैं|"जब प्यार का  इज़हार करना थोडा मुश्किल था और वेलेन्टाईन डे को लेकर एक हिचक हुआ करती थी हमारे कैम्पस भी तब ऐसे ही हुआ करते थे थोड़े से सहमे से प्यार के  किस्से तब भी थे पर इश्क तब सिर्फ इश्क था न कि इश्क वाला लव |इसे आप वैश्वीकरण की बयार का असर कहें या इंटरनेट क्रांति का जोर  जिसने आज की पीढी को ज्यादा मुखर बना दिया है|फेसबुक ट्विटर से लेकर व्हाट्सएप और हाईक जैसे चैटिंग एप आपको मौका दे रहे हैं कि कुछ भी मन में न रखो जो है बोल दो|वो वक्त चला गया जब फिल्म की नायिका ये गाना गाते हुए जीवन बिता देती थी मेरी बात रही मेरे मन में कुछ कह न सकी उलझन मेंअब प्यार के इज़हार में कोई लैंगिक विभेद नहीं है |लड़के लड़कियां सभी कोई रिग्रेट लेकर नहीं जीना चाहते हैं |क्रश होना सामान्य है और इसके इज़हार में अब कोई समस्या नहीं दिखती|भले ही लव इज भेस्ट ऑफ़ टाईम हो पर चलो कर के देख ही लिया जाए ये आज की पीढी का मन्त्र है| पर थोड़ी सी बात जो मुझे परेशान करती है वो है रिश्ते जितनी तेजी से बन रहे हैं उतनी तेजी से टूट भी रहे हैं|दिखावे पर जोर ज्यादा है |रोज डे से शुरू  हुआ प्यार का सिलसिला होली आते आते होलिका की आग में दहन हो जाता है |हर युवा जल्दी में है ये जल्दबाजी दिल के रिश्तों में अच्छी नहीं है |
वक्त ने किया क्या हंसी सितम का दौर कब का जा चुका है अब तो ब्रेकअप की पार्टी दी जा रही है| जोर दिखावे पर है तू अभी तक सिंगल है,तेरा कोई बॉय फ्रैंड नहीं या तेरी कोई गर्ल फ्रैंड नहीं है ऐसे प्रश्न ये बताते हैं कि अगर आप किसी ऐसे रिश्ते में नहीं हैं तो कुछ खोट है आपमें | अब कुछ भी व्यक्तिगत नहीं है|फेसबुक या व्हाट्सएप स्टेटस की तरह रिलेशनशिप स्टेट्स बदले जा रहे हैं ,रिश्ते वक्त मांगते हैं उनको फलने फूलने में समय लगता है पर इतना टाईम किसके पास है |असुरक्षा की भावना इतनी ज्यादा है कि फेसबुक की टाईम लाइन से लेकर वहाट्सएप पर ऑनलाईन रहने के सिलसिले तक सभी जगह निगाह रक्खी जा रही है |ये टू बी ऑर नॉट टू बी जैसा दौर है जिसे हम गिरने और  सम्हलने से समझ सकते हैं |आज की पीढी ज्ञान नहीं चाहती और अनुभव के स्तर पर सब चीज महसूस करना चाहती है |इसमें किसी को आपत्ति भी नहीं होनी चाहिए पर रिश्तों को बनाने और सम्हालने की जिम्मेदारी के एहसास का गायब हो जाना थोडा परेशान करता है |
हिन्दुस्तान लखनऊ में 09/02/15 को प्रकाशित टिप्पणी

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