तुम अच्छे से होगे जानता हूँ
अपना ख्याल रख रहे होगे जानता हूँ
जिंदगी आगे बढ़ चली होगी जानता हूँ
सच क्या था और झूठ क्या है
जानते होगे जानता हूँ
कौन चुप रहकर भी बोला था जानता हूँ
और कौन बोलते हुए भी अनबोला था जानता हूँ
अब मैं, मैं नहीं और तुम ,तुम नहीं
जानता हूँ
मेरे संदेशे अब धडकनें नहीं बढाते होंगे
जानता हूँ
अब कभी नहीं आओगे ये कहने
मैं कभी नहीं जाउंगी
जानता हूँ
हमारा मिलना
बस इत्तेफाक था जानता हूँ
पर क्यूँ हुआ ऐसा
नहीं जानता हूँ
काश इतना पहले जान पाता
तो आज इतना नहीं जान पाता
पर कम से कम
अब ये जानता हूँ
तुम अच्छे से होगे ............
अपना ख्याल रख रहे होगे जानता हूँ
जिंदगी आगे बढ़ चली होगी जानता हूँ
सच क्या था और झूठ क्या है
जानते होगे जानता हूँ
कौन चुप रहकर भी बोला था जानता हूँ
और कौन बोलते हुए भी अनबोला था जानता हूँ
अब मैं, मैं नहीं और तुम ,तुम नहीं
जानता हूँ
मेरे संदेशे अब धडकनें नहीं बढाते होंगे
जानता हूँ
अब कभी नहीं आओगे ये कहने
मैं कभी नहीं जाउंगी
जानता हूँ
हमारा मिलना
बस इत्तेफाक था जानता हूँ
पर क्यूँ हुआ ऐसा
नहीं जानता हूँ
काश इतना पहले जान पाता
तो आज इतना नहीं जान पाता
पर कम से कम
अब ये जानता हूँ
तुम अच्छे से होगे ............
13 comments:
Lovely sir.... Awsum
Tm ache se hoge......well said lines sir
Heart touching lines...
Its really heart touching lines sir.... Bilkul mst hi..
The outstanding imagery in this poem is enhanced by your poetic choice of heavenly metaphors blended with the rhythm flowing from your heart. well composed sir
दिल को छु लेने वाली कविता ।।
वाह सर। क्या बात है। बहुत दिनों बाद कोई कविता मैंने पढ़ा ,दिल मे समा गई।
Bahut Baidya sir .... Dil ko cu gayi
जानते थे वो गुलेलों का निशाना हैं मगर,
खुश थे पंछी क्योंकि बैठे थे ठिकाना देखकर...
भावनाओं को शब्दों में पिरोने का हुनर जानते हैं सर आप...
बहुत अच्छी लेखिका नहीं हूँ मैं मगर... कभी जब अच्छी कविता पढ़ने को मिलती है... तो वो सुकून देती है...
Ek choti si poem, lekin matlab itna gehra. Jis cheez ko padh ke connect kar le jao khudse. Wo alag hi jagah bana leti hai dil mei.
Ek choti si poem, lekin matlab itna gehra. Jis cheez ko padh ke connect kar le jao khudse. Wo alag hi jagah bana leti hai dil mei.
This poem beautifully brings out the pain and the acceptance of the pain of two people who no longer are together.
What I really like about this poem is how the writer is not bitter, instead he reminisces the past, and still wishes the best for the other.
Kuch ittefaaq bhi behad khoobsoorat hote hain...kyun? kab? kahan? kaise?
Ye kaun jaanta hai?
Bas wo achhe ho, ye dil chahta hai :)
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