अगले दिन
सुबह बारिश ले कर आई |जिसने हमारा एलीफेंटा द्वीप का कार्यक्रम चौपट कर दिया
|बारिश की वजह से एलीफेंटा द्वीप पर्यटकों के लिए बंद कर दिया गया |
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विदा हेवेलॉक |
हमें दोपहर बाद
नील द्वीप के लिए निकलना था |समय काफी था मैंने आस –पास की जगह चक्कर मारने का
निश्चय किया |
हमारे रिसोर्ट के पीछे नारियल के बड़े बाग़ थे और उसके पीछे एक छोटी
पहाडी |तरह –तरह के नारियल गिरे हुए थे |छोटे बड़े मोटे पतले कुछ हरे रंग के तो कुछ
पीले |मुझे बताया गया कि पीले वाले नारियल ज्यादा मीठे होते हैं |
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बीस के नोट पर अंडमान |
यहाँ बांस ,केला
और नारियल के पेड़ मुझे बहुतायत में दिखे |वैसे यहाँ सुपाड़ी भी होती है पर उसके पेड़
मैं न पहचान पाया |बाहर बारिश में कई तरह के जीव नालियों में जमीन पर दिखे ,जिनमें
मैं स्नेल को पहचानता था |बचपन में हम इनके कवच शंख से खूब खेला करते थे पर उत्तर
भारत में मौरंग या तालाब के किनारे मिलने वाले स्नेल से यहाँ पाए जाने वाले स्नेल
का आकार बहुत बड़ा था |इसका कारण यहाँ इंसानों की आबादी का कम होना या यह प्रजाति
यहीं मिलती इसके बारे में कुछ न पता लगा |
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केवड़े का फल |
वैसे भी ज्यादातर लोग यहाँ छुट्टियाँ
बिताने आते हैं न कि ज्ञान लेने और देने तो मुझे कोई ख़ास जानकारी आस- पास न मिल पा
रही थी |यहाँ के निवासी भी ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे ज्यादातर दसवीं ,बारहवीं पास
कर नौकरी करने लग जाते हैं |वैसे एक बात जो बड़ी रोचक है |हमारे बीस के नोट पर जो
बीच का खुबसूरत चित्र छपा रहता है वो अंडमान का ही है |कुछ देर ताश खेला गया ,कुछ देर
चहलकदमी के बाद अब नील द्वीप जाने का समय हो गया था |दो बजे हमें हेवेलॉक की जेटी
पहुँच जाना था |वहां से ग्रीन ओशन का क्रूज हमें नील द्वीप ले जाने वाला था |बारिश
रुक –रुक के हो रही थी |हम लोग एक बजे हेवेलॉक की जेटी पहुँच गए |मैंने सोचा एक
बार फिर सिक्योरिटी चेक का ताम-झाम होगा पर ऐसा कुछ भी नहीं था | खुले आसमान के नीचे हम लोग भीग रहे थे |
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जीता जागता स्नेल |
जहाज
के आने में अभी समय था और जेटी का वह कमरा जो प्रतीक्षा कक्ष था लोगों से भरा हुआ
था |हम उस रिम झिम बारिश के बीच खुले समुद्र की तरफ चल पड़े ,जहाँ कई तरह की स्पीड
बोट खड़ी हुई थीं जिनमें कुछ लोग यूँ ही पसरे थे |शायद बारिश के कारण धंधा मंदा था
|हमने एक नारियल पानी पीया और प्रकृति की खूबसूरती का आनंद उठाने लगे | तभी ग्रीन
ओशन के दुकाननुमा कार्यालय का शटर खुला और हमें बताया गया ग्रीन ओशन आ गया है
लेकिन जहाज में चढ़ने से पहले उस कार्यालय में जाकर हमें अपने टिकट पर चेक इन का
ठप्पा लगवाना था |वहां लोगों की भीड़ पहले ही इकट्ठा हो चुकी थी पर इस काम में
ज्यादा समय नहीं लगा |अब भीगते भागते हम ग्रीन ओशन में घुसने के लिए तैयार थे पर
जिस तरह की हडबडाहट ग्रीन ओशन के क्रू मेंबर दिखा रहे थे इसका कारण मुझे समझ न आ
रहा था क्योंकि क्रूज के चलने का आधिकारिक समय अभी हुआ नहीं था |
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नील की जेटी |
ग्रीन ओशन
,मैक्क्रुज के मुकाबले कम विलासिता वाला क्रूज था |बारिश में लोगों के चढ़ने के
कारण अंदर एक अजीब सी गंध थी जैसे कहीं मछली मरी हुई हो |हमारे जहाँ बैठने की
व्यवस्था थी उस जगह की सारी फर्श गीली हो चुकी थी |अभी हम लोग बैठ कर व्यवस्थित भी
नहीं हुए थे कि ग्रीन ओशन चल पड़ा,जबकि अभी उसका चलने का आधिकारिक समय नहीं हुआ था
|शायद इसी कारण जहाज के क्रू मेंबर जल्दीबाजी दिखा रहे थे वैसे भी क्रूज में चलने
के लिए आपको पहले से आरक्षण करवाना पड़ता है |अगर सारे लोग आ गए हों तो वह चल पड़ा
हो |यही सब सोचते हम खिड़की से नील द्वीप को खोजने लग गए क्योंकि हमारे साथ –साथ एक
विशाल थल आकृति भी चल रही थी |धीरे –धीरे वो भी पीछे छूट गयी |अब हमारे सामने सिर्फ विशाल शांत
समुद्र था |
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कुछ लिखना जरुरी है क्या ? |
हेवेलॉक से नील तक की समुद्री
दूरी एक घंटे में तय की जानी थी |जल्दी ही नील का किनारा दिखने लगा | जनश्रुतियों
के अनुसार नील द्वीप का नाम भगवान राम के योद्धा नील के नाम पर पड़ा | जिन्होंने
रामेश्वरम से श्रीलंका तक पुल बनाने में भगवान राम की मदद की थी |लेकिन इतिहास
बताता है कि अंडमान निकोबार में बाहरी लोग तो अंग्रेजों के आने के बाद बसे और जो
आदिवासी हैं वो हिन्दू धर्म नहीं मानते तो ये जनश्रुति कैसे बनीं कहना मुश्किल है
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नील की
जेटी भी हेवेलॉक जैसी थी ,भीड़ सिर्फ जेटी पर ही थी |शहर एकदम खाली ,भीड़ थी पानी से
भीगे पेड़ों की |चारों तरफ पेड़ –पौधों से भरे खेत पर ये पेड़ इतने सघन थे कि सडक से
खेतों में झांकना मुश्किल था |बीच में एक
छोटी सी सड़क जिसमें एक वक्त में एक ही गाडी आ या जा सकती थी |हमारा ड्राइवर रॉकी
नाम का एक जवान लड़का था |मैंने पूछा क्रिश्चियन हो उसने कहा हाँ |
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नील का नेचुरल ब्रिज |
नील में क्रिश्चियनों के चार परिवार रहते हैं |बाकी सारी
आबादी हिन्दुओं की है जबकि पोर्ट ब्लेयर में मुसलमानों की भी ठीक –ठाक आबादी है |जेटी
से उतरते ही हमें नेचुरल ब्रिज देखने जाना था |जो जेटी से करीब पांच किलोमीटर दूर
था | नेचुरल ब्रिज हालांकि एक भौगौलिक आकृति है पर पर्यटकों को बेवक़ूफ़ बनाने के
लिए इसके साथ भी एक कथा जोड़ दी गयी है कि यह एक पुल है |जिसे किसने बनाया किसी को
पता नहीं ,पहले तो गाईड ले लेने की मनुहार जो काफी सभी तरीके से की गयी |मैंने भी
सभी तरीके से मना कर दिया ,फिर हिन्दुस्तानी जुगाड़ लगाया |हम एक ऐसे दल के पीछे हो
लिए जिसने गाईड कर रखा था |मैं यह जानना चाहता था कि ये लोग क्या नया अनूठा बताते
हैं |कुछ सीढियां ऊपर चढ़ने के बाद नीचे उतरने के बाद हम समुद्र के सामने थे |
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नील कुछ ऐसा दिखा मुझे अपने क्रूज से |
एक
ऐसा किनारा जहाँ बहुत से नुकीले पत्थर थे |सामने मैन्ग्रोव के जंगल और हमारे पीछे
केवड़े के बड़े –बड़े पेड़ जिसमें ,खरबूजे जैसे पीले फल लगे हुए थे | गाईड लोगों को
बता रहा था कि ये फल पहले आदिवासियों का भोजन था |वो आदिवासी अब कहाँ गए ये बताने
वाला कोई नहीं था |वैसे भी अंडमान और निकोबार के आदिवासी भारत के सबसे खूंखार
आदिवासी माने जाते हैं |बहुत सारे नुकीले पत्थरों और चट्टानों को पार करने के बाद हम एक ऐसी आकृति
के सामने थे |जो एक चट्टान थी और समुद्र के पानी से कटने के बाद एक छेदनुमा आकृति
बना रही थी |इसी के किनारे बैठकर मैंने सूर्यास्त का आनंद लिया |
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पीले नारियल |
जैसे –जिसे सूरज
डूब रहा था मैं सोच रहा था एक दिन हमको भी इस दुनिया से चले जाना है चुपचाप |मैं
आज जहाँ बैठा हूँ कल कोई बैठा था और कल कोई आकर बैठेगा |दुनिया में एक चीज सत्य है
और वह है परिवर्तन |मेरे अगल –बगल लोगों का झुण्ड जिन्दगी का लुत्फ़ उठाने में
मशगूल था |एक जोड़ा जिसकी नई –नई शादी हुई थी |हाउ लवली हाउ क्यूट जैसे शब्दों से
संवादों का आदान –प्रदान कर रहे थे |एक ऐसा भी परिवार था जो अपनी दिव्यांग बच्ची
को नेचुरल ब्रिज दिखाने लाये थे जो पैर से
ठीक से नहीं चल पा रही थी |एक वृद्ध जोड़ा शायद जिन्दगी की शाम में जिन्दगी को जीने
निकल पड़ा था |मैं जिन्दगी के इस सर्कस को जोकर की तरह आँखें फाड़े देख रहा था |शाम घिर रही थी |आस -पास के जंगल पंछियों की चहचाहट से गूंज उठे |अब हमें भी वापस अपने रिजोर्ट लौटना था |
जारी ...................................
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