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लक्ष्मणपुर के सामने हमारा रिजोर्ट |
नील द्वीप में जिस
रिजोर्ट में हमारे रुकने की व्यवस्था थी उसके ठीक सामने लक्ष्मनपुर बीच था | रिजोर्ट
में सामान पटकते सभी द्वीप की ओर लपके ,आसमान में काले बादल छा चुके थे और हवा
ठंडी हो रही थी |ऐसा लग रहा था बड़े जोर की बारिश होगी पर मौसम बहुत देर तक ऐसा ही
रहा |मेरी हमेशा से आदत रही है जो सब करें वो न करो तो मैं थोड़ी देर रिजोर्ट के
कमरे में अकेले पड़ा रहा |धीरे –धीरे शाम घिर आई और जब बीच एकदम खाली हो गया मैंने
बीच का एक चक्कर लगाने का निर्णय किया |चूँकि आसमान में बादल छाये हुए थे इसलिए
अँधेरा जल्दी हो गया था |बीच पर पत्थर ज्यादा थे इसलिए वहां नहाया तो बिलकुल नहीं
जा सकता था |समुद्र में पैर जरुर भिगोये जा सकते थे |बीच एकदम सुनसान पड़ा था
|उसके किनारे तरह –तरह के खोमचे जरुर लगे थे पर वहां एक भी आदमी न दिखा |शायद
बारिश के डर से सब अपनी दुकान जल्दी बढ़ा गये थे |वहां सिर्फ पन्नियों में ढंकी
आकृतियाँ ही दिख रही थीं पर उन खोमचों में क्या बेचा जाता था |यह बता पाना मुश्किल
था |मैं समुद्र के किनारे की नरम बालू में धीरे –धीरे बढ़ता जा रहा था |
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लक्ष्मणपुर बीच और भीगा -भीगा मौसम |
कुछ आगे
जाने पर एक दो आकृतियाँ मुझे समुद्र के किनारें दिखीं पर उनकी ओर मैंने ध्यान न
देकर समुद्र में किनारे –किनारे चलने का निश्चय किया |मुझे लगा कोई आवाज दे रहा था
पीछे मुड़कर देखता हूँ तो पुलिस की वर्दी में एक महिला और पुरुष खड़े थे जो मुझे
अपने पास बुला रहे थे |अँधेरा होने के कारण उनका चेहरा साफ़ नहीं दिख रहा था लेकिन
मैं समझ चुका था कि वे मुझे समुद्र से दूर रखना चाह रहे थे |मैं थोड़ी देर में उनके
पास था |परिचय हाल चाल के बाद मैंने पुलिस वर्दी में खड़े पुरुष से पूछा कि आप कहाँ
से हैं तो उसने बताया वह आजमगढ़ का रहने
वाला है और लम्बे समय से यहाँ अंडमान में तैनात हैं |उनकी पढ़ाई लिखाई काशी हिन्दू
विश्वविद्यालय से हुई थी |वो तो मुलुक के निकल आये फिर तो न जाने किन –किन मुद्दों
पर हमने बातें की |ये बात तब तक चलीं जब तक इतना गहरा अँधेरा न छा गया कि हम एक
दूसरे को भी देख न पा रहे थे |हमारी बात चीत में एक दुकान वाला भी शामिल हो गया
|अंडमान मने अपराध न के बराबर था |उत्तर प्रदेश का मूल निवासी होने के बावजूद वो
पुलिस इन्स्पेक्टर रिटायर होने के बाद वहां नहीं लौटने वाले थे |क्यों ? वहां कोई
कानून नहीं है |
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भीगता समुद्र |
उनकी बेटी बैंगलोर में पढ़ रही थी ,जब घर की याद आती है तो साल में
एक बार चक्कर लग जाता है बस उनके हिस्से का उत्तर प्रदेश इतना ही बचा है उनके
व्यक्तित्व में |बच्चे गाँव नहीं जाते उनकी तबियत खराब हो जाती है |नील द्वीप के
जनसँख्या अब ढाई लाख है पर उस दुकानदार ने बताया कि ये बहुत ज्यादा है |पहले तो
लोग दिखते ही नहीं थे |अब रात पूरी तरह से हो चुकी थी |उन पुलिस वाले साहब ने हमसे
कहा आप समुद्र के किनारे –किनारे न जाकर रोड से रिजोर्ट जाइए |हमने उनकी बात मान
ली वे तो अपनी बाईक पर उस महिला कांस्टेबल
के साथ बैठकर फटाक से वहां से निकल गए
लेकिन हमें पैदल जाना था |ऊँचे –ऊँचे पेड़ों के बीच हम उस रोड पर बढ़ चले जो हमारे
रिजोर्ट तक जाती थी |वे ऊँचे पेड़ अब काले और डरावने लग रहे थे |
रह –रह के बिजली चमक रही थी
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ऐसे ही भीगते मौसम में गेस्ट अपीरियेंस देता यह नाचीज |
कोई स्ट्रीट लाईट नहीं हम अंदाजे से बढे चले जा रहे थे पर रास्ता ख़त्म होने का
नाम ही ले रहा था |अब मुझे इस बात का डर था कि कहीं भटक तो नहीं गए हैं क्योंकि
समुद्र के रास्ते से हमें इतनी देर नहीं लगी थी |मैं इस बात से निश्चिन्त था कि यहाँ
हमारे साथ कोई अपराध नहीं होगा पर रास्ता अगर भटक गए तो क्या होगा क्योंकि सड़क के
दोनों और दूर –दूर तक कोई आबादी नहीं दिख रही थी |कुछ देर बाद हमें बिजली की रौशनी
दिखी और जान में जान आई |उस रौशनी का पीछा करते हुए हम आगे बढ़ते रहे जो संयोग से
हमारे रिजोर्ट की ही थी |हमारे रिजोर्ट पहुँचते ही बड़े जोर की बारिश शुरू हो गयी
|अब हम निश्चिन्त थे क्योंकि हम अपने रिजोर्ट बगैर भीगे पहुँच चुके थे |रात लगातार
बारिश होती रही और हमारे सामने का समुद्र गरजता रहा |सुबह आँख खुलते हमारा स्वागत
बारिश ने किया |इस बात की पूरी संभावना थी कि आज का हमारा लक्ष्मणपुर बीच देखने का
कार्यक्रम गड़बड़ा न जाए |हमारे रिजोर्ट के सामने भरतपुर बीच था |नाश्ते के बाद
हमारे पास बारिश के रुकने का इन्तजा💕र करने के अलावा कोई चारा नहीं था |उस वक्त जब
कि पूरा उत्तर भारत गर्म थपेड़ों से जूझ रहा था |
हम भारत के अंतिम कोने पर स्थित
अंडमान में मानसून का स्वागत कर रहे थे |हालांकि इस स्वागत में मजबूरी नुमा खीज भी
शामिल थी क्योंकि ये बारिश हमारे कार्यक्रम में बाधा डाल रही थी |थोड़ी देर इधर उधर
घूमने के बाद मैंने समुद्र के किनारे जाकर बैठने का निश्चय किया |
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वो कॉटेज जहाँ से ख्याल जन्म ले रहे थे |
उस भीगे दिन जब
आसमान में बादल छाए थे मैं समुद्र के किनारे एक झोपडी नुमा कॉटेज में बैठकर समुद्र
को भीगते देख रहा था |लहरें किनारे की जमीन को चूम कर वापस लौट जा रही थीं |जहाँ
से वो आईं थीं |लौटना तो हम सबको है उस अनन्त दुनिया में जहाँ से कोई नहीं लौटता
फिर हम कहाँ भागे जा रहे हैं |ऐसे न जाने कितने ख्याल दिमाग में आ जा रहे थे |कभी –कभी
कोई जहाज दूर समुद्र में अपनी मंजिल की ओर बढ़ता दिख जाता था |कभी कैमरा निकाल कर
कुछ तस्वीरें खींच लेता कभी आस –पास की हरियाली में थोडा भीगकर वापस अपनी जगह लौट
आता |आस पास न जाने कितने छोटे बड़े घोंघे उठाता थोड़ी देर उनकी हरकतों को देखता और
फिर उनको उनकी जगह छोड़ देता |दिन के करीब साढ़े बारह बारिश बंद हो गयी थी पर अब समय
का टोंटा था |ढाई बजे मैक्क्रुज वापस हमें पोर्ट ब्लेयर ले जाने वाला था और अभी
लक्ष्मणपुर बीच भी जाना था |भागते दौड़ते लक्ष्मणपुर बीच पहुंचे जो सौभाग्य से नील
की जेटी से लगा हुआ था और हम यहाँ से मैक्क्रुज को आते हुए देख सकते थे | लक्ष्मणपुर
बीच अंडमान के अन्य द्वीपों की तरह साफ़ सुथरा और भीड़ भाड़ रहित था |यहाँ खूब सारे
वाटर स्पोर्ट्स की सुविधा थी पर उस भीगे दिन बारिश के कारण सभी स्पोर्ट्स बंद थे और
हमारा जेट स्की चलाने का सपना ,सपना ही रह गया |
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भरतपुर बीच |
समुद्र में अभी पैर भिगोये ही थे
कि पता पड़ा | मैक्क्रुज आ चुका है अब जेटी की तरफ भागना था |गिरते पड़ते हम जेटी की
तरफ पहुंचे और मैक्क्रुज में अपनी सीट पर धंस गए |नील द्वीप को विदा करने का समय आ
चुका था |
समय से पहले मैक्क्रुज चल पड़ा |क्रू के सदस्यों ने हमें बताया मौसम खराब
होने के कारण अगले तीन दिन कोई शिप पोर्ट ब्लेयर नहीं जाएगा | मैक्क्रुज सिर्फ हम
जैसे पर्यटकों को निकालने ही आया था |इस सूचना का अभी शुक्र मना भी नहीं पाए थे कि एक नया
अहसास हमें डराने के लिए तैयार था |अभी तक की मेरी समुद्री यात्राओं में एक बार जहाज के अन्दर बैठने के बाद थोड़े
बहुत हिचकोले के बाद वो शान्ति से चलता था पर इस बार ऐसा नहीं होने वाला था |जहाज
जैसे गहरे समुद्र में पहुंचा हमें लगा किसी ऊंट की सवारी कर रहे थे |पूरे जहाज में
चीखने चिल्लाने की आवाजें आने लगीं |
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भरतपुर बीच जहाँ नांव इन्तजार करती हैं |
जहाज कभी ऊपर जाता कभी नीचे | क्रू के सदस्य
सब यात्रियों के पास मुस्तैद खड़े हो गए |हालांकि जहाज का माहौल ऐसा था कि वे भी
सीधे नहीं खड़े हो पा रहे थे |उन्होंने बताया यह सामान्य घटना है |आप सभी सुरक्षित
हैं |आज “रफ सी” है मौसम खराब है |आप सभी धैर्य बनाये रखें |ऐसे माहौल में चारों
तरफ से या तो लोगों के चिल्लाने की आवाजें आ रही थीं या उल्टियाँ करने की |हमने
धैर्य बनाये रखा क्योंकि जो होना है सो होना है का दर्शन शायद ऐसे ही वक्त के लिए दिया गया था |पर मैं कल्पना
कर रहा था कि अगर जहाज डूब गया तो बस ये सोच कर सुरेन्द्र मोहन पाठक के उपन्यास से
शब्द उधार लूँ तो “मेरे तिरपन काँप गए” |थोड़ी देर के बाद इन हिचकोलों की आवृत्ति
कम और कम होती गयी |पोर्ट ब्लेयर पहुँचते –पहुँचते ज्यादातर पर्यटक निढाल हो चुके
थे पर मैं ठीक ठाक था और अगले दिन जारवा जनजाति को देखने उनकी दुनिया में जाने के
बारे में सोच रहा था |
जारी ...............................................
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