Saturday, October 3, 2020

मासूम नहीं फनी विडियो के मजाक

 

बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप के अनुसार भारत का वीडियो स्ट्रीमिंग बाजार 2023 तक बढ़कर पांच बिलियन डॉलर का हो जाएगा जो साल 2018 में मात्र पांच सौ मिलीयन का था|इंटरनेट पर दो तरह के वीडियो उपलब्ध हैं पहला ओटीटी प्लेत्फोर्म्स जिसमें यूजर्स एक निश्चित रकम चुका कर के इंटरनेट पर विज्ञापन रहित वीडियो कंटेंट का लुत्फ़ उठाते हैं वहीं दूसरे प्रकार का दर्शक इंटरनेट पर यूट्यूब और इन्स्ताग्राम जैसी साईट्स पर वीडियो का लुत्फ़ उठाता है पर उन वीडियो को देखने के लिए अलग से कोई भी धनराशि खर्च नहीं करता पर इसके बदले ये कम्पनियां उसे वीडियो के साथ विज्ञापन भी दिखाती हैं |एनाल्सस मासन के आंकड़ों के मुताबिक़ साल 2019 के आंकड़ों के मुताबिक़ एक औसत भारतीय स्मार्टफोन धारक एक महीने में 8.5 गीगा बाईट का डाटा बगैर वाई –फाई का इस्तेमाल किये हुए खर्च कर रहा था या इसे अन्य शब्दों में समझें तो औसतन चालीस घंटे देखे जाने लायक डाटा खर्च कर रहा था और यह आंकड़े अमेरिका चीन और जापान के कंज्यूमर से ज्यादा है |ये आंकड़े बताते हैं कि भारत में इंटरनेट वीडियो का जादू सर चढ़कर बोल रहा है पर सवाल यह उठता है कि इन मुफ्त के वीडियो में जो विज्ञापन आधारित मोडल पर दिखाए जा रहे हैं उनमें लोग क्या पसंद कर रहे हैं |

फेसबुक ,इन्स्ताग्राम हो या यूट्यूब संगीत के बाद सबसे ज्यादा देखे जाने वाले वीडियो में दर्शकों की पसंद फन्नी वीडियो या प्रैंक वीडियो ही हैं |खाली वक्त में जब करने जैसा ख़ास कुछ न हों और हाथ में स्मार्ट फोन हो तो लोग अक्सर इन वीडियो की तलाश में रहते हैं |जब यूँ ही स्क्रोल करते हुए कुछ रोचक दिख जाता है |इन्सान सदियों से एक दूसरे के साथ मजाक करता आ रहा है |जब हमें यह पहली बार पता लगा कि अपनी सामजिक शक्ति का हेर फेर करके दूसरों की कीमत पर मजाक उड़ाया जा सकता है |प्रैंक या मजाक ज्यादातर संस्कृतिक मानकों  द्वारा निर्धारित होते हैं जिनमें टीवी रेडियो और इंटरनेट द्वारा स्थापित मानक भी शामिल हैं |लेकिन जब सांस्कृतिक और व्यवासायिक मानक मजाक करते वक्त आपस में टकराते हैं और अगर उन्हें जनमाध्यमों का साथ मिल जाए तो इसके परिणाम भयानक साबित हो सकते हैं |दिसम्बर 2012 में जैसिंथा सल्दान्हा नाम की एक भारतीय मूल की ब्रिटिश  नर्स ने एक प्रैंक काल के बाद आत्महत्या कर ली थी उसके बाद सारी दुनिया में इस बात पर बहस चल पडी कि इस तरह के मजाक को किसी के साथ करना फिर उसे रेडियो टीवी या इंटरनेट के माध्यम से लोगों तक पहुंचा देना कितना जायज है |साल 2012 में इंटरनेट इतने बहुआयामी माध्यमों के साथ हमसे नहीं जुड़ा था पर आज के हालात एकदम अलग हैं|हिट्स और क्लिक से पैसे कमाए जा सकते हैं|यह महत्वपूर्ण नहीं है कि क्या दिखाया जा रहा है बस व्यूज मिलने चाहिए ऐसी हालत में भारत एक खतरनाक स्थिति में पहुँच रहा है |जिसमें प्रैंक वीडियो एक बड़ी भूमिका निभा रहे हैं |

दुनिया में ऑनलाईन प्रैंक वीडियो की शुरुआत यूटयूब और फेसबुक जैसी साईट्स के आने से बहुत पहले हुई थी |साल 2002 में इंटरेक्टिव फ्लैश वीडियो स्केयर प्रैंक के नाम से पूरे इंटरनेट पर फ़ैल गया था |थोमस हॉब्स उन पहले दार्शनिकों में से थे जिन्होंने ये माना कि मजाक के बहुत सारे कार्यों में से एक यह भी है कि लोग अपने स्वार्थ के लिए मजाक का इस्तेमाल सामाजिक शक्ति पदानुक्रम को अस्त व्यस्त करने के लिए करते हैं | सैद्धांतिक रूप सेमजाक  की श्रेष्ठता के सिद्धांतों को मनोविज्ञान और समाजशास्त्र के बीच संघर्ष और शक्ति संबंधों के संबंध में समझा जा सकता है| विद्वानों ने स्वीकार किया कि संस्कृतियों मेंमजाक और मज़ाक का इस्तेमाल अक्सर "हिंसा को सही ठहराने और मजाक के लक्ष्य को अमानवीय बनाने के लिए" किया जाता है|इन सारी अकादमिक चर्चाओं के बीच भारत में इंटरनेट पर मजाक का शिकार हुए लोगों की चिंताएं गायब हैं |

सबसे मुख्य बात सही और गलत के बीच का फर्क मिटना जो सही है उसे गलत मान लेना और जो गलत है उसे सही मान लेना |जिस गति से देश में इंटरनेट पैर पसार रहा है उस गति से लोगों में डिजीटल लिट्रेसी नहीं आ रही है इसीलिये निजता के अधिकार जैसी आवश्यक बातें कभी विमर्श का मुद्दा नहीं बनती | किसी ने किसी  से फोन पर बात की अपना मजाक उडवाया यह मामला यहं तक व्यक्तिगत रहा फिर वही वार्तालाप इंटरनेट के माध्यम से सार्वजनिक हो गया |जिस कम्पनी के सौजन्य से यह सब हुआ उसे हिट्स लाईक और पैसा मिला पर जिस व्यक्ति के कारण यह सब हुआ उसे क्या मिला ? यह सवाल अक्सर नहीं पूछा जाता |इंटरनेट पर ऐसे सैकड़ों एप है जिनको डाउनलोड करके आप मजाकिया वीडियो देख सकते हैं और ये वीडियो आम लोगों ने ही अचानक बना दिए हैं |कोई व्यक्ति रोड क्रोस करते वक्त मेन होल में गिर जाता है और उसका फन्नी  वीडियो इंटरनेट पर वायरल हो जाता है और फिर अनंतकाल तक के लिए सुरक्षित भी हो जाता है |

हमने उस वीडियो को देखकर कहकहे तो खूब लगाये पर कभी उस परिस्थिति में अपने आप को नहीं देख कर सोचा|इंटरनेट के फैलाव ने बहुत सी निहायत निजी चीजों को सार्वजनिक कर दिया है|ये सामाजिक द्रष्टि से निजी चीजें जब हमारे चारों ओर बिखरी हों तो हम उन असामान्य परिस्थिति में घटी घटनाओं को भी सार्वजनिक जीवन का हिस्सा मान लेते हैं जिससे एक परपीड़क समाज का जन्म होता है और शायद यही कारण है कि अब कोई दुर्घटना होने पर लोग मदद करने की बजाय वीडियो बनाने में लग जाते है |मजाकिया और प्रैंक वीडियो पर कहकहे लगाइए पर जब उन्हें इंटरनेट पर डालना हो तो क्या जाएगा और क्या नहीं इसका फैसला कोई सरकार नहीं हमें आपको करना है |इसी निर्णय से तय होगा कि भविष्य का हमारा समाज कैसा होगा |

  नवभारत टाईम्स में 03/10/2020 को प्रकाशित 

 

1 comment:

Unknown said...

Informative and well versed article..

पसंद आया हो तो