जिन्दगी का सफर है ये कैसा सफर कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं .ऐसी ही है जिन्दगी इसको समझने की कोशिश तो बहुत से दार्शनिकों , चिंतकों ने की लेकिन जीवन चलने का नाम चलते रहो सुबह शाम , वास्तव में जिन्दगी तो चलने का ही नाम है और ये बात कितनी आसानी से एक फिल्मी गाने ने हमें समझा दी.हिन्दी फिल्मों के गाने यूँ तो पुरे देश में सुने और सराहे जाते हैं लेकिन ज्यादातर लोग इन गानों को गंभीरता से नहीं लेते .हिन्दी फिल्मों के गानों की एक अलग दुनिया है. और इस रंग बिरंगी दुनिया में जिन्दगी के लाखों रंग हैं. अगर प्रश्न जिन्दगी को समझने का हो तो काम और भी मुश्किल हो जाता है लेकिन गाने कितनी आसानी से जिन्दगी की दुश्वारियों , परेशानियों , अच्छाइयों को हमारे सामने लाते हैं .अब अगर लोगों के मिलने बिछड़ने की बात करें तो जिन्दगी के सफर में बिछड़ जाते हैं जो मुकाम वो फ़िर नहीं आते (आप की कसम), जिन्दगी की पहेली को उलझाता सुलझाता ‘आनंद’ फ़िल्म का ये गाना “जिन्दगी कैसी है पहेली हाय”.हिन्दी फिल्मों के गानों में जिन्दगी के दर्शन को बहुत करीब से समझने की कोशिश की गयी है .जिन्दगी का समय अनिश्चित है इसलियी ‘ज़मीर’ फ़िल्म के इस गाने में कहा गया है “जिन्दगी हंसने गाने के लिए है पल दो पल” और इसी दर्शन को आगे बढाता ‘अंदाज़’ फ़िल्म का ये गाना “जिन्दगी एक सफर है सुहाना यहाँ कल क्या हो किसने जाना” और जिन्दगी की सबसे बड़ी पहेली यही है की कल क्या होगा कल जो होना है फ़िर उसके लिए आज ही से क्यों परेशान हुआ जाए, लेकिन जिन्दगी खूबसूरत तो तभी होती है जब कोई साथी जिन्दगी में हो और शायद ‘अनारकली’ फ़िल्म का ये गीत कहता है “जिन्दगी प्यार की दो चार घड़ी होती है”. ‘साजन’ फ़िल्म के इस गाने में गीतकार अपने चरम पर है “सांसों की जरुरत है जैसे जिन्दगी के लिए एक सनम चाहिए आशिकी के लिए” प्यार की इसी ताकत का एहसास करता ‘क्रांति’ फ़िल्म का ये गाना कि “जिन्दगी की न टूटे लड़ी प्यार कर ले घड़ी दो घड़ी” . हम कई आयामों से जिन्दगी को समझने की कोशिश जरूर कर रहे हैं लेकिन फ़िर भी ‘सत्यकाम’ फ़िल्म के इस गाने की तरह “जिन्दगी है क्या बोलो जिन्दगी है क्या” , यह तो एक व्यक्ति के द्रष्टिकोण के ऊपर निर्भर करता है.जिन्दगी में हमें जो मिला है या तो उससे संतुष्ट हो जाएँ या जिन्दगी को बेहतर बनांने की कोशिश करते रहें क्योंकि जिन्दगी रुकती नहीं किसी के लिए चलता रहे इंसान मुनासिब है जिन्दगी के लिए. मुझे ‘समाधि’ फ़िल्म का एक गाना याद आ रहा है ‘ये जिन्दगी है कौम की तू कौम पर लुटाये जा’ . किस्सा छोटा सा है फलसफा बड़ा जो सफर प्यार से कट जाए वो प्यारा है सफर नहीं तो मुश्किलों के दौर का मारा है सफर. अगली बार जब आप कोई प्यारा सा फिल्मी गाना सुने तो जरुर उसके माध्यम से जिन्दगी को समझने की कोशिश कीजियेगा. ‘सीता और गीता’ फ़िल्म का गाना है “जिन्दगी है खेल कोई पास कोई फ़ेल’ तो जिन्दगी के इस खेल को खेल की भावना से खेलिए और विरोधियों का दिल जीतने की कोशिश कीजिये क्योंके कोशिशें ही कामयाब होती है. जिन्दगी को बेबसी मत बनने दीजिये जिन्दगी को समझने का सिलसिला ‘दूरियां’ फ़िल्म के इस गीत के माध्यम से ख़त्म करता हूँ “जिन्दगी मेरे घर आना जिन्दगी” .
प्रभात खबर में 06/10/2020 को प्रकाशित
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