Sunday, October 18, 2020

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की अनदेखी दुनिया :सातवाँ भाग

स्कूबा डाइविंग की तैयारी 
दो चार बार की कोशिश के बाद मुझे लगा शायद मैं स्कूबा डाइविंग का लुत्फ़ उठा ही नहीं पाऊंगा |मेरे इंस्ट्रक्टर ने पता नहीं क्या सोच कर मुझे समुद्र के एक ऐसे किनारे ले गया |जहाँ कोई नहीं था एक बार फिर मुझे हौसला दिया और कहा आप कर सकते हैं फिर उसने मुझे समुद्र पर सर ऊपर रख कर लेटने को कहा ,चूँकि मैं स्कूबा सूट पहने हुए था,इसलिए मुझे कोई समस्या नहीं हुई फिर वो मुझसे इधर उधर की बात करते हुए मुझे आगे बढ़ाने लगा |मुझे लगा हम छिछले समुद्र में ही पर वो मुझसे बात करते करते कबका गहरे समुद्र में ले जा चुका था |उसने मुझसे बताये बगैर कहा एक बार फिर से कोशिश करेंगे और धीरे –धीरे मैं समुद्र की गहराई में उतर चला |मैं बार –बार अपने आप से कह रहा था |पैनिक नहीं करना है और मुंह से सांस लेनी है |धीरे –धीरे मुझे सब ठीक लगने लगा |जब उनका आधिकारिक कैमरा पर्सन समुद्र की उस गहराई में मेरी फोटो खींचने आया तो मैंने खूब पोज दिए |मैं प्रकृति की विशालता से परिचित हो रहा था |तरह –तरह की मछलियाँ ,कोरल और न जाने क्या –क्या |मैं तो विस्मय से बस सब देखे जा रहा था |वो बार बार इशारे से पूछता सब ठीक और मैं कहता सब ठीक |करीब बीस मिनट के बाद मुंह से सांस लेने के कारण मेरा गला सूख चुका था और लग रहा था जैसे खूब सारा नमक किसी ने भर दिया हो |अब मेरे लिए वहां रहना मुश्किल हो रहा था |मैंने इशारा किया ऊपर चलो |उसने भरसक कोशिश की कि मैं अपनी समस्या पर काबू पाऊं |मैं जान चुका था अब अगर रुके तो काण्ड हो जाएगा |पांच मिनट के बाद हम सतह के ऊपर आ गए |मैंने चारो ओर नजर घुमाई सिर्फ पानी और दूर कोई द्वीप दिख रहा था |

मैंने कहा अरे इतनी दूर निकल आये अब वापस कैसे जायेंगे |मेरे इंस्ट्रक्टर ने कहा आप चिंता न करें आते वक्त जैसे आये थे वैसे लेट जाएँ अपना सर पानी के ऊपर रखें |
खूबसूरत राधानगर बीच 
हम आराम से वापस लौट जायेंगे |मुंह पर धूप बहुत तेज लग रही थी इसलिए अपने सर पर मुझे अपने हाथों की ओट लेनी पड़ी|अब हम वापस लौट रहे थे समुद्र में लेटने का यह बड़ा विचित्र अनुभव था |मुझे बड़े प्यार से घसीटा जा रहा था |समय काटने के लिए मैंने उनसे बात करनी शुरू कर दी |स्कूबा डाइविंग जाते वक्त एक हिदायत जरुर दी जाती है |पानी के अंदर किसी भी चीज को छूना नहीं है |सच बताऊँ इतनी सुन्दर –सुन्दर मछलियाँ जब मेरे  अगल –बगल से गुजर रही थीं तो उन्हें छूने का बहुत मन कर रहा था लेकिन मुझे ध्यान आया हम उनके घर में चले आयें और उनकी अनुमति के बगैर कुछ भी छूना ठीक न होगा |मैंने अपने इंस्ट्रक्टर से पूछा कि पर्यटक तो तरह –तरह के आते होंगे |कुछ लोग इस हिदायत को न मानते होंगे उनके साथ क्या होता है ?

उन्होंने बताया वहां तो उन्हें इशारे से ऐसा न करने के लिए मना किया जाता है लेकिन बाहर निकल कर उन्हें कस के डांट लगाईं जाती है |वैसे ऐसे लोग बहुत ही कम होते हैं |बातें करते -करते हम उस जगह पहुँच चुके थे जहाँ से हमने इस रोमांचक अभियान की शुरुआत की थी |सिलेंडर उतारे गए ,फिन निकाले गए और हम लोग अपनी वैन में बैठकर वापस आये जहाँ एक बार फिर से डिटौल के पानी में खुद भी नहाये और उस ड्रेस को भी धोकर टांग दिया |अपने कपडे पहनकर हमने उस खुबसूरत जगह से विदा ली |
अंखियों के झरोखे से राधानगर बीच 

इस क्रिया कलाप में दोपहर हो चुकी थी लेकिन अभी समुद्र से मन नहीं भरा था अब हम चल पड़े |दुनिया के सबसे खूबसूरत बीच में से एक राधा नगर बीच देखने |दिन के दो बजे  हम राधा नगर बीच के किनारे खड़े थे |समुद्र में घुसने  से पहले मैंने बीच का एक चक्कर लगाया |बीच के किनारे पर्याप्त हरियाली थी पर मैन्ग्रोव के पेड़  यहाँ नहीं थे |मैन्ग्रोव के पेड़ समुद्र और धरती के बीच में उगते हैं |ये ज्यादा ऊँचे नहीं होते पर समुद्र के किनारे एक तरह की प्राकृतिक बाड़ बना देते हैं इसलिए ऐसी जगहों पर नहाया नहीं जा सकता पर यहाँ कुछ ऐसा नहीं था |जहाँ लोगों का हुजूम था मैंने उससे करीब एक किलोमीटर दूर का चक्कर लगाया न कोई शोर न कोई भीड़ और खूब  सारे पेड़|वापस आकर समुद्र में घुस गए |लहरे बहुत तेज थीं |लाईफ गार्ड लोगों को सीटियाँ बजा –बजा कर जरा सा भी आगे जाने पर चेतावानी  देने लगते थे |इस मायने में यहाँ खतरा तो था ही क्योंकि कब लौटती लहरें आपको बहा ले जाएँ इसका अंदाजा किसी को नहीं रहता |मैंने दो घंटे जल क्रीडा का आनंद लिया |चूँकि उस दिन की भाग दौड़ में मुझे खाने का मौका न मिल पाया था इसलिए मैंने बीच के कारेब लगी बाजार में नारियल पानी पीने का निश्चय किया इसका दो कारण था |यहाँ तरह –तरह के नारियल मौजूद थे |मैं हमेशा मलाई वाला नारियल लेता पहले उसके पानी से प्यास बुझाता फिर उसकी मलाई मतलब नारियल की गीली गरी को खा कर भूख मिटा लेता |

वहीं एक महिला फ्रूट सलाद इस दावे के साथ बेच रही थी कि ये एकदम ऑर्गेनिक हैं और अंडमान में उगाये गए हैं |मैंने उससे कुछ अंडमानी केले लिए जो आकार में हमारे केलो के मुकाबले आधे थे और उनके ऊपर कोई काली धारियां नहीं थी और वे गाढे पीले रंग के थे |
स्कूबा डाइविंग ड्रेस 
उस केले के स्वाद वाकई अलग था |मैंने उनसे पूछा कि आप कहाँ की हैं ?वैसे भी अंडमान में कोई भी आपको ऐसा नहीं मिलेगा जिसकी पिछली चार पुश्तें वहीं की हों तो अंडमान में मैं वार्तालाप शुरू करने से पहले पूछ लेता था कि आपके पिता जी कहाँ के हैं ?यहाँ मुझे बहुत से ऐसे लोग मिले जिन्होंने बड़े गर्व से बताया कि वे बांग्लादेशी हैं |असल में साठ के दशक में बहुत से बंगलादेशी शरणार्थियों को यहाँ बसाया गया था और उन्हें सरकार ने पन्द्रह बीघा जमीन भी दी गयी थी |जिसकी कीमत में करोड़ों में है वे यहाँ इनपर खेती करते हैं |बहुत से लोगों ने अपनी जमीने बेच भी दीं हैं जिन पर लोग  रिसॉर्ट बना रहे हैं |वो महिला झारखंड से थीं मतलब उनके पिता जी झारखंड से एक मजदूर के रूप में लाये गए थे फिर वे यहाँ से जा न पाए |उनके पति बीमार रहते थे और घर का खर्च चलाने के लिए उन्हें यह व्यवसाय करना पड़ा |हालांकि अंडमान और निकोबार शायद देश एकमात्र ऐसा इलाका होगा जहाँ स्वास्थ्य और शिक्षा पूरी तरह मुफ्त है इसलिए लोगों का जीवन कम आय में भी अच्छे तरीके से हो जाता है | उनके बारे में सोचता हुआ बीच पर वापस आया |शाम ढलने को थी सूरज धीरे –धीरे डूब रहा था और वो जगह जो थोड़ी देर पहले लोगों से गुलज़ार थी |धीरे –धीरे खाली हो रही थी | हेवेलॉक में हमारी दूसरी शाम धीरे –धीरे रात हो रही थी |
जारी ............................

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