चीन और भारत , दो ऐसे देश जिन्हें इंटरनेट की दुनिया में हमेशा एक दूसरे का प्रतिस्पर्धी समझा जाता है| चीन और भारत इंटरनेट के बाजार के हिसाब से दुनिया में सबसे ज्यादा उपभोक्ताओं वाले देश हैं और आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं |दोनों देशों के इस बड़े बाजार के लिए वहां की विशाल जनसंख्या जिम्मेदार है ,क्योंकि इतनी बड़ी जनसंख्या वाले देशों में इंटरनेट लगभग हर समस्या का समाधान बन के उभरा है |वो दैनिक उपभोग से जुडी खरीददारी हो या बिजली और फोन के बिल जमा करने जैसे काम इंटरनेट के पास हर समस्या का हल है |जब बात आंकड़ों की होगी तो इंटरनेट का जिक्र होना लाजिमी है क्योंकि इंटरनेट ने इस दुनिया में हर इंसान को एक आंकड़े या डाटा में तब्दील कर दिया है | वी आर सोशल की डिजिटल सोशल ऐंड मोबाइल 2015 रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में इंटरनेट प्रयोगकर्ताओं के आंकड़े काफी कुछ कहते हैं। इसके अनुसार, एक भारतीय औसतन पांच घंटे चार मिनट कंप्यूटर या टैबलेट पर इंटरनेट का इस्तेमाल करता है। इंटरनेट पर एक घंटा 58मिनट, सोशल मीडिया पर दो घंटे 31 मिनट के अलावा इनके मोबाइल इंटरनेट के इस्तेमाल की औसत दैनिक अवधि है दो घंटे 24मिनट और जो लगातार बढ़ रही है आंकड़ों में जितना गहरा डूबते जायेंगे उतना ही समझ आता जायेगा कि चीनभारत से अधिक दूरदर्शी व कई मायनों में बेहतर है| इंटरनेट के इस्तेमाल के मामले में चीन की किसी दूसरे देश पर निर्भर न रहने की नीति उसे भारत से ऊपर स्थान देती है| यहाँ तक कि जब पूरी दुनिया में गूगल और फेसबुक का डंका बज रहा है |चीन के पास इन सबसे अलग सोशल मीडिया प्लेटफोर्म है और फेसबुक , ट्विटर जैसी वेबसाइट पूरी तरह से बैन हैं| हालाँकि कई बार इसे सरकार के मीडिया पर एकाधिकार के तौर पर भी देखा जाता है लेकिन यदि इसे डाटा कोलोनाइज़ेशन के सन्दर्भमें देखें तो चीन ने अपने डाटा की सुरक्षा पुख्ता की हुई है |
डाटा है नया सोना :
कॉलोनी वह देश या क्षेत्र है जिसका नियंत्रण किसी दूसरे देश से आने वालों के पास है अथवा दूसरे देश से आकर बस जाने वालों के पास| इसी शब्द से कॉलोनाइजेशन शब्द बना है| कॉलोनाइजेशन एक प्रक्रिया है जिसमें शक्तियों का एक केंद्र अपने आसपास के भू-भाग को नियंत्रित करता है| डाटा कॉलोनाइजेशन शब्द डिजिटल दुनियां से आया| इसे ऐसे समझा जा सकता है कि आप भारत में हैं और इसकी भौगौलिक सीमा के अन्दर ही आप डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर सक्रिय है| लेकिन आपका डाटा भौगौलिक सीमा से बाहर जा चुका है| किसके पास है, कौन आपके डाटा को नियंत्रित कर रहा है आप नहीं जानते| आपकी आदतें, खाना पीना, दिनचर्या सब कुछ किसी दूसरी भौगौलिक सीमा में है| आपके डाटा का किस तरह कहाँ इस्तेमाल किया जा रहा है, यह पूरी तरह आपके नियंत्रण से बाहर है| इस समय आपके गूगल सर्च और अन्य सर्चइंजन पर सर्च के आधार पर या फिर ई-मार्केटपेलेस पर जाने को लेकर आपका पूरा डेटा प्राप्त किया जा सकता है| कंपनियां यह भी जान जाती हैं कि आप कहां गए हैं, आपने क्या सर्च किया या फिर आपकी पसंद क्या है। इसकी वजह यह होती थी कि आपका समस्त डाटा यहां से विदेश जाता था| वहां पर भारतीय कानून प्रभावी नहीं है और ऐसे में जिस कंपनी के पास आपका डाटा है, यह उस पर निर्भर करता है कि वह आपका डाटा किसे दे|
पिछले साल कैंब्रिज एनालिटिका द्वारा एक रिसर्चर को आधिकारिक तौर पर यू एस के फेसबुक यूज़र्स का दाता इकठ्ठा करने का काम दिया गया| “लाइक” एक्टिविटी के द्वारा लोगों को चुना गया| करीब 87 मिलियन लोगों का डाटा इकठ्ठा किया गया|गूगल पर भी यूजर का डाटा चोरी करने का आरोप लगा| इन दो बड़े समूहों पर डाटा चोरी करने का आरोप लगने के बाद से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यूजर के डाटा को लेकर गंभीर चर्चाएँ शुरू हुईं| दावोस में हुए वर्ल्ड इकनोमिक फोरम में डाटा को लेकर सवाल पूछे जाने पर गूगल के सीईओ सुन्दर पिचई ने अपनी बात रखते हुए कहा कि यूजर का डाटा उन्हीं के पास रहना चाहिये व डाटा का नियंत्रण भी उन्हीं के पास होना चाहिए| हम केवल एक परिचालक के तौर पर ही कार्य कर सकते हैं|
चीन : सोशल मीडिया के सन्दर्भ में
भारत में फेसबुक और ट्विटर की लोकप्रियता से हर कोई वाकिफ़ है | आंकड़े भी यही कहते हैं| Statista की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में ही 2020 में केवल फेसबुक के उपभोक्ताओं की संख्या करीब 262 मिलियन होगी| और ट्विटर तो भारत में राजनीति का दूसरा अड्डा बना हुआ है | बड़ी संख्या में राजनीतिज्ञ ट्विटर पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ करा चुके हैं| और केवल राजनीतिज्ञ ही नहीं, तमाम बड़े सितारे और आम नागरिक भी ट्विटर का इस्तेमाल भरपूर करते हैं| और यू ट्यूब तो कई लोगों की कमाई का ज़रिया बन गया है|
लेकिन इस्तेमाल करते वक़्त किसी भी शायद ही याद रहता भी हो कि ये सोशल मीडिया प्लेटफार्म भारत के नहीं हैं| इनके सर्वर भारत की भौगौलिक सीमा से बहुत दूर यूनाइटेड स्टेट्स में हैं| जिस दिन ये सभी प्लेटफार्म भारत में सुविधा देना बंद कर देंगे, हमारा सारा डाटा हमारे पहुँच से बहुत दूर जा चुका होगा| इसी स्थिति को यही चीन के सन्दर्भ में देखें तो चीन ने अपने डाटा पूरी तरह सुरक्षित रखा हुआ है| चीन ने अपना एक अलग सोशल मीडिया ही विकसित कर लिया|चीन की सबसे लोकप्रिय एप्प है वी चैट| इसे चीन का फेसबुक , ट्विटर , गूगल न्यूज़, टिंडर और पिन्टेरेस्ट कहा जा सकता है | हाल में आये आंकड़े कहते हैं कि इस एप्प के क़रीब 1.08 बिलियन उपभोक्ता हैं|
चीन के पास अपना ट्विटर भी है | Sina Weibo नाम के माइक्रो ब्लॉगिंग प्लेटफार्म को लगभग 446 मिलियन उपभोक्ता हर महीने इस्तेमाल करतें हैं| और हर दिन करीब 116 मिलियन लोग इस साईट का उपयोग करते हैं| चीन के पास अपना यू ट्यूब भी है| Youku Tudou एप्प के मासिक उपभोक्ताओं की संख्या करीब 580 मिलियन है| सबसे पहले ये एप्प चाइना में काफी लोकप्रिय थी| सोशल मीडिया के नए प्लेटफार्म आने का बाद इस एप्प की लोकप्रियता में काफी गिरावट आई| चीन के पास अपना हर तरह का सोशल मीडिया प्लेटफार्म है| यहाँ तक कि गूगल जैसा सर्च इंजन में चीन में अपनी जगह नहीं बना पाया | चीन के पास अपना सर्च इंजन है Baidu Teiba | चीन का सबसे बड़ा कम्युनिकेशन का प्लेटफार्म| फ़रवरी 2017 के आंकड़ों के मुताबिक इसके हर माह करीब 665 मिलियन उपभोक्ता हैं| हर दिन करीब 148 मिलियन उपभोक्ता इसका उपयोग करते हैं|
इनके अलावा भी चीन के पास कई और एप्प हैं जिनका इस्तेमाल लोग अपने जीवन में कर रहे हैं| यदि अब भविष्य में चीन इन प्लेटफॉर्म्स को बंद भी कर देता है तो उसका डाटा पूरी तरह सुरक्षित है| चीन की सरकार अपने नागरिकों के डाटा को लेकर पूरी तरह आश्वस्त है| वहीँ पर भारत की तकनीकी निर्भरता ने अपने देश के नागरिकों के डाटा को संकट में डाला हुआ है| यहाँ के लोगों का डाटा भारत की सीमा से पहले ही बहुत दूर जा चुका है और उसके सुरक्षित होने का या भविष्य में उसका दुरुपयोग न हो उसके लिए भी कोई प्लान तैयार नहीं है| फेसबुक और गूगल पर डाटा चोरी करने का आरोप लगने के बाद से ही निजता और सुरक्षा को सुनिश्चित करना चर्चा में है | 25 मई, 2018 को यूरोपीय संघ के नेतृत्व में जीडीपीआर (जनरल डाटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन) को पूरी तरह से लागू किया और इस तरह यूरोपीय संघ (इयू) में डाटा प्रोटेक्शन कानूनों की दिशा में एक मील का पत्थर स्थापित किया गया |
भारत की कैसी है तैयारी
जल्दी ही सरकार इंटरनेट पर देसी सर्वर की सुविधा उपलब्ध कराने जा रही है। यह सुविधा नेशनल इन्फॉरमेटिक्स सेंटर के जरिए मिलेगी जो जल्द ही इसके लिए पब्लिक डोमेन नेम सर्विस के तौर पर नया प्लेटफार्म उपलब्ध कराएगी। इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों के लिए यह मौजूदा सिस्टम से ज्यादा सुरक्षित और भरोसेमंद होगा।केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी एवं कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद की पहल पर बन रहे नए डीएनएस लोगों की ई-मेल न केवल पहले से ज्यादा सुरक्षित होगी बल्कि उनका डाटा भी बाहर के देश तक नहीं जाएगा। इससे गूगल, अमेजन समेत कोई भी कंपनी यह नहीं पता कर पाएगी कि आपने किस वेबसाइट को देखा है या फिर किस ई-प्लेटफॉर्म से क्या खरीदारी की है। अभी वे इस बड़े डाटा को गूगल और अन्य अंतरराष्ट्रीय आईटी कंपनियों की मदद से हासिल कर लेती थी और उसके अनुरूप अपने व्यवसाय को विस्तार देती थी। डीएनएस प्रोजेक्ट में इंटरनेट को अनावश्यक या गैर जरूरी वेबसाइट पर जाने से भी रोका जाएगा। इससे इंटरनेट की स्पीड भी बढ़ेगी।एनआईसी की ओर से एक यूनिफाइड मैसेजिंग सेवा भी शुरू की। इसके तहत देश के 5 करोड़ सरकारी ई-मेल सेवा एनआईसी को पहले से अधिक सुरक्षित और मजबूत बनाया जाएगा। जिससे इसमें किसी भी तरह की सेंधमारी नहीं हो पाएगी। यह सभी कार्य बैकएंड या एनआईसी के सर्वर केंद्रों से होगा। ऐसे में आम इंटरनेट उपयोगकर्ता को इसके लिए कुछ नहीं करना होगा।
डीएनएस प्रोजेक्ट से क्या होंगे फायदे डीएनएस प्रोजेक्ट के शुरू होने के बाद यह डाटा भारत में ही रहेगा। ऐसे में आपका डाटा विदेशी हाथों या किसी कंपनी के पास नहीं पहुंच पाएगा। कई बार किसी वेबसाइट को सर्च करते हुए आप गलती से किसी पोर्न या अन्य साइट पर चले जाते हैं। डीएनएस प्रोजेक्ट के तहत आपको गलत वेबसाइट पर जाने से रोका जाएगा। देश में करोड़ों लोग हर पल गलत साइट पर चले जाते हैं। जब यह योजना प्रभावी हो जाएगी तो इससे इंटरनेट की स्पीड भी बढ़ जाएगी क्योंकि हजारों-करोड़ों लोग गलत साइट पर जाने से बचेंगे। जिससे इंटरनेट की स्पीड बढ़ जाएगी। इस अधिकारी ने कहा कि इसी तरह सरकारी ईमेल सेवा एनआईसी के लिए दोहरे पासवर्ड, विदेश जाने पर वहां उपस्थित होने की सूचना देने जैसे महत्वपूर्ण उपाय किये जा रहे हैं। जिससे कोई अन्य आपका ईमेल हैक नहीं कर पाएगा। इसी तरह से देश में भी सरकारी ईमेल सेवा के लिए पासवर्ड के साथ ही मोबाइल पर अलर्ट, उंगुली के निशान, चेहरे की पहचान के नियम शुरू किये जा रहे हैं।भारत ने देर से ही सही आंकड़ों के महत्व को समझते हुए कदम उठाने शुरू कर दिए है | चीन से इस मामले में सीख भी ली जा सकती है| चीन ने हमेशा से ही अमेरिका व उसके इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों से सुरक्षित दूरी बनाये रखते हुए अपने खुद के विकल्प तैयार किये है| जहाँ विश्व के सभी देश अमेरिका को सुपरपॉवर के रूप में देखते हैं वहीँ चीन खुद ही सुपरपॉवर बनने की दिशा में अग्रसर है| भारत अभी तकनीकी रूप से बहुत पीछे है| ऐसे में डाटा की महत्ता को ध्यान में रखते हुए अब दायित्व सरकार का बनता है कि वह देश के लोगों का डाटा देश में ही रखने के लिए पर्याप्त कदम उठाये| चूँकि सरकार भी डिजिटल होने की दिशा में लगातार प्रयास कर रही है , साथ ही आधार व डिजिटल होते बैंक खातों व इसी तरह की सुविधाओं से देश में रहने वाले लोगों का डाटा भी संचित कर रही है| ऐसे में यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि डाटा को लेकर लोगों में भरोसा बना रहे| देश की भौगौलिक सीमा में रहने वाले लोगों की तरह ही उनका डाटा भी भौगौलिक सीमा के अन्दर ही रहे| साथ ही आने वाले दिनों में डिजिटल होती दुनियां और आगे बढ़ेगी| ऐसे में डाटा का संरक्षण बेहद महत्वपूर्ण है|
दैनिक जागरण राष्ट्रीय संस्करण में 18/03/19 को प्रकाशित
5 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (19-03-2019) को "मन के मृदु उद्गार" (चर्चा अंक-3279) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन श्रद्धांजलि - मनोहर पर्रिकर और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जानकारी पूर्ण।
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बढ़िया जानकारी वाला लेख पसंद आया। आपको बधाई।
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