Thursday, September 12, 2019

ई -वालेट में अभी भी कई सुधारों की दरकार


इंटरनेट एक विचार के तौर पर सूचनाओं को साझा करने के सिलसिले के साथ शुरू हुआ था चैटिंग और ई मेल से यह हमारे जीवन में जगह बनाता गया फिर ओनलाईन शॉपिंग ने खेल के सारे मानक बदल दिए पर  भारत में इस सूचना क्रांति के अगुवा बने स्मार्टफोन जिन्होंने मोबाईल एप  और ई वालेट के जरिये पर्स में पैसे रखने के चलन को डीस्करेज  करना शुरू किया .आज सरकार भी यह चाहती है कि लोग ट्रांसपरेंसी  को बढ़ावा देने के लिए इलेक्ट्रौनिक ट्रांसेक्शन को बढ़ावा दे रही है जिससे ब्लैक  मनी   पैदा होने की संभावना को समाप्त किया जा सके और नोट छापने के अनावश्यक खर्च से बचा जा सके .टफ्ट्स विश्वविद्यालय के  प्रकाशन कॉस्ट ऑफ़ कैश इन इण्डियाके आंकड़ों के अनुसार भारत नोट छापने और उनके प्रबन्धन के लिए सालाना इक्कीस हजार करोड़ रुपये खर्च  करता है एक हजार और पांच सौ रुपये के पुराने एक नोट छापने में रिजर्व बैंक ऑफ़ इण्डिया को क्रमशःदो रुपये पचास पैसे और तीन रुपये सत्रह पैसे खर्च करने पड़ते थे .मूडीज की रिपोर्ट के अनुसार साल 2011से 2105 तक ई भुगतान ने देश की अर्थव्यवस्था में 6.08 बिलियन डॉलर  का इजाफा किया है.मैकिन्सी ने अपनी एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया है कि इलेक्ट्रौनिक ट्रांसेक्शन के बढ़ने से साल 2025 तक देश की अर्थव्यवस्था में 11.8 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होगी . भारत में इंटरनेट यूजर्स की संख्या 2017 के मुकाबले 49 फीसदी अधिक है. मैरी मीकर की एक रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया में कुल इंटरनेट यूजर्स की संख्या 3.8 बिलियन यानि 380 करोड़ हो गई है। इनमें से 53 फीसदी यूजर्स एशिया-पैसिफिक के हैं. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरी दुनिया के कुल इंटरनेट यूजर्स में 12 प्रतिशत इंटरनेट उपयोगकर्ता (करीब 31 करोड़) भारत के हैं और वहीं इसमें चीन का 21 फीसदी यूजर्स के साथ पहले स्थान पर है। वहीं अमेरिका 8 फीसदी की संख्या के साथ तीसरे स्थान पर है। वहीं इसी साल मार्च में Kantar IMRB ICUBE की रिपोर्ट में दावा किया गया था कि साल 2019 के अंत तक भारत में इंटरनेट यूजर्स की संख्या 62.7 करोड़ हो जाएगी . उद्योग संगठन एसोचैम और पीडब्ल्यूसी की एक  रिपोर्ट में 2023 तक देश में  डिजिटल भुगतान के दोगुना से अधिक बढ़कर 135.2 अरब डॉलर पर पहुंचने की संभावना है और भारत डिजिटल लेनदेन में बढ़ोतरी के मामले में चीन और अमेरिका को पछाड़ देगा. रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019 से 2023 के दौरान देश में डिजिटल भुगतान में स्पीडी ग्रोथ होने का अनुमान है। इसमें वार्षिक 20 पर्तिशत  से अधिक की ग्रोथ  हो सकती है। इस अवधि में चीन में डिजिटल लेनदेन में 18.5 प्रतिशत  और अमेरिका में 8.6 प्रतिशत  की वृद्धि होने का अंदाजा  है। ग्लोबल लेवल  पर डिजिटल लेनदेन मूल्य के मामले में अगले चार वर्षों में भारत की हिस्सेदारी वर्तमान के 1.56 प्रतिशत  से बढ़कर 2.02 फीसदी हो जाएगी.आंकड़े आने वाले कल की सुनहरी उम्मीद जगाते हैं पर ये मामला मानवीय व्यवहार से जुड़ा है जिसके बदलने में वक्त लगेगा . भारतीय परिस्थितियों में मौद्रिक लेन देन विश्वास से जुड़ा मामला भी है जब हम जिसे पैसा दे रहे हैं वो हमारे सामने होता है जिससे एक तरह का भरोसा जगता है .
 ऑनलाइन उपभोक्ता अधिकार जैसे मुद्दों पर न तो कोई अवेयरनेस  है न ही सार्थक कानून ई वालेट प्रयोग  और ऑन लाइन खरीददारी उपयोगिता के तौर पर बहुत लाभदायक है पर किन्ही कारणों से आपको खरीदा सामान वापस करना पड़ा या खराब उत्पाद मिल गया और उपभोक्ता अपना पैसा वापस चाहता है तो  अनुभव यह बताता है कि उसे पाने में तीन से दस  दिन तक का समय लगता है और इस अवधि में उस धन पर डिजीटल प्रयोगकर्ता को कोई ब्याज नहीं मिलता और  यह एक लम्बी थकाऊ प्रक्रिया है जिसमें अपने पैसे की वापसी के लिए बैंक और ओनलाईन शौपिंग कम्पनी के कस्टमर केयर पर बार बार फोन करना पड़ता है .कई बार कम्पनियां पैसा नगद न वापस कर अपनी खरीद बढ़ाने के लिए गिफ्ट कूपन जैसी योजनायें जबरदस्ती उपभोक्ताओं के माथे मढ देती हैं और ऐसी परिस्थितियों में उत्पन्न हुई समस्या के समयबद्ध निपटारे की कोई समुचित व्यवस्था नहीं है . लोगों को डिजिटल होने की तरफ मोड़ने में सबसे बड़ी समस्या मानसिक है. देश में  तीन पीढ़ियों को एक साथ डिजिटल बनाने की कोशिश की जा रही  है.जेब में पैसा होना एक तरह का आत्मविश्वास देता है .क्या वह विश्वास   जेब में पड़ा मोबाईल ई वालेट या डेबिट /क्रेडिट कार्ड दे पायेगा जहाँ  देश  में डिजीटल लेन-देन अभी विकसित देशों के मुकाबले उतनी ज्यादा मात्रा में नहीं हो रहा है फिर भी सर्वर बैठने की समस्या से उपभोक्ताओं को अक्सर दो चार होना  पड़ता है .मोबाईल का नेटवर्क हवा के झोंके के साथ आता जाता रहता है .बैंक से पैसा निकल जाता है और सम्बन्धित कम्पनी तक नहीं पहुँचता फिर उसके वापस आने का इन्तजार . राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक साल 2011 से 2015 के बीच भारत में साइबर अपराध की संख्या में तीन सौ पचास प्रतिशत की वृद्धि हुई है जिनमे बड़ी संख्या में आर्थिक  साइबर अपराध  भी शामिल हैं जागरूकता में कमी के कारण आमतौर पर जब उपभोक्ता ऑनलाईन धोखाधड़ी का शिकार होता है तो उसे समझ ही नहीं आता वो क्या करे. ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब जितनी जल्दी मिलेगा लोग उतनी तेजी से इलेक्ट्रौनिक ट्रांसेक्शन की तरफ बढ़ेंगे .देश की बड़ी आबादी अशिक्षित और निर्धन है वो आने वाले वक्त में कितनी बड़ी मात्रा में  डिजीटल लेन देन करेगी यह उस व्यवस्था पर निर्भर करेगा जहाँ लोग पैसा खर्च करते उसी निश्चिंतता और भरोसे को पा सकें जो उन्हें कागजी मुद्रा के लेन देन करते वक्त प्राप्त होती है  .
दैनिक जागरण/आई नेक्स्ट में 12/09/2019 को प्रकाशित 



1 comment:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (13-09-2019) को    "बनकर रहो विजेता"  (चर्चा अंक- 3457)    पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।  --शिक्षक दिवस कीहार्दिक शुभकामनाओं के साथ 
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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