आपने कभी सन्नाटे की आवाज सुनी है क्या ? सुनी तो जरुर होगी पर समझ नहीं पाए होंगे . यूँ तो अधिकता किसी भी चीज की बुरी होती है, पर लोग बिना बोले बहुत कुछ कह जाते हैं और कुछ लोग दिन भर बोलने के बाद भी मतलब का कुछ भी नहीं कह पाते.वो गाना तो आपने भी सुना होगा ‘न बोले तुम न मैंने कुछ कहा’,तो भैया ये तो सिद्ध हुआ कि बगैर बोले भी बहुत कुछ कहा जा सकता है मगर कैसे ? बोलने का काम हमारी जबान ही नहीं करती बल्कि आँखों से लेकर पैर तक हमारे सभी अंग बोलते है .दुनिया के बहुत से अभिनेताओं की खासियत यही रही है कि वे अपनी आँखों से बहुत कुछ कह देते हैं. प्रख्यात अभिनेता चार्ली चैपलिन को ही लें, जिन्होंने अपनी मूक फिल्मों के माध्यम से सालों तक लोगों का मनोरंजन किया. कई बार ज्यादा बोलने से शब्द अपना अर्थ खो देते हैं, अरे अब ‘आई लव यू’ को ही लीजिये. फिल्मों में इस शब्द का इतना इस्तेमाल हुआ की अब मैं 'रील लाईफ' या 'रीयल लाईफ' में ये शब्द सुनता हूँ, तो बस बेसाख्ता हंसी आ जाती है.प्यार एक फीलिंग है उसे एक शब्द में बाँधा या समेटा नहीं जा सकता. वैसे फीलिंग से याद आया. फीलिंग भी आजकल बिजली के बल्ब जैसी हो गयी है अचानक आती है और अचानक चली भी जाती है.जानते हैं ऐसा क्यूँ होता है ?
चलिए मैं समझाता हूँ आपको,हम कुछ भी कहते हैं तो उससे पहले सोचते हैं ये बात अलग है की ये प्रोसेस इतना जल्दी होता है कि हमें पता ही नहीं पड़ता कि जो कुछ हम फटाफट बोले जा रहे हैं वो पहले हमारा दिमाग सोच रहा है. उस सोच को शब्दों का लबादा ओढ़ा कर जब हम फीलिंग के साथ एक्सप्रेस करते हैं तो सुनने वाले पर असर होता है.लेकिन ये जरुरी भी नहीं की हर फीलिंग को एक्सप्रेस करने के लिए आपके पास शब्द हों ही तब क्या किया जाए ? जैसे खीज या फ्रस्टेशन.आप गुस्सा हैं तो चीख चिल्लाकर आप अपना गुस्सा निकाल सकते हैं, लेकिन आप खीजे हुए हैं तो क्या बोलेंगे और जो कुछ भी बोलेंगे उसका मतलब सामने वाला समझेगा भी कि नहीं,क्या पता और तब काम आता है मौन,मौन यानि साइलेंस.
चुप्पी या सन्नाटा हमेशा कायरता की निशानी नहीं होती है.ये तो भावनाओं की भाषा होती है जो आप शब्दों से नहीं बोल सकते वो आप अपने मौन से बोल सकते हैं. वैसे भी पर्सनाल्टी डेवेलपमेंट के इस युग में हमें बोलना जरुर सीखाया जाता है पर चुप रहना नहीं. वैसे भी जब मौन बोलता है तो उसकी आवाज भले ही देर में सुनायी दे पर बहुत दूर तक सुनायी देती है.हम अपनी लाइफ से जब बोर हो जाते हैं तो अपने आस पास के शोर शराबे से दूर भागने का मन करता है.किसी से भी बात नहीं करना चाहते. तो क्या आपने ऐसे समय में भी खुद को एकांत में रखा है.
अगर ऐसे समय में हम कहीं बिलकुल शांत जगह पर बैठ जायें तो हम बिना ·कुछ कहे सुने खुद से ही बातें करने लगते हैं और फिर अपने आप ही हमें हमारी समस्याओं का समाधान सूझने लगता है.प्यार मुहब्बत के किस्सों में तो खामोशी से प्यार पैदा होने की बातें अक्सर होती रहती हैं. एक बात साफ है कि हम बगैर बोले अपनी फीलिंग्स को एक्सप्रेशन दे सकते हैं और ऐसे एक्सप्रेशन बहुत ख़ास होते हैं. रिश्तों ·की गर्माहट तो खामोशियों ·के दौरान होने वाले संचार से ही समझी जा सकती हैं.किसी ने क्या खूब कहा कि खामोशियां मुस्कुराने लगी .... तन्हाईयां गुनगुनानी लगीं..
प्रभात खबर में 03/09/2019 को प्रकाशित
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