इंटरनेट पर वीडियो की धूम है पर अब जमाना माइक्रो वीडियो का मतलब ऐसे
वीडियो जो एक मिनट से कम के हों और उनमें रोचकता हो .ऐसा
ही एक माइक्रो वीडियो एप है टिक टोक .चीन जिस तरह से
स्मार्ट फोन की मैन्युफैक्चरिंग में सारी दुनिया को पछाड़ते हुए नंबर एक पर पहुँच
गया है. अब उसकी नजर है एप की विशाल दुनिया में तहलका
मचाने की,साल 2017 में जहाँ
भारत में प्ले स्टोर से सबसे ज्यादा डाउनलोड होने वाले प्रमुख दस एप में मात्र दो
ही चीन के थे. वहीं 2018 में प्रमुख दस एप में से पांच चीन के हो चुके थे जिनमें तीन टिक- टोक,लाईक और हीलो जैसे वीडियो एप थे .जाहिर है इसके केंद्र में भारत ही है क्योंकि चीन ने अपना इंटरनेट बाजार
फेसबुक और गूगल जैसी कम्पनियों के लिए बंद कर रखा है पर भारत का बाजार सभी के लिए
खुला है .
जिस तरह से टिक टोक के प्रयोगकर्ता बढ़ रहे हैं उसने इंटरनेट की नामी
कम्पनियों को अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर कर दिया है .फेसबुक ने टिक टोक को टक्कर
देने के लिए चुपचाप लासो वीडियो एप लॉन्च कर दिया है फिलहाल अभी यह अमेरिका के
लोगों के लिए ही उपलब्ध है पर भारत में जिस तरह फेसबुक लोगों का पसंदीदा एप बना
हुआ है जल्दी ही ‘लासो’ भारत
में भी उपलब्ध होगा .
2016 में लॉन्च हुए टिक टोक वीडियो एप को 2018 के गूगल प्ले अवार्ड में भारत के सबसे
मनोरंजक एप का खिताब मिला अगस्त 2018 में दुनिया
के दो सबसे तेजी से उभरते हुए शोर्ट वीडियो एप म्यूजिकल डॉट एल वाई और टिक टोक ने
मिलकर एक नई वैश्विक एप टिक टोक बनाया . छोटे
वीडियो बनाने वाला यह एप यूटयूब ट्विटर और इन्स्टाग्राम से पूरे सोशल मीडिया पर
तहलका मचाये हुए है .दुनिया की कई बड़ी हस्तियों ने अपने
सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म को लोकप्रिय बनाने के लिए इस एप का इस्तेमाल करना शुरू कर
दिया है . टिक टोक की चर्चा करते वक्त हमें देश
में एप के समाज शास्त्र को समझना अत्यंत आवश्यक है जहाँ फेसबुक इन्स्टाग्राम जैसे
एप देश के क्लास तबके सम्बन्ध रखते हैं जहाँ देश के बड़े शहरों में रहने वाले लोग
ज्यादा सक्रिय है. वहीं टिक टोक एप के वीडियो कंटेंट
में असली भारत दिख रहा है . जहाँ गाँव है धूल
मिट्टी है और सुअर,कुत्ते जैसे जानवर और वो लोग जिन्हें हम
मास या जनता कहते हैं यानि इस एप के कंटेंट
क्रियेटर टियर टू और टियर थ्री जैसे छोटे शहरों और कस्बों में रहने वाले ऐसे लोग
हैं जो अपनी क्षेत्रीय भाषाएं बोलते हैं दिखने में मीडिया द्वारा गढ़े गए सुन्दरता
के मानकों के हिसाब से नहीं दिखते .जिसका प्रमुख कारण
सस्ता इंटरनेट और स्मार्ट फोन हैं और देश की बड़ी युवा आबादी इन्हीं शहरों में रहती
है .
इस तरह के वीडियो कंटेंट की शुरुआत सबसे पहले डब्स्मास ने शुरू की थी.जिसमें पहले से दिए गए ऑडियो पर लोग
अपने चेहरे के साथ एक नया वीडियो बनाते थे . वो
ऑडियो किसी फिल्म का संवाद या गाना हो सकता है या फिर इंटरनेट पर वाइरल हो रहे
किसी वीडियो कंटेंट का ऑडियो पर डब्स्मास ज्यादा सफल नहीं हो पाया क्योंकि उसके
पास बनाये गए कंटेंट को प्रमोट करने का कोई अपना कोई प्लेटफोर्म नहीं था यानि यूजर
को अपने कंटेंट को प्रमोट करने के लिए किसी अन्य सोशल मीडिया प्लेटफोर्म का सहारा
चाहिए होता जबकि टिकटोक जहाँ वीडियो कंटेंट बनाने में मदद करता है वहीं उसे अपने
प्लेटफोर्म पर प्रमोट भी करता है .फैक्टर्स डेली
वेबसाईट के मुताबिक़ टिक टोक ने देश के दस प्रतिशत इंटरनेट उपभोक्ताओं में अपनी पैठ
बना ली है हालाँकि यह पैठ गूगल ,फेसबुक ,इन्स्टाग्राम के यूजर बेस के मुकाबले कम है.टिक टोक एप के सारी दुनिया में पांच सौ मिलियन प्रयोगकर्ता हैं. जिसमें से उनतालीस प्रतिशत भारत से आते हैं . इसकी लोकप्रियता का आलम यह है कि साल भर के अंदर ही इस एप के अपने स्टार
भी हो गए हैं .अवेज दरबार नाम के एक व्यक्ति के 4.2 मिलीयन फालोवर हैं . इसमें लाईव फीचर एक
हजार फोलोवर बनने के बाद ही एक्टिवेट होता है . हालाँकि
यह कहना अभी जल्दीबाजी होगी कि भविष्य में क्या टिक टोक जैसे एप यूट्यूब को नष्ट
कर देंगे पर जिस तरह से चीन के वीडियो एप ऐसी
अनगढ़ प्रतिभाओं को सबके सामने ला रहे हैं उससे इस तथ्य को पूरी तरह नकारा भी नहीं जा सकता .पर कुछ ऐसे मुद्दें हैं जिन पर देश को अभी सोचना है अभी तक भारत सरकार की
नीतियां फेसबुक और अमेजन जैसी अमेरिकी वैश्विक कम्पनियों को ध्यान में रखकर बनाई
जा रही थीं जिसके मूल में भारतीय स्टार्ट अप की मदद करना भी शामिल था पर चीन की
कम्पनियों के दखल से परिद्रश्य बदल गया है .
पिछले साल
जुलाई में इंडोनेशिया ने आपत्तिजनक सामाग्री के प्रसारण के कारण टिक टोक को बैन कर
दिया था .देश में सोशल मीडिया पर फेक न्यूज से लेकर
आपत्तिजनक वीडियो के मामले सामने आते रहते हैं जिसमें सरकार सम्बन्धित कम्पनियों
को तलब भी करती रहती है यूजर जेनरेटेड कंटेंट में लोगों के डाटा की सुरक्षा से जुड़ा मामला भी
एक बड़ा मुद्दा है .चीन की कम्पनियों का इस मामले में
रिकॉर्ड काफी अच्छा नहीं है .हालांकि लोग अपनी
जानकारियों को लेकर सतर्क जरूर हुए हैं, पर यह सतर्कता
भारत में केवल एक तबके तक ही सीमित है क्योंकि यह जागरूकता अभी बड़े शहरों में आनी
शुरू हुई है पर छोटे शहरो और कस्बों में लोग इससे बिलकुल अनजान हैं .टिक टोक जैसे एप रजिस्ट्रेशन के लिए उपभोक्ता का नाम फोन नम्बर और ई मेल
जैसी जानकारियाँ जुटा रहे हैं पर उनके सर्वर भारतीय सीमा में नहीं है .चीन की सरकार अपने नागरिकों के डाटा को लेकर पूरी तरह आश्वस्त है. वहीं भारत में इस संबंध में ड्राफ्ट डाटा प्रोटेक्शन बिल 2018 को जस्टिस कृष्णा कमेटी ने इलेक्ट्रॉनिक एंड इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी
मंत्रलय को भेजा है जिसका मुख्य मकसद उस समस्या से निजात दिलाना है जो विदेशों में
इंडियन डाटा सेव है। उसमें कहा गया कि हर वेब कंपनी का जो डाटा विदेश में सेव है
उसकी एक कॉपी भारत में भी सेव करनी पड़ेगी.
दैनिक जागरण /आई नेक्स्ट में 17/09/2019 को प्रकाशित
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