पिछले कुछ वर्षों में इंटरनेट / सोशल मीडिया प्लेटफार्मों का उपयोग करते हुए हेट स्पीच, फर्जी समाचार, राष्ट्र विरोधी गतिविधियों, अपमानजनक पोस्ट और अन्य गैरकानूनी गतिविधियों में तेजी आई है. केंद्र ने कहा है कि एक तरफ प्रौद्योगिकी ने आर्थिक और सामाजिक विकास किया है तो दूसरी तरफ झूठे समाचारों में काफी वृद्धि हुई है. लोकतांत्रिक राजनीति के लिए अड़चन पैदा करने में इंटरनेट एक शक्तिशाली टूल के रूप में उभरा है. इससे हमारे समाज के सामने एक नई चुनौती पैदा हो गई है. गलत सूचनाओं को पहचानना और उनसे निपटना आज के दौर के लिए एक बड़ा सबक है। फेक न्यूज आज के समय का सच है। पिछले दिनों देश में घटी मॉब लिंचिंग की कई घटनाओं के पीछे इसी फेक न्यूज का हाथ रहा है. फेक न्यूज के चक्र को समझने के लिए मिसइनफॉर्मेशन और डिसइनफॉर्मेशन में अंतर समझना जरूरी है.
मिसइनफॉर्मेशन का मतलब ऐसी सूचनाओं से है जो असत्य हैं पर जो इसे फैला रहा है वह यह मानता है कि यह सूचना सही है। वहीं डिसइनफॉर्मेशन का मतलब ऐसी सूचना से है जो असत्य है और इसे फैलाने वाला भी यह जानता है कि अमुक सूचना गलत है, फिर भी वह फैला रहा है। भारत डिसइनफॉर्मेशन और मिसइनफॉर्मेशन के बीच फंसा हुआ है। अब सोशल मीडिया इतना तेज़ और जन-सामान्य का संचार माध्यम बन गया कि इसने हर उस व्यक्ति को जिसके पास स्मार्ट फोन है और सोशल मीडिया पर उसकी एक बड़ी फैन फोलोविंग वह एक चलता फिरता मीडिया हाउस बन गया है .
इस खेल में इंटरनेट की कई कम्पनियां भी शामिल हैं जब सोशल मीडिया को लोगों के आधार अकाउंट से जोड़ने का मामला तमिलनाडु हाईकोर्ट पहुंचा तो उसी से जुड़े मामलों को फेसबुक कंपनी ने मद्रास, बॉम्बे और मध्य प्रदेश हाई कोर्टों से सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करने की मांग की .सुप्रीम कोर्ट में तमिलनाडु सरकार की तरफ से दलील देते हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने पहले कहा था कि “सोशल मीडिया यूज़र्स की प्रोफाइल को आधार कार्ड से जोड़ना फ़र्ज़ी खबरों पर लगाम लगाने के लिए ज़रूरी है।” उनके हिसाब से इससे डेफमेट्री आर्टिकल्स, अश्लील और एंटी-नेशनल कंटेंट पर भी लगाम लगेगी।इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 24 सितंबर को केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वह ऑनलाइन निजता और राज्य की संप्रभुता के हितों को संतुलित करके सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए दिशानिर्देश तैयार करने के बारे में एक हलफनामा दायर करे. जस्टिस दीपक गुप्ता और अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा था कि इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंताओं को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यह अदालतों के लिए नहीं है कि वे सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए दिशा-निर्देश तैयार करें। नीति केवल सरकार द्वारा तय की जा सकती है। एक बार सरकार नीति बनाती है तो कोर्ट नीति की वैधता पर निर्णय ले सकता है . हालाँकि अभी इस मुद्दे पर सरकार ने कोई फैसला नहीं लिया है पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पैरोकार और निजता के अधिकार के समर्थक इस कदम का विरोध कर रहे हैं .फेसबुक और व्हाट्स एप जैसी कम्पनियां इस तरह की सोच को नागरिकों के निजता के अधिकार के खिलाफ बता रही हैं . फेसबुक का कहना है कि वो अपने यूज़र्स के आधार कार्ड नंबर को किसी थर्ड पार्टी के साथ शेयर नहीं कर सकता। क्योंकि ऐसा करना उसकी प्राइवेसी पॉलिसी के खिलाफ होगा।इस समस्या एक सबसे बड़ा पहलु है इसका व्यवसायिक पक्ष इंटरनेट की बड़ी कम्पनियां .सोशल मीडिया पर आने से जिस तथ्य को हम नजरंदाज करते हैं वह है हमारी निजता का मुद्दा और हमारे दी जाने वाली जानकारी.जब भी हम किसी सोशल मीडिया से जुड़ते हैं हम अपना नाम पता फोन नम्बर ई मेल उस कम्पनी को दे देते है.असल समस्या यहीं से शुरू होती है . इस तरह सोशल मीडिया पर आने वाले लोगों का डाटा कलेक्ट कर लिया जाता है .उधर इंटरनेट के फैलाव के साथ आंकड़े बहुत महत्वपूर्ण हो उठें .लोगों के बारे में सम्पूर्ण जानकारियां को एकत्र करके बेचा जाना एक व्यवसाय बन चुका है और इनकी कोई भी कीमत चुकाने के लिए लोग तैयार बैठे हैं .कई बार एक गलती किसी कंपनी की उस लोकप्रियता पर भारी पड़ जाती है जो उसने एक लंबे समय में अर्जित की होती है. टेकक्रंच की एक रिपोर्ट के मुताबिक मई माह में लाखों मशहूर और प्रभावशाली व्यक्तियों का पर्सनल डेटा इन्स्ताग्राम के जरिए लीक हो गया है. इस डेटाबेस में 4.9 करोड़ हाई-प्रोफाइल लोगों के व्यक्तिगत रिकॉर्ड हैं, जिनमें जाने-माने फूड ब्लॉगर, और सोशल मीडिया के प्रभावशाली लोग शामिल थे.रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जिन लोगों का डेटा लीक हुआ है उसमें उनके फॉलोवर्स की संख्या, बायो, पब्लिक डेटा, प्रोफाइल पिक्चर, लोकशन और पर्सनल कॉन्टैक्ट भी शामिल थे.तथ्य यह भी है कि जैसे ही ऐसा करने वाली फर्म के बारे में रिपोर्ट छपी , उसने तुरंत अपने डेटाबेस को ऑफलाइन कर लिया. ध्यान रहे कि इंटरनेट की दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण बात है इसकी गतिशीलता नया बहुत जल्दी पुराना हो जाता है और नई संभावनाओं के द्वार खुल जाते हैं .सोशल मीडिया प्लेटफोर्म नित नए रूप बदल रहे हैं उसमें नए –नए फीचर्स जोड़े जा रहे हैं .इस सारी कवायद का मतलब ऑडिएंस को ज्यादा से ज्यादा वक्त तक अपने प्लेटफोर्म से जोड़े रखना .इसका बड़ा कारण इंटरनेट द्वारा पैदा हो रही आय भी है .कम्पनियां अनाधिकृत डाटा के व्यापार में शामिल हैं भले ही वे इसको न माने पर वे अपना डाटा देश की सरकार के साथ नहीं शेयर करना चाहती वहीं सरकार इस तरह के नियम बना कर अपनी आलोचनाओं को कुंद कर सकती है .फिलहाल देश इन्तजार कर रहा है की सोशल मीडिया पर आने वाला वक्त कितना सुहाना होने वाला है .
दैनिक जागरण /आई नेक्स्ट में 29/10/2019 को प्रकाशित