Monday, December 9, 2019

जलवायु परिवर्तन को लेना होगा गंभीरता

आधुनिक विकास की अवधारणा के साथ ही कूड़े की समस्या मानव सभ्यता के साथ आयी |जब तक यह प्रव्रत्ति प्रकृति सापेक्ष थी परेशानी की कोई बात नहीं रही पर इंसान जैसे जैसे प्रकृति को चुनौती देता गया कूड़ा प्रबंधन एक गंभीर समस्या में तब्दील होता गया क्योंकि मानव ऐसा कूड़ा छोड़ रहा था जो प्रकृतिक तरीके से समाप्त  नहीं होता या जिसके क्षय में पर्याप्त समय लगता है और उसी बीच कई गुना और कूड़ा इकट्ठा हो जाता है जो इस प्रक्रिया को और लम्बा कर देता है जिससे कई तरह के प्रदुषण का जन्म होता है और साफ़ सफाई की समस्या उत्पन्न होती है |देश की हवा लगातार रोगी होती जा रही है |पेट्रोल डीजल और अन्य कार्बन जनित उत्पाद जिसमें कोयला भी शामिल है |तीसरी दुनिया के देश जिसमें भारत भी शामिल है प्रदूषण के मोर्चे पर दोहरी लड़ाई लड़ रहे हैं | पेट्रोल डीजल और कोयला ऊर्जा के मुख्य  श्रोत हैं अगर देश के विकास को गति देनी है तो आधारभूत अवस्थापना में निवेश करना ही पड़ेगा और इसमें बड़े पैमाने पर निर्माण भी शामिल है निर्माण के लिए ऊर्जा संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए पेट्रोल डीजल और कोयला  आसान विकल्प  पड़ता है दूसरी और निर्माण कार्य के लिए बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटान और पक्के निर्माण भी किये जाते हैं जिससे पेट्रोल डीजल और कोयला  के जलने से निकला धुंवा वातावरण को प्रदूषित करता है | ऊर्जा के अन्य गैर परम्परा गत विकल्पों में सौर उर्जा और परमाणु ऊर्जा महंगी है और इनके इस्तेमाल में भारत  काफी पीछे है |पर्यवारण की समस्या देश में भ्रष्टाचार की तरह हो गयी है जानते सभी है पर कोई ठोस कदम न उठाये जाने से सब इसे अपनी नियति मान चुके है |हर साल स्मोग़ की समस्या से दिल्ली और उसके आस पास इलाके जूझते  हैं|सरकार बयान जारी करती है पर जमीनी हकीकत नहीं बदलती है |  टाटा सेंटर फॉर डेवलपमेंट के सहयोग से क्लाइमेट इम्पैक्ट लैब शिकागो की रिपोर्ट का अनुमान है कि वर्ष 2100 तकजलवायु परिवर्तन के कारण भारत में हर साल लगभग 1.5 मिलियन अधिक लोग मर सकते हैं | इसका असर सबसे अधिक छह राज्य में होगा | इस रिपोर्ट के अनुसार,  उत्तर प्रदेश (402,280), बिहार (136,372), राजस्थान (121,809), आंध्र प्रदेश (116,920), मध्य प्रदेश (108,370), और महाराष्ट्र (106,749) देश में जलवायु परिवर्तन से होने वाली कुल मौतों का 64प्रतिशत से ज्यादा का योगदान देंगे  | पर्यावरण एक चक्रीय व्यवस्था है। अगर इसमें कोई कड़ी टूटती हैतो पूरा चक्र प्रभावित होता है। पर विकास और प्रगति के फेर में हमने इस चक्र की कई कड़ियों से खिलवाड़ करना शुरू कर दिया है। पूंजीवाद के इस युग में कोई चीज मुफ्त में नहीं मिलतीइस सामान्य ज्ञान को हम प्रकृति के साथ जोड़कर न देख सकेजिसका नतीजा धरती पर अत्यधिक बोझ के रूप में सामने है| 
दुर्भाग्य से भारत में विकास की जो अवधारणा लोगों के मन में है उसमें प्रकृति कहीं भी नहीं है,हालाँकि हमारी विकास की अवधारणा  पश्चिम की विकास सम्बन्धी अवधारणा की ही नकल है पर स्वच्छ पर्यावरण के प्रति जो उनकी जागरूकता है उसका अंश मात्र भी हमारी विकास के प्रति जो दीवानगी है उसमें नहीं दिखती है |भारत में आंकड़ा पत्रकारिता की नींव रखने वाली संस्था इण्डिया स्पेंड की रिपोर्ट के अनुसार भारत के शहर लगातार गर्म होते जा रहे हैं कोलकाता में पिछले बीस सालों में वनाच्छादन 23.4 प्रतिशत से गिरकर 7.3 प्रतिशत हो गया है वहीं निर्माण क्षेत्र में 190 प्रतिशत की वृद्धि हुई है साल 2030 तक कोलकाता के कुल क्षेत्रफल का मात्र 3.37प्रतिशत हिस्सा ही वनस्पतियों के क्षेत्र के रूप में ही बचेगा |अहमदाबाद में पिछले बीस सालों में वनाच्छादन 46 प्रतिशत से गिरकर 24 प्रतिशत पर आ गया है जबकि निर्माण क्षेत्र में 132 प्रतिशत की  वृद्धि हुई है साल 2030 तक वनस्पतियों के लिए शहर में मात्र तीन प्रतिशत जगह बचेगी |इस रिपोर्ट के अनुसार देश के सारे राज्य और केन्द्रशासित प्रदेश में से सोलह का औसत तापमान पंजाब से ज्यादा होगा |अभी गर्मियों में सारे राज्यों में पंजाब का औसत तापमान सबसे ज्यादा रहता है |इसका मतलब भारत में आने वाले समय में अत्यधिक गर्मी पड़ने की सम्भावना  है | देश की राजधानी दिल्ली में लगभग बाईस  गुना अधिक गर्मी पड़ने की सम्भावना  है | राष्ट्रीय स्तर पर, 35 ° C से ऊपर के गर्म दिनों में आठ गुना वृद्धि का अनुमान है | सीधे तौर पर यह कहा जा सकता है कि रिपोर्ट मृत्यु के सीधे  कारण के रूप में जलवायु परिवर्तन को देखती है |कि भारत जलवायु परिवर्तन के तूफ़ान के  केंद्र में है | यह आंकड़े  तापमान और मृत्यु दर के वैश्विक आंकड़ों पर आधारित हैजो वैश्विक आबादी के सत्तावन प्रतिशत हिस्से  को कवर करती  है |
देश में जैसे-जैसे हम गर्म दिनों की ओर बढ़ेंगेमृत्यु दर में तेजी से वृद्धि होगी | इस रिपोर्ट के अनुसार भारत का अनुमानित ऊर्जा उपयोग साल  2040 तक दोगुने से अधिक होने की उम्मीद हैजिसमें कोयले की बहुत अधिक भूमिका  होगी | जबकि देश को कोयले से दूर और दुनिया भर में कम कीमतों पर उपलब्ध प्राकृतिक गैस की ओर बढ़ना ही होगा | तथ्य यह भी है कि बढ़ते तापमान और मृत्यु दर के लगभग-सर्वनाशपूर्ण परिदृश्य की खुली भविष्य वाणी कर रहे हैलेकिन हम भविष्य में इसके लिए उतनी मुस्तैदी से तैयार न हो रहे हैं  |  एक हीट-वेव या प्रदूषण की समस्या को केवल एक आपदा या सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में देखा जा रहा हैबल्कि होना यह चाहिए कि इसे समाज के अलग-अलग  क्षेत्रों  जैसे श्रमपेयजलकृषि और बिजली के विभागों के लिए भी  चिंता का विषय होना चाहिए | इससे जलवायु परिवर्तन की समस्या सबकी समस्या बनेगी  जिससे अलग अलग स्तरों पर इससे निपटने के लिए गहन विचार होगा |
दैनिक जागरण /आई नेक्स्ट में 09/12/2019  को प्रकाशित 

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