अब सोशल मीडिया इतना तेज़ और जन-सामान्य का संचार माध्यम बन गया कि इसने हर उस व्यक्ति को जिसके पास स्मार्ट फोन है और सोशल मीडिया पर उसकी एक बड़ी फैन फोलोविंग वह एक चलता फिरता मीडिया हाउस बन गया है .और यहीं से शुरू हुआ इंसान के डाटा बन जाने का खेल . इस खेल में इंटरनेट की कई कम्पनियां भी शामिल हैं जब सोशल मीडिया को लोगों के आधार अकाउंट से जोड़ने का मामला तमिलनाडु हाईकोर्ट पहुंचा तो उसी से जुड़े मामलों को फेसबुक कंपनी ने मद्रास, बॉम्बे और मध्य प्रदेश हाई कोर्टों से सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करने की मांग की .सुप्रीम कोर्ट में तमिलनाडु सरकार की तरफ से दलील देते हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने पहले कहा था कि “सोशल मीडिया यूज़र्स की प्रोफाइल को आधार कार्ड से जोड़ना फ़र्ज़ी खबरों पर लगाम लगाने के लिए ज़रूरी है।” उनके हिसाब से इससे डेफमेट्री आर्टिकल्स, अश्लील और एंटी-नेशनल कंटेंट पर भी लगाम लगेगी।इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 24 सितंबर को केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वह ऑनलाइन निजता और राज्य की संप्रभुता के हितों को संतुलित करके सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए दिशानिर्देश तैयार करने के बारे में एक हलफनामा दायर करे. जस्टिस दीपक गुप्ता और अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा था कि इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंताओं को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यह अदालतों के लिए नहीं है कि वे सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए दिशा-निर्देश तैयार करें। नीति केवल सरकार द्वारा तय की जा सकती है। एक बार सरकार नीति बनाती है तो कोर्ट नीति की वैधता पर निर्णय ले सकता है . हालाँकि अभी इस मुद्दे पर सरकार ने कोई फैसला नहीं लिया है पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पैरोकार और निजता के अधिकार के समर्थक इस कदम का विरोध कर रहे हैं .फेसबुक और व्हाट्स एप जैसी कम्पनियां इस तरह की सोच को नागरिकों के निजता के अधिकार के खिलाफ बता रही हैं . फेसबुक का कहना है कि वो अपने यूज़र्स के आधार कार्ड नंबर को किसी थर्ड पार्टी के साथ शेयर नहीं कर सकता। क्योंकि ऐसा करना उसकी प्राइवेसी पॉलिसी के खिलाफ होगा।इस समस्या एक सबसे बड़ा पहलु है इसका व्यवसायिक पक्ष इंटरनेट की बड़ी कम्पनियां .सोशल मीडिया पर आने से जिस तथ्य को हम नजरंदाज करते हैं वह है हमारी निजता का मुद्दा और हमारे दी जाने वाली जानकारी.जब भी हम किसी सोशल मीडिया से जुड़ते हैं हम अपना नाम पता फोन नम्बर ई मेल उस कम्पनी को दे देते है.असल समस्या यहीं से शुरू होती है .
इस तरह सोशल मीडिया पर आने वाले लोगों का डाटा कलेक्ट कर लिया जाता है .उधर इंटरनेट के फैलाव के साथ आंकड़े बहुत महत्वपूर्ण हो उठें .लोगों के बारे में सम्पूर्ण जानकारियां को एकत्र करके बेचा जाना एक व्यवसाय बन चुका है और इनकी कोई भी कीमत चुकाने के लिए लोग तैयार बैठे हैं .कई बार एक गलती किसी कंपनी की उस लोकप्रियता पर भारी पड़ जाती है जो उसने एक लंबे समय में अर्जित की होती है. टेकक्रंच की एक रिपोर्ट के मुताबिक मई माह में लाखों मशहूर और प्रभावशाली व्यक्तियों का पर्सनल डेटा इन्स्ताग्राम के जरिए लीक हो गया है. इस डेटाबेस में 4.9 करोड़ हाई-प्रोफाइल लोगों के व्यक्तिगत रिकॉर्ड हैं, जिनमें जाने-माने फूड ब्लॉगर, और सोशल मीडिया के प्रभावशाली लोग शामिल थे.रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जिन लोगों का डेटा लीक हुआ है उसमें उनके फॉलोवर्स की संख्या, बायो, पब्लिक डेटा, प्रोफाइल पिक्चर, लोकशन और पर्सनल कॉन्टैक्ट भी शामिल थे.तथ्य यह भी है कि जैसे ही ऐसा करने वाली फर्म के बारे में रिपोर्ट छपी , उसने तुरंत अपने डेटाबेस को ऑफलाइन कर लिया. ताजा मामला ईज़राइली टेक्नोलॉजी से व्हाट्सऐप में सेंध लगाकर पत्रकारों, वकीलों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की जासूसी के मामले में अनेक खुलासे हुए हैं. जो यह सिद्ध करने के लिए काफी है कि इंटरनेट की इस दुनिया में अब निजी कुछ नहीं रह गया है . व्हाट्सऐप ने अमरीका के कैलिफ़ोर्निया में इजरायली कंपनी एनएसओ और उसकी सहयोगी कंपनी Q साइबर टेक्नोलॉजीज़ लिमिटेड के ख़िलाफ़ मुकदमा दायर किया है.
देखने वाली बात यह है कि व्हाट्सऐप के साथ फ़ेसबुक भी इस मुकदमे में पक्षकार है. फ़ेसबुक के पास व्हाट्सऐप का मालिकाना है लेकिन इस मुक़दमे में फ़ेसबुक को व्हाट्सऐप का सर्विस प्रोवाइडर बताया गया है जो व्हाट्सऐप को आधारभूत ढांचा और सुरक्षा कवच प्रदान करता है.पिछले साल ही फ़ेसबुक ने यह स्वीकारा था कि उनके ग्रुप द्वारा व्हाट्सऐप और इंस्टाग्राम के डाटा को मिला कर के उसका व्यवसायिक इस्तेमाल किया जा रहा है. फ़ेसबुक ने यह भी स्वीकार किया था कि उसके प्लेटफ़ॉर्म में अनेक ऐप के माध्यम से डाटा माइनिंग और डाटा का कारोबार होता है. व्हाट्सऐप अपने सिस्टम में की गई कॉल, वीडियो कॉल, चैट, ग्रुप चैट, इमेज, वीडियो, वॉइस मैसेज और फ़ाइल ट्रांसफ़र को इंक्रिप्टेड बताते हुए, अपने प्लेटफ़ॉर्म को हमेशा से सुरक्षित बताता रहा है पर इस खुलासे के बाद यह भ्रम भी टूट गया कि वहाट्स अप अपने उपभोक्ताओं की निजता की सुरक्षा करता है और उनके डाटा का गलत इस्तेमाल नहीं हो सकता .इसका बड़ा कारण इंटरनेट द्वारा पैदा हो रही आय और दुनिया भर की सरकारों में अपनी आलोचनाओं को लेकर दिखाई जाने वाली अतिशय संवेदनशील रवैया है .कम्पनियां अनाधिकृत डाटा के व्यापार में शामिल हैं भले ही वे इसको न माने पर वे अपना डाटा देश की सरकार के साथ नहीं शेयर करना चाहती वहीं सरकार इस तरह के नियम बना कर अपनी आलोचनाओं को कुंद कर सकती है .फिलहाल देश इन्तजार कर रहा है की सोशल मीडिया पर आने वाला वक्त अभिवक्ति की स्वंत्रता और लोगों की निजता के बीच कैसे संतुलन बनाएगा और व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक क्या लोगों को इंटरनेट पर वो आजादी का एहसास करा पायेगा जिसके लिए लोग इंटरनेट पर आते हैं |
दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में 12/12/2019 को प्रकाशित
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