Thursday, November 26, 2020
Sunday, October 18, 2020
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की अनदेखी दुनिया :आठवां भाग
विदा हेवेलॉक |
हमारे रिसोर्ट के पीछे नारियल के बड़े बाग़ थे और उसके पीछे एक छोटी पहाडी |तरह –तरह के नारियल गिरे हुए थे |छोटे बड़े मोटे पतले कुछ हरे रंग के तो कुछ पीले |मुझे बताया गया कि पीले वाले नारियल ज्यादा मीठे होते हैं |
बीस के नोट पर अंडमान |
केवड़े का फल |
जीता जागता स्नेल |
नील की जेटी |
कुछ लिखना जरुरी है क्या ? |
नील का नेचुरल ब्रिज |
नील कुछ ऐसा दिखा मुझे अपने क्रूज से |
पीले नारियल |
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की अनदेखी दुनिया :नवां भाग
लक्ष्मणपुर के सामने हमारा रिजोर्ट |
लक्ष्मणपुर बीच और भीगा -भीगा मौसम |
भीगता समुद्र |
ऐसे ही भीगते मौसम में गेस्ट अपीरियेंस देता यह नाचीज |
हम भारत के अंतिम कोने पर स्थित अंडमान में मानसून का स्वागत कर रहे थे |हालांकि इस स्वागत में मजबूरी नुमा खीज भी शामिल थी क्योंकि ये बारिश हमारे कार्यक्रम में बाधा डाल रही थी |थोड़ी देर इधर उधर घूमने के बाद मैंने समुद्र के किनारे जाकर बैठने का निश्चय किया |
वो कॉटेज जहाँ से ख्याल जन्म ले रहे थे |
भरतपुर बीच |
समय से पहले मैक्क्रुज चल पड़ा |क्रू के सदस्यों ने हमें बताया मौसम खराब होने के कारण अगले तीन दिन कोई शिप पोर्ट ब्लेयर नहीं जाएगा | मैक्क्रुज सिर्फ हम जैसे पर्यटकों को निकालने ही आया था |इस सूचना का अभी शुक्र मना भी नहीं पाए थे कि एक नया अहसास हमें डराने के लिए तैयार था |अभी तक की मेरी समुद्री यात्राओं में एक बार जहाज के अन्दर बैठने के बाद थोड़े बहुत हिचकोले के बाद वो शान्ति से चलता था पर इस बार ऐसा नहीं होने वाला था |जहाज जैसे गहरे समुद्र में पहुंचा हमें लगा किसी ऊंट की सवारी कर रहे थे |पूरे जहाज में चीखने चिल्लाने की आवाजें आने लगीं |
भरतपुर बीच जहाँ नांव इन्तजार करती हैं |
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की अनदेखी दुनिया :सातवाँ भाग
स्कूबा डाइविंग की तैयारी |
मैंने कहा अरे इतनी दूर निकल आये अब वापस कैसे जायेंगे |मेरे इंस्ट्रक्टर ने कहा आप चिंता न करें आते वक्त जैसे आये थे वैसे लेट जाएँ अपना सर पानी के ऊपर रखें |
खूबसूरत राधानगर बीच |
उन्होंने बताया वहां तो उन्हें इशारे से ऐसा न करने के लिए मना किया जाता है लेकिन बाहर निकल कर उन्हें कस के डांट लगाईं जाती है |वैसे ऐसे लोग बहुत ही कम होते हैं |बातें करते -करते हम उस जगह पहुँच चुके थे जहाँ से हमने इस रोमांचक अभियान की शुरुआत की थी |सिलेंडर उतारे गए ,फिन निकाले गए और हम लोग अपनी वैन में बैठकर वापस आये जहाँ एक बार फिर से डिटौल के पानी में खुद भी नहाये और उस ड्रेस को भी धोकर टांग दिया |अपने कपडे पहनकर हमने उस खुबसूरत जगह से विदा ली |
अंखियों के झरोखे से राधानगर बीच |
वहीं एक महिला फ्रूट सलाद इस दावे के साथ बेच रही थी कि ये एकदम ऑर्गेनिक हैं और अंडमान में उगाये गए हैं |मैंने उससे कुछ अंडमानी केले लिए जो आकार में हमारे केलो के मुकाबले आधे थे और उनके ऊपर कोई काली धारियां नहीं थी और वे गाढे पीले रंग के थे |
स्कूबा डाइविंग ड्रेस |
Saturday, October 10, 2020
पॉडकास्ट का बढ़ता दायरा
कोरोना काल बहुत से बदलाव का वाहक बना |ऐसे वक्त में जब कुछ समय के लिए देश लगभग रुक सा गया था तब लोगों ने समय बिताने के लिए इंटरनेट पर नए नए तरीके ढूंढे| ज्यादातर तस्वीरों और वीडियो से भरा रहने वाली सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर इन दिनों आवाज यानि साउंड का भी जोर बढ़ा और स्ट्रीमिंग में भी एक विकल्प के तौर पर आवाज के जादू से भी लोग परिचित हुए ||देश में लोगों ने संगीत सुनने के लिए रेडियो और टेलीविजन पर परंपरागत रूप से भरोसा किया है, अब समय बदल रहा है, लोग संगीत स्ट्रीमिंग सेवाओं का उपयोग करने लगे है |
आज के समय में इनकी श्रोता संख्या 200 मिलियन से अधिक हैं | इंटरनेट पर ऑडियो फाइल को साझा करना पॉडकास्ट के नाम से जानाजाता है। पॉडकास्ट दो शब्दों के मिलन से बना है| जिसमें पहला हैं प्लेयेबल ऑन डिमांड (पॉड) और दूसरा ब्रॉडकास्ट । नीमन लैब के एक शोध के अनुसार, वर्ष 2016 में अमेरिका में पॉडकास्ट (इंटरनेट पर ध्वनि के माध्यम से विचार या सूचना देना) के प्रयोगकर्ताओं की संख्या में काफी तेजी से वृद्धि हुई है। जिसके वर्ष 2020 तक लगातार पच्चीस प्रतिशत की दर से वृद्धि करने की उम्मीद है। इस वृद्धि दर से वर्ष 2020 तक पॉडकास्टिंग से होने वाली आमदनी पांच सौ मिलियन डॉलर के करीब पहुंच जाएगी। पॉडकास्टिंग की शुरुआत हालांकि एक छोटे माध्यम के रूप में हुई थी, पर अब यह एक संपूर्ण डिजिटल उद्योग का रूप धारण करता जा रहा है।भारत में पॉडकास्टिंग के जड़ें न जमा पाने के कारण हैं ध्वनि के रूप में सिर्फ फिल्मी गाने सुनने की परंपरा और श्रव्य की अन्य विधाओं से परिचित ही नहीं हो पाना रहा है ।देश में आवाज के माध्यम के रूप में रेडियो ने टीवी के आगमन से पहले अपनी जड़ें जमा ली थीं पर भारत में रेडियो सिर्फ संगीत रेडियो का पर्याय बनकर रह गया और टाक रेडियो में बदल नहीं पाया है | तथ्य यह भी है कि सांस्कृतिक रूप से एक आम भारतीय का सामाजीकरण सिर्फ फ़िल्मी गाने और क्रिकेट कमेंट्री सुनते हुए होता है जिसकी परम्परा पारंपरिक रेडियो से शुरू होकर निजी ऍफ़ एम् स्टेशन होते हुए इंटरनेट की दुनिया तक पहुँची है |अब यह परिद्रश्य तेजी से बदल रहा है |
वर्तमान में, भारत के लगभग 500 मिलियन इंटरनेट उपयोगकर्ताओं में से केवल 40 मिलियन ही पॉडकास्ट सुनते हैं | हालांकि, संख्या तेजी से बढ़ रही है | 2018 में, भारत में पॉडकास्ट के श्रोताओं में लगभग 60% वृद्धि हुई थी | जिस कारण मुक़ाबलेबाज़ी बड़ रही है | ऑनलाइन मंचों पर पहले से ही 98% ऐप स्क्रीन टाइम के लिए लड़ रहे हैं | और कुछ सब से बेहतर देखाने की होड़ लगी है | ऑनलाइन म्यूजिक और पॉडकास्ट स्ट्रीमिंग बाज़ार काफी तेजी से बढ़ रहा है | मूल रूप से लक्षित मेट्रो शहरों के बाद अब देश में OTT म्यूजिक स्ट्रीमिंग ऐप अब टियर 2 और 3 शहरों में भी अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है | दरसल आँकड़े भी इस तथ्य को पूरा समर्थन देते हैं, जैसा कि Spotify द्वारा पिछली दीपवाली पर जारी रिपोर्टों में बताया गया कि बिहार में सबसे ज्यादा त्यौहार आधारित म्यूजिक स्ट्रीमिंग का चलन नज़र आया | और अब ऑडियो और म्यूजिक स्ट्रीमिंग की इस बढ़ते बाज़ार में अपनी हिस्सेदारी को भी जगह दिलाने के मकसद से मुंबई स्थित पॉडकास्ट स्टार्टअप कुकू ऍफ़ एम् ने भी क्षेत्रीय भाषाओँ में पॉडकास्ट और लंबे समय के ऑडियो कंटेंट के साथ कदम रखा है |
आईआईटी के पूर्व छात्र लाल चंद बिसु, विनोद मीणा और विकास गोयल द्वारा 2018 में स्थापित कुकू ऍफ़ एम् एक पॉडकास्ट मंच है जो श्रोताओं को नए, उभरते और विविध ऑडियो कंटेंट की खोज करने और रचनाकारों के साथ जुड़ने की अनुमति देकर पारंपरिक रेडियो को फिर से स्थापित करने की कोशिश कर रहा है | आज यह कहना ग़लत नहीं हो गया कि ऑडियो स्ट्रीमिंग भारत में पहले की तरह बढ़ रही है | वास्तव में, भारतीय ऑडियो सामग्री के लिए इतने भूखे हैं कि वे संगीत सुनने के लिए दुनिया की सबसे बड़ी वीडियो-स्ट्रीमिंग साइट, यू ट्यूब का उपयोग कर रहे हैं | जैसे-जैसे इंटरनेट और स्मार्टफोन की पैठ बढ़ती है, विशेषज्ञों का मानना है कि अधिक ऑडियो सामग्री लेने वाले मिल जाएंगे | 2019 में, भारत के संगीत स्ट्रीमिंग सेगमेंट में स्टॉकहोम-आधारित संगीत स्ट्रीमिंग ऐप स्पोटी फाई को फरवरी में लॉन्च किया गया जिससे प्रतिस्पर्धा में तेज आ गई और तीन सप्ताह से भी कम समय के बाद, गूगल के स्वामित्व वाला यू टयूब भी जंग में कूद पड़ा | अब विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में ऑडियो स्ट्रीमिंग सेगमेंट के विस्तार के साथ-साथ पॉडकास्ट एक महत्वपूर्ण गेम चेनजर साबित हो सकता है |
हालांकि पॉडकास्ट शब्द भारत के लिए नया है, लेकिन देश पॉडकास्टिंग की अवधारणा से काफी परिचित है | रेडियो और समाचार प्रकाशकों जैसे पारंपरिक चैनलों ने भारत में पॉडकास्ट को सबसे पहले प्रोत्साहित किया | और अब असंख्य कंपनियां और व्यक्ति भारतीय संगीत पर मंडरा रहे हैं | टाइम्स इंटरनेट के स्वामित्व वाली भारत की एक दशक पुरानी संगीत स्ट्रीमिंग सेवा, गाना हाल ही में देश में 150 मिलियन से अधिक मासिक सक्रिय उपयोगकर्ताओं की पहचान करने वाली पहली संगीत सेवा बन गई। गाना के निकटतम प्रतिद्वंद्वी, जीयो सावन के भारत में सौ मिलियन से अधिक सक्रिय उपयोगकर्ता हैं | 2016 में रिलायंस के Jio सिम की शुरुआत के बाद, जिसके कारण मोबाइल डेटा की कीमतों में भारी गिरावट आई, जिससे ये ऐप तेजी से उपयोगकर्ताओं को प्राप्त करना शुरू कर दिया | उस विकास ने पिछले कुछ वर्षों में यू टयूब म्यूजिक ,अमेजन प्राईम और स्पोटीफाई जैसे वैश्विक खिलाड़ियों को आकर्षित किया है | अब कुछ एक सालों से हालत यह है कि भारत में, ऑडीयो बूम में हर महीने 3.5 मिलियन की रफ़्तार से बढ़ रहा है | भारत में इसके तीन-चौथाई श्रोता 18-34 वर्ष आयु वर्ग में आते हैं | जहां तक भारत का सवाल है यहाँ हर दर्शक वर्ग का ख्याल यह ऑडीयो बूम रख रहा है | व्यवसाय, हॉरर, और बच्चों के पॉडकास्ट भी अच्छा कंटेंट पेश कर रहे हैं, अगर आप धार्मिक मानसिकता के है तो भक्ति श्रेणी, जिसमें हिंदू धार्मिक पाठ भगवद गीता और रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्य भी शामिल हैं इस लिस्ट में | भारत जैसे देश में ध्वनि व्यवसाय के लिए संभावनाएं कितनी हैं, इसका अंदाजा इस बात से लग सकता है कि देश में भले ध्वनि समाचारों के लिए आकाशवाणी का एकाधिकार है |सरकार इस एकाधिकार को निकट भविष्य में प्राइवेट रेडियो ऍफ़ एम् के साथ साझा करने के मूड में नहीं दिखती ऐसे में रेडियो का विचार और मानवीय अभिरुची विषयक कंटेंट का क्षेत्र व्यवसाय के रूप में एकदमखाली पड़ा है |पॉडकास्ट उस खालीपन को भरकर देश के ध्वनि उद्योग में क्रांति कर सकता है और रेडियो संचारकों को अपनी बात नए तरीके से कहने का विकल्प दे सकती है |
दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में 10/10/2020 को प्रकाशित
Tuesday, October 6, 2020
जिन्दगी का सफर है ये कैसा सफर कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं .ऐसी ही है जिन्दगी इसको समझने की कोशिश तो बहुत से दार्शनिकों , चिंतकों ने की लेकिन जीवन चलने का नाम चलते रहो सुबह शाम , वास्तव में जिन्दगी तो चलने का ही नाम है और ये बात कितनी आसानी से एक फिल्मी गाने ने हमें समझा दी.हिन्दी फिल्मों के गाने यूँ तो पुरे देश में सुने और सराहे जाते हैं लेकिन ज्यादातर लोग इन गानों को गंभीरता से नहीं लेते .हिन्दी फिल्मों के गानों की एक अलग दुनिया है. और इस रंग बिरंगी दुनिया में जिन्दगी के लाखों रंग हैं. अगर प्रश्न जिन्दगी को समझने का हो तो काम और भी मुश्किल हो जाता है लेकिन गाने कितनी आसानी से जिन्दगी की दुश्वारियों , परेशानियों , अच्छाइयों को हमारे सामने लाते हैं .अब अगर लोगों के मिलने बिछड़ने की बात करें तो जिन्दगी के सफर में बिछड़ जाते हैं जो मुकाम वो फ़िर नहीं आते (आप की कसम), जिन्दगी की पहेली को उलझाता सुलझाता ‘आनंद’ फ़िल्म का ये गाना “जिन्दगी कैसी है पहेली हाय”.हिन्दी फिल्मों के गानों में जिन्दगी के दर्शन को बहुत करीब से समझने की कोशिश की गयी है .जिन्दगी का समय अनिश्चित है इसलियी ‘ज़मीर’ फ़िल्म के इस गाने में कहा गया है “जिन्दगी हंसने गाने के लिए है पल दो पल” और इसी दर्शन को आगे बढाता ‘अंदाज़’ फ़िल्म का ये गाना “जिन्दगी एक सफर है सुहाना यहाँ कल क्या हो किसने जाना” और जिन्दगी की सबसे बड़ी पहेली यही है की कल क्या होगा कल जो होना है फ़िर उसके लिए आज ही से क्यों परेशान हुआ जाए, लेकिन जिन्दगी खूबसूरत तो तभी होती है जब कोई साथी जिन्दगी में हो और शायद ‘अनारकली’ फ़िल्म का ये गीत कहता है “जिन्दगी प्यार की दो चार घड़ी होती है”. ‘साजन’ फ़िल्म के इस गाने में गीतकार अपने चरम पर है “सांसों की जरुरत है जैसे जिन्दगी के लिए एक सनम चाहिए आशिकी के लिए” प्यार की इसी ताकत का एहसास करता ‘क्रांति’ फ़िल्म का ये गाना कि “जिन्दगी की न टूटे लड़ी प्यार कर ले घड़ी दो घड़ी” . हम कई आयामों से जिन्दगी को समझने की कोशिश जरूर कर रहे हैं लेकिन फ़िर भी ‘सत्यकाम’ फ़िल्म के इस गाने की तरह “जिन्दगी है क्या बोलो जिन्दगी है क्या” , यह तो एक व्यक्ति के द्रष्टिकोण के ऊपर निर्भर करता है.जिन्दगी में हमें जो मिला है या तो उससे संतुष्ट हो जाएँ या जिन्दगी को बेहतर बनांने की कोशिश करते रहें क्योंकि जिन्दगी रुकती नहीं किसी के लिए चलता रहे इंसान मुनासिब है जिन्दगी के लिए. मुझे ‘समाधि’ फ़िल्म का एक गाना याद आ रहा है ‘ये जिन्दगी है कौम की तू कौम पर लुटाये जा’ . किस्सा छोटा सा है फलसफा बड़ा जो सफर प्यार से कट जाए वो प्यारा है सफर नहीं तो मुश्किलों के दौर का मारा है सफर. अगली बार जब आप कोई प्यारा सा फिल्मी गाना सुने तो जरुर उसके माध्यम से जिन्दगी को समझने की कोशिश कीजियेगा. ‘सीता और गीता’ फ़िल्म का गाना है “जिन्दगी है खेल कोई पास कोई फ़ेल’ तो जिन्दगी के इस खेल को खेल की भावना से खेलिए और विरोधियों का दिल जीतने की कोशिश कीजिये क्योंके कोशिशें ही कामयाब होती है. जिन्दगी को बेबसी मत बनने दीजिये जिन्दगी को समझने का सिलसिला ‘दूरियां’ फ़िल्म के इस गीत के माध्यम से ख़त्म करता हूँ “जिन्दगी मेरे घर आना जिन्दगी” .
प्रभात खबर में 06/10/2020 को प्रकाशित
Saturday, October 3, 2020
मासूम नहीं फनी विडियो के मजाक
बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप के अनुसार भारत का वीडियो
स्ट्रीमिंग बाजार 2023 तक बढ़कर पांच बिलियन डॉलर का हो जाएगा जो साल 2018 में
मात्र पांच सौ मिलीयन का था|इंटरनेट पर दो तरह के वीडियो उपलब्ध हैं पहला ओटीटी
प्लेत्फोर्म्स जिसमें यूजर्स एक निश्चित रकम चुका कर के इंटरनेट पर विज्ञापन रहित
वीडियो कंटेंट का लुत्फ़ उठाते हैं वहीं दूसरे प्रकार का दर्शक इंटरनेट पर यूट्यूब
और इन्स्ताग्राम जैसी साईट्स पर वीडियो का लुत्फ़ उठाता है पर उन वीडियो को देखने
के लिए अलग से कोई भी धनराशि खर्च नहीं करता पर इसके बदले ये कम्पनियां उसे वीडियो
के साथ विज्ञापन भी दिखाती हैं |एनाल्सस मासन के आंकड़ों
के मुताबिक़ साल 2019 के आंकड़ों के मुताबिक़ एक औसत भारतीय स्मार्टफोन धारक एक महीने
में 8.5 गीगा बाईट का डाटा बगैर वाई –फाई का इस्तेमाल
किये हुए खर्च कर रहा था या इसे अन्य शब्दों में समझें तो औसतन चालीस घंटे देखे
जाने लायक डाटा खर्च कर रहा था और यह आंकड़े अमेरिका चीन और जापान के कंज्यूमर से
ज्यादा है |ये आंकड़े बताते हैं कि भारत में इंटरनेट
वीडियो का जादू सर चढ़कर बोल रहा है पर सवाल यह उठता है कि इन मुफ्त के वीडियो में
जो विज्ञापन आधारित मोडल पर दिखाए जा रहे हैं उनमें लोग क्या पसंद कर रहे हैं |
फेसबुक ,इन्स्ताग्राम हो या यूट्यूब
संगीत के बाद सबसे ज्यादा देखे जाने वाले वीडियो में दर्शकों की पसंद फन्नी वीडियो
या प्रैंक वीडियो ही हैं |खाली वक्त में जब करने जैसा
ख़ास कुछ न हों और हाथ में स्मार्ट फोन हो तो लोग अक्सर इन वीडियो की तलाश में रहते
हैं |जब यूँ ही स्क्रोल करते हुए कुछ रोचक दिख जाता है |इन्सान सदियों से एक दूसरे के साथ मजाक करता आ रहा है |जब हमें यह पहली बार पता लगा कि अपनी सामजिक शक्ति का हेर फेर करके दूसरों
की कीमत पर मजाक उड़ाया जा सकता है |प्रैंक या मजाक
ज्यादातर संस्कृतिक मानकों द्वारा निर्धारित होते हैं जिनमें टीवी रेडियो और
इंटरनेट द्वारा स्थापित मानक भी शामिल हैं |लेकिन जब
सांस्कृतिक और व्यवासायिक मानक मजाक करते वक्त आपस में टकराते हैं और अगर उन्हें
जनमाध्यमों का साथ मिल जाए तो इसके परिणाम भयानक साबित हो सकते हैं |दिसम्बर 2012 में जैसिंथा सल्दान्हा नाम की एक भारतीय मूल की ब्रिटिश नर्स ने एक प्रैंक काल के बाद आत्महत्या कर ली थी उसके बाद सारी दुनिया में इस
बात पर बहस चल पडी कि इस तरह के मजाक को किसी के साथ करना फिर उसे रेडियो टीवी या
इंटरनेट के माध्यम से लोगों तक पहुंचा देना कितना जायज है |साल 2012 में इंटरनेट इतने बहुआयामी माध्यमों के साथ हमसे नहीं जुड़ा था पर
आज के हालात एकदम अलग हैं|हिट्स और क्लिक से पैसे कमाए जा
सकते हैं|यह महत्वपूर्ण नहीं है कि क्या दिखाया जा रहा है बस
व्यूज मिलने चाहिए ऐसी हालत में भारत एक खतरनाक स्थिति में पहुँच रहा है |जिसमें प्रैंक वीडियो एक बड़ी भूमिका निभा रहे हैं |
दुनिया
में ऑनलाईन प्रैंक वीडियो की शुरुआत यूटयूब और फेसबुक जैसी साईट्स के आने से बहुत
पहले हुई थी |साल 2002 में
इंटरेक्टिव फ्लैश वीडियो स्केयर प्रैंक के नाम से पूरे इंटरनेट पर फ़ैल गया था |थोमस हॉब्स उन पहले दार्शनिकों में से थे जिन्होंने ये माना कि मजाक के
बहुत सारे कार्यों में से एक यह भी है कि लोग अपने स्वार्थ के लिए मजाक का
इस्तेमाल सामाजिक शक्ति पदानुक्रम को अस्त व्यस्त करने के लिए करते हैं | सैद्धांतिक रूप से, मजाक की
श्रेष्ठता के सिद्धांतों को मनोविज्ञान और समाजशास्त्र के बीच संघर्ष और शक्ति
संबंधों के संबंध में समझा जा सकता है| विद्वानों ने स्वीकार किया कि
संस्कृतियों में, मजाक और मज़ाक का
इस्तेमाल अक्सर "हिंसा को सही ठहराने और मजाक के लक्ष्य को अमानवीय बनाने के
लिए" किया जाता है|इन सारी अकादमिक चर्चाओं के बीच भारत
में इंटरनेट पर मजाक का शिकार हुए लोगों की चिंताएं गायब हैं |
सबसे
मुख्य बात सही और गलत के बीच का फर्क मिटना जो सही है उसे गलत मान लेना और जो गलत
है उसे सही मान लेना |जिस गति से देश में
इंटरनेट पैर पसार रहा है उस गति से लोगों में डिजीटल लिट्रेसी नहीं आ रही है
इसीलिये निजता के अधिकार जैसी आवश्यक बातें कभी विमर्श का मुद्दा नहीं बनती |
किसी ने किसी से फोन पर बात की अपना मजाक उडवाया यह मामला यहं
तक व्यक्तिगत रहा फिर वही वार्तालाप इंटरनेट के माध्यम से सार्वजनिक हो गया |जिस कम्पनी के सौजन्य से यह सब हुआ उसे हिट्स लाईक और पैसा मिला पर जिस
व्यक्ति के कारण यह सब हुआ उसे क्या मिला ? यह सवाल अक्सर
नहीं पूछा जाता |इंटरनेट पर ऐसे सैकड़ों एप है जिनको डाउनलोड
करके आप मजाकिया वीडियो देख सकते हैं और ये वीडियो आम लोगों ने ही अचानक बना दिए
हैं |कोई व्यक्ति रोड क्रोस करते वक्त मेन होल में गिर जाता
है और उसका फन्नी वीडियो इंटरनेट पर वायरल हो जाता है और फिर अनंतकाल तक के
लिए सुरक्षित भी हो जाता है |
हमने
उस वीडियो को देखकर कहकहे तो खूब लगाये पर कभी उस परिस्थिति में अपने आप को नहीं
देख कर सोचा|इंटरनेट के फैलाव ने बहुत
सी निहायत निजी चीजों को सार्वजनिक कर दिया है|ये सामाजिक
द्रष्टि से निजी चीजें जब हमारे चारों ओर बिखरी हों तो हम उन असामान्य परिस्थिति
में घटी घटनाओं को भी सार्वजनिक जीवन का हिस्सा मान लेते हैं जिससे एक परपीड़क समाज
का जन्म होता है और शायद यही कारण है कि अब कोई दुर्घटना होने पर लोग मदद करने की
बजाय वीडियो बनाने में लग जाते है |मजाकिया और प्रैंक वीडियो
पर कहकहे लगाइए पर जब उन्हें इंटरनेट पर डालना हो तो क्या जाएगा और क्या नहीं इसका
फैसला कोई सरकार नहीं हमें आपको करना है |इसी निर्णय से तय
होगा कि भविष्य का हमारा समाज कैसा होगा |
नवभारत टाईम्स में 03/10/2020 को प्रकाशित
Monday, September 28, 2020
अर्थव्यवस्था को बचा पायेगी खेती ?
जलवायु में आने वाले परिवर्तन से नित नए खतरे उभर रहे हैं, चाहे अमीर हो या गरीब दुनिया का
कोई भी देश जलवायु में आने वाले परिवर्तन के खतरे से अनछुआ नहीं है | कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के नवीनतम अध्ययन में ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि जलवायु में आ रहे परिवर्तनों के
चलते इस सदी के अंत तक वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट आ सकती है | लॉन्ग टर्म मेक्रो इकोनोमिक इफेक्ट्स ऑफ़ क्लाइमेट चेंज :अ क्रोस कंट्री
एनालिसिस शोध पत्र के अनुसार जहां वैश्विक अर्थव्यवस्था में सात प्रतिशत की गिरावट
आ सकती हैं, वहीं भारत की अर्थव्यवस्था दस प्रतिशत तक
कम हो सकती है | वहीं क्लाइमेट चेंज को नकारने
वाले अमेरिका को भी अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 10.5 प्रतिशत तक के
घाटे को सहने के लिए तैयार रहना होगा |पिछले चार दशकों
में देश के सबसे खराब तिमाही जीडीपी संकुचन का प्रभाव में एकमात्र एकमात्र
आशा की किरण कृषि क्षेत्र में ही देखा जा सकता है | अप्रैल और जून के बीच, जब देश की अर्थव्यवस्था 23.9प्रतिशत तक संकुचित हो गयी थी, तब इस कृषि
क्षेत्र ने 3.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की | लेकिन यह आशा की किरण
भी अब तेजी से धुंधली पड़ रही है | क्योंकि जलवायु
परिवर्तन से पड़ने वाला प्रभाव कृषि क्षेत्र में हो रही वृद्धि को प्रभावित कर सकता
है | भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की नवीनतम वार्षिक रिपोर्ट, जो कि अगस्त माह में जारी की गई है के अनुसार देश , को भविष्य में ज्यादा व्यापक सूखे और औसत बारिश में कमी का सामना कर पड़
सकता है |इसके अतिरिक्त चक्रवातों की उच्च आवृत्ति की
संभावना भी है|अकेले 2019 में, बारिश में तेज अस्थिरता के साथ आठ
चक्रवातों के कारण कृषि क्षेत्र की क्षति में वृद्धि हुई है |रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि ग्लोबल वार्मिंग या तापमान में तेज
वृद्धि फसल की पैदावार में गिरावट, संभावित आय को कम करने का कारण बना है | देश
में में 2008 से 2018 के बीच जल स्तर में गिरावट के साथ लगभग 52 प्रतिशत कुओं का भूजल सूख गया है |ऐसा पहली बार हुआ है कि देश के केन्द्रीय बैंक ने क्लाइमेट चेंज को
अपनी वार्षिक रिपोर्ट में शामिल किया है |एक
अनुमान के अनुसार देश की जी डी पी का तीन प्रतिशत क्लाइमेट चेंज के प्रभाव को कम
करने के लिए खर्च किया जाएगा |भारत जैसे अल्पविकसित देश
के लिए यह एक बड़ी रकम होगी और इस तरह के खर्च से समय रहते आवश्यक कदम उठा कर बचा
जा सकता था |
जलवायु परिवर्तन की इस तीव्रता के गंभीर परिणाम
देश के कृषि क्षेत्र और अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा |अभी भी देश की अर्थव्यवस्था कृषि पर ही टिकी हुई है
और इस क्षेत्र में पड़ने वाला प्रभाव समूची अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा | यदि देश के केन्द्रीय बैंक की वार्षिक रिपोर्ट को आधार माना जाए तो इसका मतलब होगा भारत की संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था के लिए अधिक बुरी खबर | यह स्थिति आगे भी चलती रहेगी क्योंकि भारत जैसे उष्णकटिबंधीय देश जलवायु
परिवर्तन का शिकार होते रहेंगे और इसके बाद खाद्य उत्पादन में कमी आएगी और
फसल की पैदावार कम हो जाएगी | अगर कृषि क्षेत्र में खाद्य उत्पादन गिरता है और अनिश्चितता बढ़ती है, तो मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लिए आर बी आई को और कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी | आरबीआई
जैसे संगठनों के लिए यह स्पष्ट हो गया है कि हमारे मानसून का पैटर्न बदल गया है और
वर्षा में अनियमितता ने इसे "विनाश का कारण " बना दिया है | खाद्य कीमतों पर जलवायु परिवर्तन के दीर्घकालिक प्रभाव पर्याप्त देखे जा
सकते हैं | जलवायु परिवर्तन से मिट्टी का क्षरण, भूमि गुणवत्ता का क्षरण, मरुस्थलीकरण, सूखे की बढ़ती आवृत्ति और तापमान में वृद्धि हो रही है | आरबीआई ने अपनी रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि यह देखते हुए कि भारत
पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव विश्व स्तर पर सबसे गंभीर होने की संभावना है, जलवायु जोखिम से उत्पन्न वित्तीय जोखिमों की पहचान, मूल्यांकन और प्रबंधन के लिए एक उपयुक्त ढांचे की आवश्यकता है | मार्च 2020 में समाप्त वित्त वर्ष में भारत की आर्थिक वृद्धि में कृषि
क्षेत्र का योगदान लगभग 15 प्रतिशत था जो बैंकों के समग्र ऋण का 12.6 प्रतिशत
($ 154 बिलियन) था | इसका मतलब है कि कृषि क्षेत्र पर झटका पड़ने से भारत की वित्तीय
प्रणाली के स्वास्थ्य पर सीधा असर पड़ सकता है |ऐसी
स्थिति में कृषि उपकरण और और इससे जुड़े
क्षेत्रों जैसे ट्रैक्टर, मोटर पंप, बीज और उर्वरक के लिए लिए गए ऋण पर किसानों के न चुका पाने की
संभावना ज्यादा है | इसके अलावा, फसल के नुकसान से बैंकों पर राजनीतिक दबाव होगा कि वे ऋणों को माफ़ करे या
अनिश्चित ब्याज दरों पर ऋण की पेशकश करें |कोविड 19 के
इस अनिश्चित समय में किसी समस्या को जानना समस्या को खत्म करने में पहला कदम हो
सकता है |
अमर उजाला में 28/09/2020 को प्रकाशित