Thursday, June 18, 2020

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की अनदेखी दुनिया :छठा भाग



अगले दिन हमें दुनिया के सबसे खुबसूरत “समद्री बीच” में से एक  राधानगर बीच की यात्रा करनी थी पर उससे पहले हमें विकल्प दिया गया कि “क्या हम स्कूबा डाइविंग करना चाहते हैं”?जीवन में कोई एडवेंचर तो बचा नहीं था इसलिए सोचा गया क्यों न एक चांस लिया जाए |शुरुआत में तो  लगा यूँ हो जाएगा |हमारे हाँ कहते ही पहले हमें एक जिप्सी में लादा गया और एक बियावान से एरिये में ले जाया गया गया जो स्कूबा डाइविंग सेंटर था |
स्कूबा डाइविंग का अनुभव 
वहां दो जवान लड़कों ने हमारा स्वागत किया और हमें स्कूबा डाइविंग के बारे में बताया गया |उनके दो स्लॉट थे |प्रीमियम सुबह छ बजे से आठ बजे तक प्रीमियम और आठ बजे से एक बजे तक नार्मल |प्रीमियम का शुल्क चार हजार रुपये मात्र जिसमें आधे घंटे की स्कूबा डाइविंग फोटोग्राफ और वीडियो भी शामिल थे  जबकि  नार्मल में सबकुछ वही था पर समय बदल गया था |मैंने पूछा समय बदलने से पैसा कम क्यों हो रहा है ?तब मुझे बताया गया कि सुबह छ से आठ समुद्र के भीतर द्र्श्यता अच्छी रहती है उसके बाद लोगों के आने जाने से द्र्श्यता प्रभावित होती है इसलिए समुद्री जीवन उतना स्पष्ट नहीं दिखता |हमारे पास कोई विकल्प नहीं था क्योंकि तब तक सुबह के दस बज चुके थे |हमारे सामने दो फॉर्म रख दिए गए जिसमें अपने स्वास्थ्य और बीमारियों का ब्यौरा देना था ,साथ ही यह भी घोषणा करनी थी कि इस दौरान अगर कोई दुर्घटना हो जाती है तो कम्पनी की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी |वो फॉर्म इतना बड़ा था कि मुझे डर लगना शुरू हो गया |मैंने अपने इंस्ट्रक्टर से पूछा क्या यह वाकई में सुरक्षित होने वाला है ?उसने आत्मविश्वास से कहा आप बिलकुल चिंता न करें एक आदमी जब तक आप पानी के नीचे रहेंगे |आपके साथ रहेगा ,आपको बस अपने आपको उसके हवाले करके समुद्र के अन्दर की खूबसूरती को निहारना है |अब फंस चुके थे |अगर कहते डर लग रहा है तो और परेशानी क्योंकि अगुआ हमीं थे |मैंने अपने डर को कम करने के लिए अपने इंस्ट्रक्टर से बात चीत शुरू कर दी,कागजी कार्यवाही के बाद हमें विशेष डिजाइन वाले स्कूबा सूट पहनने थे जिसमें समय लग रहा था |
बीस फीट पानी के अंदर से सूरज ऐसा दिखता है 
मेरा इंस्ट्रक्टर जिसका नाम अब मैं भूल चुका हूँ |चेन्नई का एक ऑटोमोबाईल इंजीनियर था जो एक बार
हेवेलॉक घूमने आया फिर नौकरी छोड़ कर यहीं रह गया |स्कूबा डाइविंग का उसने कोर्स वगैरह शायद पुदुचेरी से किया फिर यही काम करने लग गया |उसने बताया पैसे बहुत कमाए पर अब वो जीवन का लुत्फ़ उठाना चाहता था |मैंने उसे बधाई दी और कहा दोस्त इस देश में बहुत कम ऐसे खुशनसीब लोग हैं जो वो कर पा रहे हैं |जो वो अपने जीवन में वाकई करना चाहते हैं |आज भी उस मृदुभाषी श्यामवर्णी इंसान का चेहरा मेरी आँखों के आगे घूम जाता है जो अपनी शर्तों पर जीवन जी रहा है |हमने अपने डर को काबू करने के लिए कहा यहाँ सिर्फ अंडमान राज्य की गाडिया दिखती हैं उसने दार्शनिक अंदाज में कहा “यहाँ आने के रास्ते तो बहुत हैं पर जाने का एक ही” इसीलिये गाड़ियों की चोरी नहीं होती ,कोई चुरा के ले के कहाँ जाएगा |मन में आया उससे कहूँ क्या यहाँ कबाड़ी नहीं है जो गाड़ियाँ काट डालते हैं और आपको कभी पता ही नहीं चलता आपकी गाड़ी गयी कहाँ ?बातों –बातों में हम तैयार हो गए |काले नीले रंग का स्किन टाईट सूट ,नाक को ढंकते हुए आँखों पर लगने वाला चश्मा ,बड़े –बड़े पैर की साईज के फिन लेकर हम उसकी मारुती वैन में बैठा दिया गया |गाडी में हमारे साथ बड़े और भारी ऑक्सीजन सिलेंडर ,कमर पर बांधे जाने वाला पत्थरों का एक पट्टा सब लाद दिया गया |
समुद्री जीवन 
अब हमें उस जगह जाना था जहाँ से हम सबको स्कूबा डाइविंग के लिए समुद्र के भीतर ले जाया जाने वाला था |तब तक मैं बहुत प्रसन्न और स्कूबा के लिए बड़ा उत्सुक था |स्कूबा डाइविंग की जगह हेवेलॉक की जेटी(वो स्थान जहाँ से जहाज आते और जाते हैं ) के करीब थी |करीब दस मिनट की यात्रा के बाद हमारी वैन उस जगह रुक गयी |कई छोटे बच्चे हँसते –मुस्कुराते स्कूबा डाइविंग का अपना सेशन करके लौट रहे थे |उनको हँसते मुस्कुराते मेरा डर कुछ कम हुआ |मेंग्रोव के जंगलो के किनारे उस जगह लोगों का काफी हुजूम था |बच्चे बूढ़े और जवान समुद्र के अन्दर की अनोखी दुनिया को देखना चाह रहे थे |हम भी उन लोगों के हुजूम में शामिल हो गए |एक रजिस्टर में सबके नाम दर्ज किये गए जो समुद्र के अंदर जा रहे थे साथ ही उनके इंस्ट्रक्टर के भी नाम |अब हम उथले समुद्र में थे |पीठ पर ऑक्सीजन के सिलेंडर लाद दिए गए पैरो में फिन ,अब हमारा ट्रेनिंग सेशन शुरू हुआ |बीस फीट पानी के नीचे आप कुछ बोल नहीं सकते क्योंकि मुंह में ऑक्सीजन के सिलेंडर की पाईप लगी हुई होती |इसलिए नीचे इशारों से काम चलाया जाता है वो सारे इशारे सीखाये गए |मुंह में पानी चला जाए तो क्या करना है ,चश्मा गन्दा हो जाए तो बगैर हाथ के उसे कैसे साफ़ करना आदि ,आदि |

हेवेलॉक की हरियाली 
अब बारी थी पानी के अन्दर जाने की उससे पहले ट्रायल ,उससे पहले अपने चश्मे के देखे जाने वाले भाग पर थूकने को कहा गया |फिर उस थूक को उंगली से उस प्लास्टिक के चश्मे को रगड़ने को कहा गया ,हमारे पास इसके अलावा कोई चारा नहीं था |ये थूकने का काण्ड क्यों करवाया गया इसका कोई स्पष्ट उत्तर नहीं मिला |शायद थूक में खारा पन नहीं होता इसलिए चश्मा ठीक से साफ़ हो जाता है जो भी हो |अभी मेरी और मौज ली जाने वाली थी |मुझसे ट्रायल के तौर में समुद्र के पानी में डुबकी लगाने को कहा गया मैंने डुबकी के बाद कहा “यहाँ का पानी ज्यादा खारा क्यों है” उसका जवाब भी तुर्की बा तुर्की था उसने कहा यहाँ ज्यादा टूरिस्ट हैं ये उनके पेशाब के कारण है |तो पेशाब और थूक के बीच हम स्कूबा के लिए तैयार हो रहे थे |स्कूबा के लिए जरुरी है कि आप भूल जाएँ कि आपके पास नाक जैसी भी कोई चीज है आपको मुंह से ही सांस लेनी है और छोडनी और ये लय जहाँ टूटी वहां आप संकट में पड़ जायेंगे |नाक को चश्मे का कवर ढांक कर बंद देता है फिर भी थोड़ी बहुत सांस आप उससे ले सकते हैं |लेकिन समुद्र के अंदर अगर ऐसा हुआ तो समुद्र का पानी भी नांक के अंदर जाएगा और जो समस्या पैदा कर देगा |हमें एक बात बार –बार समझाई गयी |आपको समुद्र के अंदर अपनी समस्या से खुद निपटना है |घबराना नहीं है और शांत दिमाग से समस्या का हल ढूँढना है |जैसे –जैसे आप नीचे जायेंगे पानी का दबाव बढेगा और कान बंद होंगे इसके लिए हमें अपनी पहले से ही बंद नाक को हाथ से और बंद करके जोर से नाक से सांस छोडनी होगी जिससे कान का भारीपन हट जाए |मैं दो मिनट भी पानी में नहीं टिक पा रहा है और घबरा के ऊपर आ जा रहा था |अभी तो हम गहरे पानी में गए भी नहीं तब मेरा यह हाल था |मैं अपने इंस्ट्रक्टर की सारी हिदायतें मान रहा था पर फिर भी घबरा जा रहा था |यही अंतर होता है थ्योरी और प्रैक्टिकल में |
जारी ..............................


Wednesday, June 17, 2020

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की अनदेखी दुनिया :पांचवां भाग

अंडमान के द्वीपों की ख़ास बात है इनका हरियाली से भरा –पूरा होना ,चूँकि केंद्र सरकार के अधीन होने के कारण और सामरिक द्रष्टि से महतवपूर्ण होने के कारण यहाँ नियम क़ानून का पालन कड़ाई से होता है |यहाँ स्थाई निर्माण करने के लिए पर्यावरण संबंधी क्लीयेरेंस लेना पड़ता है इसलिए यहाँ की हरियाली अभी बची हुई है |
 हेवेलॉक में स्वागत है 
यह बात भी सही है कि अब यहाँ पर्यटकों का दबाव बढ़ रहा है और लौटते वक्त मैंने यहाँ के स्थानीय  अखबार में खबर पढी कि किसी गाँव के जिला पंचायत अध्यक्ष ने अपना पक्का मकान बना लिया वो भी बगैर अनुमति लिए |यहाँ के पहाड़ और जंगल कब तक बचेंगे कह पाना मुश्किल है क्योंकि जनसंख्या का दबाव यहाँ बढ़ रहा है |उत्तरप्रदेश चेन्नई ,पश्चिम बंगाल और बिहार के लोग यहाँ आ कर बस रहे हैं और बाद में वे अपने रिश्तेदारों को  बुलाकर भी बसवा रहे हैं |यहाँ पर्यटन के अतिरिक्त कुछ ख़ास नहीं है इसलिए ज्यादा से  ज्यादा होटल और रिसोर्ट खोलने की होड़ मची है | हेवेलॉक के जिस रिसोर्ट में रुके थे उसके ठीक सामने ऐसे ही एक होटल का निर्माण जारी था |शायद अगली बार वो जगह इतनी शान्ति  मुझे न मिले | हेवेलॉक पर उतरते ही हमारा स्वागत  हरे भरे समुद्र ने किया |क्रूज से सामान उतारा गया हम अपने  रिजोर्ट की तरफ बढ़ चले | हेवेलॉक एक छोटे कसबे जैसा है |जेटी से आगे बढ़ने पर एक छोटा सा बाजार पड़ता है जहाँ काम आने वाली सारी चीजें उसी कीमत पर उपलब्ध हैं|जैसी मुख्य भूमि पर शाम होने को आ रही थी |सड़कों पर आवाजाही कम हो रही थी |वैसे भी जनसँख्या ज्यादा न होने के कारण मुख्य बाजार छोड़ कर कहीं कोई भीड़ नहीं थी |यहाँ के द्वीपों की ख़ास बात यह है कि यहाँ किसी तरह का कोई अपराध नहीं है |वैसे भी कोई अपराधी करके भाग कहाँ जायेगा |चारों तरफ सिर्फ समुद्र ही है |नारियल के पेड़ और बांस के झुरमुटों से गुजरते हुए हम रिजोर्ट से सीधे काला पत्थर बीच की और चल पड़े |यहाँ के बीच गोवा के बीच की तरह हैपीनिंग नहीं हैं |उसका बड़ा कारण शराब का बहुतायत में न उपलब्ध होना और दूसरा अंडमान पर हर कोई नहीं पहुँच सकता इसलिए सब कुछ बड़ा अनुशासित और शांत हैं | रिसॉर्ट पहुँचते ही फैसला यह किया गया कि काला पत्थर बीच का चक्कर लगा लिया जाये और समुद्र को करीब से महसूस कर लिया जाए |अंडमान आये हुए हमें चौबीस घंटे से ज्यादा वक्त बीत चुका था लेकिन समुद्र के पानी को छूने का मौका नहीं मिला था तो हमारे रिसॉर्ट से लगभग पांच किलोमीटर की दूरी पर था काला पत्थर बीच |

काला पत्थर बीच का अभी व्यवसायीकरण नहीं हुआ है |एकदम शांत माहौल |कुछ दुकाने जिसमें नारियल पानी और मैगी उपलब्ध है |कुछ दुकाने नहाने के लिए कपडे भी बेंच रही थीं |बीच पर भी कोई ज्यादा भीड़ नहीं थी |हमने मौका गंवाए बिना समुद्र में एक डुबकी लगा ली पर गोवा और पुरी के समुद्र के मुकाबले यहाँ के समुद्र का पानी बहुत ज्यादा खारा लगा हो सकता है यह मेरा भ्रम हो पर समुद्र के साथ अठखेलियाँ करते हुए ज्यादा वक्त नहीं बीता था कि एक जोरदार सीटी की आवाज सुनाई पड़ी |जो इशारा था समुद्र से बाहर आने का वक्त हो चुका है |समुद्र में तैनात गार्ड सबको पानी से बाहर आने का ईशारा कर रहे थे |इसका दो कारण थे ,पहला अँधेरा होने का था ऐसे में अगर समुद्र में कोई रह गया तो उसका कोई पता नहीं चलेगा क्योंकि आस –पास, दूर –दूर तक कोई आबादी नहीं थी दूसरा शाम के वक्त समुद्र में ज्वार आता है जिससे समुद्र में गए लोगों को खतरा हो सकता है |

हम बेमन से समुद्र से बाहर निकले पर बीच धीरे –धीरे एकदम खाली हो गया |हमारे देखते –देखते सूरज भी डूब गया |उस गोधूलि में हम उस उमस भरे दिन नमकीन बदन के साथ ,प्रकृति के कई रंग एक साथ देख रहे थे |हम वाकई खुशनसीब थे जो देश की इस अंतिम सीमा में अनछुए प्राकृतिक दृश्यों को निहार पा रहे थे |हमारे सामने एक छोटी सी नाव पर चार व्यक्तियों को एक समूह पतवार खेते हुए समुद्र में मेरी नजरों से ओझल हो गया |इस विशाल समुद्र में वो भी एक छोटी सी नांव पर कहाँ जा रहे थे

वे लोग इसका पता न चल सका |थोड़ी देर मैंने उस खाली हो चुके समुद्री किनारे पर नंगे पैर चहलकदमी की |जब हम वापसी के लिए निकले रात की कालिमा माहौल को घेर चुकी थी |नारियल पानी चूँकि हर जगह बहुतायत से उपलब्ध है मैंने नारियल पानी पी कर अपनी प्यास बुझाई और अपने रिसोर्ट वापस आ गए |

जारी.......................................................


Monday, June 15, 2020

घर बैठे दुनिया में मशहूर बनाने वाला ऐप

भारत में चाइनीज ऐप टिकटॉक के बूम के पीछे छोटे शहर, कस्बे और अनगिनत गांवों के बेशुमार लोग हैं। इस विडियो ऐप में आपको एक-से-एक नायाब, हुनरमंद और हंसोड़ मिल जाएंगे। इन जगहों और लोगों के लिए फेसबुक, इंस्टाग्राम और ट्विटर बहुत सही प्लैटफॉर्म नहीं थे।

वजह यह थी कि ‘हम तो भई जैसे हैं, वैसे रहेंगे’ की उनकी टेक टिकटॉक पर ही कायम रह सकती थी, कहीं और नहीं। वे अपनी तमाम नादानियों और दिक्कतों के साथ यहां बेलौस मौजूद हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि उनके इस तरह होने को कोई ‘जज’ नहीं कर रहा। यहां उनके विडियो वायरल हो रहे हैं और रातोंरात वे सेलिब्रिटी बन रहे हैं।

टिकटॉक भारत में बिल्कुल सही वक्त पर पहुंचा। साल 2016 का वह मंजर याद कीजिए। रिलायंस जियो लॉन्च ही हुआ था। लोगों को सस्ता डेटा मिलना शुरू हुआ। टिकटॉक ने मौका ताड़कर अपनी जगह बनानी शुरू की। मार्केट इंटेलिजेंस फर्म कलागतो (KalaGato) के आंकड़े बताते हैं कि अगस्त 2019 तक इस ऐप को एक तिहाई भारतीय स्मार्टफोन यूजर्स ने डाउनलोड कर लिया था।

भारतीय इस ऐप पर दुनिया के किसी भी दूसरे मुल्क के नागरिकों की तुलना में ज्यादा समय बिताते हैं। अपने पसंदीदा सेग्मेंट में एक औसत भारतीय टिकटॉक पर 34.1 मिनट समय बिता रहा है। इसकी तुलना में इंस्टाग्राम पर भारतीयों का 23.8 मिनट ही बीत रहा है।

टिकटॉक से कई ब्रैंड एंफ्लुएंसर ठीक-ठाक कमाई भी करने लगे हैं। इस ऐप ने पेप्सी, स्नैपडील, मिंट्रा, शादी डॉटकॉम से करार किया है। स्टेटिस्टा के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में फेसबुक के 30 करोड़ यूजर्स हैं। टिकटॉक के 20 करोड़। देश में साल 2020 तक इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले 67% यूजर्स 35 साल से कम उम्र के हैं। युवाओं और टीनएजर्स के बीच टिकटॉक की बढ़ती लोकप्रियता का अध्ययन करने वाले मानते हैं कि 2020 इस चाइनीज ऐप के लिए दुनिया में तहलका मचाने वाला साल साबित हो सकता है।

मार्केट इंटेलिजेंस फर्म सेंसर ‘टावर’ के आंकड़ों के मुताबिक, 2019 की पहली तिमाही में टिकटॉक ने फेसबुक से सबसे ज्यादा डाउनलोड किए जाने वाले ऐप का ग्लोबल खिताब तक छीन लिया। टिकटॉक को 18.8 करोड़ डाउनलोड मिले, जिसमें 47% यूजर्स भारतीय थे। फेसबुक को 17.6 करोड़ डाउनलोड हासिल हुए, जिसमें भारतीय 21% थे।

आम लोग बन रहे हैं सेलिब्रिटी
बढ़ती फेक न्यूज की आमद और चारित्रिक हनन की कोशिशों के बीच लोकप्रिय सोशल नेटवर्किंग साइट्स ट्विटर और फेसबुक पर यूजर्स का अनुभव उतना सुहाना नहीं रह गया है, जितना आज से कुछ साल पहले रहा करता था। ऐसे में वे यूजर्स जो समाचार और राजनीति से इतर कारणों से सोशल मीडिया पर थे, एक विकल्प की तलाश में थे। टिकटॉक ने उन्हें वह विकल्प मुहैया कराया।

इंटरनेट की अगली लहर जब भारत में आएगी, उसमें 40 करोड़ नए यूजर्स जुड़ जाएंगे। उनके लिए सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर अपने अनुभव बांटने के लिए मौजूदा विकल्पों में टिकटॉक सबसे लुभावना हो सकता है। इसकी एक खास वजह है।

फेसबुक, स्नैपचैट और ट्विटर के इंटरफेस पश्चिम के यूजर्स की रुचियों को ध्यान में रखकर बनाए गए थे, जबकि टिकटॉक के मामले में ऐसा नहीं है। यहां 15 सेकेंड्स की स्क्रीन प्रेजेंस और ऑडिएंस हर उस शख्स को मिल सकती है, जो अन्यथा बहुत अनजाना रहता आया है। लेकिन इससे भी बड़ी बात है कि अगर आप हुनरमंद हैं, तो दुनिया आपको जानेगी। दाद देगी। मिसाल के लिए विष्णु प्रिया नायर, जिन्होंने ‘तेरे लिए...’ और ‘आशियाना...’ गानों पर लगाई गई अपनी टिकटॉक पोस्ट में लिपसिंग की है। इनके करीब 30 लाख फॉलोअर्स हैं।

गौरव अरोड़ा को तो टिकटॉक का विराट कोहली कहा जाता है। इनके करीब 3.5 करोड़ फॉलोअर्स हैं। अरोड़ा अपनी टिकटॉक फैन फॉलोइंग की बदौलत सोनम कपूर की फिल्म ‘द जोया फैक्टर’ के प्रमोशन में भी शामिल किए गए। भावेन भानुशाली को टिकटॉक की बदौलत ही अजय देवगन की फिल्म ‘दे-दे प्यार दे’ में ऐक्टिंग का मौका मिला। यह टिकटॉक की लोकप्रियता का ही कमाल है कि फिल्मी दुनिया के बड़े सितारे इससे धड़ल्ले से जुड़ रहे हैं।

फेसबुक और ट्विटर जैसे ऐप के साथ एक तरह का अभिजात्य भी था। टिकटॉक के साथ ऐसा नहीं है। इसके लाखों यूजर्स ऐसे भी हैं, जो अंग्रेजी नहीं बोलते। लेकिन इसे लेकर उनके मन में कोई हीन भावना नहीं। दरअसल अंग्रेजीदां इंसान काफी पहले से नेटसेवी था। इसलिए जब सोशल मीडिया के क्षेत्र में नए प्लेयर्स आए, तो उन्होंने भांप लिया कि उनके टारगेट कंस्टमर्स इंटरनेट के नए यूजर्स होंगे।

ये यूजर्स-जैसा कि पहले बताया गया- छोटे शहरों, गांवों और गैर-अंग्रेजी क्षेत्रों में ताल्लुक रखते हैं। अपनी बोली-बानी में सहज हैं। टिकटॉक ने इन्हें ही ध्यान में रखकर अपने ऐप को 10 भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराया। टिकटॉक की कामयाबी का एक कारण इसका सादा और सरल होना भी है।

इसकी एक विडियो पोस्ट के लिए आपको स्टूडियो या वॉयस रेकॉर्डिंग उपकरण तक पहुंचने की दरकार नहीं है। ऐप में ही सारे फीचर्स इन-बिल्ट हैं। अलग-अलग फिल्टर्स और बैकग्राउंड चेंज जैसे टूल से मजा दूना हो जाता है। हैश टैग का इस्तेमाल यूजर्स को कंटेंट को पहचानने में मदद करता है। इससे चुटकुले से लेकर दूसरे फॉर्मेट में बनाए गए तमाम विडियोज लोग रीयल टाइम में देख पाते हैं। हालांकि इस तरह के विडियोज से कुछ दिक्कतें भी पैदा हुईं।

बैन के बाद ऐप ने किए कई उपाय
18 फरवरी 2020 को रेल मंत्री पीयूष गोयल ने एक पोस्ट साझा किया। उसमें एक शख्स दोस्तों के साथ टिकटॉक विडियो शूट करते दिख रहा था। उसी दौरान वह ट्रेन से गिरा और उसकी मौत हो गई। इससे यह बात सामने आई कि कैसे यूजर्स टिकटॉक पर एक विडियो वायरल करने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं।

जुलाई 2019 में भी कुछ ऐसा ही हुआ। तब बिहार के एक टिकटॉक यूजर ने विडियो बनाते हुए बाढ़ के पानी में डाइविंग स्टंट की कोशिश की और जान गंवा बैठा। फरवरी 2020 में कुछ लोगों ने एक युवक को नंगा करके घुमाया क्योंकि वह उनके परिवार की लड़की का टिकटॉक विडियो बना रहा था। बढ़ते हुए हादसों के बाद टिकटॉक कानून के दायरे में आया। उस पर सख्ती हुई।

अप्रैल 2019 में गूगल प्ले स्टोर और एपल ऐप स्टोर से इस ऐप को हटा लिया गया था, क्योंकि अदालत ने फैसला दिया कि यह अश्लीलता को बढ़ावा दे रहा है। हालांकि दो सप्ताह बाद ही इस फैसले को पलट दिया गया। ऐप के प्रभावों की जांच करने के लिए नियुक्त किए गए वकील ने कहा कि बैन लगाना समाधान नहीं है। इसके जायज यूजर्स के अधिकारों की सुरक्षा करने की दरकार है।

इसके बाद कंपनी ने कई कदम उठाए । अपने यूजर्स के कंटेंट की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई चेक पॉइंट्स बनाए। भारत में डेटा सेंटर स्थापित करने की योजना इसी दिशा में उठाया गया एक और कदम है। इसके अलावा टिकटॉक ने अपने प्लैटफॉर्म से उन अभियानों को भी जमकर प्रोमोट करना शुरू किया, जो सामाजिक जागरूकता को बढ़ाते हैं। हालांकि भारत जैसे देश में जहां अब भी लोग इंटरनेट मैनर्स सीख रहे हैं, इन अभियानों की कामयाबी वक्त के एक छोटे वक्फे में नहीं आंकी जा सकती।
नवभारत गोल्ड में प्रकाशित लेख 

Thursday, June 11, 2020

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की अनदेखी दुनिया :चौथा भाग

मैक्रूज : हमें हेवेलॉक ले जाने वाला 
बड़े -बड़े टायर जो जहाज को रगड़ से बचाते हैं 
हेवेलॉकद्वीप का रास्ता समुद्री मार्ग से पोर्ट ब्लेयर का करीब ढाई घंटे का था |जिसके लिए हमें जहाज फिनिक्स बे बंदरगाह से मिलना था |मैक्क्रुज कम्पनी का यह क्रूज हमें ढाई बजे पोर्ट ब्लेयर से निकलने वाला था |किसी बंदरगाह से कहीं जाने के लिए पानी के जहाज की यहाँ हमारी पहली यात्रा होने वाली थी |यहाँ भी हवाई जहाज की तरह नियम थे |क्रूज के चलने के समय से एक घंटा पहले बंदरगाह पर रिपोर्ट करना होता है |बंदरगाह में घुसने से पहले सबका पहचान पत्र जांचा गया फिर सिक्योरिटी चेक ,सामान स्कैनर में जांचा गया और शरीर की भी जांच हुई |अब हम पोर्ट ब्लेयर फिनिक्स बे के अन्दर पहुँच चुके थे ,वहां इस वक्त कोई जहाज आया हुआ था लोग उससे उतर रहे थे थोड़ी देर में वो जहाज अपने सफर पर निकल गया |हमने दरियाफ्त की हमारा क्रूज कब आएगा ,हमें इन्तजार करने को कहा गया और बताया गया कि जब जहाज आएगा इसकी उद्घोषणा होगी |

इन्तजार करने के अलावा कोई चारा नहीं था पर क्रूज की सवारी को लेकर मन बड़ा रोमांचित था कारण सीधा था मेरा हिन्दी फिल्मों का ज्यादा देखना जिसमें तरह –तरह के क्रूज देखे थे |हालांकि इससे पहले गोवा में क्रूज पर चढ़ा जरुर था पर कहीं जाने के लिए नहीं बस समुद्र में एक चक्कर लगा कर वो वापस हमें छोड़ गया |इस बार पूरी यात्रा क्रूज पर  होनी थी वो भी सारे सामान के मने हम लोग लदे फंदे अपने क्रूज का इन्तजार कर रहे थे |बंदरगाह पर किसी बस स्टेशन जैसा नजारा था क्योंकि उस वक्त मैक्क्रुज का समय था इसलिए सारे यात्री उसी जहाज के थे |एक छोटी सी कैंटीन भी जहाँ लोगों की भीड़ लगी थी | यहां पर मेनलैंड (मुख्य भूमि) यानी चेन्नई, कोलकाता के लिए जाने वाले जहाजों के बारे में जानकारी ली जा सकती है। अंडमान जाने के लिए हवाई सेवाएं रोज हैं पर पानी के जहाज रोज नहीं चलते। किस दिन जहाज आएगा और उसकी किस दिन रवानगी होगी इसकी जानकारी एक महीने पहले जारी की जाती है। यह फिनिक्स बे में लगे सूचना पट्ट या अंडमान सरकार की वेबसाइट पर देखा जा सकता है।  कुल तीन जहाज हैं जो पोर्ट ब्लेयर से तीन शहरों चेन्नईविशाखापत्तनम और कोलकाता के बीच चक्कर  लगाते हैं। इनके नाम हैं एमवी स्वराज दीप, एमवी हर्षवर्धन और एमवी कैंपबेल बे ।

अंडमान में रोड के अलावा ज्यादातर परिवहन पानी के माध्यम से ही होता है जिसमें तीन तरह के साधनों का प्रयोग होता है |पहला है फेरी जो होता है बड़े पानी के जहाज जैसा पर इसमें विलासिता की चीजें ज्यादा नहीं होती इसमें इंसानों के साथ गाड़ियाँ बस भी चढ़ा ली जाती हैं |दूसरा मोटर बोट जो आकार में काफी छोटी होती हैं और ज्यादातर यहाँ के निवासियों और पर्यटकों द्वारा प्रयोग में लाई जाती हैं |तीसरा क्रूज जो दुनिया भर की तमाम विलासिताओं के साथ बड़े पानी के जहाज जैसी होती हैं |


हम क्रूज से हेवेलॉककी यात्रा करने वाले थे |थोड़ी देर में घोषणा हुई कि हमारा क्रूज आ चुका है| 

लोग लाइन में लगकर धीरे –धीरे सरकने लगे |मेरी समझ में नहीं आ रहा था हमारा सामान कैसे जाएगा |हवाई जहाज में सामान तो पहले ही चला जाता है पर हमारा सामान अभी तक हमारे साथ था |अपने सामान को ढकेलते हम अपने जहाज के सामने थे |अब कहाँ से जहाज में घुसना था इसके बारे में सोच ही रहे थे कि देखा कुछ लोगों को सामान सहित पीछे भेजा जा रहा था |मतलब सामान पीछे जमा होगा |हमने भी जमा कर दिया |न कोई रसीद मिली न टिकट देखा गया बस हमने सामान पकड़ा दिया और आगे के रास्ते से क्रूज में घुस गए |अन्दर हवाई जहाज जैसा नजारा पर जगह उससे कहीं ज्यादा थी|क्रू ने हमारे टिकट देखकर हमारी सीटें बता दीं |हम अपनी सीटों पर अच्छे बच्चे की तरह जम गए |थोड़ी देर में दरवाजे बंद हो गए और हमें हवाई जहाज की तरह आपातकाल में क्या करें की हिदायतें दी जाने लगीं |ये अलग बात है ये हिदायतें एक वीडियो के माध्यम से दी जा रही थीं |थोड़ी देर में हमें
 समझ में आ गया हमारा जहाज आधे से ज्यादा खाली है और हम कहीं भी उछल कूद मचाने के लिए स्वतंत्र हैं |हवाई जहाज की तरह यहाँ इतना तगड़ा अनुशासन नहीं था |जहाज करीब चालीस किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार से चल रहा था |शुरुआती हिचकोलों के बाद जहाज शांत समुद्र में आ गया और स्थिर होकर अपने गंतव्य की तरफ बढ़ चला |जैसे ही जहाज बंदरगाह से चला मैंने एक अनोखी बात देखी बंदरगाह की दीवार पर बड़े –बड़े टायर लगे थे और ऐसा ही नजारा हेवेलॉकमें देखने को मिला जब हमारा क्रूज वहां रुक रहा था |मैंने जब इसका कारण पता करने की कोशिश की तो पता लगा यह टायर जहाज के बाहरी आवरण को बंदरगाह की दीवारों से रगड़ से बचाने के लिए लगाये जाते हैं |इससे जहाज की खूबसूरती भी नहीं खराब होती वहीं उसमें रगड़ से होने वाली टूट फूट भी नहीं होती |वैसे ढाई घंटे का हेवेलॉक  का सफर एक बंद जेल जैसा था |आप जहाज से निकल कर सुरक्षा कारणों से डेक पर नहीं जा सकते थे |बस जहाज की खिडकियों से बाहर के समुद्र का नजारा ले सकते थे |चूँकि क्रूज में गाने और अंडमान के ऊपर वृत्तचित्र दिखाए जा रहे थे तो समय काटना थोड़ा आसान हो गया |शाम के करीब चार बजे एक साइरन जहाज में सुनाई पड़ा मतलब हम हेवेलॉक पहुँच चुके थे |

जारी ..........................................

Tuesday, June 2, 2020

शोहरत और विवादों का टिकटॉक

कोरोना वायरस के चलते हुए लॉक डाउन  में टिकटोक वीडियो लोगों के समय बिताने का अच्छा जरिया बने|इसी बीच यू ट्यूब और टिक टोक यूजर्स के बीच हुए विवाद से साइबर मीडिया में काफी सुर्खियाँ बनी और पूरा सोशल मीडिया दो हिस्सों में बंट गया |इसी विवाद ने अब तक सुर्ख़ियों से दूर से चल रहे टिक टोक वीडियो एप को चर्चा के केंद्र में ला दिया इसका कारण है हमारे जीवन में टिक टोक वीडियो का आ जाना |बात ज्यादा पुरानी नहीं है जब सोशल  मीडिया वर्च्युल दुनिया से लेकर हमारी असली दुनिया की बातचीत के केंद्र में आ गया वो चाहे ट्विटर हो या फेसबुक वहां क्या चल रहा है वो हमारे आपसी वार्तालाप का हिस्सा बन गया लेकिन अब उनकी जगह मजाकिया मीम्स ने ली है| एक ऐसा एप जिसने अपने विरोधियों की नींद उड़ा दी हैं कम्पनी के आंकड़ों के मुताबिक देश में इसके एक सौ बीस मिलीयन सक्रिय मासिक उपभोक्ता हैं फेसबुक को दो सौ चालीस मिलीयन उपभोक्ताओं के आंकड़े तक पहुँचने के लिए एक दशक से ज्यादा का समय लगा था |कहा जाता है कि अगर भारत को समझना है तो उसके गाँवों को समझिये उसी तरह से भारत क्या कर रहा है और भारत में कितना हुनर है ये आपको फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया एप नहीं बताएँगे इसके लिए आपको टिकटॉक  पर आना होगा |असल में टिकटॉक  की सफलता में छोटे शहरों कस्बों और गाँवों का सबसे बड़ा योगदान है |जहाँ कुछ भी बनावटी नहीं है |ऐसी जगहों के लोगों के पास ऐसा कोई प्लेटफोर्म नहीं था जहाँ लोगों को वो जैसे हैं वैसे ही उनकी नादानियों उनकी समस्याओं के साथ स्वीकार किया जाए |

कैसे टिकटॉक  बन गया एक बड़ी चुनौती इसकी सफलता का राज़ दुनिया के दूसरे सबसे बड़े और सबसे तेजी से बढ़ते इंटरनेट यूजरबेस को होस्ट करने वाले देश में सही समय पर आना।भारत जहाँ हर कोई कैमरे के सामने सेलेब्रेटी बनना चाहता है, जहाँ फ़िल्में उनके सम्वाद और गाने  हमारे जीवन में इस हद तक घुसे हुए हैं कि कि उसके बगैर जीवन की कल्पना करना मुश्किल  है, वहां टिकटॉक जैसे माध्यमों की सफलता आश्चर्यजनक नहीं है |2016 में रिलायंस जिओ के लांच के बाद सस्ते डाटा के युद्ध ने टिकटॉक को भारत में पाँव पसारने का बेहतरीन मौका  दिया | कोई भी जिसके पास एक स्मार्ट फोन इंटरनेट कनेक्शन के साथ अपना नाचता गाता वीडियो बना सकता  है|दिल्ली स्थित मार्केट इंटेलीजेंस फर्म कलागतो ( KalaGato )के आंकड़ों के अनुसार, पिछले अगस्त तक, ऐप को एक तिहाई भारतीय स्मार्टफ़ोन पर डाउनलोड किया जा चुका  था। भारतीय किसी अन्य देश के लोगों की तुलना में ऐप पर अधिक समय बिताते हैं।इसी कम्पनी के आंकड़ों के मुताबिक अपने सेगमेंट में एक भारतीय औसत रूप में सबसे ज्यादा 34.1 मिनट टिकटॉक पर बिता रहा है जबकि लोकप्रिय एप इन्स्टाग्राम पर 23.8 मिनट पर जो लोकप्रियता पर तीसरे नम्बर पर है |टिकटॉक  का मौद्रिकीकरण का अभी तक कोई सीधा फार्मूला सार्वजनिक नहीं है पर बहुत से ब्रांड एन्फ़्लुएन्सर इससे ठीक ठाक पैसे कमा रहे हैं | स्टेटिसटा के आंकड़ों के मुताबिक भारत में फेसबुक के तीन सौ मिलियन उपभोक्ता है वहीं टिकटॉक  के दो सौ मिलियन है जिसमें से एक सौ बीस सक्रिय उपभोक्ता हैं|देश में साल 2020 तक इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले 67  प्रतिशत उपभोक्ता पैंतीस साल से कम के हैं |युवाओं और किशोरों में टिकटॉक  की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए विशेषज्ञों का मानना है कि अगली फेसबुक ट्विटर या इन्स्टाग्राम जैसी कम्पनियां अमेरिका से न होकर चीन से होंगी | बढ़ती फेक न्यूज की आमद और चारित्रिक हनन की कोशिशों के बीच लोकप्रिय सोशल नेटवर्किंग साईट्स ट्विटर और फेसबुक पर उपभोक्ताओं का अनुभव अब उतना सुहाना नहीं रहा जितना आज से कुछ साल पहले रहा करता था |ऐसे में वो उपभोक्ता जो समाचार और राजनीति से इतर कारणों से सोशल मीडिया पर थे एक विकल्प की तलाश में थे जिसकी भरपाई टिकटॉक  ने बखूबी कर दी |

भारत में लोकप्रियता का कारण

अपनी इन्हीं खूबियों के चलते ऐसा माना जा रहा है कि आने वाले समय में जो इंटरनेट पीढी की अगली लहर भारत में चलेगी जिसमें दो सौ से लेकर चार सौ मिलीयन तक लोग इंटरनेट से जुड़ेंगे |उसमें वे अपने जीवन के महत्वपूर्ण पलों को अपने दोस्तों और परिवार के साथ से बांटने के लिए जिस एप का चुनाव करेंगे वो फेसबुक न होकर टिकटॉक  होगा |आमतौर पर फेसबुक ,स्नैपचैट और ट्विटर का इंटरफेस पश्चिम के उपभोक्ताओं की रुचियों को ध्यान में रखकर बनाया गया था जबकि टिकटॉक  के मामले में ऐसा नहीं है यह आपको एक नया और अलग अनुभव देता है|मानवीय मनोविज्ञान के आधार पर इसने उन लोगों को सेलीब्रेटी स्टेट्स दे दिया जो अपने जीवन के संघर्षों में ऐसे उलझे है कि वे कैमरे पर नाचते गाते मुस्कुराते कभी आ ही नहीं सकते थे ,पर इस एप ने उन सबको पन्द्रह सेकेण्ड के लिए ही सही सेलेब्रेटी बनने का मौका दे दिया |दुर्भाग्य से भारत में ऐसे लोगों की संख्या करोडो में हैं |इस एप की पहुंच में आने से वे सेकेंडों में करोडो लोगों तक अपने आप को पहुंचा पा रहे हैं |ये इस एप की लोकप्रियता का ही कमाल है कि हिन्दी फ़िल्मी के बड़े सितारे टिकटॉक  पर अपने अकाउंट बना कर सक्रिय हो चुके हैं |फेसबुक और ट्विटर जैसे एप के साथ एक तरह का इलीटिज्म जुड़ गया जबकि टिकटॉक  के साथ ऐसा नहीं है |देश में अधिकांश इंटरनेट उपयोगकर्ता अंग्रेजी नहीं बोलते हैं और अंग्रेजी में बोलने सोचने वाले लोग काफी पहले ही इंटरनेट से जुड़ चुके हैं ।अब जितने भी नए उपभोक्ता इंटरनेट जुड़ रहे हैं ज्यादातर वे अंग्रेजी नहीं बोलते समझते हैं |तो बाजार के लिहाज से अब मुनाफ़ा छोटे शहरों,गाँवों और गैर अंग्रेजी क्षेत्रों में है | छोटे शहरों और कस्बों से ऑनलाइन आने वाले लोगों के लिए यह ऐप 10 भारतीय भाषाओं में उपलब्ध है, जो भारत की भाषाई विविधता को देखते हुए उपभोक्ताओं को अपनी भाषा में वीडियो बनाने का एक अच्छा विकल्प देता  है | ऐप में सब कुछ इन-बिल्ट है जिसमें विभिन्न फिल्टर और बैकग्राउंड चेंज जैसे टूल शामिल हैं|हैश टैग का इस्तेमाल उपभोक्ताओं को कंटेंट को पहचानने में मदद करता है कि चुटकुले या किस अन्य फोर्मेट में बनाये गए वीडियो लोग देखना पसंद कर रहे हैं वो भी रीयल टाईम में |लेकिन इससे ये समस्याएं भी पैदा हुई है कि टिकटॉक  पर बिना किसी रोक टोक के वीडियो डाले जा रहे हैं |जो टिक टोक के दामन को दागदार बनाते हैं | टिक टोक वीडियो बनाते हुए होने वाली दुर्घटनाएं आम हैं जिनमें कई लोगों की जान भी जा चुकी हैं |

इसी कारण पिछले साल अप्रैल में, गूगल प्ले स्टोर  और एपलके ऐप स्टोर से इस  ऐप को हटा लिया गया  था, क्योंकि अदालत ने फैसला दिया था कि यह अश्लीलता  को बढ़ावा  दे  रहा है। अदालत ने दो सप्ताह बाद  इस प्रतिबंध हटा लिया जब ऐप के प्रभावों की जांच करने के लिए नियुक्त किए गए वकील ने कहा कि प्रतिबंध  समाधान नहीं , और वैध उपयोगकर्ताओं के अधिकारों को संरक्षित करने की आवश्यकता है।इस आलोचना के बाद पने ऐप को उपयोगकर्ताओं के लिए सुरक्षित बनाने के लिए टिकटॉक  ने कई कदम उठाए हैं। डेटा सेंटर स्थापित करने की उनकी योजना इंगित करती है कि भारत उनके लिए एक बड़ा बाजार है। हालांकि वे राजनीति से दूर रहे हैं, उन्होंने कई अभियान चलाए हैं जो सामाजिक जागरूकता को बढ़ाते हैं। भारत जैसे देश में जहाँ अभी लोगों को इंटरनेट मैनर्स सीखने हैं वहां लंबे समय में इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि ये कदम कितने प्रभावी साबित होते हैं, तब तक हम भारत के लोग  अपने पसंदीदा सोशल मीडिया ऐप पर पार्टी करते रहेंगे और भारतीय उपभोक्ताओं को कौन सा सोशल मीडिया एप ज्यादा पसंद आएगा इसकी लड़ाई  जारी रहेगी |
दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में 02/06/2020 को प्रकाशित 

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