भारत में चाइनीज ऐप टिकटॉक के बूम के पीछे छोटे शहर, कस्बे और अनगिनत गांवों के बेशुमार लोग हैं। इस विडियो ऐप में आपको एक-से-एक नायाब, हुनरमंद और हंसोड़ मिल जाएंगे। इन जगहों और लोगों के लिए फेसबुक, इंस्टाग्राम और ट्विटर बहुत सही प्लैटफॉर्म नहीं थे।
वजह यह थी कि ‘हम तो भई जैसे हैं, वैसे रहेंगे’ की उनकी टेक टिकटॉक पर ही कायम रह सकती थी, कहीं और नहीं। वे अपनी तमाम नादानियों और दिक्कतों के साथ यहां बेलौस मौजूद हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि उनके इस तरह होने को कोई ‘जज’ नहीं कर रहा। यहां उनके विडियो वायरल हो रहे हैं और रातोंरात वे सेलिब्रिटी बन रहे हैं।
टिकटॉक भारत में बिल्कुल सही वक्त पर पहुंचा। साल 2016 का वह मंजर याद कीजिए। रिलायंस जियो लॉन्च ही हुआ था। लोगों को सस्ता डेटा मिलना शुरू हुआ। टिकटॉक ने मौका ताड़कर अपनी जगह बनानी शुरू की। मार्केट इंटेलिजेंस फर्म कलागतो (KalaGato) के आंकड़े बताते हैं कि अगस्त 2019 तक इस ऐप को एक तिहाई भारतीय स्मार्टफोन यूजर्स ने डाउनलोड कर लिया था।
भारतीय इस ऐप पर दुनिया के किसी भी दूसरे मुल्क के नागरिकों की तुलना में ज्यादा समय बिताते हैं। अपने पसंदीदा सेग्मेंट में एक औसत भारतीय टिकटॉक पर 34.1 मिनट समय बिता रहा है। इसकी तुलना में इंस्टाग्राम पर भारतीयों का 23.8 मिनट ही बीत रहा है।
टिकटॉक से कई ब्रैंड एंफ्लुएंसर ठीक-ठाक कमाई भी करने लगे हैं। इस ऐप ने पेप्सी, स्नैपडील, मिंट्रा, शादी डॉटकॉम से करार किया है। स्टेटिस्टा के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में फेसबुक के 30 करोड़ यूजर्स हैं। टिकटॉक के 20 करोड़। देश में साल 2020 तक इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले 67% यूजर्स 35 साल से कम उम्र के हैं। युवाओं और टीनएजर्स के बीच टिकटॉक की बढ़ती लोकप्रियता का अध्ययन करने वाले मानते हैं कि 2020 इस चाइनीज ऐप के लिए दुनिया में तहलका मचाने वाला साल साबित हो सकता है।
मार्केट इंटेलिजेंस फर्म सेंसर ‘टावर’ के आंकड़ों के मुताबिक, 2019 की पहली तिमाही में टिकटॉक ने फेसबुक से सबसे ज्यादा डाउनलोड किए जाने वाले ऐप का ग्लोबल खिताब तक छीन लिया। टिकटॉक को 18.8 करोड़ डाउनलोड मिले, जिसमें 47% यूजर्स भारतीय थे। फेसबुक को 17.6 करोड़ डाउनलोड हासिल हुए, जिसमें भारतीय 21% थे।
आम लोग बन रहे हैं सेलिब्रिटी
बढ़ती फेक न्यूज की आमद और चारित्रिक हनन की कोशिशों के बीच लोकप्रिय सोशल नेटवर्किंग साइट्स ट्विटर और फेसबुक पर यूजर्स का अनुभव उतना सुहाना नहीं रह गया है, जितना आज से कुछ साल पहले रहा करता था। ऐसे में वे यूजर्स जो समाचार और राजनीति से इतर कारणों से सोशल मीडिया पर थे, एक विकल्प की तलाश में थे। टिकटॉक ने उन्हें वह विकल्प मुहैया कराया।
इंटरनेट की अगली लहर जब भारत में आएगी, उसमें 40 करोड़ नए यूजर्स जुड़ जाएंगे। उनके लिए सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर अपने अनुभव बांटने के लिए मौजूदा विकल्पों में टिकटॉक सबसे लुभावना हो सकता है। इसकी एक खास वजह है।
फेसबुक, स्नैपचैट और ट्विटर के इंटरफेस पश्चिम के यूजर्स की रुचियों को ध्यान में रखकर बनाए गए थे, जबकि टिकटॉक के मामले में ऐसा नहीं है। यहां 15 सेकेंड्स की स्क्रीन प्रेजेंस और ऑडिएंस हर उस शख्स को मिल सकती है, जो अन्यथा बहुत अनजाना रहता आया है। लेकिन इससे भी बड़ी बात है कि अगर आप हुनरमंद हैं, तो दुनिया आपको जानेगी। दाद देगी। मिसाल के लिए विष्णु प्रिया नायर, जिन्होंने ‘तेरे लिए...’ और ‘आशियाना...’ गानों पर लगाई गई अपनी टिकटॉक पोस्ट में लिपसिंग की है। इनके करीब 30 लाख फॉलोअर्स हैं।
गौरव अरोड़ा को तो टिकटॉक का विराट कोहली कहा जाता है। इनके करीब 3.5 करोड़ फॉलोअर्स हैं। अरोड़ा अपनी टिकटॉक फैन फॉलोइंग की बदौलत सोनम कपूर की फिल्म ‘द जोया फैक्टर’ के प्रमोशन में भी शामिल किए गए। भावेन भानुशाली को टिकटॉक की बदौलत ही अजय देवगन की फिल्म ‘दे-दे प्यार दे’ में ऐक्टिंग का मौका मिला। यह टिकटॉक की लोकप्रियता का ही कमाल है कि फिल्मी दुनिया के बड़े सितारे इससे धड़ल्ले से जुड़ रहे हैं।
फेसबुक और ट्विटर जैसे ऐप के साथ एक तरह का अभिजात्य भी था। टिकटॉक के साथ ऐसा नहीं है। इसके लाखों यूजर्स ऐसे भी हैं, जो अंग्रेजी नहीं बोलते। लेकिन इसे लेकर उनके मन में कोई हीन भावना नहीं। दरअसल अंग्रेजीदां इंसान काफी पहले से नेटसेवी था। इसलिए जब सोशल मीडिया के क्षेत्र में नए प्लेयर्स आए, तो उन्होंने भांप लिया कि उनके टारगेट कंस्टमर्स इंटरनेट के नए यूजर्स होंगे।
ये यूजर्स-जैसा कि पहले बताया गया- छोटे शहरों, गांवों और गैर-अंग्रेजी क्षेत्रों में ताल्लुक रखते हैं। अपनी बोली-बानी में सहज हैं। टिकटॉक ने इन्हें ही ध्यान में रखकर अपने ऐप को 10 भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराया। टिकटॉक की कामयाबी का एक कारण इसका सादा और सरल होना भी है।
इसकी एक विडियो पोस्ट के लिए आपको स्टूडियो या वॉयस रेकॉर्डिंग उपकरण तक पहुंचने की दरकार नहीं है। ऐप में ही सारे फीचर्स इन-बिल्ट हैं। अलग-अलग फिल्टर्स और बैकग्राउंड चेंज जैसे टूल से मजा दूना हो जाता है। हैश टैग का इस्तेमाल यूजर्स को कंटेंट को पहचानने में मदद करता है। इससे चुटकुले से लेकर दूसरे फॉर्मेट में बनाए गए तमाम विडियोज लोग रीयल टाइम में देख पाते हैं। हालांकि इस तरह के विडियोज से कुछ दिक्कतें भी पैदा हुईं।
बैन के बाद ऐप ने किए कई उपाय
18 फरवरी 2020 को रेल मंत्री पीयूष गोयल ने एक पोस्ट साझा किया। उसमें एक शख्स दोस्तों के साथ टिकटॉक विडियो शूट करते दिख रहा था। उसी दौरान वह ट्रेन से गिरा और उसकी मौत हो गई। इससे यह बात सामने आई कि कैसे यूजर्स टिकटॉक पर एक विडियो वायरल करने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं।
जुलाई 2019 में भी कुछ ऐसा ही हुआ। तब बिहार के एक टिकटॉक यूजर ने विडियो बनाते हुए बाढ़ के पानी में डाइविंग स्टंट की कोशिश की और जान गंवा बैठा। फरवरी 2020 में कुछ लोगों ने एक युवक को नंगा करके घुमाया क्योंकि वह उनके परिवार की लड़की का टिकटॉक विडियो बना रहा था। बढ़ते हुए हादसों के बाद टिकटॉक कानून के दायरे में आया। उस पर सख्ती हुई।
अप्रैल 2019 में गूगल प्ले स्टोर और एपल ऐप स्टोर से इस ऐप को हटा लिया गया था, क्योंकि अदालत ने फैसला दिया कि यह अश्लीलता को बढ़ावा दे रहा है। हालांकि दो सप्ताह बाद ही इस फैसले को पलट दिया गया। ऐप के प्रभावों की जांच करने के लिए नियुक्त किए गए वकील ने कहा कि बैन लगाना समाधान नहीं है। इसके जायज यूजर्स के अधिकारों की सुरक्षा करने की दरकार है।
इसके बाद कंपनी ने कई कदम उठाए । अपने यूजर्स के कंटेंट की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई चेक पॉइंट्स बनाए। भारत में डेटा सेंटर स्थापित करने की योजना इसी दिशा में उठाया गया एक और कदम है। इसके अलावा टिकटॉक ने अपने प्लैटफॉर्म से उन अभियानों को भी जमकर प्रोमोट करना शुरू किया, जो सामाजिक जागरूकता को बढ़ाते हैं। हालांकि भारत जैसे देश में जहां अब भी लोग इंटरनेट मैनर्स सीख रहे हैं, इन अभियानों की कामयाबी वक्त के एक छोटे वक्फे में नहीं आंकी जा सकती।
नवभारत गोल्ड में प्रकाशित लेख