Sunday, December 28, 2014

भारत रत्न पुरुस्कारों पर भी राजनीति की छाप

पुरूस्कार और विवादों का नाता बहुत पुराना है या यूँ कहें की कोई पुरूस्कार आलोचना से परे है ऐसा संभव नहीं है इसलिए यह मान लेना कि भारत रत्न देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है इसलिए जिसको भी मिलेगा,सही ही मिलेगा ठीक नहीं होगा|अटल बिहारी बाजपेयी और मदन मोहन मालवीय को हालिया मिले इस पुरूस्कार पर एक बार फिर बहस मुहाबिसों का सिलसिला चल पडा |तर्क वितर्क अगर राजीव गांधी को मिल सकता है तो अटल जी को क्यों नहीं,महामना ने तो इतना बड़ा विश्वविद्यलय स्थापित किया आदि|मेरे विचार में हमें इस भ्रम को दूर करना होगा कि भारत रत्न देश सेवा के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है |यह  पुरूस्कार का देश का नहीं बल्कि सरकार का पुरूस्कार है |सरकार किसी भी व्यक्ति के कार्यों को प्रमाणित करती है और हर सरकार की एक विचार धारा होती है|भले ही सरकार यह कहे कि पदम् और भारत पुरुस्कारों को राजनीति  से ऊपर उठकर देखा जाना चाहिए पर कटु सत्य यह है कि इस देश में अंततः सब कुछ तय राजनीति ही करती है| सत्ता अपने साथ एक संस्कृति,एक विचार लाती है जो यह तय करती है कि सत्ता में कौन से विचार प्रबल होंगें और जो सत्ताधारियों के विचार को आगे बढ़ाते हैं वही सत्ता को प्रिय होते हैं और यह तथ्य सर्वविदित है |तात्पर्य यह है कि यदि देश के प्रति आपके द्वारा किये गए सरकार की विचार धारा से नहीं मिलते तो इसकी पूरी संभावना है कि आपके कार्यों को समाज भले ही प्रमाणित करे लेकिन सरकार का प्रमाण पत्र नहीं मिलेगा |महान कार्य और महान व्यक्तित्व किसी पुरुस्कारों के मोहताज नहीं होते हैं पर दुर्भाग्य से अब महानता को आंकने का जरिया सरकार द्वारा प्रदत्त ऐसे पुरूस्कार बन रहे हैं |इन पुरुस्कारों की शुरुआत के पीछे दर्शन यह था कि राष्ट्र अपने समाज के महान  लोगों का आंकलन निरपेक्षता से कर सके पर ऐसा कभी भारत में हो न सका, इंदिरा गांधी जिसने देश में आपातकाल जैसा घोर लोकतंत्र विरोधी कदम उठाया उसे भी भारत रत्न मिला और अटल बिहारी बाजपेयी जैसे प्रधानमंत्री को जिनके शासन काल में कारगिल और संसद पर हमले जैसी घटनाएं हुई यानि दूध का धुला कोई नहीं |असल में इसकी जड़ में है इन पुरुस्कारों के लिए नामित होने के लिए कोई स्पष्ट दिशा निर्देश का न होना ऐसे में इन पुरुस्कारों के चयन पर विवाद होना तय हो जाता है | वास्तव में भारत रत्न की अवधारणा के पीछे यह विचार रहा होगा कि ऐसे व्यक्ति जिन्होंने भारत राष्ट्र की अवधारणा के मूल में सन्निहित मूल्यों को आगे बढ़ाने के लिए कालजयी कार्य किया हो जिससे समूचा राष्ट्र लाभान्वित हुआ हो या समाज को प्रेरणा मिली अर्थात ऐसा व्यक्ति जो जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अपने कार्यों से आदर्शों के शिखर पर हो पर जैसा कि सरकार के अन्य कार्यों के साथ होता है जहाँ राजनीति एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही होती है वही इस पुरूस्कार के साथ हुआ यानि जब निर्णय राजनीति को ध्यान में रखकर किये जाने लगे और चयन में पारदर्शिता का अभाव रहा है तो विवादों को बल मिलेगा |मरणोंपरांत पुरूस्कार दिए जाने के कारण किन व्यक्तियों को यह पुरूस्कार दिया जा सकता है इसका कालखंड निर्धारण एक बड़ी चुनौती बन गया है |अगर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए पं. मदनमोहन मालवीय को भारत रत्न दिया जा सकता है तो अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए सर सैयद अहमद खान को भी दिया जाना चाहिए|एक राष्ट्र के रूप में भारत का विचार हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई बौध जैन सभी धर्मालम्बियों से मिलकर बना है तो सरकार को कोई ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए जिससे यह सन्देश जाए कि वह किसी ख़ास सम्प्रदाय को बढ़ावा दे रही है या किसी ख़ास सम्प्रदाय को महत्व नहीं दे रही है|राजनीति से इतर क्षेत्रों में तथ्य यह भी है कि क्रिकेट खिलाड़ी सचिन जैसा  भारत रत्न विभिन्न कोला जैसे अनेक  ब्रांड का प्रचार कर रहा है और राज्यसभा के सदस्य के रूप में उनका कार्य व्यवहार कोई ख़ास संतोषजनक नहीं है|
यदि इन पुरुस्कारों से विवाद से परे रखना है तो इनके लिए नामित व्यक्तियों के चयन हेतु स्पष्ट दिशा निर्देश होने चाहिए और निर्णय गोपनीयता के आवरण में नहीं बल्कि पारदर्शिता की पृष्ठ भूमि में होना चाहिए |राजनीति से जुड़े लोगों को इन पुरुस्कारों के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए जिससे इन पुरुस्कारों पर राजनैतिक विचार धाराओं का प्रभाव न पड़े |भारत रत्न पुरुस्कारों के लिए एक स्पष्ट कालखंड का निर्धारण होना चाहिए भारत के संदर्भ में यह काल खंड स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास से शुरू होना चाहिये|यदि ऐसा हो पाया तो भारत रत्न से जुड़े विवादों को खत्म तो नहीं पर कम जरुर किया जा सकता है |
हिन्दुस्तान युवा में 28/12/14 को प्रकाशित 

2 comments:

बोलना ही होगा said...

भारत मे सब कुछ राजनीति का ही हिस्सा रहा है , लोग,लोगो का सम्मान,लोगो से प्रेरित होना भी अब एक राजनीति का ही हिस्सा बन चुका है ॥ जो की सही नहीं हैं ॥ राजनीति शब्द शायद इसीलिए नकारात्मक चीजों के लिए ही प्रयोग किया जाता है॥ कम से कम इसको ध्यान मे रखकर हमे अपनी आदतें बदलने होंगी ,,जिससे की वैश्विक स्तर पर अपनी भी एक मजबूत छवि हो ॥ सर लेख पढ़कर बहुत ही अच्छा लगा ॥

Tanupreet Kaur said...

Tumne sahi kaha jab rajeev gandhi ko bharat ratna mil sakta h to atal bhihari ji ko kyu nhi

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