इंटरनेट की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात
से लगाया जा सकता है कि आज के समय में तकरीबन 85 प्रतिशत
लोगों के पास इंटरनेट कनेक्शन है.इंटरनेट लाइव स्टेटिस्टिक्स के अनुसार 1995 से अब तक दस गुना इंटरनेट यूजर्स की बढ़ोतरी हुई
है. तबसे लगातार इनकी संख्या में इजाफा हो रहा है. ऑनलाइन पेमेंट, ऑनलाइन शॉपिंग, ऑनलाइन बिलिंग, ये सब इंटरनेट के जरिये ही तो मुमकिन हो पाया
है. पर क्या होगा अगर समय पर काम आने वाला आपका साथी आपके साथ न रहे तो? वैज्ञानिक और इंजीनियर्स की मानें तो वह दिन दूर
नहीं जब इंटरनेट का नामोनिशान मिट जाएगा। सीधा सा मतलब है कि आने वाले समय में
इंटरनेट को अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़नी पड़ेगी।
हालांकि इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर कंपनियां और केबल बिछा सकती हैं
पर उससे इंटरनेट बहुत ही महँगा हो जाएगा और आम आदमी की पहुँच से बाहर हो जाएगा।
ऐसी स्थिति में या तो आपको अच्छी गति वाले इंटरनेट के लिए अधिक भुगतान करना होगा
या फिर रुक-रुक कर चलने वाले इंटरनेट से समझौता करना पड़ेगा। हालांकि अभी तक तो
इंटरनेट की मांग पूर्ति से हमेशा पीछे ही रही है पर आने वाले समय में इसके इतना
अधिक बढ़ जाने की संभावना है कि उसकी पूर्ति आज के इंटरनेट ढांचे के आधार पर करना
लगभग असंभव हो जाएगा। इंटरनेट के साथ एक समस्या बिजली को लेकर भी है। इंटरनेट लगभग
उतनी ही बिजली इस्तेमाल करता है जितनी कि विमानन उद्योग द्वारा इस्तेमाल की जाती
है। एक विकासशील देश की कुल बिजली खपत का लगभग २ प्रतिशत इंटरनेट पर खर्च होता है।
यह केवल डाटा के आदान-प्रदान पर खर्च होने वाली बिजली का आंकड़ा है। इसके साथ यदि इंटरनेट
का उपयोग करने वाले उपकरणों जैसे कम्प्युटरों और मोबाइल फोन को चलाने में इस्तेमाल
होने वाली बिजली को भी यदि जोड़ दिया जाये तो बिजली की इंटरनेट उपयोग पर होने वाली
खपत देश की कुल बिजली खपत की लगभग ८ प्रतिशत हो जाती है। इंटरनेट की गति और बढ़ाने
का सीधा-सीधा अर्थ है बिजली खपत में और अधिक इजाफा। भारत जैसे एक विकासशील देश में
जहां बिजली की पहले ही काफी किल्लत है इंटरनेट की गति एवं क्षमता बढ़ाना टेढ़ी खीर
साबित होगा। इस समस्या से निपटने का एक उपाय है कि डाटा को ट्रान्सफर करने की बजाय
उसे सर्वरों के बड़े-बड़े स्थानीय नेटवर्कों में जमा कर लिया जाए। एक प्रतिष्ठित
अकादमिक जर्नल के मुताबिक हाल ही में एक ऐसे ऑप्टिकल फ़ाइबर का परीक्षण किया गया है
जो लगभग २५५ टेराबाइट डाटा प्रति सेकंड के हिसाब से आदान-प्रदान कर सकता है। यह
अभी इस्तेमाल किए जाने वाले कमर्शियल ऑप्टिकल फ़ाइबर नेटवर्क से करीब २१ प्रतिशत
अधिक है। इस ऑप्टिकल फ़ाइबर की मदद से आने इंटरनेट पर पड़ने वाले दबाव को कम किया जा
सकेगा और इंटरनेट के भविष्य को लेकर वैज्ञानिकों के मन में जो चिंताएँ हैं उनका भी
निराकरण हो जाएगा।
अब ये लोगों पर निर्भर करता है कि उन्हें बिजली की खपत इंटरनेट के लिए करनी है या बाकी जरुरी चीजों
केलिए।
8 साल और........ इंजीनियरों ने चेतावनी देते
हुए कहा है कि बस आने वाले 8 साल ही इंटरनेट का इस्तेमाल किया जा सकेगा। इसका
मुख्य कारण है कि पिछले दस सालों में इंटरनेट की स्पीड 50 गुना बढ़ी है. इससे उसकी क्षमता धीरे धीरे कम हो
रही है. इस्तेमाल होने वाले ऑप्टिकल फाइबर भी चरम पर पहुँच चुका है और अब उसकी
क्षमता और लाइट ट्रांसफर करने की नहीं रह गयी है. इसे निजात पायी जा सकती है. यदि
और केबल लगाए जाएं, तो
समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है. पर इसमें अरबों रुपयों का खर्च आएगा। इंटरनेट
कैपेसिटी क्रंच तक पहुँच गया है यानी फास्टर डेटा की हमारी डिमांड को आजीवन पूरा
करने की स्थिति में नहीं रह गया है.
लंदन रॉयल सोसाइटी में अप्रैल में हुए इंजीनियर्स और वैज्ञानिकों
की मीटिंग में इसका समाधान निकालने पर चर्चा हुई.एक्सपर्ट्स ने इस चर्चा के दौरान
कहा कि 8 साल के भीतर ही केबल और फायबर ऑप्टिक्स फंक्शन
करना बंद कर देंगे। चेतावनी देते हुए उन्होंने कहा कि2005 में इंटरनेट 2 मेगाबाइट
पर सेकंड की स्पीड देता था पर अब इंटरनेट की डाउनलोड स्पीड 100 एमबी प्रति सेकंड हो गयी है| फाइबर ऑप्टिक्स अब और डेटा लेने
के स्थिति में नहीं है. नतीजतन अब इंटरनेट बिल्स पर वृद्धि होगी। इसका कारण लगातार
इंटरनेट की बढ़ती डिमांड है.बिजली भी अधिक लगने के आसार है.ये तो सिर्फ डेटा
ट्रांसफर की बात है(ऑप्टिकल फाइबर हमारे कंप्यूटर, लैपटॉपन को डेटा ट्रांसफर करने का काम करता है), अगर कंप्यूटर, टीवी, मोबाईल की बात करें तो देश का 8 प्रतिशत बिजली उपभोग लगेगा। इंटरनेट टेलिविजन, लाइव विडियो स्ट्रीमिंग और लगातार शक्तिशाली
होते कम्प्युटरों ने विश्वभर के संचार ढांचे पर दबाव डालना शुरू कर दिया है।
ऑप्टिकल फ़ाइबर अपनी क्षमता के अंत पर हैं और वे और अधिक डाटा ले जाने में सक्षम
नहीं हैं। इंटरनेट के विशेषज्ञों के अनुसार हमारे लैपटाप, कम्प्युटर और टैबलेट तक डाटा पहुँचाने वाले ऑप्टिकल फ़ाइबरों के
नेटवर्क की क्षमता अगले लगभग ८ वर्षों में चुक जाएगी। जो फ़ाइबर ऑप्टिक केबल अभी
प्रयोग किए जा रहे हैं उनमें और अधिक डाटा नहीं भेजा जा सकता है।
कैसे काम करता है इंटरनेट
इंटरनेट हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुका
है। चाहे परीक्षा का परिणाम जानना हो, ट्रेन
का टिकट खरीदना हो, अपने दोस्तों और रिशतेदारों के संपर्क में रहना
हो, किसी भी चीज़ के बारे में जानकारी प्राप्त करनी
हो या विचारों का आदान-प्रदान करना हो हर काम के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल
होने लगा है। चूंकि इंटरनेट हमारी ज़िंदगी के लिए इतना अहम हो गया है तो यह जानना
भी जरूरी है कि यह काम कैसे करता है जिससे कि हम इसका सही इस्तेमाल कर सकें और
इससे लाभ प्राप्त कर सकें। इंटरनेट की शुरुआत अमेरिका में एक फौजी परियोजना के रूप
में 1960 के दशक के मध्य में हुआ था। आज यह दुनिया के
कोने-कोने में फ़ैल चुका है। इंटरनेट विश्वभर के कम्प्युटरों का एक नेटवर्क है। इस
नेटवर्क से जुडने वाले हर कम्प्युटर का एक विशिष्ट पता होता है जिसे आई॰पी॰ अथवा
इंटरनेट प्रोटोकाल एड्रैस कहते हैं। इसी एड्रैस के आधार पर एक कम्प्युटर दूसरे
कम्प्युटर के साथ डाटा का आदान-प्रदान करता है। डाटा का यह आदान-प्रदान इंटरनेट
प्रोटोकाल के द्वारा होता है। यदि आप अपने मित्र को कोई संदेश भेजना चाहते हैं तो
आप अपनी भाषा जैसे हिन्दी या अँग्रेजी में लिखेंगे। आपका कम्प्युटर इसे
एलेक्ट्रोनिक सिग्नलों में परिवर्तित करेगा और इंटरनेट के माध्यम से उसे आपके
मित्र के कम्प्युटर तक भेज देगा। आपके मित्र का कम्प्युटर इंटरनेट प्रोटोकाल के
आधार पर उन एलेक्ट्रोनिक सिग्नलों को पढ़ेगा और उसे वापस उस भाषा में परिवर्तित कर
देगा जिसमें कि आपने उसे लिखा था। इंटरनेट कई बड़े-बड़े नेटवर्कों से मिलकर बना हुआ
है। इन नेटवर्कों को आई॰बी॰एम॰ जैसी बड़ी-बड़ी नेटवर्क प्रदाता कंपनियाँ चलती हैं।
पर आप हर किसी का इंटरनेट प्रोटोकाल एड्रैस तो याद नहीं रख सकते हैं। ऐसे में आपकी
मददगार साबित होती हैं डोमेन नेम सर्विस या डी॰एन॰एस॰। डी॰एन॰एस॰ एक प्रकार का
डेटाबेस है जो विभिन्न कम्प्युटरों के नाम और उनसे जुड़े आई॰पी॰ एड्रैस की जानकारी
जमा कर के रखता है। इंटरनेट पर जिस सेवा का सर्वाधिक इस्तेमाल होता है वह है
वर्ल्ड वाइड वेब या डब्ल्यू डब्ल्यू डब्ल्यू और इस सेवा को संभव बनाता है हाइपर
टेक्स्ट ट्रान्सफर प्रोटोकाल या एचटीटीपी। इस प्रोटोकाल का इस्तेमाल वेब ब्राउज़र
और वेब सर्वर इंटरनेट पर एक दूसरे के साथ संदेशों एवं सूचनाओं का आदान-प्रदान करने
के लिए करते हैं। वेब ब्राउज़र जैसे गूगल क्रोम या मोज़िला फ़ायरफ़ॉक्स एचटीटीपी के
द्वारा वेब सर्वरों से संपर्क स्थापित करते हैं और वेब पेजों को खोजते हैं। जब हम
किसी भी वेबसाइट का नाम अपने वेब ब्राउज़र में टाइप करते हैं तो हमारा वेब ब्राउज़र
एचटीटीपी का इस्तेमाल करके उस वेबसाइट का डोमेन सर्वर खोजता है और यदि वेबसाइट काम
कर रही है तो उसे आपके कम्प्युटर स्क्रीन पर दिखा देता है नहीं तो एचटीटीपी 404 नाम का संदेश आपके स्क्रीन पर फ्लैश कर देता है। इंटरनेट प्रोटोकाल
का जो वर्जन अभी प्रयोग में हैं वह 232 भिन्न इंटरनेट प्रोटोकाल एड्रैस के लिए बनी है
और इससे ज्यादा एड्रैस को वह नहीं सम्हाल सकता है। आने वाले समय में इसके और उन्नत
रूप सामने आएंगे जो और भी अधिक वेबसाइटों का इंटरनेट पर आना सुनिश्चित करेंगे।
इंटरनेट से जुडी शब्दावली
इंटरनेट - इंटरनेट कम्प्युटरों का एक वैश्विक नेटवर्क है
जो आपस में जुड़े हुए हैं और एलेक्ट्रोनिक सिग्नलों के माध्यम से एक दूसरे के साथ
सूचनाओं एवं संदेशों का आदान-प्रदान करते हैं।
आई एस
पी -
इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर उन संस्थाओं को कहते हैं जो आपको इंटरनेट सेवाएँ मुहैया
करती हैं।
आई॰पी॰
एड्रैस -
इंटरनेट प्रोटोकाल एड्रैस वह विशिष्ट पता होता है जिसके द्वारा इंटरनेट से जुड़े
कम्प्युटरों की पहचान की जाती है।
डी॰एन॰एस॰ - डोमेन नेम सर्विस एक
प्रकार का डेटाबेस है जो विभिन्न कम्प्युटरों के नाम और उनसे जुड़े आई॰पी॰ एड्रैस
की जानकारी जमा कर के रखता है।
वर्ल्ड
वाइड वेब -
वर्ल्ड वाइड वेब इंटरनेट सर्वरों का एक सिस्टम है जो हाइपर टेक्स्ट मार्कप
लैड्ग्वेज या एच टी एम एल का इस्तेमाल कर बनाई गई सामाग्री को इकट्ठा कर के रखता
है और उसे इंटरनेट के माध्यम से उपभोक्ताओं को उपलब्ध करता है।
एच टी
टी पी -
हाइपर टेक्स्ट ट्रान्सफर प्रोटोकाल का इस्तेमाल वेब ब्राउज़र और वेब सर्वर इंटरनेट
पर एक दूसरे के साथ संदेशों एवं सूचनाओं का आदान-प्रदान करने के लिए करते हैं।
एच टी
एम एल -
हाइपर टेक्स्ट मार्कप लैड्ग्वेज वह भाषा है जिसमें वेब पेज लिखे जाते हैं।
वेब
पेज -
वेब पेज उन डिजिटल प्रपत्रों को कहते हैं जो हाइपर टेक्स्ट मार्कप लैड्ग्वेज या एच
टी एम एल में लिखे जाते हैं। इन्हें इंटरनेट के माध्यम से देखा जा सकता है।
वेबसाइट - वेबसाइट कई वेबपेजों का एक संग्रह है जिसे
इंटरनेट के माध्यम से वर्ल्ड वाइड वेब पर खोजा जा सकता है। हर वेबसाइट का इंटरनेट
पर एक विशिष्ट पता होता हइ जिस तक किसी भी वेब ब्राउज़र की मदद से पहुंचा जा सकता
हइ।
वेब
ब्राउज़र -
वेब ब्राउज़र एक सॉफ्टवेयर एप्लिकेशन है जो वर्ल्ड वाइड वेब पर मौजूद सामाग्री को
खोज कर उसे आपके कम्प्युटर स्क्रीन पर दिखने का काम करती है। उदाहरण के लिए गूगल
क्रोम या ओपेरा।
यू आर
एल -
यूनीफॉर्म रिसोर्स लोकेटर वेब पेजों की वह विशिष्ट पहचान होते हैं जिनके माध्यम से
जिनके माध्यम से वेब ब्राउज़र उन्हें इंटरनेट पर चिन्हित कर पाते हैं।
वेबसाईट
कैसे पहुँचती है हम तक
वेबसाइट
बनाने के बाद उसे होस्ट सर्वर पर डाला जाता है।
हर
वेबसाइट का एक विशिष्ट यूनीफॉर्म रिसोर्स लोकटर या यू आर एल होता है।
जब
किसी वेब ब्राउज़र में यह विशिष्ट यू आर एल डाला जाता है तो वह वेब ब्राउज़र इंटरनेट
के माध्यम से उस वेब सर्वर से संपर्क स्थापित करता है जहां पर वह वेबसाइट होती है।
प्रत्येक
वेब साइट एच टी एम एल में लिखी जाती है जिस में कुछ टैग होते हैं जो वेब ब्राउज़र
को यह बताते हैं कि पेज कैसे दिखाना है।
वेब
पेज से संबन्धित जानकारी के आदान-प्रदान के लिए वेब ब्राउज़र और वेब सर्वर एच टी टी
पी का इस्तेमाल करते हैं।
तकनीकी
प्रगति है उम्मीद की किरण
इस
दुनिया में अगर समस्या है तो उसका समाधान भी है. इंटरनेट की कैपेसिटी को बनाये
रखने के लिए ऑप्टिकल फाइबर की मदद ली जा सकती है. हालांकि इसमें अरबों रुपयों का
खर्चा है. वर्तमान नें जो हमारे पास ऑप्टिकल फाइबर मौजूद है, उसमें लाइट ट्रांसफर करने के लिए सिर्फ एक मात्र कोर ही है. पर जिस
नए ऑप्टिकल फाइबर की प्लानिंग हो रही है, उसमें 7 अलग
अलग कोर है.होरिज़ॉंटल लेवल के साथ ही डेटा को तीन अलग अलग वर्टिकल लेयर पर भी शेयर
किया जा सकेगा। इससे ट्रांसमिशन की कैपसिटी में इजाफा होगा।
जो फ़ाइबर ऑप्टिक केबल अभी प्रयोग किए जा रहे हैं
उनमें और अधिक डाटा नहीं भेजा जा सकता है। हालांकि इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर
कंपनियां और केबल बिछा सकती हैं पर उससे इंटरनेट बहुत ही महँगा हो जाएगा और आम
आदमी की पहुँच से बाहर हो जाएगा। ऐसी स्थिति में या तो आपको अच्छी गति वाले
इंटरनेट के लिए अधिक भुगतान करना होगा या फिर रुक-रुक कर चलने वाले इंटरनेट से
समझौता करना पड़ेगा। हालांकि अभी तक तो इंटरनेट की मांग पूर्ति से हमेशा पीछे ही
रही है पर आने वाले समय में इसके इतना अधिक बढ़ जाने की संभावना है कि उसकी पूर्ति
आज के इंटरनेट ढांचे के आधार पर करना लगभग असंभव हो जाएगा। इंटरनेट के साथ एक
समस्या बिजली को लेकर भी है। इंटरनेट लगभग उतनी ही बिजली इस्तेमाल करता है जितनी
कि विमानन उद्योग द्वारा इस्तेमाल की जाती है। एक विकासशील देश की कुल बिजली खपत
का लगभग २ प्रतिशत इंटरनेट पर खर्च होता है। यह केवल डाटा के आदान-प्रदान पर खर्च
होने वाली बिजली का आंकड़ा है। इसके साथ यदि इंटरनेट का उपयोग करने वाले उपकरणों
जैसे कम्प्युटरों और मोबाइल फोन को चलाने में इस्तेमाल होने वाली बिजली को भी यदि
जोड़ दिया जाये तो बिजली की इंटरनेट उपयोग पर होने वाली खपत देश की कुल बिजली खपत
की लगभग ८ प्रतिशत हो जाती है। इंटरनेट की गति और बढ़ाने का सीधा-सीधा अर्थ है
बिजली खपत में और अधिक इजाफा। भारत जैसे एक विकासशील देश में जहां बिजली की पहले
ही काफी किल्लत है इंटरनेट की गति एवं क्षमता बढ़ाना टेढ़ी खीर साबित होगा। इस
समस्या से निपटने का एक उपाय है कि डाटा को ट्रान्सफर करने की बजाय उसे सर्वरों के
बड़े-बड़े स्थानीय नेटवर्कों में जमा कर लिया जाए। एक प्रतिष्ठित अकादमिक जर्नल के
मुताबिक हाल ही में एक ऐसे ऑप्टिकल फ़ाइबर का परीक्षण किया गया है जो लगभग २५५
टेराबाइट डाटा प्रति सेकंड के हिसाब से आदान-प्रदान कर सकता है। यह अभी इस्तेमाल
किए जाने वाले कमर्शियल ऑप्टिकल फ़ाइबर नेटवर्क से करीब २१ प्रतिशत अधिक है। इस
ऑप्टिकल फ़ाइबर की मदद से आने इंटरनेट पर पड़ने वाले दबाव को कम किया जा सकेगा और
इंटरनेट के भविष्य को लेकर वैज्ञानिकों के मन में जो चिंताएँ हैं उनका भी निराकरण
हो जाएगा।
प्रभात खबर में 05/05/15 को प्रकाशित लेख