Wednesday, March 18, 2020

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की अनदेखी दुनिया :पहला भाग

पोर्ट ब्लेयर का खुबसूरत नजारा 
क और यात्रा सच कहूँ तो मुझे यात्राएँ मुझे सुकून की बजाय तनाव देती हैं पर इस तनाव से मुझे जीवन जीने की गति मिलती है |वैसे मैं बड़ा सुकून पसंद आदमी हूँ पर यात्राओं  में  मेरे मन में बंसा बंजारा जग जाता है फिर क्या मैं निकल पड़ता हूँ जीवन को देखने की एक नयी द्रष्टि की तलाश में इस बार मैं एक ऐसी जगह की यात्रा में निकल रहा हूँ जहाँ जाने का मौका भाग्यशाली लोगों को मिलता है |इस बार यात्रा थी अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की |
वहां पहुँचने से पहले मेरे मन में अंडमान और निकोबार यात्रा करने का एक मात्र मकसद भारत की जमीनी आख़िरी सीमा को देखने भर का था |आठवीं कक्षा में था जब भारत के राजनैतिक मानचित्र में बंगाल की खाड़ी में सुदूर बिखरे जमीन के कुछ हिस्से दिखा करते थे और मन में कौतुहल होता था ,कैसी होती होगी वहां की दुनिया ?अंडमान और निकोबार के राजनैतिक सामाजिक जीवन के बारे में हमें ज्यादा नहीं बताया गया |हो सकता है कि अब बताया जाता हो |अंडमान जाने से पहले मुझे बस इतना पता था कि वहां की राजधानी पोर्ट ब्लेयर है और कुछ बढ़िया समुद्री बीच हैं |पर अंडमान इन सब से कहीं अलग है जिसके बारे में आज भी लोगों को काफी कम पता है | अंडमान मलयालम भाषा के हांदुमन शब्द से आया है जो  भगवान हनुमान के लिए प्रयोग किया जाने वाले शब्द  अंडमाणु का परिवर्तित रूप है। उन्होंने ही  श्रीलंका जाते समय इस द्वीप की पहचान की थी । रामायण से जुड़ा हुआ एक मिथक अंडमान का नील द्वीप है |माना जाता है राजा नील इस द्वीप पर आये थे और उन्हीं की याद में इसका नाम नील पड़ गया |
अंडमान और निकोबार नक़्शे में :चित्र गूगल इमेजेस 
 निकोबार शब्द भी इसी भाषा से लिया गया है जिसका अर्थ होता है- नग्न लोगों की भूमि बंगाल की खाड़ी में स्थित ये दोनों द्वीप समूह रणनीतिक तौर पर जहाँ भारत के लिए अहम् हैं वहीं पर्यटन का प्रमुख केंद्र भी है |जब कोई अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की यात्रा पर निकट है तो अंडमान और निकोबार के बीच अंतर नहीं पता होता है | यहाँ पर कुल 572 द्वीप हैं। अंडमान द्वीप का छियासी  प्रतिशत क्षेत्रफल वन संपदा से ढका हुआ है। न में से मात्र उनतालीस द्वीपों पर ही लोग निवास करते हैं शेष द्वीप जनसँख्या विहीन हैं |अंडमान को 

निकोबार से अलग करने वाली जलरेखा दस डिग्री चैनल है |निकोबार में पर्यटकों के जाने की मनाही है |आप निकोबार तभी जा सकते हैं जब आप वहां काम करते हों |अंडमान जहाँ पिछले पचास हजार साल जारवा जनजाति का घर है वहीं निकोबार में शोम्पेन और सेनटेलीस जनजातियों का आवास है |
ये सभी जनजातियाँ तथा कथित सभ्य इंसानों से दूर रहना पसंद करती हैं और कुछ हद तक आज भी हिंसक हैं | 1858 से यहां भारत के मुख्य हिस्सों से लोगों के बसने का सिलसिला शुरू हो गया। 10 मार्च 1858 को भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े 200 सेनानियों को समुद्री जहाज से अंदमान लाया गया। तब उन्हे सजा-ए-कालापानी के तौर पर यहां लाया गया था। चाथम में उन सबसे पहले आने वाले सेनानियों की याद में स्मारक का निर्माण कराया गया है। भले ही वे कैदी के तौर पर इस द्वीप पर आए थे पर इस द्वीप के निर्माण, यहां की खेती बाड़ी और यहां की संस्कृति को भारतीय संस्कृति के तौर पर स्थापित करने में उनकी बड़ी भूमिका है। 1857 की क्रांति में विद्रोह का बिगुल बजाने वाले 200 सिपाहियों को लेकर एस एस सिमेरामी नामक जहाज 10  मार्च 1858 को अंडमान पहुंचा था।

1883 में जब चाथम शॉ मिल की शुरुआत हुई तो इनमें से कई कैदियों को इसमे काम पर लगाया गया। इसलिए शॉ मिल के परिसर में उनकी याद में स्मारक बनाया गया है। वैसे अंडमान के बारे  में तथ्य है कि चीन के लोगों को इस द्वीप के बारमें एक हजार साल पहले से मालूम था। वे इसे येंग टी ओमाग के नाम से जानते थे। रोमन भूगोलवेत्ता टॉळमी ने दूसरी शताब्दी में इसे अंगदमान आईलैंड ( अच्छे भविष्य का द्वीप) नाम दिया था। बौद्ध तीर्थ यात्री इत्सिंग ने 672 ई में यहां जहाज से यात्रा की थी। उसने इसे लो जेन कूओ ( नग्न लोगों का देश) नाम दिया था।  पंद्रहवीं सदी में मार्कोपोलो ने इसे अंगमानियन नाम दिया था। इटली के घुमक्कड़ निकोलो कौंट्री से ने इसे आईलैंड ऑफ गॉड कहा था ।
 आर्चिबिल्ड ब्लेयर

जब अंग्रेजों  का राज़ आया तो  इस क्षेत्र से गुजरने वालों जहाजों की रक्षा के लिए यहां पर स्थायी बस्ती के निर्माण की  जरूरत महसूस हुई। और विकल्प में यहाँ खूंखार कैदियों को शुरुआत में भेजा जाने लगा । चारों तरफ समुद्र होने के कारण वे भाग नहीं सकते थे अगर वे भागते भी थी तो समुद्र में ही डूब कर मर जाते । वहीं अंग्रेजों को मुफ्त में श्रमिक मिल गए जो उन 

द्वीपों को इंसानों के रहने लायक बनाने के लिए अपना श्रम देते थे | 14 अप्रैल 1788 को ब्रिटिश अधिकारी ले. आर्चिबिल्ड ब्लेयर को यहां  आबादी बसाने के लिए लगाया गया। 25 अक्तूबर 1789 को पहले कैदियों का एक दल यहां आया। इन आठ सौ बीस कैदियों को वाइपर द्वीप पर खुला छोड़ दिया गया। चारों ओर गहरा समुद्र के कारण भागने का कोई खतरा नहीं था। आर्चिबिल्ड ब्लेयर के नाम पर ही अंडमान  के इस प्रमुख शहर का नाम पोर्ट ब्लेयर पड़ा। बंदरगाह होने के कारण ब्लेयर के नाम में पोर्ट शब्द जुड़ गया। 22 जनवरी 1858 को यहां पर ब्रिटिश झंडा यूनियन जैक लहराया गया। 1858 में पैनल सेटेलमेंट के तहत आए क्रांतिकारियों में पंजाब के गदर आंदोलन के लोग, वहाबी विद्रोही, मणिपुर के विद्रोही और अन्य राज्यों के क्रांतिकारी थे। 1858 में लाए गए क्रांतिकारियों में अधिकतर यहीं की धरती में समा गए। बहुत कम लोग ही लौटकर अपने घर  वापस जा सके।
बंगाल की खाड़ी का पानी 
हमने लखनऊ से पोर्ट ब्लेयर की उड़ान भरी हमारा जहाज दिल्ली ,कोलकाता होते हुए गर्मी की एक उमस भरी दोपहरी में पोर्टब्लेयर के वीर सावरकर एयरपोर्ट पर उतरा |जहाज जब पोर्टब्लेयर के करीब था तो समुद्र में छोटे बड़ी कई स्थलीय भू आकृतियां दिख रही थीं और इन सबके बीच बंगाल की खाड़ी का विशाल सागर हिलोरे ले रहा था जिसका रंग कालिमा लिया लिए हुए था |शायद इसी लिए पुराने जमाने में यहाँ आने वाले कैदियों को काले पानी की सजा का नाम दिया गया था |यहाँ समुद्र का पानी काला दिखता है |
अंडमान में आपका स्वागत है अगले छ दिन हम बंगाल की खाड़ी में बसे इस द्वीप के मेहमान थे |

जारी ...................................













1 comment:

Arvind akela said...

अंडमान निकोबार का इतिहास और वहाँ की बहुत सी महत्वपूर्ण जानकारियां आपके अंडमान निकोबार यात्रा से प्राप्त हुई हैं ।
और काला पानी की सजा और अंडमान निकोबार के अलग अलग नामो की भी जानकारी प्राप्त हुई।
सर बहुत अच्छा लगा अंडमान निकोबार यात्रा का पहला भाग ।

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