हमारे
पोर्ट ब्लेयर पहुँचते वहां का मौसम बदल गया |उमस की जगह बारिश की रिम झिम ने ले
लिया |वीर सावरकर एक छोटा सा एयरपोर्ट है जो किसी बस स्टैंड जैसा लगता है |अब
पर्यटकों की आवक साल भर रहती हैं पर एयरपोर्ट बदहाल है |हमारा होटल एयरपोर्ट से दस
मिनट की दूरी पर था थोड़ी देर मे हम अपने होटल के कमरे में पसरे पड़े थे और ऐसा लग
रहा था बस अगले पांच दिन यहीं सोते –सोते गुजार दें ,पर नींद न आई |सोचा क्यों न
बाहर का एक चक्कर लगा लिया जाए |हालांकि बारिश हो रही थी पर यहाँ मैं बारिश के एक
नए अनुभव से रुबरु होने जा रहा था |
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रात के समय लाईट साउंड शो के समय सेलुलर जेल |
जब आप बाहर से देखते हैं तो लगता है बहुत तेज
बारिश है पर जब आप बाहर निकल जाएँ तो आप कम भीगते हैं |शायद इस का कारण तेज चलने
हवाएं थी तो उस बारिश में मैंने होटल के आस –पास चक्कर लगाया |कुछ दुकानें थी और
लोग अलसाए से पड़े थे |बारह से तीन लंच टाईम ,तीन घंटे लंच कौन करता है काम भी होते
रहते हैं पर सिस्टम तो यही है शायद इसका कारण यहाँ सुबह का जल्दी होना भी हो सुबह
चार बजे उजाला हो जाता है और पांच बजे सूरज देवता आ जाते हैं इसकी भरपाई शाम को
होती है और सूरज साधे पांच बजे तक डूब जाता है |ज्यादा कुछ करने को नहीं था
क्योंकि हमारा पहला कार्यक्रम प्रख्यात सेलूलर जेल में होने वाले लाईट और साउंड शो
को देखने का था |जिसके लिए साढ़े छ बजे तक इन्तजार करना था तो सोचा क्यों न थोड़ी
पेट पूजा कर ली जाए |होटल के कुछ वेटर चेन्नई या दक्षिण भारत के थे तो कुछ यहीं के
स्थानीय निवासी पर किसी ने उत्तर भारत न देखा था |उनके लिए दिल्ली उतनी ही दूर थी
जितना हमारे लिए अंडमान |कभी उधर जाने का मन नहीं करता ?मैंने बात बढाने के लिए
सवाल उछाला |क्या करेगा उधर जाकर अगर वो जगह इतना अच्छा होता तो लोग यहाँ क्यों
आता |बात में दम था |होटल का रिशेप्सनिस्ट बीस साल का एक बिहारी लड़का था जो गया से
तीन महीने पहले यहाँ आया था |उसने होटल मैनेजमेंट का कोर्स कर रखा था |
यहाँ क्यों
आये ?मेरे एक रिश्तेदार हैं उन्होंने बुलाया |
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ऐसी दिखती थी पूरी सेलुलर जेल :फोटो साभार |
घर की याद आती है ?कभी –कभी तो लौट
क्यों नहीं जाते ?क्या करेंगे वहां जाकर यहाँ पैसा तो मिल रहा है |होटल के
रेस्टोरेंट से पूरा पोर्ट ब्लेयर दिखता है |समुद्र में आते –जाते जहाज ,हरे भरे
छोटे –छोटे पहाड़ दूर लाईट हाउस जिसकी बत्तियां शाम के धुंधलके में चमकना शुरू कर
रहीं थी और मैं सडक पर आते जाते लोगों को देख रहा था |ट्रैफिक एकदम व्यवस्थित कोई
भी दुपहिया चालाक बगैर हेलमेट के गाडी नहीं चला रहा था |तभी खतरनाक गति से डीजे की आवाज और सड़क पर कई दुपहिये वाहन चालकों को हुल्लड़ करते निकलते देखा ,अचानक लगा मैं
उत्तर प्रदेश के अपने घर में हूँ पर ये पोर्टब्लेयर था और मौका था एक लडकी की शादी
की विदाई का |एक सजी धजी कार उसके आगे बाढ़ पंद्रह लोग अपनी दुपहिया में और पीछे एक
छोटे हाथी जैसी गाडी में विशाल स्पीकर और मैंने सैयां जी से आज ब्रेकअप कर लिया
बजता गाना |थोड़ी देर में ये शोर खत्म हुआ पर आधे घंटे में वही काफिला फिर सड़क पर
था |थोड़ी देर बाद वे सब अपनी मंजिल पहुँच गए होंगे और शोर खत्म हुआ पर ये परम्परा
मुझे ये सोचने पर मजबूर कर रही थी ,क्या हमारी सभ्यता शोर की सभ्यता है ?खुशी या
गमी बगैर शोर मचाये पूरी हो ही नहीं सकती |मैंने सर को झटका दिया मैं यहाँ घूमने आया हूँ सिर्फ घूमने पर इस मुए दिमाग का
क्या करूँ जो हर वक्त सवाल करता रहता है |हमारे होटल से सेलुलर जेल का प्रांगण
मुश्किल से पंद्रह मिनट की दूरी पर था |हम नियत समय पर पहुँच गए थे |अंदर एक शो
खत्म होने को था और हमें बाहर लाइन लगा के खड़ा कर दिया गया |सडक पर पुलिस वाले ट्रैफिक
और लोगों दोनों को ही व्यवस्थित कर रहे थे पर लोग कहाँ मानने वाले और उन्हें बार –बार
सीटियाँ बजा कर भीड़ को किनारे करना पड़ रहा था |रात हो चुकी थी सेलुलर जेल की ईमारत
खामोशी से आने वालों का स्वागत कर रही थीं |चूँकि अँधेरे में जेल का कुछ भाग ही
दिख रहा था इसलिए मुझे लगा कि इसको कल दिन में आराम से देखूंगा |जेल का वह हिस्सा न
जाने कितना इतिहास अपने सीने में दबाये पड़ा था |इस शो को अंडमान के सेलूलर जेल के अन्दर ला लाईट और साउंड शो आप इस लिंक पर जाकर देख
और सुन सकते हैं |जब तब ये शो चल रहा था मैं बस इस जेल की दीवारों को ही देखे जा
रहा था जो अलग अलग रौशनियों में अलग –अलग भाव दे रही थीं |कितनी हिंसक ,भयानक और
वीभत्स दौर की साक्षी रही है ये जेल |
अंडमान में ब्रिटिश सरकार ने कैदियों को भेजने का सिलसिला 1789 से ही शुरू कर दिया था।
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रात में जगमगाती सेलुलर जेल :फोटो साभार |
एक
बार जो यहां आ गया उसके वापस जाने की उम्मीद कम रहती थी, इसलिए
देश में अंडमान कालापानी के नाम से मशहूर हो गया। सेल्युलर जेल से पहले
ज्यादातर कैदी वाईपर द्वीप पर खुली जेल में रखे जाते थे। पर यहां एक विशाल जेल
बनाने का ख्याल बाद में आया। 25
अक्तूबर 1789
को सबसे पहले 820
कैदियों को इस द्वीप पर लाया गया।
सेल्युलर जेल जिसे इंडियन बैस्टिल भी कहा जाता है इसका निर्माण 1896
में आरंभ हुआ। 10
साल में 1906
में यह जेल बनकर तैयार हुई। यह जेल शहर के उत्तर पूर्व दिशा में अटलांटा
प्वाइंट पर बनाई गई। आजकल इस जेल के बगल में मेडिकल कालेज और अस्पताल है। यह जेल
ब्रिटिश काल की राजधानी रॉस द्वीप के बिल्कुल सामने है। स्थान का चयन काफी सोच समझ
कर किया गया था। इसका नाम सेल्युलर जेल इसलिए पड़ा क्योंकि इसमें हर कैदी
के लिए अलग अलग सेल बनाए गए थे। इसका उद्देश्य था कि हर कैदी बिल्कुल एकांत में
रहे और मनोवैज्ञानिक तौर पर बिल्कुल टूट जाए। हर सेल का आकार 13.5
फीट लंबा, 7
फीट चौड़ा और 10
फीट
ऊंचा है। कोठरी में एक तरफ लोहे के विशाल दरवाजे और
दूसरी तरफ एक रोशनदान है जो तीन फीट चौड़ा और एक फीट ऊंचा है। जेल तीन मंजिला है।हम अगले दिन फुर्सत से इस जेल को देखने की उम्मीद लिए होटल लौट आये |
जारी .........................
2 comments:
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व शरणार्थी दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
आप यात्रा का सुखद अनुभव घर बैठे ही करवा देते हैं सर।
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