Wednesday, March 11, 2020

जबर्दस्ती हॉर्न न बजाएं

अच्छा अगर आपको फेसबुक पर बार बार पोक करे या मेसेज बॉक्स में जा जा कर आपको अपने स्टेटस अपडेट को लाईक या कमेन्ट करने को कहे तो आपको कैसा लगेगा ? ज़ाहिर है बुरा .पर वर्चुअल वर्ल्ड से अलग रीयल वर्ल्ड में ऐसा रोज  हो तब कैसा होगा आपका रिएक्शन ?घर से बाहर जब बच्चा पहली बार स्कूल जाने के लिए निकलता है तो पढ़ाई से पहले उसे यही  बात सिखाई जाती है कि शोर मत करो पर ये बड़ी बात हम अपने छोटे से जीवन में नहीं सीख पाते हैं.रोड पर होर्न प्लीज का मतलब ये नहीं है कि होर्न आपके मनोरंजन का साधन है. जब जी चाहे बजाते रहो जब तक की सामने वाला रास्ते से ना हट  जाए पर वो तो तभी हटेगा जब उसे आगे जाने का रास्ता मिलेगा पर इतना धीरज  कहाँ है.भाई मंजिल तक तो सभी को पहुंचना है इसीलिये तो सफर में निकले हैं, पर आपको ऐसा नहीं लगता है कि बचपने में शोर ना मचाने की सीख का पालन हम कभी नहीं करते यानि जो जितना शोर मचायेगा वो उतना बड़ा माना जाएगा. फिल्म आशिकी टू का गाना बड़ा हिट हुआ “सुन रहा है तू रो रहा हूँ मैं” एक जमाना था जब लोग अकेले में रोते थे. वो गजल याद है ना आपको “चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है” जिससे दूसरे लोग परेशान ना हों और शोर भी ना हो ,पर रोड हो या पब जब तक आवाज शोर ना बन जाए तब तक बजाओ,पर कभी कभी शेर को सवा शेर भी मिल जाता है तो ऐसे लोगों के कान के नीचे भी बजा दिया जाता है. नहीं समझे अरे स्कूल में ज्यादा शोर करने पर टीचर क्या करते थे हम सब के साथ.सवाल ये है कि ऐसी नौबत ही क्यूँ आये हम एक सिविलाईज्ड सोसायटी में रहते हैं .हमारे देश में होर्न बजाना एक सनक है.समस्या ये है कि हम में से बहुत कम लोग टू या फॉर व्हीलर चलाने के मैनर्स जानते हैं या जानने की कोशिश करते हैं.ड्राइविंग स्कूल इसका सल्यूशन हो सकते हैं पर मुद्दा ये है कि जब हम बचपने की पहली सीख शोर मत करो अपने जीवन में नहीं उतार पाते हैं तो ड्राइविंग स्कूल हमें क्या सुधार पायेंगे. रात की तन्हाई और सुबह का सन्नाटा हमें इसीलिये पसंद आता  है क्यूंकि उस वक्त कोई शोर नहीं होता.सिंपल तो गाड़ी चलाते वक्त इतना ध्यान रखना बिलावजह होर्न बजाना शोर पैदा करता है और शोर किसी को पसंद नहीं होता है. आपको पता ही होगा ज्यादातर रोड एक्सीडेंट जल्दबाजी में ही होते हैं.आपने ट्रक के पीछे वो वाक्य तो पढ़ा ही होगा “जिन्हें जल्दी थी वो चले गए”, पर आपको तो जाना नहीं है बल्कि मंजिल पर सुरक्षित स्वस्थ पहुंचना है.मैंने अपनी कई विदेश यात्राओं में इस बात को महसूस किया है कि वहां गाड़ियों की संख्या ज्यादा होने के बावजूद होर्न का शोर कम होता है या न के बराबर होता है पर हमारे देश में उतनी गाडियां नहीं हैं पर फिर भी होर्न का शोर ज्यादा है. साउंड पाल्यूशन कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं  पैदा भी करता है जिसके लिए  कुछ हद  तक हमारी जबरदस्ती होर्न बजाने की आदत जिम्मेदार होती है.अब आप जाने के इन्तजार में है भाई कुछ काम भी तो करना है .जाइए बिलकुल जाइए पर ध्यान रहे आज से जबरदस्ती होर्न नहीं बजायेंगे और ये बात आपके कान में लगातार बजती रहनी चाहिए.
प्रभात खबर में 11/03/2020 को प्रकाशित 

2 comments:

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 12.03.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3638 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की गरिमा बढ़ाएगी

धन्यवाद

दिलबागसिंह विर्क

Jyoti Singh said...

बढ़िया लिखा है ,बधाई हो आपको

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