Friday, March 20, 2020

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की अनदेखी दुनिया :तीसरा भाग

कैदियों को दी जाने वाली यातना का प्रतीकातमक चित्र 
फांसी घर 
फांसी घर 
दूसरे दिन सुबह धुप निकली हुई थी ,हालाँकि जून महीने में आने के लिए कई लोगों ने शंका जताई थी कि मेरी यात्रा बरसात के कारण चौपट हो सकती है पर सौभाग्य से बरसात से फिलहाल अभी तक कोई समस्या नहीं नजर आ रही थी |पहले सेल्यूलर जेल के भ्रमण का कार्यक्रम था |हालाँकि हम पिछली रात में इसके दर्शन कर चुके थे पर आज दिन की रौशनी में क्रांतिकारियों  के तीर्थ को देखने का मजा अलग था |हमारे होटल से सेल्यूलर जेल का रास्ता मुश्किल से दस मिनट का था |
सेलूलर जेल 
जहाँ आज जेल है कभी यहाँ एक विशाल पहाड़ हुआ करता था |उस पहाड़ को इस जेल बनाने के लिए काट दिया गया |सेलुलर जेल का बचा हिस्सा आज एक तीर्थ है जो हमें याद दिलाता है कि ये स्वतंत्रता कितने संघर्ष और मानव जानों की कीमत पर मिली है |हम समय से पहले सेलुलर जेल पहुँच गए थे |जेल के सामने एक पार्क बना हुआ है |मेरा कौतुहल मुझे वहां ले गया |इस पार्क का नाम था वीर सावरकर पार्क जहाँ
यहां स्वतंत्रता  की लड़ाई में शामिल उन सात वीरों का प्रतिमाएं हैं। जिन्होने जेल की अमानुषिक यातना के बीच यहीं पर अंतिम सांस ली। जिनके नाम हैं  इंदू भूषण रे, बाबा भान सिंह, मोहित मोइत्रा पंडित राम रक्खा बाली, महावीर सिंह, मोहन किशोर नामदास | ये सभी जेल में हुई भूख हड़ताल में अंग्रेजों द्वारा जबरदस्ती नली द्वारा हड़ताल तुडवाने की कोशिश में शहीद हुए |इस पार्क के पीछे एक खूबसूरत स्टेडियम बना हुआ था |
सेलूलर जेल का बाहरी भाग 
मैं अभी उस दौर की यादों में खोया हुआ ही था कि जेल के अन्दर जाने का समय हो गया |जेल के द्वार पर वीर सावरकर का उद्भोधन लिखा हुआ है “यह तीर्थ महातीर्थों का है
, मत कहो इसे काला पानी, तुम सुनो यहां की धरती के कण कण से गाथा बलिदानी” |सामने जेल का परिसर दिखता है उस परिसर में सबसे पहले 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में इस जेल की कैद में शहीद हुए लोगों की याद में एक स्मारक बना है वहीं उन सेनानियों की याद में एक ज्योति भी अनवरत जलती रहती है |जेल का एक चक्कर लगाते हुए मैं सोच रहा था| इन छोटे से कमरों में आज से नब्बे साल पहले बगैर बिजली और पंखे के कैसे लोग रहते होंगे |जून के पहले हफ्ते में यहाँ खासी गर्मी पड़ रही थी उस वक्त क्या हाल होता होगा जब चारों ओर समुद्र ,उमस बोलने बतियाने के लिए कोई नहीं |दिन भर जानवरों के काम को इंसानों द्वारा लिया जाता था |
सावरकर पार्क 
थकने पर बेइंतहा मार जिसकी गवाह इस जेल की दरो दीवारें थी |आखिर कौन थे वो आजादी के मतवाले जो फिर भी नहीं झुके |यहाँ दो घंटे में में हमारा प्यास से बुरा हाल था |जेल परिसर से बाहर निकलते ही हम लोगों ने नारियल पानी पिया और आधे घंटे सुस्ताये |जब यह जेल अपने पूरे आकार में रही होगी कितना वीभत्स माहौल यहाँ रहा होगा |इसका नाम सेल्युलर जेल इसलिए पड़ा क्योंकि इसमें हर कैदी के लिए अलग अलग सेल बनाए गए थे। इसका उद्देश्य था कि हर कैदी बिल्कुल एकांत में रहे और मनोवैज्ञानिक तौर पर बिल्कुल टूट जाए। जेल तीन मंजिला है।
बची हुई जेल की इमारत में सौभाग्य से वीर सावरकर की कोठरी सुरक्षित रह गयी |राजनैतिक कारणों से सावरकर अक्सर चर्चा में रहते हैं |देश के दो राजनैतिक दल अक्सर उनकी विरासत पर सवाल जवाब करते हैं |उन्हें दो उम्रकैद की सजा एक साथ मिली थी | इस हिसाब से उन्हें 1961 में जेल से बाहर आना चाहिए था |
वे इस जेल में दस साल रहे |उस वक्त के माहौल में कोई यहाँ दस दिन बिता दे मेरे लिए व
ही बड़ी बात थी ,दस साल तो बहुत बड़ी बात है वो भी देश के नाम पर ,यहीं मुझे बताया गया कि उनके भाई भी इसी जेल में कैद थे जिसकी उनसे मुलाक़ात तीन साल बाद हुई |सवालों से तो परे भगवान भी नहीं पर उनकी देशभक्ति पर सवाल नहीं उठाया जा सकता |उनकी कोठरी के ठीक नीचे फांसी घर था ,जहाँ एक साथ तीन लोगों को फांसी दी जाती थी |मैं सावरकर की कोठरी के सामने खड़े होकर नीचे देखते हुए सोच रहा था ,दस साल में उन्होंने न जाने कितने हँसते बोलते इंसानों को लाश में बदलते  देखा होगा |कितना मुश्किल होता होगा एक इंसान के तौर पर अपनी आँखों के सामने यह सब होते हुए देखना |फांसी घर में घुसते ही मेरे हाथ उस जमीन को प्रणाम  किये हुए बगैर न रह सके |हमारे असली तीर्थ तो यही हैं मैं उस कमरे में चुपचाप उन दृश्यों की कल्पना कर रहा था |जब आजादी के मतवालों को फांसी दी जा रही होगी |उसके नीचे वह कमरा जहाँ मृतशरीर  हवा में झूल रहा होता था और उसे रस्सी से उतार कर समुद्र में बहा दिया जाता है |मैं उस कमरों को दीवारों को छू कर देख रहा था |काश ये बोल सकती तो क्या बोलती ?क्या –क्या इन दीवारों ने देखा और सहा होगा ?अतीत से संवाद करते –करते मुझे वक्त का ख्याल न रहा अब चलना है |11 फरवरी 1979 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने सेल्युलर जेल को राष्ट्रीय स्मारक के तौर पर राष्ट्र को समर्पित किया। |अंडमान का हेवेलोक द्वीप हमारा इन्तजार कर रहा था |

जारी ...........................

3 comments:

शारदा अरोरा said...

Rochak...Andman yatra hamne bhi ki...kuchh posts likhin ...sending you one of my post's link...https://shardaa.blogspot.com/2012/01/blog-post.html?m=1

Harshit Srivastava said...

Waah aap ney apney shabdo sey waha ki yatra lko bytey bytey kra di ...

Arvind akela said...

यह तीर्थ महातीर्थों का है, मत कहो इसे काला पानी, तुम सुनो यहां की धरती के कण कण से गाथा बलिदानी🙏🙏

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