जनसंख्या के लिहाज से दुनिया का दूसरा बड़ा देश होने के नाते भारत की आबादी पिछले 50 सालों में हर दस साल में बीस प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत की जनसंख्या 1 अरब 20 करोड़ से भी अधिक रही, जो दुनिया की कुल जनसंख्या का 17.5 प्रतिशत है। इस आबादी में आधे लोगों की उम्र 25 से कम है पर इस जवान भारत में बूढ़े लोगों के लिए भारत कोई सुरक्षित जगह नहीं है,टूटते पारिवारिक मूल्य, एकल परिवारों में वृद्धि और उपभोक्तावाद की आंधी में घर के बड़े बूढ़े कहीं पीछे छूटते चले जा रहे हैं|जीवन प्रत्याशा की दर में सुधार के परिणामस्वरुप साठ वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की संस्था में वृद्धि हुई है| सन 1901 में भारत में 60वर्ष से अधिक उम्र के लोग मात्र 1.2 करोड़ थे| यह आबादी बढ़कर सन 1951 में दो करोड़ तथा 1991 में 5.7करोड़ तक पहुँच गई|'द ग्लोबल एज वॉच इंडेक्स' ने दुनिया के 91 देशों में बुज़ुर्गों के जीवन की गुणवत्ता का अध्ययन के अनुसार बुज़ुर्गों के लिए स्वीडन दुनिया में सबसे अच्छा देश है और अफगानिस्तान सबसे बुरा,इस इंडेक्स में चोटी के20 देशों में ज़्यादातर पश्चिमी यूरोप और उत्तरी अमरीका के हैं| सूची में भारत 73वें पायदान पर है| वृद्धावस्था में सुरक्षित आय और स्वास्थ्य जरूरी है|उम्र का बढ़ना एक अवश्यंभावी प्रक्रिया है| इस प्रक्रिया में व्यक्ति का शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक बदलाव होता है| पर भारत जैसे देश में जहाँ मूल्य और संस्कार के लिए जाना जाता है वहां ऐसे आंकड़े चौंकाते नहीं हैरान करते हैं कि इस देश में बुढ़ापा काटना क्यूँ मुश्किल होता जा रहा है |बचपने में एक कहावत सुनी थी बच्चे और बूढ़े एक जैसे होते हैं इस अवस्था में सबसे ज्यादा समस्या अकेलेपन के एहसास की होती है जब बूढ़े उम्र की ऐसी दहलीज पर होते हैं जहाँ उनके लिए किसी के पास कोई समय नहीं होता है |वो बच्चे जिनके भविष्य के लिए उन्होंने अपना वर्तमान कुर्बान कर दिया ,अपने करियर की उलझनों में फंसे रहते हैं या जिन्दगी का लुत्फ़ उठा रहे होते हैं |ऐसे में अकेलेपन का संत्रास किसी भी व्यक्ति को तोड़ देगा |भारतीय समाज संक्रमण के दौर से गुजर रहा
|डब्लूएचओ के अनुमानित आंकड़े के अनुसार भारत में वृद्ध लोगों की आबादी 160 मिलियन (16 करोड़) से बढ़कर सन् 2050में 300 मिलियन (30 करोड़) 19 प्रतिशत से भी ज्यादा आंकी गई है. बुढ़ापे पर डब्लूएचओ की गम्भीरता की वजह कुछ चौंकाने वाले आंकड़े भी हैं. जैसे 60 वर्ष की उम्र या इससे ऊपर की उम्र के लोगों में वृद्धि की रफ्तार 1980 के मुकाबले दो गुनी से भी ज्यादा है| 80 वर्ष से ज्यादा के उम्र वाले वृद्ध सन 2050 तक तीन गुना बढ़कर 395 मिलियन हो जाएंगे| अगले 5 वर्षों में ही 65 वर्ष से ज्यादा के लोगों की तादाद 5 वर्ष तक की उम्र के बच्चों की तादाद से ज्यादा होगी. सन् 2050 तक देश में 14 वर्ष तक की उम्र के बच्चों की तुलना में वृद्धों की संख्या ज्यादा होगी. और सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह कि अमीर देशों के लोगों की अपेक्षा निम्न अथवा मध्य आय वाले देशों में सबसे ज्यादा वृद्ध होंगें| पुराने ज़माने के संयुक्त परिवार की जगह एकल परिवार लेते जा रहे हैं जिससे भरा पूरा रहने वाला घर सन्नाटे को ही आवाज़ देता है बच्चे बड़े होकर अपनी दुनिया बसा कर दूर निकल गये और घर में रह गए अकेले माता –पिता चूँकि माता पिता जैसे वृद्ध भी अपनी जड़ो से कट कर गाँव से शहर आये थे इसलिए उनका भी कोई अनौपचारिक सामजिक दायरा उस जगह नहीं बन पाता जहाँ वो रह रहे हैं तो शहरों में यह चक्र अनवरत चलता रहता है गाँव से नगर, नगर से महानगर वैसे इस चक्र के पीछे सिर्फ एक ही कारण होता है बेहतर अवसरों की तलाश ये बात हो गयी शहरों की पर ग्रामीण वृद्धों का जीवन शहरी वृद्धों के मुकाबले स्वास्थ्य सेवाओं के संदर्भ में और ज्यादा मुश्किल है वहीं अकेलापन तो रहता ही है |बेटे बेटियां बेहतर जीवन की आस में शहर चले गए और वहीं के होकर रह गयें गाँव में माता –पिता से रस्मी तौर पर तीज त्यौहार पर मुलाक़ात होती हैं कुछ ज्यादा ही उनकी फ़िक्र हुई थी उम्र के इस पड़ाव पर एक ही इलाज है उन वृद्धों को उनकी जड़ों से काट कर अपने साथ ले चलना |ये इलाज मर्ज़ को कम नहीं करता बल्कि और बढ़ा देता है |
जड़ से कटे वृद्ध जब शहर पहुँचते हैं तो वहां वो दुबारा अपनी जड़ें जमा ही नहीं पाते औपचारिक सामजिकता के नाम पर बस अपने हमउम्र के लोगों से दुआ सलाम तक का ही साथ रहता है | ऐसे में उनका अकेलापन और बढ़ जाता है |इंटरनेट की आदी होती यह पीढी दुनिया जहाँ की खबर सोशल नेटवर्किंग साईट्स लेती है पर घर में बूढ़े माँ बाप को सिर्फ अपने साथ रखकर वो खुश हो लेते हैं कि वह उनका पूरा ख्याल रख रहे हैं पर उम्र के इस मुकाम पर उन्हें बच्चों के साथ की जरुरत होती है पर बच्चे अपनी सामाजिकता में व्यस्त रहते हैं उन्हें लगता है कि उनकी भौतिक जरूरतों को पूरा कर वो उनका ख्याल रख रहे हैं पर हकीकत में वृद्ध जन यादों और अकेलेपन के भंवर में खो रहे होते हैं | महत्वपूर्ण ये है कि बुढ़ापे में विस्थापन एक गंभीर मनोवैज्ञानिक समस्या है जिसको नजरंदाज नहीं किया जा सकता है मनुष्य यूँ ही एक सामाजिक प्राणी नहीं है पर सामाजिकता बनाने और निभाने की एक उम्र होती है| समस्या का एक पक्ष सरकार का भी है चूँकि बूढ़े लोग अर्थव्यवस्था में कोई योगदान नहीं देते इस तरह वे अर्थव्यवस्था पर बोझ ही रहते हैं तो सरकारी योजनाओं का रुख बूढ़े लोगों के लिए कुछ खास लचीला नहीं होता |सरकारों का सारा ध्यान युवाओं पर केन्द्रित रहता है क्योंकि वे लोग अर्थव्यवस्था में सक्रिय योगदान दे रहे होते हैं |
9 अगस्त 2010 को भारत सरकार ने गैर-संगठित क्षेत्र के कामगारों तथा विशेष रूप से कमजोर वर्गों सहित समाज के सभी वर्गों को वृद्धावस्था सुरक्षा उपलब्ध कराने के लिए नई पेंशन योजना को मंजूरी दी और उसके बाद यह योजना पूरे देश में स्वावलंबन योजना से लागू की गई। इस योजना के तहत गैर-संगठित क्षेत्र के कामगारों को अपनी वृद्धावस्था के लिए स्वेच्छा से बचत करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। इस योजना में केंद्र सरकार लाभार्थियों के एनएफएस खाते में प्रति वर्ष 1000 का योगदान करती है। सरकार ने राष्ट्रीय वृधावस्था पेंशन योजना जरुर शुरू की है पर यह उस भावनात्मक खालीपन को भरने के लिए अपर्याप्त है जो उन्हें अकेलेपन से मिलती है |विकास और आंकड़ों की बाजीगरी में बूढ़े लोगों का दावा कमजोर पड़ जाता है |विकास की इस दौड़ में अगर हमारी जनसँख्या का एक बड़ा हिस्सा यूँ ही बिसरा दिया जा रहा है तो ये यह प्रवृति एक बिखरे हुए समाज का निर्माण करेगी |जिन्दगी की शाम में अगर जनसँख्या का एक बड़ा हिस्सा अकेलेपन से गुजर रहा है तो यह हमारे समाज के लिए शोचनीय स्थिति है क्योंकि इस स्थिति से आज नहीं तो कल सभी को दो चार होना है |
दैनिक जागरण राष्ट्रीय संस्करण में 27/01/2019 को प्रकाशित
25 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (28-01-2019) को "सिलसिला नहीं होता" (चर्चा अंक-3230) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (28-01-2019) को "सिलसिला नहीं होता" (चर्चा अंक-3230) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन भारत में "हरित क्रांति के पिता" - चिदम्बरम सुब्रह्मण्यम और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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