Friday, January 11, 2019

अक्षय ऊर्जा से ही बचेगा जीवन

ग्लोबल वार्मिग की समस्या रोकने के लिए जितने कारगर कदम उठाए जाने चाहिए थे वे नहीं उठाए गए जिससे मानव जीवन और देशों के स्वास्थ्य तंत्र दोनों को खतरा है। हाल में आई लेंसेट काउंट डाउन रिपोर्ट 2018 के अनुसार इससे होने वाले खतरे की आशंका पहले के अनुमानों से कहीं अधिक है। इस रिपोर्ट में दुनिया के 500 शहरों में किए गए सर्वे के बाद निष्कर्ष निकाला गया कि उनका सार्वजनिक स्वास्थ्य आधारभूत ढांचा जलवायु परिवर्तन के कारण बुरी तरह प्रभावित हो रहा है जो यह बताता है कि संबंधित रोगियों की संख्या जिस तेजी से बढ़ रही है उस तेजी से रोगों से निपटने के लिए दुनिया के अस्पताल तैयार नहीं हैं। इसमें विकसित और विकासशील दोनों देश शामिल हैं। बीती गर्मियों में चली गर्म हवाओं ने सिर्फ इंग्लैंड में ही सैकड़ों लोगों को अकाल मौत का शिकार बना डाला। दरअसल इंग्लैंड के अस्पताल जलवायु में अचानक हुए इस परिवर्तन के कारण बीमार पड़े लोगों से निपटने के लिए तैयार नहीं थे। वर्ष 2017 में अत्यधिक गर्मी के कारण 153 बिलियन घंटों का नुकसान दुनिया के खेती में लगे लोगों को उठाना पड़ा। कुल नुकसान का आधा हिस्सा भारत ने उठाया जो यहां की कुल कार्यशील आबादी का सात प्रतिशत है जबकि चीन को 1.4 प्रतिशत का ही नुकसान हुआ। रिपोर्ट बताती है कि प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिग दो अलग मसले नहीं हैं, बल्कि आपस में एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।
दावोस (स्विट्जरलैंड) में आयोजित विश्व आर्थिक मंच की वार्षिक बैठक के पाश्र्व में ‘पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक 2018’ को जारी किया गया जिसमें 178 देशों पर पर्यावरण प्रदर्शन को लेकर एक अध्ययन किया गया जिसमें भारत 174वें स्थान पर रहा। पर्यावरण के मामले में भारत दुनिया के बेहद असुरक्षित देशों में है। अधिकांश उद्योग पर्यावरणीय दिशा-निर्देशों, विनियमों और कानूनों के अनुरूप नहीं हैं। देश की आबोहवा लगातार खराब होती जा रही है। शोध अध्ययन से यह पता चला है कि कम गति पर चलने वाले यातायात में विशेष रूप से भीड़ के दौरान जला हुआ ईंधन चार से आठ गुना अधिक वायु प्रदूषण उत्पन्न करता है, क्योंकि डीजल और गैस से निकले धुएं में 40 से अधिक प्रकार के प्रदूषक होते हैं। यह तो रही शहर की बात जहां यातायात प्रदूषण एक ग्लोबल समस्या के रूप में लाइलाज बीमारी बनी हुई है। ग्रामीण क्षेत्र भी प्रदूषण विस्तार के लिए कम जिम्मेदार नहीं है। सरकार के आंकड़ों के मुताबिक साल 2015 में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच प्रति व्यक्ति ऊर्जा की खपत में काफी अंतर है। उदाहरण के लिए 75 प्रतिशत ग्रामीण परिवार रसोई के ईंधन के लिए लकड़ी पर, करीब 10 प्रतिशत गोबर के उपलों पर और पांच प्रतिशत रसोई गैस पर निर्भर हैं। घर में प्रकाश के लिए करीब 50 प्रतिशत परिवार ही बिजली पर निर्भर हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में इसी कार्य के लिए 89 प्रतिशत परिवार बिजली पर तथा अन्य 11 प्रतिशत परिवार केरोसिन पर निर्भर हैं। लेकिन इस धुंधली तस्वीर का दूसरा पहलू यह बता रहा है कि भारत सरकार गैर-परंपरागत ऊर्जा नीतियों को लेकर काफी गंभीर है। देश में सौर ऊर्जा की संभावनाएं भी काफी अच्छी हैं। हैंडबुक ऑन सोलर रेडिएशन ओवर इंडिया के अनुसार, भारत के अधिकांश भाग में एक वर्ष में 250 से 300 धूप निकलने वाले दिनों सहित प्रतिदिन प्रति वर्गमीटर चार से सात किलोवॉट घंटे का सौर विकिरण प्राप्त होता है। राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों में यह स्थिति अन्य राज्यों की अपेक्षा ज्यादा है।
भारत का अक्षय ऊर्जा क्षेत्र बीते कुछ समय से सुर्खियों में बना हुआ है। हाल ही में ब्रिटेन की अकाउंटेंसी फर्म अर्नेस्ट एंड यंग द्वारा अक्षय ऊर्जा क्षेत्र के लिए आकर्षक देशों की सूची में भारत को दूसरा स्थान दिया। वहीं भारत सरकार की ऊर्जा नीति में सुधार की शुरुआत अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने के फैसले के साथ हुई। जून 2015 में जवाहरलाल नेहरू नेशनल सोलर मिशन के लक्ष्य की समीक्षा करते हुए मोदी सरकार ने 2022 तक सौर ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य 20,000 मेगावॉट के आंकड़े से पांच गुना बढ़ाकर एक लाख मेगावॉट कर दिया। इसमें 40,000 मेगावॉट बिजली रूफटॉप सोलर पैनलों और 60,000 मेगावॉट बिजली छोटे और बड़े सोलर पॉवर प्लांटों द्वारा पैदा की जाएगी। अगर भारत इस लक्ष्य को हासिल कर लेता है तो हरित ऊर्जा के मामले में वह दुनिया के विकसित देशों से आगे निकल जाएगा। यह प्रदूषण मुक्त सस्ती ऊर्जा के साथ-साथ ऊर्जा उपलब्धता और देश की आत्मनिर्भरता बढ़ाने में सहायक साबित होगा। वैश्विक पटल पर भारत इस समय विश्व में गैर-परंपरागत ऊर्जा के संसाधनों पर चिली के बाद भारत सबसे ज्यादा निवेश करता दिख रहा है। क्लाइमेट स्कोप 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत इस समय अक्षय ऊर्जा के संसाधनों को स्थापित करने के संदर्भ में दूसरे स्थान पर है। एनर्जी रिसर्च ब्लूमबर्ग ने 103 देशों की ऊर्जा नीतियों, पावर सेक्टर तंत्र, प्रदूषण उत्सर्जन और अक्षय ऊर्जा के संसाधनों के संदर्भ में हुए कार्यो का अध्ययन किया जिसमें पाया गया कि भारत 2.57 अंकों के साथ अक्षय ऊर्जा के संसाधनों पर खर्च के मामलों में विश्व में दूसरे स्थान पर है। वहीं चिली 2.63 अंकों के साथ पहले स्थान पर है। लेकिन इसके साथ भी बहुत कुछ जरूरी है- जैसे पर्यावरण की सुरक्षा से ही प्रदूषण की समस्या को सुलझाया जा सकता है। यदि हम अपने पर्यावरण को ही असुरक्षित कर दें तो हमारी रक्षा कौन करेगा? पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम के प्रति भारत का रवैया पिछले कुछ सालों से काफी सकारात्मक दिख रहा है जिसमें गैर-परंपरागत ऊर्जा के संसाधनों के इस्तेमाल पर ज्यादा कार्य हो रहा है। इस समस्या पर यदि हम आज मंथन नहीं करेंगे तो प्रकृति संतुलन स्थापित करने के लिए स्वयं कोई भयंकर कदम उठाएगी। प्रदूषण से बचने के लिए हमें अत्यधिक पेड़ लगाने होंगे। प्रकृति में मौजूद प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन करने से बचना होगा। प्लास्टिक से परहेज करना होगा। वर्षा जल का संचय करते हुए भूमिगत जल को संरक्षित करने का प्रयास करना होगा। पेट्रोल, डीजल के अलावा हमें ऊर्जा के अन्य विकल्प ढूंढने होंगे। सौर ऊर्जा व पवन ऊर्जा के प्रयोग पर बल देना होगा।
दैनिक जागरण राष्ट्रीय संस्करण में 11/01/2019 को प्रकाशित 

1 comment:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (12-01-2019) को "मेरा विकास - सबका विकास" (चर्चा अंक-3214) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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