यूँ तो लोग कश्मीर खूब घुमने जाते है ज्सिमें श्रीनगर ज्यादा महत्वपूर्ण होता है पर हम श्रीनगर की बजाय अनन्तनाग जा रहे थे . जम्मू से अनंतनाग के बीच की लगभग 250 किलोमीटर की दूरी है जिसे मुझे सड़क मार्ग से तय करनी थी. आप सबको बताता चलूँ जम्मू से समूचे कश्मीर को जोड़ने का एक ही रास्ता है जिसे NH -1 के नाम जाना जाता है जो जम्मू से श्रीनगर जाता है वैसे 250 किमी की दूरी कोई ज्यादा नहीं लगती पर जब मामला पहाड़ों का हो तो समय ज्यादा लगना स्वाभाविक है. जम्मू से उधमपुर तक रोड बहुत बढ़िया थी ऐसा नहीं लग रहा था कि हम पहाड़ों के रास्ते में थे.उधमपुर में “पटनीटॉप” नाम का एक टूरिस्ट डेस्टीनेशन पड़ता है जो जम्मू से लगभग सत्तर किलोमीटर दूर है.हमारे ड्राइवर ने इसे गरीबों का श्रीनगर बताया आतंकवाद के चरम दिनों में जब पर्यटकों का कश्मीर घाटी जाना बंद हो गया तो लोग जम्मू क्षेत्र में पटनी टॉप में बर्फबारी का आनंद देखने आने लग गए और धीरे धीरे ये एक पर्यटक स्थल के रूप में विकसित हो गया.सड़क पर जाम के कारण हमारी गाड़ी अक्सर रेंग रेंग कर बढ़ रही थी पर वो जाम कुंठित नहीं कर रहा था शायद आस पास के दृश्य इतने सुंदर थे कि मैं तो उन्हीं में रम सा गया.शायद यही कारण था कि जब भी जाम लगता ड्राइवर लोग एक दूसरे की मदद करते वो भी हंसते मुस्कुराते ज्यादातर सवारी गाड़ियों के ड्राइवर श्रीनगर को देश से जोड़ने वाले इस एक मात्र मार्ग पर चलते हैं इसलिए एक दूसरे से परिचित होते हैं और सडक पर एकदूसरे के हाल चाल लेते रहते हैं. पहाड़ों पर बर्फ बढ़ती जा रही थी और गाड़ी का शीशा खोलने का जोखिम नहीं लिया जा सकता था मैंने जेकेट भी पहन ली थी.रामबन हालाँकि जम्मू क्षेत्र में पड़ता है पर पहाड़ों पर बढ़ती बर्फ बता रही थी कि हम अनंतनाग के करीब आ रहे थे.
हम जैसे जैसे धरती के स्वर्ग के करीब होते जा रहे थे सड़क और मौसम दोनों का मिजाज बदल रहा था.सड़क पर हिन्दी उधमपुर के बाद ही गायब होने लग गई मतलब दुकानों के नाम और सड़कों पर लगे मील के पत्थर उर्दू और अंग्रेजी भाषा में ही थे.हम हल्की बारिश में बर्फ की चादर में लिपटे पहाड़ों के बीच धीरे धीरे आगे बढ़ रहे थे.मैं बहुत ज्यादा उत्साहित हो रहा था चारों तरफ ऐसे दृश्य थे जो हमेशा मेरी कल्पना में रहे या उन्हें फ़िल्मी परदे पर ही देखा था पर यहाँ तो साक्षात चारों तरफ सब कुछ मेरी आँखों के सामने था. अब हमारी जवाहर गाड़ी टनल के अंदर प्रवेश कर गई.
इतनी लंबी सुरंग में चलने का पहली बार सौभाग्य मिल रहा था जम्मू को कश्मीर और सारे देश के सड़क मार्ग से जोड़े रखने का काम पहाड़ों को काट कर बनाई गई ये ढाई किलोमीटर की सुरंग करती है.एक तरफ आने का मार्ग है दूसरी तरफ जाने का मार्ग अंदर पीले बल्ब टिमटिमा रहे थे.जैसे ही हम सुरंग से बाहर निकले जैसे लगा कोई पर्दा खुला अद्भुत दृश्य था.हम सचमुच कश्मीर में प्रवेश कर गए थी चारों तरफ बर्फ से लदे पहाड क्या शानदार दृश्य था.
अब हम बनिहाल से गुजर रहे थे उसके बाद क़ाज़ीगुंड और हमारी मंजिल अनंतनाग जहाँ मेरे मित्र सौगत हमारे इंतज़ार में थे.चूँकि सौगत को यहाँ आये हुए अभी एक महीना ही हुआ था इसलिए वो भी अकेले थे उनका परिवार जम्मू से होली वाले दिन हमसे जुड़ने वाला था तो दो पुराने दोस्त मिलने वाले थे.अब माहौल एक दम बदल गया था सड़कों पर भीड़ भाड़ एकदम कम हो रही थी.किसी किसी गाँव में चहल पहल दिखी पर गाडियां सिर्फ सड़कों पर दिख रही थी.
किशोर और बच्चे फिरन (कश्मीरी पहनावा ) पहने और अंदर कांगड़ी(अंगीठी) लिए इधर उधर दिख रहे थे.महिलायें और लड़कियां सड़क पर बनिहाल के बाद से बिलकुल भी नहीं दिखी.मैंने कहीं पढ़ा था जिंदगी स्याह सफ़ेद नहीं होती पर यहाँ जो मैं प्रकृति का रूप देख रहा था वो एकदम स्याह- सफ़ेद था चारों तरफ बर्फ और उसके बाद जो कुछ भी था वो चाहे किसी भी रंग का हो, दिख काला ही रहा था चाहे वो पेड़ हों या कुछ और पर इस स्याह सफेद वातावरण में ,मैं जिंदगी के सारे रंग देख रहा था.लोग प्रकृति से लड़ते जूझते जी रहे थे,पहाड़ों का जीवन वैसे भी कठिन होता है,मैं सैलानी बना अपने दोस्त से मिलने जा रहा था. बत्तियाँ जल चुकी थी और सडक पर सन्नाटा, ऐसी ही बर्फ से भरी सड़क पर हमारी गाड़ी अनंतनाग (खन्नाबल)के सरकारी अतिथिगृह में पहुँच रही थी.
हम अनंतनाग में थे.
स्ट हाउस के चारों तरफ बर्फ पडी थी हम उसी बर्फ के बीच रास्ता बनाकर अपने कमरे में पहुंचे. गेस्टहाउस का वास्तु कश्मीर की शैली का था फर्श और छत लकड़ी की जिससे वो कमरे की गर्मी को बचा सकें और छत त्रिभुजाकार तिरछी जिससे बर्फ छत पर न रुके और नीचे आ जाए.वैसे भी ऐसे क्षेत्र जहाँ बर्फ गिरती है आप वहां के घरों में छत ढूढते रह जायेंगे क्यूंकि घरों में छत नहीं होती है.
दिन सुबह थोड़ी देर से आँख खुली सुबह के आठ बजे थे पर ऐसा लगा पूरा अनंतनाग अभी सो ही रहा है कोई शोर शराबा नहीं सब कुछ थमा हुआ.बाहर बर्फ के ढेर और एक अलसाई सुबह ऐसा लगता है सूरज के दर्शन आज नहीं होने वाले.भारत के अधिकाँश हिस्सों में आज होली का त्यौहार मनाया जा रहा था पर यहाँ होली का दूर दूर तक कोई नाम लेवा नहीं .नाश्ते में खालिस कश्मीरी गिर्दा और लवासा (कश्मीरी रोटी) के साथ मक्खन सब्जी हमें परोसा गया .
पहलगाम अनंतनाग से तीस किलोमीटर दूर है लेकिन पहले यह तय हुआ कि यहाँ कोई सूर्यमंदिर है जो कोणार्क से भी पुराना है तो पहले मैंने उसे देखने का फैसला किया.पहली बार अनंतनाग शहर को करीब से देख रहा था.बिजली की समस्या है पर उतनी नहीं जितनी उत्तरप्रदेश में है सड़कें जल्दी टूटती हैं कारण भ्रष्टाचार नहीं हर साल होने वाली बर्फबारी है,बर्फ को हटाने के लिए भारी मशीने इस्तेमाल की जाती हैं जो सड़क को नुकसान पहुंचाती हैं.शहर और आस पास के गाँवों में आने जाने के लिए सूमो टैक्सी के रूप में इस्तेमाल होती हैं. गोश्त में ज्यादातर भेंड काटी जाती हैं या मुर्गा ,भेंड का गोश्त बकरे के मुकाबले थोडा सख्त होता है अखरोट खूब होता है यहाँ पचास पैसे का एक अखरोट और सेब अधिकतम तीस से चालीस रुपये किलो,हमें बिलकुल अंदाज़ा नहीं था लखनऊ से चलते वक्त की मार्च के महीने में इतनी ठण्ड और बर्फ झेलनी पड़ेगी. अनंतनाग सुबह देर से जगता और शाम को जल्दी सो जाता.सड़कों पर फिरन पहने ज्यादातर
पुरुष सड़कों पर दिखते लड़कियां बहुत कम दिख रही थी.मेरा अपना ओबसर्वेशन और लोगों से हुई बात चीत के बाद मैं इस नतीजे पर पहुँच गया कि कश्मीर में गरीबी नहीं है पर बेरोजगारी बहुत है.कोई भी इंसान भूखा नहीं सोता भीख मांगने वाले लोग कम से कम मुझे तो नहीं दिखे.बाजार हों या मोहल्ले भीड़ भाड़ तो दिख रही थी पर मुझे न जाने क्यूँ ये शहर सूना सूना लग रहा था.हर शहर का अपना एक माहौल होता है शोर होता वो गायब था शहर में एफ एम् स्टेशन था पर कहीं कोई गीत संगीत की आवाज नहीं ये धर्म का मामला था या सभ्यता की निशानी मेरी समझ से परे है.
कोई हवा में मोबाईल लहराता कोई गाना सुनता नहीं दिखा.सारे साईन बोर्ड उर्दू या अंग्रेजी में पूरे अनंतनाग में सिर्फ शहर के बाहरी हिस्से में फ़ूड कार्पोरेशन ऑफ इंडिया का एक गोदाम ऐसा था जिसमें हिन्दी में खाद्य निगम लिखा था.मकानों में ज्यादा रंग रोगन नहीं किया जाता और उनकी बाहरी सजावट पर भी कोई ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता अधिकतर मकान सूने सूने लगते.सेना के जवान चौराहों पर दिखते हैं पर बहुत ज्यादा नहीं है.पान और गुटखे की दुकाने एकदम न के बराबर हैं पर ऐसा नहीं था कि बिलकुल भी न हों.मैंने एक बात गौर की लोग सिगरेट बहुत पीते हैं इसके पीछे क्या कारण है कोई बताने वाला नहीं मिला पर मुझे लगता है कहीं न कहीं बेरोजगारी से पैदा होने वाला तनाव और सेना की इतने लंबे समय से उपस्थिति इसका कारण हो सकता है.शराब की एक भी दूकान नहीं है. सरकारी आबकारी नीति का पता नहीं पर श्रीनगर में मैंने एक शराब की दूकान को बंकरनुमा दडबे में देखा मुझे बताया गया.इस दूकान को बंद कराने के लिए यहाँ ग्रेनेड हमला किया गया तब से ऐसा हाल है.
हम लोग पहलगाम के रास्ते पर पड़ने वाले मार्तंड मंदिर की तरफ बढ़ चले.
मैंने एक बात खास देखी जैसे हमारे यहाँ पुर ,नगर जैसे विशेषण मोहल्लों या रिहाईश के लिए इस्तेमाल होते हैं वैसे यहाँ “बल” का प्रयोग होता है जैसे खन्ना बल,गांदरबल ,हज़रत बल,मैंने इसका कारण जानने की कोशिश की तो जो पता चला वो यह था कि पुराने वक्त में कश्मीर में जगह जगह पानी था या पहाड तो “बल” उस सूखी जगह को कहते हैं. जहाँ लोग आकर व्यापार करते थे धीरे धीरे लोग वहाँ आकर बसने लोग और उसे सूखे स्थान के नाम के आगे “बल” लग गया.कश्मीर में आपको “बल” काफी सुनने को मिलेगा.अब मार्तंड मंदिर देखने की बारी थी .जाहिर है मंदिर एक ऐसी जगह था जहाँ कभी हिंदू आबादी ज्यादा रहती थी.मंदिर में घुसते मुझे झटका सा लगा मैं किसी प्राचीन स्थापत्य वाले मंदिर की कल्पना कर रहा था पर वहां तो सारा मामला नया था.एक बड़े तालाब की पीछे तीन गुम्बद ,तालाब में खूब सारी मछलियाँ जिनको लोग आंटे की गोलियाँ खिलाते थे और कुछ भी नहीं और पुजारियों का नाटक कहाँ से आये हैं पूजा करवा लो चूँकि मैं मंदिर पर्यटन की द्र्ष्टि से गया था न कि दर्शन करने तो मैंने कुछ तस्वीरें खींची और पुजारी से पूछा कि पुराना मंदिर कहाँ है उसने कहा यही है.
मुझे लगा कुछ गलतफहमी हुई होगी या पुराना मंदिर भूस्खलन में गिर गया होगा उसकी जगह नया बनवाया गया होगा तो वहां से हम पहलगाम के लिए चले अभी तक थोड़ी बहुत सूरज की रौशनी थी पर धीरे धीरे वो रौशनी कम होती गयी और उसकी जगह बदली और धुंध ने ले ली.इसी रास्ते पर “बटकूट” गाँव पड़ा.इसी गाँव के मलिक नामके बाशिंदे ने सबसे पहले अमरनाथ गुफा खोजी थी और उसके वंशजों को अमरनाथ श्राइन बोर्ड आज भी एक निश्चित धनराशि देता है यूँ कहें धन्यवाद कहने का एक तरीका सौगत ने बाद में मुझे बताया कि इस धनराशि को लेकर मलिक के वंशजों में अब मुकदमेबाजी हो रही है.एक बार फिर हम धुंध और बरफ में खो जाने वाले थे.हमारे साथ स्थानीय लिद्दर नदी बह रही थी.गनीमत थी कि नदी नहीं जमी थी बाकी सबकुछ सफ़ेद सिर्फ नदी का पानी बह रहा था बाकी सब कुछ थमा हुआ शांत मैंने खिड़की खोली तो ठंडी हवा ने ऐसा स्वागत किया कि मुझे खिड़की बंद करनी पडी.ये एक ऐसी खूबसूरती है जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है.पहलगाम ही वो जगह है जहाँ से “अमरनाथ”यात्रा शुरू होती है.पह्लगाम गर्मियों में अपनी हरियाली के लिए और जाड़ों में बर्फ के लिए प्रसिद्द है.हम घूमते हुए बेताब वैली की तरफ चले.बेताब वैली के नामकरण की अजीब कहानी है मुझे बताया कि अस्सी के दशक में यहाँ बेताब फिल्म की शूटिंग हुई थी.
तबसे यह जगह पर्यटन के मानचित्र में उभरी नहीं तो सिर्फ स्थानीय लोगों के अलावा यहाँ कोई नहीं आता पर अब ये एक बड़ा टूरिस्ट डेस्टीनेशन है .मन मोहने वाला द्रश्य सिर्फ लिद्दर नदी एक छोटी सी धार दिख रही थी चारों ओर सिर्फ बर्फ बर्फ मैं थोड़ी देर प्रकृति के इस रूप के साथ रम सा गया.भीड़ भाड़ खूब थी पर जितनी बर्फ हमारे चारों तरफ थी उस हिसाब से ठण्ड नहीं थी.बरफ इतनी ज्यादा थी कि सैलानियों के लिए लोग हाई बूट किराए पर दे रहे थे पर मुझे अपने वुडलैंड पर पूरा भरोसा था दूसरा मैंने फैसला किया कि मैं ज्यादा बर्फ के अंदर नहीं जाऊँगा.कुछ लोग दस रुपये में लकड़ी का डंडा बेच रहे थे जिससे लोग बर्फ में चल सके. नवविवाहित जोड़े काफी दिख रहे थे जो शायद हनीमून मनाने पहलगाम आये थे.अब सोचता हूँ तो लगता है कि मैं वाकई खुशनसीब हूँ ये खूबसूरती देखना कितने लोगों को नसीब होता है दोपहर होने वाली थी हम थोड़ी देर और घूमना चाह रहे थे. हमने बर्फ के मैदानों के चक्कर लगाये पहलगाम गोल्फ कोर्स ,अक्कड़ पार्क सब बर्फ में दबे थे और बगल में लिद्दर नदी बही जा रही थी.सौगत के आते ही हम भोजन पर टूट पड़े पर मुझे “कहवा” ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया.
ठण्ड से बचने के लिए कश्मीर में कहवा एक आवश्यक आवश्यकता है कहवा पाउडर के साथ केशर बादाम पिस्ता वाह वाह.
शाम ढलने लगी थी और हम अनंतनाग लौट पड़े. शाम को मेरी मांग पर मछली की व्यवस्था की गयी मैंने मूली में पकी ट्राउट मछली पहली बार खाई.कश्मीरी वाजवान का यह अनुभव भी शानदार रहा,जैसे हम खाने को दस्तरख्वान बोलते हैं कश्मीर में इसे वाजवान बोला जाता है .
आज बड़ी होली का दिन था और सौगात का परिवार भी अनंतनाग जम्मू से आने वाला था तो कहीं बाहर न जाकर अनंतनाग में ही रहने का फैसला किया गया.पहले हम एक पुराने मंदिर गए होली के हुडदंग में जहाँ देश के अधिकाँश हिस्से डूबे थे. होली वाले दिन हमें उस मंदिर में कुछ गुलाल के चिह्न मंदिर में देखने को मिले वास्तव में भारत विविधताओं का देश है.उस मंदिर को देखकर मुझे एहसास हुआ कि एक वक्त यहाँ हिंदू धर्म मानने वालो की प्रधानता रही होगी और यहाँ नागों की बहुतायत रही होगी शायद इसी वजह से इसका नाम अनंतनाग पड़ा.मंदिर में घुसने से पहले हमारे साथ जो सुरक्षा गार्ड था. उसने सेना के जवानों को बताया हम मेहमान थे और मंदिर घूमना चाहते हैं तब हमें अंदर जाने दिया गया मंदिर के गेट पर एक बंकरनुमा चेक पोस्ट था उसके बाद मंदिर की शुरुवात होती है.पता पड़ा इस मंदिर के प्रांगण में सी आर एफ के जवान भी डटे हैं ये पता नहीं पड़ पाया कि वो मंदिर की सुरक्षा के लिए रुके हैं या उनकी यूनिट अस्थाई रूप से यहाँ कुछ दिन के लिए है.चारों तरफ मुस्लिम बाहुल्य इलाका बीच में ये मंदिर इस बात का गवाह है कि इतिहास के पन्नों में काफी कुछ बार बार बदला है.मंदिर में सन्नाटा पसरा था कोई पुजारी मुझे नहीं दिखा.कश्मीर के मंदिरों में मुझे एक जलाशय जरुर दिखा जिसमें पहाडो से आता साफ़ पानी इकट्ठा होता रहता है मंदिर के बाहर जलाशय से निकले उस पानी में लोग अपने दैनिक क्रिया क्रम निपटाते दिखे और हाँ उस कुण्ड में बहुत बड़ी बड़ी मछलियाँ भी पली रहती हैं.दर्शानार्थी उन्हें आंटे की गोलियाँ खिलाते और मंदिर में होने के कारण उनका शिकार नहीं किया जाता तो उनका जीवन बड़े सुकून का होता है.मंदिर की दशा बता रही थी कि उसका जीर्णोधार किया गया है और काम अभी भी जारी है.इस मंदिर के कुंड में नाग जैसी आकृति के पौधे निकले हुए थे.आप तस्वीर में देख सकते हैं. असल में जिस सूर्य मंदिर को हम देख कर आये थे वो असली सूर्य मंदिर नहीं था.इंटरनेट की मदद से उस असली सूर्यमंदिर के भग्नावेशों को ढूढ निकाला गया पता पड़ा पुजारी ने हमें बेवकूफ बनाया असली सूर्य मंदिर उस मंदिर से आठ किलोमीटर दूर पहाड़ी पर मटन नाम की जगह पर है. ये मंदिर कोणार्क के सूर्य मंदिर से भी पुराना है.मैं सोच रहा था जम्मू कश्मीर सरकार को अपने टूरिस्ट डेस्टिनेशन की ठीक से ब्रांडिंग करनी चाहिए जिससे श्रीनगर पहलगाम ,गुलमर्ग जैसी जगहों पर से पर्यटकों का बोझ कम किया जाए मैंने इससे पहले राजोरी में भी यही महसूस किया कि यहाँ इतनी खूबसूरत जगहें हैं पर वहां कोई घूमने नहीं आता अब आतंकवादी घटनाओं का वैसा कोई खौफ नहीं. अब सूर्य मंदिर के बारे में कितने कम लोग जानते हैं.
शाम को हम उस असली मार्तंड मंदिर को खोजने चल पड़े जिसके बारे में माना जाता है सातवीं –आठवीं शताब्दी में इसका निर्माण हुआ.ये एक ऐसे पठार पर बना हुआ है जहाँ से पूरी कश्मीर घाटी देखी जा सकती है पर अब इस विशालकाय मंदिर के ही खंडहर ही बचे हैं.उन खंडहरों के बीच जा कर लगा कि जब ये मंदिर अपने भव्य स्वरुप में रहा होगा तो कई किलोमीटर दूर से दिखता रहा होगा पर अब सिर्फ भग्नावशेष बचे हैं जिनकी भी कोई ठीक से देखभाल नहीं है मंदिर को सिर्फ कंटीले बाड़ों से घेरा गया है और भारतीय पुरात्व विभाग का बोर्ड ही ये बताता है कि ये कोई महत्वपूर्ण इमारत है.बारिश हो रही थी फिर भी हमने भीगते हुए मंदिर को पूरा देखा.शाम को एक और अनोखी चीज से हमारा परिचय होना था.चूँकि कश्मीर में खतरनाक वाली ठण्ड पड़ती है इसलिए जो लोग साधन संपन्न लोग होते हैं वो कमरे के नीचे की जगह को खोखला छोड़ते हैं जिससे वहां जलती हुई लकडियाँ डाली जा सकें और फर्श लकड़ी की न बनवाकर उसकी जगह पत्थर लगवा देते हैं जिससे लकड़ी की गर्मी पत्थर में जाती है और पत्थर के ऊपर मोटा कालीन बिछा रहता है जिससे कालीन के साथ –साथ कमरा भी गरम रहता है .ये उपाय आधुनिक उपायों के मुकाबले ज्यादा स्वास्थ्यप्रद होता है .हीटर या ब्लोअर शरीर में पानी की कमी पैदा कर देते हैं जबकि इसमें ऐसा नहीं होता.
अगर आतंकवाद की घटनाओं को छोड़ दिया जाए तो कश्मीर में अपराध की दर काफी कम है.छोटे मोटे अपराध को छोड़ दें तो महीनों हो जातें किसी संगीन वारदात को घटे हुए.
अनंतनाग से श्रीनगर की दूरी लगभग 55 किलोमीटर है और पुलवामा नाम एक और जिला में पड़ता है.
पुलवामा में ही अवान्तिस्वामी मंदिर के भग्नावशेष हैं.यह मंदिर भी मार्तंड मंदिर के आस पास बना विष्णु मंदिर है जिसे राजा ललितादित्य ने बनाया था पर अब ये सिर्फ खंडहर ही मंदिर का वास्तु भी मार्तंड मंदिर से मिलता जुलता है.हालंकि यहाँ भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने यहाँ अच्छा काम किया है यहाँ मंदिर में आने का टिकट लगता है.मंदिरों के मामले में मैंने देखा कि कोई भीड़ नहीं थी जबकि ये पुरातत्व से जुडे हुए स्थल सभी के महत्व के हैं पर शायद लोग कश्मीर यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता देखने आते हैं.पुलवामा कश्मीर की दूध राजधानी है यहाँ का दूध पूरी कश्मीर घाटी में भेजा जाता है सबसे ज्यादा श्रीनगर में .बारिश लगातार हो रही है और हम भीगते ठंडाते पर्यटन का मजा लूट रहे थे.मेरा नोट पैड लगातार भरता जा रहा था.मैं सौगत का आभारी हूँ कि उसे पता था कि मैं किस तरह की यात्राओं को जीता हूँ इसलिए मेरे काम की चीजें सारी चीजें गाड़ी में डलवा दी गयी थी जब हम निकले थे तो बदली थी बारिश होने का कोई लक्षण नहीं दिख रहा था फिर भी छाता हमारे साथ था.अब हम शहर छोड़ चुके थे चारों तरफ चौड़े खेत दिखाई पड़ रहे थे. ये खेत केसर के थे पर अभी मौसम न होने के कारण हमें केसर को देखने का मौका नहीं मिला.
कब जाएँ
अन्नत नाग मार्च से नवम्बर महीने जाने के लिए सबसे सर्वोत्तम है |जाड़ों में बहुत ठंड और बर्फबारी होती है |
कैसे जाएँ :
रेल मार्ग से जम्मू तक जाया जा सकता है फिर सडक मार्ग से जाया जा सकता है या फिर वायु मार्ग से श्रीनगर तक जा कार वहां से टैक्सी द्वारा अनन्त नाग पहुंचा जा सकता है |
दैनिक जागरण के यात्रा परिशिष्ट में 22/12/19 को प्रकाशित