जंगल बचे इंसानी लाशों की कीमत पर , ये भी विकास का एक पहलू था |रास्ता मन
मोह लेने वाला था सम्पूर्ण शांति का एहसास आप कर सकते थे राजौरी से लगभग तीस
किलोमीटर पहले एक चिंगस नाम की जगह ,चिंगस के बारे में बताने से पहले आपको बता दूँ
राजौरी का यह इलाका उस रास्ते का हिस्सा है जिस रास्ते से मुग़ल शासक गर्मियों में
कश्मीर घाटी जाते थे |मुगलों के द्वारा बनवाई गयी सरायों के अवशेष आज भी मिलते हैं
मैंने भी ऐसी दो सरायें देखीं पर अब उन जगहों पर भारतीय सेना का कब्ज़ा है जहाँ
किसी आम आदमी के लिए जाना उतना आसान नहीं है चूँकि सेना का मामला था इसलिए मैंने
अपना कैमरा नहीं निकाला|थोड़ी दूर चलने पर चिंगस नाम की वो सराय आ गयी जिसे मुग़ल
बादशाह अकबर ने बनवाया था.आज ये मुख्य सड़क से सटा एक वीरान इलाका है जहाँ मुग़ल
बादशाह जहाँगीर के शरीर का कुछ हिस्सा दफ़न है|
चिंगस को फारसी भाषा में आंत कहते
हैं किस्सा कुछ यूँ है कि मुग़ल बादशाह जहाँगीर अपनी बेगम नूरजहाँ के साथ अपने
वार्षिक प्रवास के बाद कश्मीर से अपनी सल्तनत की ओर लौट रहे थे |
चिंगस :यहीं जहाँगीर की आंतें दफ़न हैं |
चिंगस सराय |
राजौरी की शाम |
पुरानी यादें :मैं और सौगत उपराष्ट्रपति के कार्यक्रम में हैलीपेड पर |
सौगत |
थोड़ी देर में हम कमरे में बैठे थे दस मिनट के बाद निर्णय लिया गया कि यहाँ नहीं मजा आ रहा है ,घर चला जाए चूँकि मैं अपने परिवार के साथ गया था इसलिए ये दो परिवारों का पुनर्मिलन हो रहा था|किस्से, बातें,कहानियां भूले बिसरे लोग उनसे जुडी यादें पर मैं ठण्ड से ठिठुर रहा था जबकि ये अक्टूबर की शुरुवात थी और कमरे में और बाहर हर जगह हीटर की व्यवस्था थी|भाभी से सौगत का स्वेटर लेकर पहना तब जाकर चैन पड़ा जबकि पहले से मैंने एक ऊनी इनर पहन रखा था अगले चार दिन मैंने सौगत के उस स्वेटर का खूब शोषण किया| हम रात के बारह बजे वापस अपने सुइट पहुंचे (कमरा कहना उस जगह की बेइज्जती होगी)
जारी है .......................
भारतीय रेल के जून 2021 अंक में प्रकाशित
2 comments:
पढ़ रहा हूँ सर --बहुत ही रोचक संस्मरण और आनंददायक यात्रा वृत्तान्त ।
वो दोस्त ही क्या जो तमीज़ से बात करे...हा हा हा
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