Saturday, July 17, 2021

महिलाओं की बढ़ती हिस्सेदारी


कोरोना महामारी के बाद दुनिया हमेशा के लिए बदल गयी |परम्परा और आधुनिकता के बीच उलझे देश में इस संक्रमण ने जहाँ कई चुनौतियाँ पेश की वहीं बहुत से अवसर भी आये| समाज में तकनीक का दखल और उसकी स्वीकार्यता में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई |”वर्क फ्रॉम होम” जैसा एक नया शब्द हमारी बोलचाल का हिस्सा बना और जिन्दगी की गाडी दौडाने में सहायक भी बना | कोरोनावायरस के प्रकोप के बाद, हर दस में से चार कंपनियों ने विशेष रूप से घर से कार्य करने की रणनीति को बना कर अपने काम को जारी रखने की रणनीति अपनाई और यह रणनीति भारत के कॉरपोरेट सेक्टर में महिलाओं के लिए एक क्रांतिकारी बदलाव ला रही है | रिक्रूटमेंट, करियर प्लेटफॉर्म जॉब्स फॉर हर शोध के अनुसार देश में मध्य प्रबंधन से लेकर वरिष्ठ  स्तर तक महिलाओं को काम पर रखने की संख्या में वृद्धि हो रही है| 2019 में महिलाओं को काम पर रखने वाली कम्पनियों की संख्या अठारह प्रतिशत थी| जबकि 2021 में यह आंकडा तैंतालीस प्रतिशत हो गया | यह सर्वे मई 2021 में तीन सौ कम्पनियों पर किया गया |आंकड़े बताते हैं कि कोविड काल में महिलाओं को काम पर रखने में भारी उछाल आया | एक ओर जहाँ महिलाओं को घर से काम करने की स्वीकार्यता मिल रही है वहीं ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को काम पर रखने के लिए कोर्पोरेट सेक्टर मातृत्व अवकाश जैसी नीतियों को भी लेकर सामने आ रहे हैं ,जिससे महिलाओं को नौकरी करने के लिए प्रेरित किया जा सके |रिपोर्ट के अनुसार एक ओर घर से काम करने वाली नौकरियों  की संख्या में वृद्धि हो रही है वहीं ज्यादा महिलायें भी अब नौकरियों के लिए आवेदन कर रही हैं |
वर्क फ्रॉम होम की अवधारणा उन शादी शुदा महिलाओं के लिए भी एक नया अवसर लाया है जो पढी लिखी होने के बाद भी शादी के बाद अपनी गृहस्थी को संवारने के लिए करियर को तिलांजलि दे देती थी| अब घर से ही काम करने के मौके मिलने पर वे आसानी  दुबारा कॉर्पोरेट  सेक्टर में काम पर लौट सकती हैं | भारतीय परिवार में काम काम बाँट लेने की परम्परा महिलाओं में हमेशा से रही है |शहरों में जब महिलायें वर्क फ्रॉम होम की अपनी शिफ्ट निपटा रही होती है तो घर के अन्य सदस्य बाकी के घरेलु काम निबटा लेते हैं |सामाजिक दबाव कहें या प्रगतिशीलता की हवा अब घर के पुरुष भी घर के कामों को करने में हीनता का अनुभव नहीं करते और पुरुषों के इस झुकाव के पीछे पिछले साल के लम्बे लॉक डाउन की एक बड़ी भूमिका रही है |रिमोट /हाइब्रिड काम का मोडल अब कॉर्पोरेट  सेक्टर की पसंद बनता जा रहा है |यह जहाँ कर्मचारियों को ज्यादा विकल्प देता है वहीं काम करने की फ्लेक्सिबिलटी भी | चूकि कामकाजी  महिलाओं के ऊपर  काम और घर की दोहरी जिम्मेदारी होती है| ऐसे में वर्क फर्म होम उन्हें घर से बाहर जाकर काम करने के मुकाबले दोनों में संतुलन बनाने में ज्यादा मदद करता है |सांस्कृतिक तौर पर महिलाओं को काम करने से रोके जाने में एक बड़ी समस्या घर से बाहर जाकर काम करना ठीक नहीं है वाली मानसिकता भी  रही है|
पर तस्वीर उतनी भी सुहानी नहीं है जितना आंकड़े बता रहे हैं तथ्य  यह भी है कि वर्ल्ड इकोनोमिक फॉर्म की वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट,2021 दक्षिण एशियाई देशों में भारत का प्रदर्शन सबसे खराब रहा है, भारत रैंकिंग में 156 देशों में 140वें स्थान पर है जिसमें भारत से आगे बांग्लादेश 65वें, नेपाल 106वें, श्रीलंका 116वें  पाकिस्तान 153वें, अफगानिस्तान 156वें,और  भूटान 130वें स्थान पर है।पिछले साल भारत की रैंकिंग 112वीं थी| जॉब्स फॉर हर की रिपोर्ट  अनुसार, कुल मिलाकर उद्योगों के कार्यबल में महिलाओं की औसत भागीदारी 2020 में चौंतीस प्रतिशत  पर स्थिर रही।कोरोना काल में दुबारा महिलाओं को काम पर रखने के मामलों  में  भी कमी आई है | २०२० में सभी कंपनियों में  कुल पचास प्रतिशत  महिलाओं को सक्रिय रूप से  दुबारा काम मिला , यह आंकड़ा  साल 2019 से बीस प्रतिशत  कम रहा ।इस गिरावट के लिए मुख्य तौर पर छोटी फर्में से जिम्मेदार थीं। फिलहाल उपलब्ध रोजगार में वर्क फ्राम होम की  प्रवृत्ति अधिक से अधिक महिलाओं को प्रबंधन और तकनीक के क्षेत्र वाली नौकरियों में प्रेरित करने के अलावा  कम्पनियों में सभी स्तरों पर लैंगिक समानता सुनिश्चित करेगी | पेशेवर सीढ़ी पर चढ़ने में सक्षम महिलाओं को देख अन्य महिलायें को भी प्रोत्साहन मिलेगा |फिलहाल लैंगिक रूप से अभी महिलाओं को पुरुषों के बराबर मौका मिलने में देश को अभी लम्बा रास्ता तय करना है |

अमर उजाला में 17/07/2021 को प्रकाशित 

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