यात्राएं मुझे हमेशा सुकून देती हैं एक ऐसी ही यात्रा पिछले दिनों हुई मैं बड़ा पेशोपेश में हूँ पहले उस व्यक्ति के बारे में बताऊँ जिसके लिए यात्रा की गयी या जगह के बारे में जहाँ यात्रा की गयी |मैं कोशिश करता हूँ कि आपको बारी बारी से दोनों का वर्णन मिलता रहे तो जम्मू कश्मीर के बारे में सबने सुना होगा खासकर अपने नैसर्गिक प्राकृतिक सौंदर्य के कारण और लंबे समय तक आतंकवाद से पीड़ित राज्य के रूप में |जब जम्मू कश्मीर घूमने की बात होती है तो दो चार जगह ही ध्यान में आती है एक वैष्णोदेवी और दूसरा श्रीनगर के आस पास का इलाका, एक आम मध्यमवर्गीय हिन्दुस्तानी होने के नाते मुझे भी कश्मीर के पर्यटक स्थलों के बारे में उतनी जानकारी नहीं थी| मैं दो बार जम्मू गया जा चुका था लेकिन वो बहुत साल पहले की बात है पर उसके आगे ना कभी सोचा और ना कभी मौका लगा पर पिछले पांच सालों से मैं लगातार वहां जाने के बारे में सोच रहा था पर मौका हाथ नहीं लग रहा था वहाँ जाने का कारण बहुत सीधा था अपने एक पुराने मित्र से मिलना जिससे एक दर्द का रिश्ता था सौगत नाम है उसका मैंने कभी उसके ऊपर एक पैरोडी भी बनाई थी हम होंगे कामयाब की तर्ज पर सौगत है बिस्वास पूरा है बिस्वास हा हा तो सौगत बिस्वास उनका पूरा नाम है| तो जम्मू कश्मीर जाने का प्रयोजन यूँ हुआ कि सौगत भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी (आई .ए. एस )हैं और जब से वे जम्मू कश्मीर पहुंचे तब से ना जाने कितनी बार आने को कह चुके थे वैसे भी सौगत से आख़िरी मुलाक़ात को लगभग पांच साल बीत चुके थे |
सौगत और मैं साल 2006 फरवरी |
इस यात्रा पर निकालने से पहले मैं आप सबको
अपनी और सौगत की कहानी बताना चाहता हूँ क्यूँ सौगत खास रहा मेरे लिए कुछ चीजें तो
सौगत खुद नहीं जानता जो पहली बार इस ब्लॉग को पढ़ कर जानेगा तो पहले सौगत पुराण
,सौगत बिस्वास से मेरी मुलाक़ात 23 दिसंबर 1999 को पहली बार जौनपुर में हुई| मैं
अपनी पहली नौकरी में नया नया था जाड़े के दिन एक लंबा लड़का हमारे विभाग के कमरे मे
दाखिल हुआ और बोला मैं यहाँ अपनी ज्वाईनिंग
देने आया हूँ चूँकि हमारा और सौगत का चयन
एक साथ पूर्वांचल विश्वविद्यालय में हुआ था और मैं पहले कार्यभार ग्रहण कर चुका था
तो मुझे सारी प्रक्रिया की जानकारी थी| मैंने उसकी मदद की और दिन भर साथ रहे अगले
दिन से विश्वविद्यालय में जाड़े की छुट्टी हो जाने वाली थी और सौगत के पास रहने का
कोई ठिकाना नहीं था मैं विश्वविद्यालय के अतिथि गृह में रह रहा था तो सौगत ने मुझे
एक अनोखा ऑफर दिया कि उस रात मैं उसके साथ उस होटल में रुक जाऊं अगले दिन
मुझे लखनऊ और उसे दिल्ली लौटना था| मैं थोडा हिचक रहा था अभी उसको जाने हुए मुझे ६
घंटे भी नहीं हुये और वो इतना बेतकल्लुफ हो रहा था वो मेरी हिचक को समझ गया पर जो
जवाब उसने दिया वो अप्रत्याशित था “ओए मैं दूसरे टाईप का आदमी नहीं हूँ तू
रुक सकता है मेरे साथ” हा हा खैर उस रात ना तो मुझे नींद पडी और
ना ही सौगत सोया|दो कारण एक तो वो जौनपुर
का काफी घटिया होटल था दूसरा हम दोनों उस
शहर के लिए नए थे तो क्या सारी रात हम बातें करते रहें जामिया एम् सी आर सी का पढ़ा
सौगत मुझे एक नयी दुनिया का लग रहा था विषय पर उसका अद्भुत ज्ञान था उस पर दिल्ली
का एक्सपोजर अद्भुत कॉकटेल उस दिन से जो साथ शुरू हुआ वो आज तक जारी है| हम् नौकरियां भले ही बदल रहे थे पर एक दूसरे से
संपर्क हमेशा बना रहा उसी रात उसने अपने एक सपने को मुझसे हल्का सा बांटा था कि वो
आई ए एस बनना चाहता है और इसलिए वो दिल्ली को छोड़कर जौनपुर जैसी छोटी जगह नौकरी
करने को तैयार हो गया|मुझे ये कहने में कोई संकोच नहीं कि मानसिक रूप से मैं अभी
भी सौगत के सामने कॉलेज का बच्चा ही था जिसे बाहर की दुनिया और उसकी मक्कारी के
बारे में ज्यादा पता नहीं था, वहीं सौगत संतुलित था उसके दिल में क्या चल रहा है
कोई नहीं जान सकता और मैं क्या करूँगा सारा विश्वविद्यालय जानता था ऐसे शुरू हुआ
नयी नौकरी का सफर बहुत से लोग वहाँ मिले सब ही नए थे पर जो मानसिक मेल सौगत और
पंकज के साथ हुआ वो किसी और के साथ ना हो पाया (पंकज की कहानी फिर कभी ) और ये बात
सारा विश्वविद्यालय जान गया कि मुकुल इन दोनों से आगे नहीं देखता |ये अलग बात है
कि सौगत ने संतुलन बनाये रखा और अपने आप
को बाहर ऐसी किसी छवि में नहीं बाँधा शाम को अक्सर होने वाली परिचर्चा में सौगत और
पंकज मुझे अक्सर ये समझाया करते थे कि सबसे मिला करो पर जब तक मैं जौनपुर में रहा
ऐसा कर नहीं पाया जिसका साथ नहीं पसंद है उनके साथ मैं औपचारिक संबंध भी ठीक से
नहीं निभा पाया पर जिंदगी जैसे जैसे आगे बढ़ी प्रोफेशनलिज्म के नाम पर ये मक्कारी
मैं भी सीख गया और चेहरे पर मुखौटा डालना आ गया |
छुट्टियों के बाद सौगत ने मेरे बगल के मकान में कमरा ले लिया और हम साथ साथ विश्वविद्यालय आने जाने लग गए सौगत ज्यादा से ज्यादा समय अपनी पढ़ाई के निकलना चाहता था इसलिए दो साल बाद विश्वविद्यालय रहने चला गया क्योंकि आने जाने में बहुत समय लगता था पर इससे हमारी जुगलबंदी में कोई कमी नहीं आई |पूर्वांचल का पत्रकारिता विभाग गुलजार रहने लगा हम अक्सर कुछ ना कुछ खुरापात किया करते थे वो कैमरा सम्हालता और मै कलम| सौगत के आई ए एस बन जाने से भले ही देश को योग्य अधिकारी मिल गया पर पत्रकारिता शिक्षा के लिए एक बड़ा नुक्सान हुआ अगर सौगत आज यहाँ होता तो व्यवहारिक पत्रकारिता शिक्षण का स्तर और बेहतर होता खैर क्या लिखूं क्या ना लिखूं समझ नहीं पा रहा हूँ कितनी शामें हमने साथ गुजारीं क्या बहसे हुआ करती थी |मैं एक श्रोता की हैसियत से काफी कुछ सीख रहा था| कितनी वाराणसी की यात्राएं हमने साथ की और उन यात्राओं में होने वाला “फन” आज भी रोमांचित करता (जौनपुर में मनबहलाव की कोई जगह नहीं थी तो अक्सर हम वाराणसी का रुख करते थे )|एक शिक्षक के रूप में मैंने सौगत से बहुत कुछ सीखा तो दिन बीतते रहे जब तक मेरे पास स्कूटर नहीं था कई दिन हम बस और जीप में लटक कर विश्वविद्यालय पहुँचते थे फिर गाड़ी आ गयी पर कुछ चीजें मुझे सौगत की नहीं समझ नहीं आती थी वो हिसाब किताब बहुत किया करता था जिसमे मैं पहले भी कच्चा था और आज भी हूँ पर अंत में होता वही था जो वह चाहता वो मेरे स्कूटर से विश्वविद्यालय जाता था तो आने जाने के पैसे देता था फिर एक नया फोर्मूला निकाला कि एक दिन मेरी स्कूटर जायेगी और एक दिन उसकी मोटर सायकिल, दिन भर के खाने का हिसाब किताब लगा कर मुझे खास सौगतियन स्टाईल में बताया “यार देख मैं दिन भर के तीस रुपैये से ज्यादा खाने पर नहीं खर्च कर सकता बस”और ये अभिनव प्रयोग विभाग में भी हो रहे थे एक दिन निर्णय लिया गया कि नुक्कड़ नाटक होगा अब छात्रों के लिए ये समस्या का विषय हो गया लोगों को ज्यादा इसके बारे में पता नहीं था पर चार दिन में प्ले बनकर तैयार हो गया और लोगों की पर्याप्त सराहना भी मिली | बहुत सारे खट्टे मीठे अनुभव होते रहे सौगत मोमबत्ती जलाये डटे रहते और अपने बिंदास स्वभाव के कारण चर्चा का केंद्र रहते हम एक शादी में बनारस गए और भाई साहब ने जींस कुर्ते के ऊपर कोट पहन लिया और पहुँच गए कोई अगर कुछ कहता भी तो जवाब तैयार क्या हुआ |बहुत सारे उतार चढावों के बीच सौगत ने सितम्बर 2003 में जौनपुर छोड़ दिया उसका चयन निफ्ट दिल्ली में हो गया था जौनपुर मुझे कभी रास आया नहीं था पर विभाग में उसके साथ से ऊर्जा मिलती थी पर अब वो जा रहा था खैर उसके परिवार को विदा करने के बाद सौगत को रोक लिया गया कि एक रात हम फिर से पार्टी करेंगे पुराने दिन ताजा करेंगे हालंकि तब तक हमारे दल में इसमें अविनाश और ब्रजेश दो और लोग जुड चुके थे | साल बीतते गए इस बीच वो निफ्ट से निकल कर जामिया एम् सी आर सी में लेक्चरर बन गया और मैं जौनपुर से लखनऊ आ गया फोन पर बात भी अक्सर नहीं होती हाँ पर जब मैं दिल्ली जाता तो जम के धमाल होता था ये बात अलग है कि धमाल मचाने वाले दो ही लोग होते थे और ऐसा मौका उसके जौनपुर छोड़ने के बाद एक ही बार आया जब हम दिल्ली में मिले|
छुट्टियों के बाद सौगत ने मेरे बगल के मकान में कमरा ले लिया और हम साथ साथ विश्वविद्यालय आने जाने लग गए सौगत ज्यादा से ज्यादा समय अपनी पढ़ाई के निकलना चाहता था इसलिए दो साल बाद विश्वविद्यालय रहने चला गया क्योंकि आने जाने में बहुत समय लगता था पर इससे हमारी जुगलबंदी में कोई कमी नहीं आई |पूर्वांचल का पत्रकारिता विभाग गुलजार रहने लगा हम अक्सर कुछ ना कुछ खुरापात किया करते थे वो कैमरा सम्हालता और मै कलम| सौगत के आई ए एस बन जाने से भले ही देश को योग्य अधिकारी मिल गया पर पत्रकारिता शिक्षा के लिए एक बड़ा नुक्सान हुआ अगर सौगत आज यहाँ होता तो व्यवहारिक पत्रकारिता शिक्षण का स्तर और बेहतर होता खैर क्या लिखूं क्या ना लिखूं समझ नहीं पा रहा हूँ कितनी शामें हमने साथ गुजारीं क्या बहसे हुआ करती थी |मैं एक श्रोता की हैसियत से काफी कुछ सीख रहा था| कितनी वाराणसी की यात्राएं हमने साथ की और उन यात्राओं में होने वाला “फन” आज भी रोमांचित करता (जौनपुर में मनबहलाव की कोई जगह नहीं थी तो अक्सर हम वाराणसी का रुख करते थे )|एक शिक्षक के रूप में मैंने सौगत से बहुत कुछ सीखा तो दिन बीतते रहे जब तक मेरे पास स्कूटर नहीं था कई दिन हम बस और जीप में लटक कर विश्वविद्यालय पहुँचते थे फिर गाड़ी आ गयी पर कुछ चीजें मुझे सौगत की नहीं समझ नहीं आती थी वो हिसाब किताब बहुत किया करता था जिसमे मैं पहले भी कच्चा था और आज भी हूँ पर अंत में होता वही था जो वह चाहता वो मेरे स्कूटर से विश्वविद्यालय जाता था तो आने जाने के पैसे देता था फिर एक नया फोर्मूला निकाला कि एक दिन मेरी स्कूटर जायेगी और एक दिन उसकी मोटर सायकिल, दिन भर के खाने का हिसाब किताब लगा कर मुझे खास सौगतियन स्टाईल में बताया “यार देख मैं दिन भर के तीस रुपैये से ज्यादा खाने पर नहीं खर्च कर सकता बस”और ये अभिनव प्रयोग विभाग में भी हो रहे थे एक दिन निर्णय लिया गया कि नुक्कड़ नाटक होगा अब छात्रों के लिए ये समस्या का विषय हो गया लोगों को ज्यादा इसके बारे में पता नहीं था पर चार दिन में प्ले बनकर तैयार हो गया और लोगों की पर्याप्त सराहना भी मिली | बहुत सारे खट्टे मीठे अनुभव होते रहे सौगत मोमबत्ती जलाये डटे रहते और अपने बिंदास स्वभाव के कारण चर्चा का केंद्र रहते हम एक शादी में बनारस गए और भाई साहब ने जींस कुर्ते के ऊपर कोट पहन लिया और पहुँच गए कोई अगर कुछ कहता भी तो जवाब तैयार क्या हुआ |बहुत सारे उतार चढावों के बीच सौगत ने सितम्बर 2003 में जौनपुर छोड़ दिया उसका चयन निफ्ट दिल्ली में हो गया था जौनपुर मुझे कभी रास आया नहीं था पर विभाग में उसके साथ से ऊर्जा मिलती थी पर अब वो जा रहा था खैर उसके परिवार को विदा करने के बाद सौगत को रोक लिया गया कि एक रात हम फिर से पार्टी करेंगे पुराने दिन ताजा करेंगे हालंकि तब तक हमारे दल में इसमें अविनाश और ब्रजेश दो और लोग जुड चुके थे | साल बीतते गए इस बीच वो निफ्ट से निकल कर जामिया एम् सी आर सी में लेक्चरर बन गया और मैं जौनपुर से लखनऊ आ गया फोन पर बात भी अक्सर नहीं होती हाँ पर जब मैं दिल्ली जाता तो जम के धमाल होता था ये बात अलग है कि धमाल मचाने वाले दो ही लोग होते थे और ऐसा मौका उसके जौनपुर छोड़ने के बाद एक ही बार आया जब हम दिल्ली में मिले|
लाल बहादुर शास्त्री प्रशासनिक अकादमी मंसूरी में सौगत के साथ |
2006 में सौगत लखनऊ में प्रैक्टिकल परीक्षाएं लेने आये थे जब वो अपने रिजल्ट की प्रतीक्षा कर रहा था गेस्ट हाउस के उस कमरे में हम कितनी देर तक
अपनी अपनी जिंदगियों के बारे में बात करते रहे मैं उसके आई ए एस के साक्षात्कार के
किस्से सुनता रहा और फिर वो खबर आयी जिसका हम सबको इंतज़ार था एक सपना जिसको सौगत
जी रहा था सच हुई उसका चयन भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए हो गया और वो मंसूरी
प्रशिक्षण के लिए चला गया बीच बीच में कभी कभार बात हो जाती हमें मिले हुए एक साल
हो चुके थे कि नियति ने फिर हमें मिला दिया हुआ कि जिस दिन सौगत के प्रशिक्षण का
अंतिम दिन था मैं देहरादून में था सौगत से बात हुई और उसने हमें मंसूरी के लाल
बहादुर शास्त्री प्रशासनिक अकादमी में
बुला लिया और रात ज्यादा हो जाने कारण मुझे भी उस संस्थान में एक रात रुकने का
सौभाग्य प्राप्त हुआ अद्भुत अनुभव था |
भारतीय रेल के जून 2021 अंक में प्रकाशित
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