इंटरनेट पर हमेशा वीडियो और चित्रों का राज रहा है |दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले जहाँ ध्वनिया यानि पॉडकास्ट तेजी से लोकप्रिय हो रहा था |भारत में वीडियो के प्रति दीवानगी बरकरार रही| कोरोना महामारी और वर्क फ्रॉम होम जैसी न्यू नार्मल चीजों ने काफी कुछ बदला है ,और इसी दौर में लोगों की इंटरनेट पर पसंद वीडियो के साथ साथ ध्वनियों ने भी जगह बनाई और पॉडकास्ट की लोकप्रियता में बढ़ोत्तरी होनी शुरू हुई | ऑडियो ओ टी टी रिपोर्ट कंटार और वी टी आई ओ एन के अनुसार संगीत और पॉडकास्ट स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म जैसे स्पोटीफाई,गाना जियो सावन में मार्च 2020 में समय बिताने की संख्या में बयालीस प्रतिशत का इजाफा हुआ |ग्लोबल इंटरटेनमेंट एंड मीडिया आउटलुक रिपोर्ट(Global Entertainment & Media Outlook 2019–2023) के अनुसार साल 2018 के अंत में भारत में मासिक रूप से पॉडकास्ट सुनने वाले लोगों की संख्या चार करोड़ रही| यह संख्या साल 2017 के आंकड़ों से 57.6 प्रतिशत ज्यादा रही | मासिक श्रोताओं की संख्या से आशय ऐसे श्रोताओं से है जो महीने में कम से कम एक पॉडकास्ट जरुर सुनते हैं| रिपोर्ट के पूर्वानुमान के मुताबिक़ यह आंकड़े साल 2023 तक 34.5प्रतिशत की दर के साथ बढ़कर 17.61करोड़ हो जाने की उम्मीद है |इन आंकड़ों के साथ भारत पॉडकास्ट की दुनिया का चीन, अमेरिका के बाद दुनिया का तीसरे नम्बर का सबसे बड़ा बाजार बन गया |इसी रिपोर्ट के अनुसार देश में संगीत ,रेडियो और पॉडकास्ट का बाजार साल 2014 में 3890 करोड़ रुपये का था जो साल 2018 में बढ़कर 5573 करोड़ रूपये का हो गया |
भारत के विविधता वाले बाजार में पॉडकास्ट एक शहरी प्रवृत्ति बन कर रह गया था और इसके बाजार में जितनी तेजी से वृद्धि होनी चाहिए उसका बड़ा कारण इन आडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफोर्म में इंटरैक्टिवटी का ख़ासा अभाव था |इंटरनेट की तेज दुनिया में अब कोई इन्तजार नहीं करना चाहता और इसीलिये पॉडकास्ट को वो लोकप्रियता नहीं मिल रही थी जितनी सोशल मीडिया साईट्स को मिली |जबकि ध्वनियों का मामला इंटरनेट के एक आम उपभोक्ता के लिए वीडियो के मुकाबले ज्यादा सरल है और इसमें डाटा भी कम खर्च होता है | भारत जैसे देशों में, जहां इंटरनेट की स्पीड काफी कम होती है, वीडियो के मुकाबले पॉडकास्टिंग ज्यादा कामयाब हो सकती है। भारतजैसे भाषाई विविधता वाले देश में जहाँ निरक्षरता अभी भी मौजूद है | पॉडकास्ट लोगों तक उनकी ही भाषा में संचार करने का एक सस्ता और आसान विकल्प हो सकता है |प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी की मन की बात कार्यक्रम का पॉडकास्ट काफी लोकप्रिय है |
पॉडकास्ट की सबसे बड़ी खूबी है इसकी ग्लोबल रीच यानि अगर आप कुछ ऐसा सुना रहे हैं जो लोग सुनने चाहते हैं तो किसी चैनल के लोकप्रिय होते देर नहीं लगेगी | भारत हमेशा श्रोत परम्परा वाला देश रहा है जहाँ हमारे सामाजिक जीवन में कहानियां बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है कोरोना महामारी से उपजी पीड़ा और चिंताओं ने लोगों को कहानियाँ कहने और सुनने दोनों के लिए प्रेरित किया |उधर लोग सोशल मीडिया पर लोग अपनी राय व्यक्त करने के लिए लिखने में अपना समय नष्ट नहीं करना चाहते है तो इसका विकल्प ध्वनियाँ ही ही हो सकती हैं |फेसबुक (लाईव ऑडियो रूम )और ट्विटर (स्पेक्स) आवाज की दुनिया में पहले ही कदम रख चुके हैं | इसी कड़ी में 2021 मई में देश में लॉन्च होते ही क्लबहाउस लोगों की चर्चा का केंद्र बन गया |क्लब हाउस ध्वनि आधारित एक सोशल नेटवर्किंग साइट है| जो लोगों को ‘किसी भी चीज’ और ‘हर चीज के बारे में’ बात करने की सुविधा देता है। लांच होने के बाद ही ये तेजी से लोकप्रिय हो रहा है|आधिकारिक तौर पर भारत में इसके कितने उपभोक्ता है इसका आंकड़ा जारी नहीं किया गया है |
इसकी लोकप्रियता से उत्साहित होकर आडियो स्ट्रीमिंग में उपभोक्ताओं की पहले ही पसंद बन चुकी कम्पनी स्पोटीफाई ने क्लब हाउस को टक्कर देने के लिए इसी माह आवाज पर आधारित एक सोशल नेटवर्किंग एप ग्रीन रूम लांच कर दिया है माना जा रहा है कि लाईव आडियो मार्केट में एक कदम आगे निकले हुए ग्रीन रूम कलाकारों पर ज्यादा ध्यान केन्द्रित करेगा और इसके लिए कम्पनी जल्दी ही एक क्रियेटर फंड बनाने जा रही है जिससे ऑडियो क्रियेटर को यू ट्यूब की तर्ज पर अपने लोकप्रिय काम के पैसे भी मिलेंगे |
रेड्शीर कंसलटिंग की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में पांच प्रमुख म्यूजिक स्ट्रीमिंग एप के कुल उपभोक्ता आधार का मात्र एक प्रतिशत ही सशुल्क उपभोक्ता हैं जो कुल राजस्व का चालीस प्रतिशत योगदान दे रहे हैं |रिपोर्ट के मुताबिक़ इन कम्पनियों को अपने उपभोक्ता आधार में कम से कम छ प्रतिशत को सशुल्क उपभोक्ता बनाना पडेगा तभी ये मुनाफा कमा पाएंगी|पॉडकास्ट में विज्ञापनों से आय दूसरा साधन है|साल 2014 में में पॉडकास्ट विज्ञापनों से 0.5 मिलीयन डॉलर का विज्ञापन राजस्व आया था जो साल 2018 में बढ़कर 7.2 मिलीयन डॉलर हो गया|प्राईस वाटर कूपर्स के एक आंकलन के मुताबिक़ यह राजस्व 58.9प्रतिशत की दर से बढ़कर साल 2023 में 58.9 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़कर 72.9 मिलीयन डॉलर हो जाएगा |देश में ध्वनि आधारित इस तरह के सेवाओं की कोई परम्परा नहीं ऐसे में इस तरह के एप पर क्या बोलें और क्या न बोलें जैसी समस्या से लोगों को दो चार होना पड़ेगा|इंटरनेट पर हुई वीडियो क्रांति के अनुभव बताते हैं कि वीडियो कंटेंट में बहुत अश्लीलता, फूहड़ मजाक और फेक न्यूज की बाढ़ भी आ गयी है |
चूँकि इंटरनेट पर किसी तरह का कोइ सेंसर नहीं है ऐसे में बच्चों को अवांछित ऑडियो कंटेंट से कैसे बचाया जाएगा |उपभोक्ताओं द्वारा बोले गए शब्द कंटेंट का क्या होगा उसकी निजता की रक्षा कैसे की जायेगी | इसके अलावा, नफरत फैलाने वाले भाषण जैसे दुरुपयोग की निगरानी के लिए सुरक्षा प्रोटोकॉल की कमी के कारण इस तरह के एप कैसे अपने उपभोक्ताओं को इंटरनेट पर ध्वनि की दुनिया में सुरक्षित अनुभव दे पायेंगे इसका फैसला अभी होना है |
दैनिक जागरण राष्ट्रीय संस्करण में 06/7/2021 को प्रकाशित
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