भारत के
सहित दुनिया भर
में पेगासस स्पाईवेयर एक बार फिर चर्चा में हैं. इसराइली सर्विलांस कंपनी एनएसओ ग्रुप के
सॉफ्टवेयर पेगासस का इस्तेमाल कर कई पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, नेताओं, मंत्रियों और सरकारी अधिकारियों के
फ़ोन की जासूसी करने का दावा किया जा रहा है|पचास हज़ार नंबरों के एक बड़े डेटा बेस
के लीक की पड़ताल द गार्डियन, वॉशिंगटन पोस्ट,द वायर, फ़्रंटलाइन, रेडियो फ़्रांस जैसे सोलह मीडिया संस्थान के पत्रकारों ने की है|यूँ तो दुनिया भर में सरकारों द्वारा
देश की राष्ट्रीय सुरक्षा के उद्देश्य से या किसी भी सार्वजनिक आपातकाल की घटना
होने पर या सार्वजनिक सुरक्षा के लिए इस तरह की गतिविधियाँ की जाती रही हैं
पर यह मामला कई मायनों में अलग है और इसके कई आयाम हैं पहला यह कि इंटरनेट के युग
में हमारी
निजता कितनी सुरक्षित है और दूसरा देश में साइबर अपराधियों से बचने के लिए कैसा
तंत्र विकसित किया है |
सरकार ने पेगासस जासूसी सम्बन्धी
मीडिया रिपोर्ट को खारिज किया है पर संसद के माध्यम से सरकार ने ये माना कि "लॉफ़ुल
इंटरसेप्शन" या क़ानूनी तरीके से फ़ोन या इंटरनेट की निगरानी या टैपिंग की
देश में एक स्थापित प्रक्रिया है जो बरसों से चल रही है| देश में एक स्थापित प्रक्रिया मानक है जिसके माध्यम से केंद्र और राज्यों की एजेंसियां इलेक्ट्रॉनिक संचार को
इंटरसेप्ट करती हैं| भारतीय टेलीग्राफ़ अधिनियम,
1885 की धारा 5 (2) और सूचना
प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69 के प्रावधानों के तहत प्रासंगिक नियमों के अनुसार इलेक्ट्रॉनिक संचार के
वैध अवरोधन के लिए अनुरोध किए जाते हैं, जिनकी
अनुमति सक्षम अधिकारी देते हैं| आईटी (प्रक्रिया और
सूचना के इंटरसेप्शन, निगरानी और डिक्रिप्शन के लिए
सुरक्षा) नियम, 2009 के अनुसार ये शक्तियां राज्य
सरकारों के सक्षम पदाधिकारी को भी उपलब्ध हैं| वर्तमान
परिवेश में ऐसे अवरोधन को लेकर क़ानून काफ़ी स्पष्ट है जो हर एक संप्रभु
राष्ट्र अपनी अखंडता और सुरक्षा के लिए करता है|
लेकिन पेगासस का मामला थोड़ा पेचीदा है |पेगासस एनएसओ समूह जो एक साइबर सिक्योरिटी कंपनी का
एक स्पाईवेयर है | एनएसओ समूह दुनिया भर में सरकारों और
कानून प्रवर्तन एजेंसियों को अपराध और आतंकवाद से लड़ने में मदद करने का दावा करती
है|इस कम्पनी का यह भी दावा है कि वह विभिन्न देशों के
सरकारों की मदद करती है और पेगासस का इस्तेमाल अन्य देशों में सिर्फ संप्रभु
सरकारों या उनकी सस्थाओं द्वारा किया जाता है|भले ही सरकार
ने इस पूरे मामले से अपने आपको अलग करते हुए मीडिया रिपोर्ट की सत्यता पर ही सवाल
उठा दिया है |भारत में यह मामला इसलिए ज्यादा चर्चित हो रहा
है क्योंकि यह मामला संसद के मानसून सत्र के शुरू होने के दिन ही सुर्ख़ियों में
आया और इस मुद्दे पर सरकार और विपक्ष में तीखी नोंक झोंक देखने को मिली | इस तेजी से डिजीटल होती दुनिया में इस
तरह की खबरों से इस आशंका को बल मिलता है कि इंटरनेट की दुनिया में कुछ भी गुप्त
नहीं है पर भारत में इंटरनेट पर निजता अभी भी कोई मुद्दा नहीं है |सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बी
एन श्री कृष्णा की अध्यक्षता में गठित समिति ने पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन बिल का
ड्राफ्ट बिल सरकार को सौंप दिया है जो फिलहाल अभी कानून बनने के इन्तजार में संसद
में विचाराधीन है |इस बिल में “निजी” शब्द को परिभाषित किया गया है.इसके अतिरिक्त इसमें सम्वेदनशील निजी डाटा को
बारह भागों में
विभाजित किया गया है.जिसमें पासवर्ड,वित्तीय डाटा,स्वास्थ्य डाटा,अधिकारिक नियोक्ता,सेक्स जीवन,जाति/जनजाति,धार्मिक ,राजनैतिक संबद्धता जैसे क्षेत्र जोड़े गए हैं.इस बिल को अगर संसद बगैर किसी
संशोधन के पास कर देती है तो देश के प्रत्येक नागरिक को अपने डाटा पर चार तरह के
अधिकार मिल जायेंगे .जिनमें पुष्टिकरण और पहुँच का अधिकार, डाटा को सही करने का अधिकार, डाटा पोर्टेबिलिटी और डाटा को बिसरा
देने जैसे अधिकार शामिल हैं .इस समिति की रिपोर्ट के अनुसार यदि इस बिल का कहीं उल्लंघन
होता है तो सभी कम्पनियों और सरकार को स्पष्ट रूप से उन व्यक्तियों को सूचित करना
होगा जिनके डाटा की चोरी या लीक हुई है कि चोरी या लीक हुए डाटा की प्रकृति क्या
है ,उससे कितने लोग प्रभावित होंगे ,उस चोरी या लीक के क्या परिणाम हो सकते हैं और प्रभावित लोग जिनके डाटा
चोरी या लीक हुए हैं वे क्या करें .ऐसी स्थिति में जिस व्यक्ति का डाटा चोरी या
लीक हुआ है वह उस कम्पनी से क्षतिपूर्ति की मांग भी कर सकता है |तथ्य यह भी है कि इंटरनेट की बड़ी कम्पनियां अगर चाहे तो फोन में मौजूद
अपने एप के जरिये वो किसी भी व्यक्ति की तमाम जानकरियों के अलावा उसके जीवन में
क्या चल रहा है यह सब जानकारी निकाल सकती हैं|फोन पर हम किसी
से कुछ चर्चा करते हैं और फिर उसी चर्चा से जुडी हुई वस्तुओं के विज्ञापन आपको
दिखने लगने का अनुभव साझा करते लोग हमारे आस पास ही मिल जायेंगे यानि ये काम तो
पहले से ही हो रहा है|बस किसी व्यक्ति से जुडी जानकरियों का
व्यवसायिक इस्तेमाल होता है विज्ञापन दिखाने में |सरकार के
पास तो पहले से ही तमाम संसाधन और तंत्र मौजूद हैं पर इंटरनेट की बड़ी कम्पनियां इस
तरह के खेल में शामिल हैं और वे इसका इस्तेमाल अपने व्यवसायिक हितों की पूर्ति के
लिए करती हैं |कैंब्रिज एनालिटिका मामला सोशल नेटवर्किंग साईट फेसबुक के
लिए ऐसा ही रहा. इस कंपनी पर आरोप है कि इसने अवैध तरीके से फेसबुक के करोड़ों
यूजरों का डेटा हासिल किया और इस जानकारी का इस्तेमाल अलग-अलग देशों के चुनावों को
प्रभावित करने में किया. इनमें 2016 में हुआ
अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव भी शामिल है. इस विवाद का बड़ा पक्ष इंटरनेट पर मौजूद ऐसी कम्पनियों के लगातार बड़े होते
जाने का है और इस विषय पर यदि समय रहते ध्यान न दिया गया तो अभिव्यक्ति की आजादी ,निजता जैसे अधिकार सिर्फ कानून की किताबों में ही पढने को मिलेंगे | इंटरनेट के फैलाव के साथ आंकड़े बहुत महत्वपूर्ण हो उठें .लोगों के बारे में सम्पूर्ण जानकारियां को एकत्र करके बेचा जाना एक
व्यवसाय बन चुका है और इनकी कोई भी कीमत चुकाने
के लिए लोग तैयार बैठे हैं | जैसे ही आप इंटरनेट पर आते
हैं आपकी कोई भी जानकारी निजी नहीं रह जाती और इसलिए इंटरनेट पर सेवाएँ देने वाली
कम्पनिया अपने ग्राहकों को यह भरोसा जरुर दिलाती हैं कि आपका डाटा गोपनीय रहेगा पर
फिर भी आंकड़े लीक होने की सूचनाएं लगातार सुर्खियाँ बनी रहती हैं |इंटरनेट के फैलाव के साथ आंकड़े बहुत
महत्वपूर्ण हो उठें|पेगासस के मामले के बहाने ही सही लोगों
को इंटरनेट पर अपनी निजता कैसे बचाएं इस पर भी सोचने की जरुरत है|
राष्ट्रीय सहारा हस्तक्षेप में 31/07/2021 को प्रकाशित
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