Tuesday, September 30, 2014

हमें बदलनी होगी अपनी आदत

पिछले दिनों मुझे कई यात्राएं ट्रेन से करनी पडीं,ट्रेन में समय काटने के लिए मैं भी आपकी तरह कुछ किताबें लेकर बैठा था. मैं वी॰ एस॰ नाएपॉल की सन 1964 में प्रकाशित  ‘एन एरिया ऑफ डार्कनेस’ पढ़ रहा था जिसके कुछ अंश आपके साथ बांटता हूँ “भारतीय हर जगह मल त्याग करते हैं। ज़्यादातर वे रेल्वे की पटरियों को इस कार्य के लिए इस्तेमाल करते हैं। हालांकि वे समुद्र-तटों, पहाड़ों, नदी के किनारों और सड़क को भी इस कार्य के लिए इस्तेमाल करते हैं और कभी  भी आड़ न होने की परवाह नहीं करते हैं.जो नायपाल साहब कई बरस पहले लिख चुके हैं उस वाकये से हम सब आज भी रोज दो चार होते हैं.मैंने जब सुबह ट्रेन से बाहर नजर डाली है लोगों को पटरियों के किनारे फारिग होते देखा है.कैसा लगता है तब शर्म आती है न कि आखिर हम कहाँ  रह रहे हैं और लोग ऐसा करते क्यूँ है.तो ऐसी ही एक यात्रा में इस लेख का खाका खिंच गया,बात भले ही गंदी हो पर करनी तो पड़ेगी तो खुले में मल त्याग करने की समस्या को सिर्फ शौचालयों की कमी से जोड़कर देखा जाए या इसके कुछ और भी कारण हैं.19 नवम्बर 2013 को विश्व टॉइलेट दिवस के अवसर यूनिसेफ़ के हवाले से प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या का पचास प्रतिशत से भी अधिक हिस्सा आज भी खुले में मल त्याग करता है.अपर्याप्त सैनीटेशन सुविधाओं की वजह से देश को हर साल  लगभग 2.4 ट्रिलियन रुपयों का नुकसान उठाना पड़ रहा है. 
                                                                       यह भारत के कुल सकल घरेलू उत्पाद का 6 प्रतिशत से भी अधिक है. ऐसा नहीं है कि केवल अपर्याप्त सैनीटेशन सुविधाओं जैसे की शौचालयों की कमी की वजह से ही लोग खुले में मल त्याग करते हैं। इसके पीछे कई सामाजिक और धार्मिक कारक भी हैं। रिसर्च इंस्टीटयूट फॉर कॉम्पसिनेट इकोनोमिक्स द्वारा कराये  गए एक सर्वेक्षण के अनुसार लगभग उत्तर भारत के बीस  प्रतिशत से भी अधिक वे लोग जो बारहवीं कक्षा तक पढे हैं और जिनके घरों में शौचालय भी हैं वे भी खुले में ही मल त्याग के लिए जाते हैं क्योंकि उन्हें बचपन से ही इसकी आदत डाली गयी है. भारतीय गाँवों में शौचालयों को अशुद्ध समझा जाता है इसलिए भी लोग खुले में ही मल त्याग के लिए जाते हैं.इसके पीछे  तर्क यह दिया जाता है कि घर में शौचालय बनवाने से घर का वातावरण अशुद्ध एवं अपवित्र हो जाता है. 
अशुद्ही और अपवित्रता का  यह अवधारणा भी लोगों के खुले में मल त्याग के  लिए जाने का एक प्रमुख कारण है। खुले में मल त्याग करना जैसे भारतीय संस्कृति का एक हिस्सा बन गया है. इसे सिर्फ गंदगी-सफाई की शिक्षा के माध्यम से नहीं बदला जा सकता है। भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.1प्रतिशत ही सैनीटेशन पर खर्च करता है। यह रकम पाकिस्तान और बांग्लादेश के द्वारा इसी मद में खर्ची जाने वाली रकम से भी कम है. ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तर भारत में लोग सरकारी शौचालयों में भयंकर गंदगी की वजह से भी उनका इस्तेमाल करना नहीं चाहते हैं। भारत सरकार शौचालय बनवाने पर तो अच्छा-खासा खर्चा कर रही है पर लोगों के व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए चलाये जाने वाले सूचना एवं शिक्षा अभियानों पर यह खर्च न के बराबर ही है। वित्तीय वर्ष 2013-14 के दौरान जहां भारत में शौचालयों के  निर्माण पर 2500 करोड़ से भी अधिक रकम खर्च की गयी वहीं लोगों में इस संदर्भ में जागरूकता पैदा करने वाले कार्यक्रमों पर केवल 209 करोड़ ही खर्चे गए. अतः आवश्यकता इस बात की है की शौचालय निर्माण के साथ ही समाज में व्यावहारिक परिवर्तन लाने पर भी ज़ोर दिया जाये.सरकार तो अपना काम करेगी पर इम्पोर्टेंट है हमारे आपके जैसे लोग इस इस्स्यू को सीरीयसली लें न कि चेहरे पर रुमाल रख कर मुंह फेर लें.लोगों की सायकी तो बदलनी पड़ेगी और ये काम एक झटके में नहीं होगा.स्टड और डूड सिर्फ अच्छी पर्सनाल्टी रखकर नहीं बना जाता बल्कि उसके लिए एक अच्छी सोच भी चाहिए होती है. 
आई नेक्स्ट में 30/09/14 को प्रकाशित 

30 comments:

Anonymous said...

yes sir you are right lekin yah lagata hai ki abhi bhi nagriko mey, jo unko indian consititution ke artical-51K me FUNDAMENTAL DUTIES bataya gayaa hai tatha nagrik ki duty hai ki woh fundamental duties ka palan karey.

(abhi bhi nagriko ko JAGRUK hone ki jarurat hai )

AVINASH KUMAR VIMAL


Reflections: Stories by Jessica said...

nothing is taught. it comes from within. ever individual matters and every single person can make a difference. lets pledge to keep our city clean initially and gradually our country and the world respectively

jessica gibson yadav

Unknown said...

our dream of making clean and green india will become true only if we all follow it together to make it.
it can not be done by any single person only but together every person has to change their thinking, then only it is possible to make india clean and green...

AVINASH KUMAR VIMAL

Unknown said...

mera manna hai ki agr all india radio ya doordarshan ke madyam se har gao tak is adat se hone wali samasyao ki jankari logo ke samne rakhe toh ek badlao ke apecha hum kar sakte hai....mgr ise phle har ghr me sauchale hona bi jruri hai.

AKASH YADAV said...

agr is adat se hone wali samsya ki jankari AIR ya DOORDARSHAN ke madyam se gao-gao ur logo tak pauchaye toh ek badlao a sakta hai....

RABINSHU SHARMA said...

यह हमारी दिनचर्या नहीं है बल्कि हमारी आदत है और आदत एक दिन मे नहीं बदली जा सकती। स्वच भारत जैसे अभियान के द्वारा ही लोगों को जागरूक किया जा सकता है और व्यक्तिगत विचारों मे संशोधन भी।

RABINSHU SHARMA said...

यह हमारी दिनचर्या नहीं है बल्कि हमारी आदत है और आदत एक दिन मे नहीं बदली जा सकती। स्वच भारत जैसे अभियान के द्वारा ही लोगों को जागरूक किया जा सकता है और व्यक्तिगत विचारों मे संशोधन भी।

Anonymous said...

I feel various NGOs and other organizations should take up drives that not only get public washrooms built but also carry out programs to educate the masses on health and hygiene. A penalty should be imposed as it is in UK and USA to encourage people, not only in villages but in the city, to use public restrooms.

Deepshikha Seymour

Unknown said...

हमारे देश में लोगो के पास खाने को खाना नही नहीं है. मॉल त्यागने के लिए टॉयलेट कहा से लाएंगे। जो भी अभियान सरकार द्वारा शुरू किआ जाता है उसका ५% भी जनता तक नही पहुंच पता, आधा अधिकारी खा जाते है थोड़ा बहुत मंत्री लोग जो बचता है, तो कही जनता तक पहुचता है.

saurabh yadav

Unknown said...

हमारे देश में लोगो के पास खाने को खाना नही नहीं है. मॉल त्यागने के लिए टॉयलेट कहा से लाएंगे। जो भी अभियान सरकार द्वारा शुरू किआ जाता है उसका ५% भी जनता तक नही पहुंच पता, आधा अधिकारी खा जाते है थोड़ा बहुत मंत्री लोग जो बचता है, तो कही जनता तक पहुचता है.

saurabh yadav

Anonymous said...

Hamārē dēśa mēṁ lōgō kē pāsa khānē kō khānā nahī nahīṁ hai. Mŏla tyāganē kē li'ē ṭŏyalēṭa kahā sē lā'ēṅgē. Jō bhī abhiyāna sarakāra dvārā śurū ki'ā jātā hai usakā 5% bhī janatā taka nahī pahun̄ca patā, ādhā adhikārī khā jātē hai thōṛā bahuta mantrī lōga jō bacatā hai, tō kahī janatā taka pahucatā hai.


saurabh yadav

beauty said...

right said sir.... sbse pehle zarurat hai logo ki soch n nazariya badalne ki... aur unme jagrukta laane ki... paramparao ke naam pe bhot natak hote hai... ab time aa rha hai unhe change krne kaa...
ANJALI SINGH MJMC 1ST SEM

Unknown said...

I totally agree with you sir ,the only problem is not lack of facility but the ,main problem is lack of knowledge....hope for the change and efforts from my side
soumya singh mjmc 1 sem

Arpit Omer said...

जरुरत है लोगो के व्यवहारों और सोच में बदलाव लाने की और यह किसी एक व्यक्ति विशेष से नहीं वरन हम सभी को इसके लिए आगे बढ़कर उन तमाम लोगो को जागरूक करना होगा जो खुले में मल त्याग करते है . . .
- अर्पित ओमर

Unknown said...

Sarkar k pass logo ko padhane or khana khilane k liye to paise hai nhi toilet kaha se banyengi, in sabka karan population hai, agar population control ho jati he tojyada tak dikkat door ho jayegi

Unknown said...

Poverty is a serious problem in our nation,major portion of its population struggle to earn livelihood then how can they think beyond to develop a sense of health and sanitation.
Ashutosh Jaiswal
MJMC 1st semester

Unknown said...

Poverty is a serious problem in our nation,major portion of its population struggles to earn their livelihood and they dont enough room to develop a sense of health and sanitation.
Some initiative should be taken by youth as they are future and they are the best medium for creating awareness and educating the society.
Ashutosh Jaiswal

Unknown said...

hamara desh gaono ka dessh aur hamare desh ki atyadhik abadi gaon me rahati h .wanha sicha ka asar kam hai isliye aisa hota hai gaon ki abadi ko sicha ke prati jagruk krna jaryri hai. tabhi logo ki mansikta badlegi.is disa me samajik sangathano ka yogdan bad raha hai. hamare dessh me is prkar ke bhaut abhiyan chalaye ja rahe hai)pahle sauchalya phir devalaya.

Unknown said...

hamara desh gaon ka desh hai janha atyadhik log gaon me rahte hai.janha sicha ka asar kam hai aur sicha kam hone se log mal tyag karne khule me jate hai is disa me ham sabko mil kar ek abhiyan chalana chahiye tabhi logo ka mansik parivartan hoga is disa hamare desh ke smajik sangathan lage huye hai)----Sir Ham sabko is disa me pryas karna chahiye.

Unknown said...

hamara desh gaon ka desh hai janha atyadhik log gaon me rahte hai.janha sicha ka asar kam hai aur sicha kam hone se log mal tyag karne khule me jate hai is disa me ham sabko mil kar ek abhiyan chalana chahiye tabhi logo ka mansik parivartan hoga is disa hamare desh ke smajik sangathan lage huye hai)----Sir Ham sabko is disa me pryas karna chahiye.

Unknown said...

In India 72 %of rural population have sanitation in an open areas. The government has to put step in spreading hygiene education through media or having campaign. This process of changing the habbit is very slow, it is only acquire by providing civic education.

Anonymous said...

I totally agree with u sir but the dream of to make clean our India only then can happen when we will start changing our mind and others too..
sonali singh

Unknown said...

I totally agree with u sir but the dream of to make clean our India only then can happen when we will start changing our mind and others too..
Sonali Singh

Unknown said...

Sir

kusum shastri said...

People should be ashamed if they can't keep our own country clean then they don't have right to keep our country dirty. And we should aware villagers about hygiene & place toilet in their houses.
Kusum
MJMC 1st sem

Unknown said...

sarkar ko jagha jagha jagurota tima gathita karni cahiya usse insan mai badalo ayaga

बोलना ही होगा said...

हमे एक लड़ाई लड़नी होगी इस मानसिकता के खिलाफ। सिर्फ सरकारो औए व्यवस्था को ही जिम्मेदार मानकर हमे इतिश्री से कम नही चलेगा। जिनके यहा सारी व्यवस्था है (गावो मे) वो भी ये नादानिया करते है। जिनमे एक बड़ी आबादी पढे लिखे तथाकथित बुद्धिजीवी समुदाय की भी है जो एक बहुत बड़ी चिंता का विषय है।
सुशील कुमार
MJMC 1st SEMESTER

Rachna Rishi said...

The issue of open defecation is of great concern not only because it is a matter of great shame for the Asia’s fastest growing economy but also because it questions the very socio-cultural development that India must achieve for its citizens in the 21st century. The blog traces all concerned aspects effectively. However one aspect related to women safety is also a matter of great concern, as statistics show that more no. of rape cases or sexual harassment are related to women going to relieve themselves at odd hours in isolated areas. This blog raises awareness about the issue of open defecation and points out factors responsible for its practice and forces us all to think about solutions to deal with the issue.

Unknown said...

I think in our country the mentality of people will never change due to which they are polluting the country day by day.Everyone is thinking that through one people cleanliness will not come but they should think if they will start or take a single step forward for cleanliness then others will also do.People should change their mind, a single prime minister our Modiji will not do everything alone for better India.He can implement various schemes like swacch bharat abhiyan but we have to follow it properly for better future. Its true that Cleanliness is next to godliness.

Garima bhatt said...

Search Bharat is what PM Modi and all the Indian want. PM Modi has made the beginning and it is upto all of us to carry forward.Every one has the responsibilty and it takes time to change the mind set of Indian. The local governments and local bodies need to put lot more efforts to make India a clean place to live in. Let's not forget that Swachh Bharat mission will only be successful if each and everyone of us contributes to the cause. Let's change our habits first and stop blaming the administration. Let's stop spitting in public, cover our face with a towel or arm sleeve while sneezing, clean our household regularly and drop the waste in to the nearest dustbin (and not on the streets) without waiting for the Safai Karmachari, clean our workplace.

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