सूचना और प्रसारण मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार अभी वर्तमान
में 215 शहर रेडियो की एफ एम् सेवा का लुत्फ़ उठा
रहे है और तृतीय चरण की नीलामी के पश्चात सौ ऍफ़ एम् चैनल जल्दी ही शुरू होने वाले
हैं|इसके बाद भारत में कुल एफ एम् चैनलों की संख्या 345 हो जाने की
उम्मीद है| भारत में एफ एम्
प्रसारण की शुरुआत 23 जुलाई 1977 में तत्कालीन मद्रास(अब चेन्नई ) केंद्र से की थी पर
लागत की अधिकता के कारण इस प्रयोग को पूरे भारत में प्रोत्साहित नहीं किया गया | नब्बे के दशक में
आकाशवाणी ने देश के चार बड़े शहरो में एफ एम् सेवा प्रारम्भ की बाद में निजी
प्रसारकों के इस क्षेत्र में उतरने से यह क्षेत्र एक बड़े बाजार में तब्दील हो गया
है | एफ एम् स्टेशन म्यूजिक रेडियो और टाक रेडियो के बीच
संतुलन नहीं बना पाए हैं|तथ्य यह भी है कि एक माध्यम के रूप में
ऍफ़ एम् रेडियो अभी भी एक गंभीर माध्यम के रूप में जड़ नहीं जमा पाया है | एक पूर्णता शहरी माध्यम के रूप में शुरू
हुए रेडियो के इस नए अवतार को हाथों हाथ लिया गया पर लगभग आज दो दशक बीतने के बाद
भी यह माध्यम इन्फोटेंमेन्ट माध्यम के रूप में उभरने की बजाय मात्र एक अगम्भीर
संगीत माध्यम के रूप में ही अपनी पहचान के लिए संघर्षरत है |
इस नीलामी के बाद एफ
एम् चैनलों की पहुँच में कई नए शहर आयेंगे व्यवसाय की दृष्टि से भले ही यह
फायदे का सौदा हो पर कंटेंट के स्तर पर भारत के एफ एम् चैनल एक ठहरे
मनोरंजक माध्यम के रूप में तब्दील हो गए हैं जो पिछले बीस सालों में सिर्फ मनोरंजन के नाम पर हमें
फ़िल्मी गाने और प्रेम समस्याओं को ही सुना रहे हैं|तकनीकी तेजी ने
मीडिया के अन्य रूपों में बहुत बदलाव ला दिया है|पर भारत में अभी एफ
एम् रेडियो की ताकत का दोहन होना बाकी है |इसका एक बड़ा कारण ऍफ़ एम् अपने शहरी माध्यम
की छवि को तोड़ नहीं पाया है |पहला कारण पूरी तरह
व्यवसायिक माध्यम होने के कारण यह मात्र विज्ञापनदाताओ पर निर्भर है दूसरा
निजी ऍफ़ एम् चैनलों पर समाचारों का प्रसारण निषिद्ध होना |समाचारों का प्रसारण
न होना एक नीतिगत मसला है पर सरकारों का निजी ऍफ़ एम् पर समाचारों के प्रसारण से
डरना अपने आप में यह बताता है कि सरकार इस माध्यम की ताकत और संवेदनशीलता से
परिचित है | जाहिर है कि सरकार रेडियो के मामले में कोई बदलाव नहीं चाहती वह
यही चाहती है कि रेडियो श्रोता उन्हीं ख़बरों को जाने सुने जो वह लोगों को बताना
चाहती है इसका बेहतरीन उदाहरण प्रधानमंत्री मोदी का मन की बात कार्यक्रम है जिसे
सारे निजी ऍफ़ एम् चैनल प्रसारित करते हैं पर इस कार्यक्रम का विश्लेषण टीवी समाचार
चैनलों में होता है |
भारत में हुई मोबाईल क्रांति ने ऍफ़ एम् रेडियो को हर हाथ में
पहुंचा दिया है पर कंटेंट के नाम पर नए गाने फ़िल्मी गॉसिप और युवाओं की प्रेम
संबंधी समस्याओं पर आधारित कार्यक्रम,ऐसे कार्यक्रम देश की युवा पीढी को एक ऐसा
नागरिक बना रहे हैं जो जहनी तौर पर एकदम खाली हो जिसे सवाल करना न आता हो जिसके
लिए भारत का मतलब महज फ़िल्में और उनकी व्यक्तिगत समस्याएं हों जिनमें सामूहिकता के
लिए कहीं कोई जगह न हो |ऐसा भी नहीं है कि समाचारों के प्रसारण पर रोक के कारण कोई
नवाचरिता निजी ऍफ़ एम् चैनल कर ही नहीं सकते पर उनकी तरफ से घिसा हुआ तर्क आता है
कि लोग सुनना ही नहीं चाहते पर इसी कड़ी में लोक प्रसारक आकाशवाणी का मनोरंजक चैनल
विविध भारती अपवाद है |विविधभारती की स्थापना विशुद्ध मनोरंजक चैनल के रूप में की गयी थी
पर जिन जिन शहरों में विविध भारती ऍफ़ एम् बैंड पर सुनायी पड़ रहा है वहां वहां उसने
निजी ऍफ़ एम् चैनलों को अकेले कड़ी टक्कर दी है और अपने मनोरंजक स्वरुप को बरकरार
रखते हुए अपने कार्यकर्मों में पर्याप्त विविधता रखते हुए अपनी सामजिक
जिम्मेदारी को भी निभाया है और इन्फोटेंमेन्ट का सही संतुलन भी बनाया है
मतलब यह तर्क कि लोग सस्ती बातें और फ़िल्मी गानें ही सुनना चाहते हैं भोथरा
हो जाता है |रेडियो और साहित्य के बीच कड़ी का काम करने वाली विधा रेडियो नाटक
आज सिर्फ विविधभारती के सहारे जिन्दा है |तीसरे चरण के नए ऍफ़ एम् केन्द्रों के खुलने
के बाद जब ऍफ़ एम् कस्बों और छोटे शहरों में पहुंचेगा तब क्या ये अपना शहरी चरित्र
बदलते हुए वास्तविक भारत का प्रतिनिधित्व करेगा या उसे जाने पहचाने फोर्मुले पर
चलेगा जिसका प्रयोग बड़े शहरों में किया जाता रहा है ,इसका फैसला होना बाकी है |
अमर उजाला में 16/11/15 में प्रकाशित
1 comment:
एफ एम का प्रसारण दुर दराज स्थित गाँव की आवश्यकताओं को ध्यान मे रख कर किया जाना चाहिये।
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