कभी कभी जिंदगी के बड़े सवालों का जवाब बहुत छोटी सी चीज़ में मिल जाता वो जो हमारे आस पास होती हैं पर हमारा ध्यान उन पर जाता ही नहीं लिखने बैठा तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था क्या लिखूं तभी कुछ पंक्तियाँ कानो में पडी “ हर घर चुपचाप ये कहता है इस घर में कौन रहता है ,छत बताती है ये किसका आसमान है रंग कहते हैं किसका ये जहाँ है कौन चुन चुन कर प्यार से इसे सजाता है कौन इस मकान में अपना घर बसाता है” हाँ ये घर ही तो है जिससे सब कुछ है |घर के बगैर सोचिये हमारा जीवन कैसा होता |घर से परिवार और परिवार से रिश्ते नातों का सफर सब कैसे आपस में कैसे जुड़े हैं |इंसान की सामजिकता का आधार घर है |विकास के क्रम में हमारी सारी तरक्की का केंद्र घर ही तो है |आदि मानव अगर घर ही न बनाता तो आज दुनिया इतनी खूबसूरत न होती |दिन भर की भाग दौड के बाद हम सब अपने घर जाने को उतावले होते है वो जगह जो आपकी अपनी है जहाँ हम सुकून पाते हैं |
सुकून और घर के इस सफर में अगर हम संगीत को अपना हमसफर बना लें और ये गाना सुने तो सुकून दोगुना हो जाएगा “लोग जहाँ पर रहते हैं उस जगह को वो घर कहते हैं हम जिस घर में रहते हैं उसे प्यार का मंदिर कहते हैं”(प्यार का मंदिर ) सही ही तो है घर अगर मंदिर है तो वहां शांति होगी बड़े बुजुर्गों का साथ होगा |अगर कभी आपको अपने घर से दूर जाना पड़े तो आप ही नहीं आपका घर भी आपको याद करता है क्योंकि घर तो रिश्तों से बनता है ईंट पत्थरो से तो मकान बनता है “घर कब आओगे तुम बिन ये घर सूना सूना है” (बोर्डर ) पर आगे बढ़ने के लिए घर छोडना ही पड़ता है और हम इस दुनिया में अपना आशियाना बनाने अपने सपनों को सच करने निकल पड़ते हैं |माता- पिता के प्यार से दूर, अपने अपनों का साथ छोड़ पर एक घर से दूसरे घर तक का ये सफर आसान नहीं होता पर इंसान बहुत फ्लैक्सेबल जीव होता है बहुत जल्दी हम कुछ नए रिश्ते बना लेते हैं और तब दिल अचानक गा उठता है “ये तेरा घर ये मेरा घर किसी को देखना हो गर तो पहले आके मांग ले तेरी नज़र मेरी नज़र” (साथ –साथ) पर ये घर यूँ ही नहीं बन जाता इसमें इंसानी रिश्तों के सारे रंग होते कहीं प्यार कहीं तकरार आपसी रिश्तों की खूबसूरती का एहसास घर ही कराता है |रक्षा बंधन में बहन भाई का अपने घर आने का इन्तिज़ार करती है वहीं त्योहारों में माँ बाप को अपने बेटे बेटियों के घर आने का इन्तिज़ार रहता है और कहीं एक पत्नी रोज शाम को अपने पति का घर लौटने का इन्तिज़ार करती है |
दुनिया बदल रही है अगर पति -पत्नी दोनों वर्किंग है तो छोटे बेटे बेटियों को अपने माता पिता के घर लौटने का इन्तिज़ार रहता है |देखा जाए तो रिश्ते तो बहाना है इन्तिज़ार तो घर करता है जिनके होने से कोई मकान घर बन जाता है |असल में रिश्तों की खूबसूरती को महसूस घर ही कराता है जहाँ कोई अनजाना आकर रिश्तों की डोर में बंध जाता |घर घर होता है वो छोटा हो या बड़ा इससे फर्क नहीं पड़ता अगर उसमे रहने वाले लोग आपस में रिश्तों की मीठी डोर से बंधे हैं “छोटा सा घर है ये मगर तुम इसको पसंद कर लो” (डर ) तो घर के बहाने ही सही घर के उन रिश्तों पर भी ध्यान दीजिए जो बिना शर्त आपको प्यार दिए जा रहे हैं अपने अपनों का ख्याल कीजिये वो कोई भी हो सकता है वो बूढ़े माता पिता आपका बेटा या बेटी या फिर पति पत्नी जिन्हें जीवन की भाग दौड में आप शायद उतना वक्त नहीं दे पा रहे हैं तो आज उन लोगों को शुक्रिया कहिये जिनके कारण आपका घर , घर है |
प्रभात खबर में 09/11/16 को प्रकाशित
4 comments:
true sir kabhi kbhi thanx khna bhut jruri hota hai
true sir kabhi kbhi thanx khna bhut jruri hota hai
true sir ghar to ghar hi hota hai
jab koi khanne pe bulata hai ..aur wo bar bar bole aur le lo beta aur le lo ...kabhi kabhi mera man rahte hue bhi mana karna padta hai...kuki pet to apne hi ghar me bharta hai..ARJAN CHAUDHARY
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