Tuesday, May 14, 2019

बोर्ड के मार्क्स से नहीं होती हमारी पहचान


प्रिय प्रति,

तुम्हारा गुस्से भरा ई मेल मिला,जिसमें तुमने इस बात पर नाराजगी जताई कि जब सारे पास हुए बच्चों के पेरेंट्स अपने बच्चों के मार्क्स के साथ उनके फोटो सोशल मीडिया पर डाल कर  अपनी खुशी  जाहिर कर रहे हैं .मैंने इसलिए तुम्हारी फोटो सोशल मीडिया पर नहीं डाली क्योंकि तुम्हारे नब्बे परसेंट मार्क्स नहीं आये .सच कहूँ तो तुम्हारे जो अस्सी परसेंट मार्क्स आये हैं उसकी भी उम्मीद नहीं की थी .तुम जानते हो मैंने तुम्हें नम्बर गेम से हमेशा बचने की सलाह दी है मैं तुमसे हमेशा कहता था एक सम्मानजनक तरीके से पास हो जाओ  ,तुम्हें याद होगा नाईन्थ में तुम्हारे कितने खराब नम्बर आये थे और तुमने कभी रिपोर्ट कार्ड मुझे नहीं दिखाया .मुझे बस तुम्हारी मम्मी ने इतना बताया था कि बहुत ही खराब नम्बर हैं बताने लायक नहीं पर दसवीं में तुमने सबकी बोलती बंद कर दी .बेटे मेरे लिए पढ़ाई के एक्जाम में पास होना उतना मायने नहीं रहता जितना जिन्दगी के इम्तिहान में पास होना .चूँकि अब तुम बड़े हो गए हो तो सोचा अपनी लाईफ के कुछ एक्सपीरियंस शेयर कर लूँ .तुम्हे याद होगा जब तुम छोटे थे और अक्सर चोट लगाकर रोते हुए घर आ जाया करते थे तो मैं तुमसे एक ही बात कहता था बेटा चोट तुम्हे लगी है और इसका दर्द तो तुम्हे ही झेलना पड़ेगा. हम ज्यादा से ज्यादा  इसको कम करने की कोशिश कर सकते हैं और जिन्दगी भी ऐसी ही है , मैंने कभी भी तुमसे ये नहीं कहा कि बेटा क्लास में टॉप करो हाँ ये जरूर कहा कि बेटा एक अच्छे इंसान बनो इस पर मुझे ज्यादा फख्र होगा एक पिता की हैसियत से मेरा काम तुम्हे सही गलत में फर्क करना सिखाना रहा है और फैसला मैंने हमेशा तुम्हारे ऊपर छोड़ा है क्योंकि चोट का दर्द तुम्हीं को झेलना है .मैंने कभी भी तुम्हारे ऊपर ज्यादा नंबर लाने का दबाव नहीं डाला हाँ ये जरूर कहता रहा कि अपना हंड्रेड  परसेंट दो. जिससे जिन्दगी में अगर कभी असफलता हाथ लगे भी तो उससे लड़ने का हौसला बना रहे .अब तुम ही सोचो तुम्हारे सोशल स्टडीज में नब्बे नम्बर आये हैं पर क्या तुम विषय की नब्बे प्रतिशत चीजें जानते हो ?नहीं न अभी भी कितना कुछ जानने को बचा है अब सोचो अगर कहीं उसमें सौ नम्बर आ जाते तो इसका मतलब ये हुए तुम दुनिया के उस विषय में अपने स्तर के सबसे बड़े ज्ञानी हो गए पर वास्तव में ऐसा होता है क्या ?
हमारे ज़माने में हिन्दी के पेपर में किसी के सिक्सटी परसेंट से ऊपर नम्बर आ जाते थे तो हम सब उसे सम्मान की नजर से देखते थे पर आज देखो हिन्दी में भी सौ में सौ नम्बर मिल रहे हैं .बेटे जिन्दगी में कुछ चीजों की कसक हमेशा बनी रहनी चाहिए तभी हम आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं.तुमने वो कहावत तो पढी ही होगी “इफ यू रीच देयर देयर इज नो देयर”.मंजिल पर पहुँचने से ज्यादा सफ़र का मजा रहता है .मुझे आज भी याद है दसवीं से पहले तक तुम्हारे कभी भी सिक्सटी परसेंट से उपर नम्बर नहीं आये .मैं ये भी मानता हूँ कभी –कभी मैं भी थोड़ा दुखी हो जाता था पर एक चीज मुझे हमेशा हौसला देती थी .तुम हमेशा एक अच्छे बेटे की तरह बढ़ते रहे ,दादी –बाबा का ख्याल रखने वाले .भले कितनी परेशानी मन में हो हमेशा खुश रहने वाले और सबको हंसाने वाले .तुम्हारी सम्वेदनशीलता देख कर लगता है कितुम अपने आस –पास के लोगों से जुड़े रहोगे क्योंकि रोड पर अगर कोई आवारा जानवर बीमार दिखता है तो तुम मुझे फोन कर के तंग करते रहे , अपनी पॉकेट मनी से रोड पर पैदा हुए कुत्ते के बच्चों को दूध चुपचाप पिलाना और कई दिन बाद धीरे से मम्मी को बता देना .तुमने कभी कोई बात नहीं छिपाई .
तुम बिलकुल भी इसलिए  निराश न हो कि तुम्हारे अस्सी परसेंट नम्बर आये हैं तुम ये सोचो कि इतने नम्बर लाने के बाद भी तुमने अभी तक की जिन्दगी का लुत्फ़ उठाया है.पढ़ना और अच्छे नम्बर लाना अच्छी बात है पर सिर्फ पढ़ाई और मार्क्स के नाम पर जिन्दगी का लुत्फ़ उठाना छोड़ देना ठीक नहीं है .तुम खुशनसीब हो , कड़ी धूप में पतंग उड़ाने का लुत्फ़ क्या होता है ये जानते हो ,बारिश में छत पर घंटों नहाने  का क्या मतलब होता ये तुमसे बेहतर कौन जानता है .गर्मी की शाम छत को स्वीमिंग पूल बनाने की नासमझ कोशिश तुमने न जाने कितनी बार की है .यहाँ तक कि मोबाईल पर वीडियो एडिट करके आठवीं क्लास में ही तुमने अपना यूट्यूब चैनल भी बना डाला था. मेरे मना करने बावजूद कमरे के अंदर क्रिकेट खेलना और अपनी बाल से टीवी तोड़ देने का दुःख भी झेला है .तुम हारना क्या होता है ये बेहतर तरीके से जानते हो तो कभी जिन्दगी में जीतोगे तो तुम्हारे पैर हमेशा जमीन पर रहेंगे .सफलता तुम्हारा दिमाग खराब नहीं करेगी.जिन्दगी बैलेंस का नाम है.एक्सेस किसी भी चीज की बुरी है .बोर्ड के एक्जाम में तुमने उसमें बेलेंस बनाया .मैं इसी में खुश हूँ कि मेरा बेटा बेलेंस बनाना सीख गया है .ये बेलेंस ही तुम्हें मुश्किलों में सम्हाल लेगा . तुम्हारी हमेशा शिकायत रहती थी कि पापा आप मेरी पेरेंट टीचर मीटिंग में क्यों नहीं आते ?मैं हमेशा थोडा ऐंठ कर कहता पहले कुछ ऐसा काम करो कि मुझे तुम पर फख्र हो ,सच तो ये है मैं तुम पर हमेशा फख्र करता था पर कहता नहीं था .
बेटा पढाई के एक्जाम  से ज्यादा मुश्किल है जिन्दगी का इम्तिहान जिसकी अभी शुरुवात हो रही है .मैं चाहता हूँ तुम जिन्दगी के एक्जाम  में टॉप करो मैंने कभी नहीं चाहा कि तुम क्लास में टॉप करो जरा सोचो एक्साम्स के टॉपर्स को हम लोग कितनी जल्दी भूलते हैं जिन्दगी में एक वक्त के बाद हम लोगों को उनके काम और उनकी पर्सनाल्टी  की वजह से याद करते हैं न कि उनके मार्क्स की वजह से .जिन्दगी के टॉपर्स हिस्ट्री  बनाते हैं. तुम्हे फिल्म और क्रिकेट का बहुत शौक है. विराट  एक महान खिलाड़ी है क्या वो कभी जीरो पर नहीं आउट हुआ हर मैच उसके लिए एक एक्जाम  ही होता है . कई बार हमारी टीम बहुत अच्छा खेलती है फिर भी हार जाते है तो इसका क्या मतलब निकला जाए कि वो टीम बेकार है. अमिताभ बच्चन क्या बगैर फ्लॉप फ़िल्में दिए बगैर सदी के सितारे बन गए. सफल होने के लिए असफल होना ही पड़ता है.ये बात सही है बेटा कि सफलता सबको अच्छी  लगती है, लेकिन जिन्दगी में आप लगातार सफल नहीं हो सकते ये निश्चित है तो सफल होने के लिए असफल होना बहुत जरुरी है और असफलता का स्वाद जिन्दगी में जितनी जल्दी मिल जाए उतना अच्छा है.उम्मीद है अब तुम्हारा गुस्सा ठंडा हो गया होगा ,तुम अस्सी परसेंट लाओ या नब्बे मुझे इससे फर्क नहीं पड़ता पर जिन्दगी में कुछ अच्छा करो तुमसे इतना ही चाहता हूँ .
हम सब बेसब्री से तुम्हारे घर लौटने का इन्तिज़ार कर रहे हैं ,ताकि तुम्हारे नए स्कूल के अनुभव सुन सकें .फोन पर बात करने से वो मजा नहीं आता है जो तुम्हारी आत्मविश्वास से भरी आँखों में झांकते हुए बात करने में आता है .मैंने उन फिल्मों की लिस्ट बना ली हैं जो मुझे तुम्हारे साथ देखनी हैं आखिर तुमको देखकर ही मुझे अपनी जवानी के दिनों को दुबारा जीने की चाह होती है मां तुमको अपना प्यार दे रही है .
प्यार
तुम्हारा
पोप्स
14/05/2019  को दैनिक जागरण/आइनेक्स्ट में प्रकाशित

5 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (15-05-2019) को "आसन है अनमोल" (चर्चा अंक- 3335) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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