Tuesday, May 7, 2019

अल्लाह के बंदे हंस दे

मैं कभी कभी ही खुश होता हूँ और जब खुश होता हूँ तो गाने सुनता हूँ  और जब दुखी होता हूँ तो भी गाने सुनता हूँ आप भी सोच रहे होंगे की ये क्या गड़बड़झाला है? मित्रों जिन्दगी में कोई भी समस्या  हो संगीत  एक ऐसी दवा है .जो सारे अवसाद  और तनाव को भगाने के लिए काफी है. पर कभी कभी ऐसा होता है .जब स्थितियों   पर हमारा जोर नहीं रहता और कुछ भी अच्छा नहीं होता तब एक और बस एक ही चीज़ याद आती है भगवान् गॉड,अल्लाह आप कुछ भी नाम लें .मतलब एक है एक सुपर नेचुरल पवार जो हमारा आखिरी सहारा है. अब सोचिये अगर संगीत  और भगवान  को जोड़ दिया जाए तो एक ऐसी दवा तैयार होगी. जिसका कोई मुकाबला नहीं होगा बात. सीधी सी  है पर है थोड़ी टेढ़ी कहते हैं संगीत कि कोई भाषा नहीं होती और आप उसे किसी  भाषा में बाँध भी नहीं सकते अब आप "वाका वाका" को ही ले लीजिये इस शब्द का मतलब भले ही हम न समझें पर गुनगुनाया  तो सारी दुनिया ने ही . जब आप बहुत परेशान और निराश हों.

तब एक ही गाना याद आता है मुझे “जिसका कोई नहीं उसका तो खुदा है यारों मैं नहीं कहता किताबों में लिखा है यारों” (लावारिस ) ,निराशा भी अक्सर एक मोटिवेटर का काम करती है. जब उसे ऊपर वाले यानि गॉड, भगवान् या अल्लाह का सहारा मिल जाता है तो बात ये है कि हमारे फ़िल्मी गाने भी एक बड़ा जरिया हैं , भगवान् से हमारा सम्बन्ध स्थापित करने का आप न या माने पर ये सच है, जैसे धर्म भले ही अलग -अलग हों सबका सन्देश एक ही है प्यार , मानवता , भाईचारा.

वैसे ही हमारे  फ़िल्में गाने किसी एक मज़हब या धर्म की बात नहीं करते नहीं भरोसा हो रहा हो तो बानगी देख लीजिये "अल्लाह तेरो नाम ईश्वर तेरो नाम” (हमदोनों ),जय रघुनन्दन जय सिया राम (घराना), वो मसीहा आया है (क्रोधी ) या फिर एक ओंकार सतनाम (रंग दे बसन्ती ).गाने की नज़र से देखें तो ये सिर्फ गाने हैं ख़ास बात ये है कि ये भारत के हर धर्म  की बात कर रहे हैं न कोई छोटा है न कोई बड़ा.थोडा और आगे बढ़ें तो ये गाने उसी फ़िल्मी गाने को आगे बढ़ाते हैं “तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा इंसान की औलाद है इंसान बनेगा.(धुल का फूल )       वैसे एक बात और बताते चलूँ सूफी संगीत का जन्म ही संगीत और उस रूहानी ताकत के मिलन से हुआ जिसे हम भगवान कहते हैं और जब आप इसको सुनते हैं लगता है ऊपर वाला हमारे सामने है अगर भरोसा न हो रहा तो  ये गाना सुनियेगा “अल्लाह के बन्दे हंस दे जो हो कल फिर आएगा”. हिंदी फिल्म उद्योग के संगीतकार अपने गीतों में सूफी संगीत की मधुरता बुन रहे हैं. अल्लाह के बंदे, पिया हाजी अली, ख्वाजा मेरे ख्वाजा, अर्जियां.. जैसे सूफी संगीत में पगे गीतों की सूची बहुत लंबी है.

तो जीवन की इन राहों पर अगर आप चलते चलते थक जाएँ तो  थोडा रुक कर अगर इन गानों का साथी बन जाया जाए तो मंजिल कुछ करीब दिखने लगेगी और सफ़र की थकन कम होगी. लेकिन एक बात मत भूलियेगा जब भी प्रार्थना कीजिये पूरेविश्वास  से कीजिये.  तो प्यार बाँटते चलिए और निराशाओं को  अपने ऊपर हावी  मत होने दीजिये .कल तो बिलकुल आएगा आशाओं  का उम्मीदों का इसलिए अगर आज थोड़ी मुश्किल है.थोडा धीरज रख लीजिये क्योंकि कोई है जो आपके साथ है आप उसे किसी भी नाम से बुला सकते हैं.
प्रभात खबर में 07/05/2019 को प्रकाशित 


2 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (08-05-2019) को "मेधावी कितने विशिष्ट हैं" (चर्चा अंक-3329) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

HARSHVARDHAN said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन श्री परशुराम जयंती, अक्षय तृतीया, गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर, विश्व अस्थमा दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

पसंद आया हो तो