कुछ सहमी कुछ सकुचाई
जब तुम बैठी हो शरमाई
जब ह्रदय में तुम्हारे हो स्पंदन
अंग अंग में हो प्रीत का गुंजन
जब सांस में तुम्हारी हो गरमाहट
मन में भी जब हो अकुलाहट
नयन करे जब नयनों से बातें
जगते जगते कटती हो रातें
मन में जब कोई प्यास जगी हो
आने की किसी की आस लगी हो
यूँ ही जब तुम मुस्काती हो
अपने से ही जब तुम शरमाती हो
तब प्रीत की डोली लेकर
मैं द्वार तुम्हारे आऊंगा
अपने अरमानों के वरमाला से
दुल्हन तुम्हें बनाऊंगा
जब तुम बैठी हो शरमाई
जब ह्रदय में तुम्हारे हो स्पंदन
अंग अंग में हो प्रीत का गुंजन
जब सांस में तुम्हारी हो गरमाहट
मन में भी जब हो अकुलाहट
नयन करे जब नयनों से बातें
जगते जगते कटती हो रातें
मन में जब कोई प्यास जगी हो
आने की किसी की आस लगी हो
यूँ ही जब तुम मुस्काती हो
अपने से ही जब तुम शरमाती हो
तब प्रीत की डोली लेकर
मैं द्वार तुम्हारे आऊंगा
अपने अरमानों के वरमाला से
दुल्हन तुम्हें बनाऊंगा
14 comments:
unda..........
यह भी अच्छी रचना.
@रोहित जी मनोज जी शुक्रिया आपका
काश कोई हमारे लिए होती
जो कुछ सहमी होती
जिसकी सांसो में गर्माहट होती
जिसकी पलके झुकी होती
जो हलके से मुस्कुराती फिर शर्माती
और वरमाला लेकर आती
मै उसके नैनो से घायल होता
उसमे ऐसी अदा होती
काश कोई हमारे लिए होती
kash koi kare humra bhi iantjar,
karenge hum unko itna pyar,
duniya ko teri ankhi se dekhenge,
teri har muskurahat par jindagi luta denge,
dil me jo tere ane ki aass lagi hai,
tujhe lene ke liye pyarki doli leke aunga, aur tujhe apni dulhan banaunge.
as always.... a very nice poem of yours..
well written
Dhulhan ka itna jivaant chitrad bhut hi unda
awesome lines.
really awesome
dulhan ki man ki bhavnaye ache se darshayi hai aapne sir..:)
this is nice sir...
i think you can explain it more sir..
मैं दुल्हन के लिबाज़ में सपने बहुत सजाती हूँ,
अपनों का संग छोड़ तुम्हारी ओर आती हूँ।
हो सार्थक यूँ मेरा अबके बरस जाना,
लिए सम्मान की वरमाला तुम सामने आ जाना।
Amazing poem, something different and very interesting.
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