Tuesday, April 9, 2013

मुझे तो तेरी लत लग गयी

हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है पर कुछ बोलता हूँ एक लड़की थी दीवानी सी जहाँ जाती खुशियाँ बिखेरती नाम था परी दिन भर पढ़ाई करती चिल करती और जरुरत के वक्त इंटरनेट खोलती फिर एक दिन उसे जी नहीं उसे प्यार बिलकुल भी  नहीं हुआ बल्कि उसके एक करीबी दोस्त ने एक नेट इनेबल्ड एंड्रायड फोन भेंट किया फिर क्या उसकी कल्पनाओं को पंख लग गए नए नए एप्स डाउनलोड करना अपने दोस्तों से खूब चैट करना वीडियो शेयर करना शुरू कर दिया जो इंटरनेट उसकी तरक्की के रास्ते खोल रहा था वो उसके जी का जंजाल बन गया एक दोस्त से बात करो तो दूसरा नाराज चैट पर दिन भर ऑन दिखने से उसके दोस्तों में गलतफहमियां पनपने लग गयीं कि वो दिन भर किसी से चैट करती है फिर क्या उसका आधा दिन उन गल्फह्मियों को दूर करने में और आधा दिन उन  दोस्तों से चैट करने में बीत जाता जो उसके चैट न कर पाने से दुखी थे .उसे पता ही नहीं पड़ा कि कैसे उसका ये शौक कब लत बन गया.हर दो मिनट में अपना मोबाईल चेक करती कि कहीं कोई मेसेज तो नहीं आया नतीजा उसके करीबी दोस्त उससे दूर हो गए वो बस जितने एप्स हो सकते हैं उन्हें अपने मोबाईल में भर लेना चाहती थी जिससे वो सबसे जुडी रहे  नतीजा एक पढ़ने लिखने वाली लड़की जो अपनी छोटी सी दुनिया में अपने चुनिन्दा दोस्तों के साथ खुश रहा करती थी इंटरनेट के एडिक्शन से कई तरह के दबाव से टूट कर रूखे स्वभाव की हो गयी बात बात में नाराज होने लगी पढ़ना लिखना छूट गया वो कई तरह की मनोवैज्ञानिक समस्याओं की शिकार रहने लग गयी. रात में अजीब अजीब सपने देखती नींद आँखों से दूर हो गयी जिससे दिन में भी वो उनींदी सी रहती .उसके कई  करीबी दोस्त उससे दूर हो गए.ये महज कहानी नहीं बल्कि आज के यूथ के लाईफ की कडुवी रीयल्टी है.नेट के एडिक्शन के चक्कर में रीयल वर्ल्ड से नाता तोड़कर वर्चुअल वर्ल्ड में जीने वाले आज परी जैसे  लोग हमारे आस पास न जाने कितने मिल जायेंगे.टेक्नोलॉजी वक्त की जरुरत है पर इस जरुरत को हमें अपनी नीड के हिसाब से देखना होगा.हर उम्र और वक्त के हिसाब से टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाना चाहिए.पढ़ने लिखने की उम्र में हर वक्त ऐसा कोई संदेसा हर वक्त नहीं आएगा जिसको अगर आप मिस कर गए तो आसमान फट पड़ेगा.फोन पर इंटरनेट के आ जाने से समस्या ज्यादा गंभीर हो गयी है आप लोगों से कनेक्टेड रहें पर हर इंटरनेट के इस्तेमाल में एक डिसीप्लीन रहना बहुत जरूरी है नहीं तो ये शौक कब आपको धीरे धीरे खत्म करने लग जाएगा पता भी नहीं पड़ेगा इसलिए अपने काम के हिसाब से नेट के इस्तेमाल का वक्त तय कीजिये दोस्तों के साथ फन करने का एक निश्चित समय रखिये उसके बाद यदि कोई मेसेज आता है जिसमे हेलो,नमस्ते, क्या हो रहा है जैसे शब्द हों तो  इस बात की परवाह किये बगैर कि सामने वाला क्या सोचेगा जवाब मत दीजिए.आप एक बार इसको अपनी आदत बनायेंगे तो धीरे धीरे ऐसे लोग जो दिन भर ऐसे लोगों की तलाश में रहते हैं जो उनके खालीवाक्त के साथी बनें आपको संदेसा भेजना कम कर देंगे. बीच बीच में अपने मोबाईल को ऑफ करना सीखिए अपनी सोशल नेटवर्किंग साईट्स को आराम दीजिए जरूरी नहीं कि रोज कुछ न कुछ अपडेट करें थोडा वक्त अपने लिए निकालिए और देखिये दुनिया कितनी खूबसूरत है आपके कितने ऐसे दोस्त हैं जो आपके वर्चयुल साथ के लिए नहीं बल्कि रीयल साथ के लिए तरसते हैं कुछ एस्माय्ली भेज देने से भावनाओं का इजहार नहीं हो जाता इसके लिए किसी रिश्ते को जीना पड़ता है.टेक्नोलोजी को अपने ऊपर हावी मत होने दीजिए अपनी जरुरत और तकनीक में संतुलन बनाइये तभी आप जिंदगी का सच्चा लुत्फ़ उठा पायेंगे.मैं तो आज अपना स्मार्ट  फोन ऑफ कर अपनी दोस्त से मिलने जा रहा हूँ जो नेट के एडिक्शन से उबरने की कोशिश कर रही है .आप क्या करेंगे जरुर बताइयेगा|
आई नेक्स्ट में 09/04/13 को प्रकाशित   

2 comments:

विकास सिंह said...

Well explained

Unknown said...

इंटरनेट एडिक्शन से मानसिक तौर पर हम उससे जुड़े रहते हैं,फोन बंद होने पर भी उसकी आवाज़ गूँजती है उसके न होने का एहसास व्याकुल कर देता है,भले ही आप सोशल साईट्स के प्रेमी न हो पर फोन अपना अलग ही आकर्षण बनाता जा रहा है,ऐसे में वो पल सबसे सुखद होते हैं जब बिजली घंटों गुल रहती है,फोन लैपटाप सब झींक के बंद हो जाते हैं,तब की खामोशी सबसे मधुर होती है। परिवार इकट्ठा होकर बातें करता है,पुरानी बातों को याद किया जाता है,साथ बैठ कुछ गुनगुनाया जाता है। काश लोग फोन को गैजेट समझते तो उसे दोस्त का दर्जा कभी न मिलता।

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