Friday, May 31, 2013

आइये सहेजें जिंदगी की कुछ यादों को

बचपन में अक्सर मैं सोचा करता था छुट्टियाँ इतनी कम क्यों होती हैं सुख के दिन जल्दी बीत जाते हैं ऐसा लगता है पर दिन तो अपने समय के हिसाब से ही बीतता है ये बात अलग है कि हमें पता नहीं पड़ता.अरे भाई गर्मी का मौसम उफान पर है, अपने हिसाब से बीतेगा पर हम हैं कि इंतज़ार नहीं कर पा रहें और ऐसे में  आप सबको जाड़ा जरुर याद आ रहा जो जब था तब हम कहते थे कि बहुत ठण्ड पड़ रही है. इंसान भी अजीब जीव होता है जब जो चीज चल रही होती है उसका लुत्फ़ उठा नहीं पाता और उसके जाने के बाद उसको याद करता है. बीते समय की यादें दिल को गर्माहट दे जाती हैं तो गर्मी के इस मौसम में शरीर और दिमाग को ठंडा रखिये पर दिल को गर्म रखिये उन रिश्तों के लिए जो आपकी यादों में हैं और ये हम नहीं कह रहे बल्कि  इमोशन पत्रिका में प्रकाशित एक शोध में यह निष्कर्ष निकला है कि यादें हमारे दिल को गर्मी देती हैं.याद से याद आया गर्मी की शाम बड़ी सुहानी होती हैं क्योंकि दिन बड़े और रात छोटी होती है इसलिए दिन को महसूस करने का मौका मिलता है.नहीं समझे भाई मौसम कोई भी  हो उनके  साथ हमारी कोई ना कोई यादें जरुर जुडी होती हैं  वही यादें जो  कभी गर्मी में सर्दी का एहसास  कराती हैं तो  कभी सर्दी में गर्मी का भाई सारा खेल एहसास का है,क्योंकि बातें भूल जाती हैं यादें याद आती हैं.अब जब बात याद की चाल पडी है तो आइये समझे याद के इस फलसफे को हम सब अपनी लाईफ में कितना कुछ देखते हैं महसूस करते हैं पर यादें तो वही बनती है जिन्हें हम याद रखना रखना चाहते हैं.कुछ चीजें हम कभी भूल नहीं पाते पहला स्कूल ,पहला दोस्त पहला प्यार जानते हैं क्यों ये वो लम्हे होते हैं जो हमारे होने का एहसास कराती हैं जब इस दुनिया में हम सचमुच आगे बढते हैं लेकिन जिंदगी तो आगे बढ़ने का नाम है बहुत कुछ पीछे छूट जाता है इस आगे बढ़ने के चक्कर में, अच्छा आप मेरी बात पर ध्यान मत दीजिए जरा सोचिये आप गर्मी से परेशान हैं पर पिछली जितनी गर्मियां आपने देखी हैं और उससे परेशान भी  हुए हैं पर उसके साथ आपकी कोई ना कोई याद जुडी होगी,तपती धूप में किसी  दोस्त के साथ लोंग ड्राइव पर जाना, और कोल्ड ड्रिंक गटकना, गर्मी की दोपहर में पिज्जा खाना वो भी जबरदस्ती क्यूंकि आपको भूख लगी थी और आप अपने दोस्त का दिल नहीं दुखाना चाहते थे. एक्साम खत्म हो गए तो यारों को गुड़ मार्निंग का ग्रुप एस एम् एस करना जिससे हर दोस्त को लगे कि ये उसी के लिए किया गया है पर हर दोस्त कमीना होता है.ये  तो कुछ नमूने थे गर्मियों के पर हर साल जब गर्मी पड़ती है तब हम सब भूल कर बस ये चाहते हैं कि ये गर्मियां जल्दी खतम हों पर रिश्तों में आयी ये गर्मी जाड़ा आपको दे जाता है जिसका फायदा हम गर्मियों में उठाते हैं क्योंकि जाड़े की ठण्ड ने आपको गर्मी की अहमियत समझा दी होती है. क्यों कुछ समझ में आ रहा है ना गर्मी जल्दी खत्म हो जायंगी तो आपके यादों के खजाने भर ही नहीं पायेंगे फिर आने वाले जाड़े को किस तरह झेलेंगे.वक्त है बीत ही जाता है पर यादें जरुर दे जाता है अब इन यादों को आप नहीं सहेंजेंगे तो सोचिये आपका जीवन कितना सूना सूना बीतेगा तो गर्मी के इस मौसम में अपनी यादों को सहेजिये और कुछ ऐसा कीजिये कि जीवन में ढेर सारी यादें जुड जाएँ.किसी दोस्त को लेट नाईट काल करें और उसे बताएं कि वो आपके लिए कितना जरूरी है इसमें आपको कुछ भी मेहनत नहीं करनी है, वैसे भी गर्मियों में जल्दी नींद किसे आती है.अगर आप अपने दोस्त को डिस्टर्ब नहीं करना चाहते तो लेट नाईट ई मेल या एस एम् एस कर दीजिए उसे अच्छा लगेगा और आप तो वैसे भी जग रहे थे तो इन्तजार किस बात का है.
आई नेक्स्ट में 31/05/13 को प्रकाशित

Thursday, May 23, 2013

पानी का निशान मिटता नहीं

सुनो..... पानी का निशान मिटता नहीं 
कभी कहा था तुमने 
पानी पर मेरा नाम लिखते हुए 
पानी में भीगे वे शब्द 
आज भी गीले हैं 
पानी गीला नहीं होता 
पर मेरी आँखों से बरसता पानी 
आज भी खोज रहा है 
पानी पर लिखे उस नाम को 
....सुनो पानी का निशान मिटता नहीं 

Monday, May 20, 2013

एफ एम् रेडियो के ढीले सरोकार

अतीतविहीन पीढ़ी के भविष्य की कल्पना कीजिए...! एक तरफ जहां हम सिनेमा के सौ साल का जश्न मना रहे हैं, वहीं एक प्राइवेट एफ एम् रेडियो चैनल हमें उस स्वर्णिम समय के गीतों से महरूम रखने की कोशिश कर रहा है। सोचिए क्या हो जब गुलाबी नींद में हों और एकदम से गीत बजने लगे, 'मेरी फोटो को सीने से यार चिपका ले सैयां फेवीकोल से...बजाते रहो कि टैग लाइन के साथ आज के ज़माने का रेडियो स्टेशन होने का दावा करने वाला रेड एफ एम् चैनल कहता है कि अगर उसके चैनल पर 2005 के पहले के गाने बज गए तो वे श्रोता को 935,000 रुपैये देंगे उनका मानना है कि “पापा तो बैंड बजायेगा” क्योंकि “पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा” पुरानी बात हो गयी तो आधुनिक होने के लिए पापा को बैंड बजाना पड़ेगा  |भारत अद्भुत देश है जहाँ सारी दुनिया भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष पूरे होने का जश्न मना रही है|बी बी सी सबसे महानतम हिन्दी गीत पर ऑनलाइन वोटिंग करा रही है वहीं रेड एफ एम् चैनल का यह निर्णय कि वे 2005 के बाद के ही फ़िल्मी गीत अपने रेडियो चैनल पर बजायेंगे यह बताता है कि अभी भारत में एफ एम् रेडियो को एक लंबा रास्ता तय करना है और इस रास्ते के केंद्र में सिर्फ मुनाफा और बाजार है|वह मानते हैं कि उनका टारगेट ग्रुप (टीजी) युवा हैं। क्या इस तर्क पर आप कुछ कह सकते हैं? नहीं।भाई आपकी चीज है आप जिसे चाहें उसे बेंचे। लेकिन सवाल तो उठता ही है कि क्या कुछ भी मांग के नाम पर बेचेंगे? क्या इससे किसी का सहज अधिकार छीन लेंगे क्योंकि चीज आपकी है? यह ठीक वैसा है, जैसे हम आपके लिए विकल्प सीमित कर दें और फिर कहें कि आप केवल यही ले सकते हैं क्योंकि इसके अलावा हमारे पास से तो कुछ मिलेगा  ही नहीं।जिसमे आप युवाओं पर अपना ध्यान केंद्रित कर सकें पर मुद्दा यह है कि एजेंडा सेटिंग अवधारणा के हिसाब से और मीडिया में बढ़ती यह  विशेषी करण की प्रवृति जनमाध्यम के दर्शन के हिसाब से गलत है यदि कोई अखबार या चैनल यह फैसला कर ले तो दर्शकों और पाठकों को महज एक पक्षीय जानकारी ही मिलेगी सूचना समाज के इस युग में इस तरह का निर्णय यह बताता है कि  सूचना साम्रज्यवाद किस तरह से अपना नकारात्मक असर डाल रहा है और रेड एफ एम् का एक मात्र लक्ष्य अपने लाभ को अधिकाधिक करना है इसके लिए अगर श्रोताओं  के हितों से समझौता करना पड़े तो भी कोई बात नहीं है |हमारे समाज में फ़िल्मी गानों का बड़ा असर रहा है कम से काम मॉस के स्तर पर, क्लास को इससे परेशानी होती रही है पर तू हिंदू बनेगा न मुसलमान बनेगा इंसान की औलाद है इन्सान  बनेगा या इंसान का इंसान से हो भाईचारा यही पैगाम हमारा, जैसे गीत अब कहाँ रचे जाते हैं रेडियो का एक माध्यम के रूप में सिर्फ मनोरंजन करना ही काम नहीं है बल्कि उनकी रुचियों को बेहतर बनाना भी है ऐसे में अगर सारे निर्णय सिर्फ बाजार को ध्यान में रखकर किये जायेंगे तो इसमें कोई शक नहीं कि हम जल्दी ही एक बाजारू समाज में तब्दील हो जायेंगे गाने किसी वर्ग समुदाय या काल के नहीं होते हैं वे कालातीत हैं किशोर ,रफ़ी जैसे गायक किसी पीढ़ी के गायक नहीं है |रेड एफ एम् का यह निर्णय एक पूरी पीढ़ी को हमारे गानों की सम्रद्ध विरासत से वंचित कर देगा हम बगैर इतिहास जाने अपने भविष्य का निर्माण नहीं कर सकते गानों में दौर आते जाते रहते हैं और इसका बड़ा कारण यह होता है कि हमें अपनी विरासत का पता होता है जिससे हम प्रेरणा लेते हैं | युवाओं को उनकी विरासत से काटने की नींव तैयार हो रही है,साथ ही उन्हें वह परोसा जा रहा है जिसका वह चाहकर भी विरोध नहीं कर सकते।यह दरअसल ताकत के प्रदर्शन से ज्यादा इस बात की ओर इशारा है कि एफएम अभी भी भारत में शैशवास्था में है, जहां लोगों को रिझाने के लिए ऐसे हथकंडे और दांव पेच का सहारा लिया जा रहा है। दुनिया जब उस दौर में आगे बढ़ रही है, जहां एफएम का अर्थ एक ऐसे मीडिया के रूप में लिया जा रहा है, जोश्रोताओं को गीतों के साथ जानकारी का खजाना सौंप रहा है वहां, इस प्रकार का हल्कापन...। क्या कहा जा सकता है बाजार के सौदागरों के बारे में जिनका मकसद केवल पैसा हो, फिर उसका खामियाजा भले ही कोई भुगते.लोग यही पसंद करते हैं का घटिया तर्क रेड एफ एम् के इस निर्णय के पीछे भी दिया जा रहा है वास्तव में भारत में रेडियो श्रोता अनुसंधान में कोई कांतिकारी कार्य नहीं हुआ इसीलिये हर एफ एम् चैनल अपने आप को किसी भी शहर में नंबर वन खुद ही घोषित कर लेता है कुछ सौ लोगों पर शहर के विभिन्न मॉल में किये गए ये सर्वे अवैज्ञानिक पद्धतियों पर आधारित होते हैं|जिसमे शोध की व्यवस्थित प्रणाली को नहीं अपनाया जाता है|विविध भारती के  श्रोता अनुसंधान एकांश की रिपोर्ट देखने से साफ़ पता चलता है कि जिन शहरों में विविधभारती एफ एम् बैंड पर आया है लोग इन निजी प्राइवेट एफ एम् चैनलों से मुंह मोड रहे हैं |इसके कई कारण है विविध भारती के पास गानों का विशाल संग्रह है और कार्यक्रमों में पर्याप्त रूप से विविधता छाया गीत को शुरू हुए चार दशक से ज्यादा का वक्त बीत गया पर उसकी लोकप्रियता आज भी बरकरार है|लोग नए गाने पसंद करते हैं इस तर्क को अगर मानकर विविध भारती के फोन इन कार्यक्रमों से इसकी तुलना की जाए तो स्थिति साफ़ हो जायेगी विविध भारती में साप्तहिक रूप से चार फोन इन कार्यक्रम आते हैं जिसमे सारे भारत से श्रौता गानों की फरमाईश करते हैं उसमे नब्बे प्रतिशत से ज्यादा गाने पुराने होते हैं,जबकि किसी शहर के प्राइवेट एफ एम् चैनल के पास इतनी श्रोता विविधता नहीं फिर भी इस तरह के कुतर्क का सहारा लिया जाता है कि लोग नए गाने ही सुनना चाहते हैं |यह गिरने सम्हलने का दौर है पर अगर बाजार के दबाव में गिरना है तो तथ्य यह भी है कि रेडियो एफ एम् स्टेशन के तृतीय चरण की नीलामी जून में शुरू होगी जिसमे 227 नए शहर जुडेंगे ,अभी वर्तमान में   86 शहर रेडियो की एफ एम् सेवा का लुत्फ़ उठा रहे है इसके बाद भारत में कुल एफ एम् चैनलों की संख्या 839 हो जाने की उम्मीद है सरकार  को उम्मीद है कि इससे  17|33 बिलियन रुपैये की आमदनी होगी|भारत में सर्वाधिक पहुँच वाला माध्यम रेडियो है इस नीलामी के बाद एफ एम् चैनलों की पहुँच में  कई नए शहर आयेंगे व्यवसाय की दृष्टि से भले ही यह फायदे का सौदा हो पर कंटेंट के स्तर पर भारत के एफ एम् चैनल   एक ठहरे मनोरंजक  माध्यम के रूप में तब्दील हो गए हैं |
जनसंदेश टाईम्स में 19/05/13  को प्रकाशित 

Friday, May 17, 2013

जीवन बंधन


एक रात उनींदी पलकों ने
मीठा सा एक स्वप्न बुना
जीवन की मधुर स्मृतियों में से
महका सा एक पुष्प चुना
फिर तुम्हारी यादें तुम्हारी बातें
मीठी रातें स्वप्निल सौगातें
नदी किनारा साथ तुम्हारा
सुंदर उपवन
महका तन मन
हाथों की नरमी
साँसों की गर्मी
तुम्हारा आलिंगन
जीवन बंधन
ढेरों बातें ढेरों कहानी
तुम सुनते थे मेरी जबानी

Wednesday, May 15, 2013

मैं क्यूँ लिखता हूँ


सुनो
मैं क्यूँ लिखता हूँ
भोली आशा
घोर निराशा
जीवन के हर कण को
मैं क्यूँ बिनता हूँ 
हार जीत के सपने को

सुख दुःख के ठगने को
मैं क्यूँ चुनता हूँ
सवाल कई हैं जवाब नहीं हैं
क्यूँ गिरता हूँ और सम्हलता हूँ
मैं क्यूँ लिखता हूँ
मन के सूनेपन को
जीवन के आलम्बन  को
क्यूँ सहेजता चलता हूँ
तुम भी वही हो
मैं भी वही हूँ
फिर दुनिया मेरी क्यूँ
बदल रही है
बताओ तो जरा
मैं क्यूँ लिखता हूँ ...........






Tuesday, May 14, 2013

इंटरनेट युग में विज्ञापन का कारोबार

समाज के साथ ही हर दौर में विज्ञापनों का रुझान भी बदल जाता है। लेकिन अब जो बदलाव आ रहा है, वह समाज की वजह से कम और तकनीक की वजह से ज्यादा है। विज्ञापन का मामला हमारे लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि हमारा मीडिया अपना खर्च विज्ञापनों के जरिये ही निकालता है। दूसरे शब्दों में विज्ञापन की आमदनी मीडिया के लिए सब्सिडी का काम करती है। इसलिए विज्ञापनों में बदलाव का एक अर्थ मीडिया के स्वरूप में बदलाव भी है।मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में मार्च 2014 तक ऑनलाइन विज्ञापन का बाजार 2,938 करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है। इन ऑनलाइन विज्ञापनों में सर्च, डिस्प्ले, मोबाईल, सोशल मीडिया, ई मेल और वीडियो विज्ञापनों को शामिल किया गया है। ये शुरुवात एक बड़े बदलाव की ओर इशारा कर रही है। अनलाइन विज्ञापन का सबसे बड़ा फायदा है सूचना सामग्री का तुरंत अपने लक्षित समुदाय (टारगेट अडिएंस) तक पहुँच जाना। इसमें समय स्थान की सीमाएं समाप्त हो जाती हैं। परम्परागत विज्ञापन के मुकाबले इनका निर्माण सस्ता भी पड़ता है। ये विज्ञापन टीवी और समाचार पत्र के विज्ञापनों से कईं मायनों में अलग होते हैं। परंपरागत मीडिया के विपरीत ऑनलाइन विज्ञापन पाठक की रुचि के अनुसान पेश किए जाते हैं। एक  दूसरा फर्क यह है कि दर्शक/पाठक विज्ञापन की सत्यता की जांच वेब पर कर सकता है और उसकी तुलना अन्य प्रतिस्पर्धी कंपनियों से कर सकता है। परंपरागत मीडिया में उपभोक्ताओं को उसी जानकारी पर निर्भर रहना पड़ता था जो उसे विज्ञापनदाता से मिल रही हैं। इंटरनेट पर बहुत से मंच और ब्लॉग वगैरह  उपभोक्ताओं के उनके साथ अनुभव की जानकारी भी देते हैं। ऑनलाइन विज्ञापनों की ओर बढ़ता रुझान बता रहा है कि भविष्य के विज्ञापन ज्यादा तथ्यपरकता लिए हुए होंगे और उनकी विश्वसनीयता को जांचा जा सकेगा। साल 2012 में ऑनलाइन विज्ञापनों से कुल 1,750 करोड़ रुपए की कमाई हुई थी पर मार्च 2013 तक इसी अवधि में 2,260 करोड़ रुपए की आमदनी हुई जो 29 प्रतिशत ज्यादा रही। इसी के साथ डिजीटल मीडिया पर होने वाला खर्च भी धीरे धीरे बढ़ रहा है साल 2005 में जहाँ यह विज्ञापनों पर कुल खर्च का एक प्रतिशत था वहीं 2012 में यह आंकड़ा सात प्रतिशत हो गया।

हालांकि ऑनलाइन विज्ञापनों से शिकायतें भी कम नहीं हैं। खासतौर पर पॉपअप विंडो के रूप में आने वाले विज्ञापनों से जो अक्सर पाठक और दर्शक के लिए बाधा बनते हैं। इन्हें तकनीक से रोका भी जा सकता है जो अंत में विज्ञापन दाता को ही नुकसान पहुंचाता है। कारोबार भले ही बढ़ रहा हो लेकिन इसका स्वरूप अभी निर्माण के दौर में है, इसलिए इसके रास्ते में कईं तरह की बाधाए आएंगी ही।
हिन्दुस्तान में 14/05/13 को प्रकाशित 

क्योंकि गर्मियां भी जरूरी हैं

मौसम कोई भी हो  पर कुछ चीजें हमेशा एक जैसी ही होती रहती हैं हमारे जीवन में कोई ज्ञान नहीं मेरा एक सिंपल ओब्सर्वेशन है इस साल बहुत गर्मी पड़ रही है आप भी इस तरह के जुमले सुमते हुए बड़े हुए होंगे और गर्मियां हर साल कमोबेश एक जैसी ही पड़ती हैं पर जब हम इसे ज्यादा महसूस करते हैं तो उसके बारे में ज्यादा बात करते हैं तो मौसम कोई भी हो हम जल्दी ही उससे उकता जाते हैं तो सारा खेल फील करने का,फील से याद आया आजकल लोग फील बहुत करने लग गए हैं. अब अगर आप कुछ महसूस कर रहे हैं तो अच्छी बात है कि आपके अंदर भावनाएं जिन्दा हैं पर अगर आप हर छोटी बड़ी बात फील करने लग गए तो समझ लीजिए आपके एटीट्यूड में दिक्कत है नहीं समझे भाई गर्मी के इस मौसम का पहला फंडा गर्मी है तो प्यास लगेगी पर प्यास लगने के लिए आप गर्मी को दोष नहीं देंगे,प्यास लगना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है गर्मी में प्यास ज्यादा लगती है लेकिन प्यास सिर्फ गर्मी के कारण लगती है ऐसा नहीं है तो अपनी असफलता का श्रेय दूसरों के सर न डालें बल्कि उसे मानकर अपने अंदर आवश्यक परिवर्तन लाएं. अब कुछ लोग ऐसे भी होते हैं कि अपनी फील्ड में जरा सा सफल हुए नहीं कि तुरंत फील करने लग गए कि बाकी के सारे लोग नकारा हैं.हमारे एक मित्र हैं जिन्हें ये गुमान हो गया कि वो रेडियो प्रोग्राम की दुनिया के बेताज बादशाह हैं बस फिर क्या गर्मी के इस मौसम में जब दिमाग को ठंडा रखना ज्यादा जरूरी है वो अपने अंडरट्रेनी लोगों को बेवकूफ मान सार्वजनिक रूप से उनकी बेइज्जती करने लग  गए पर जब तक उनके ज्ञान का दीपक जलता बेचारे उस रेडियो स्टेशन से बाहर हो गए और जिस ट्रेनी को वो बेवकूफ मानते थे वो उनका बॉस बन गया.गर्मी के इस मौसम में जहाँ लोग शरीर को ठंडा रखने के तरीके बताते हैं मेरा दूसरा फंडा है चिल, दिमाग को ठंडा रखने का क्यूँ कि आपकी कौन कब कहाँ बजा के निकल जाएगा किसी को नहीं पता अब ज्यादा उम्रदराज होना योग्यता का कोई पैमाना नहीं है.यदि आप अपना काम जानते हैं तो अच्छी बात है,उसे अपने जूनियर को भी सिखाइये  पर सफलता को दिमाग गर्माने का मौका नहीं दीजिए उसे ठंडा रखिये  नहीं तो एक दिन आप भी लोगों के लिए वो बाजा बन जायेंगे जिसकी कोई भी बजा देगा.मौसम गर्म है इसका मतलब ये भी नहीं है कि ये मौसम बेकार है.हर मौसम की अपनी अहमियत है.गर्मी न होती तब हमारे जीवन में कितनी यादें न होतीं वो गर्मियों की छुट्टी,वो स्कूल खुलने का इंतज़ार और सबसे मजेदार बार बार नहाने से हुआ प्यार.हम गर्मी को तभी समझ पाते है जब हम जाड़े को जी के आते हैं मौसम कैसा भी हो  जिंदगी तो किसी भी हालत में चलती रहती है फिर गर्मियां बीतेंगी और बारिश आयेगी तो तीसरा फंडा उम्मीद का दामन मत छोडिये कोई भी चीज हमेशा के लिए नहीं है.चेंज इज इनेवीटेबल तो आप मौसम को बदलने के कोशिश में अपने शरीर को ठंडी चीजों का इतना आदी न बना दीजिए कि हमारा शरीर जरा सी गर्मी भी बर्दाश्त कर पायें बात एक दम सीधी है बदलाव के लिए तैयार रहें.यादों के साथ जीयें लेकिन उनसे चिपके नहीं जो बीत गया वो बीत ही गया,रिश्तों में अगर जज्बातों की गर्मी नहीं होती है तो वे औपचारिक हो जाते हैं.आप लोगों को नहीं बदल सकते पर अपने आप को तो बदल सकते हैं उन लोगों के लिए जो आपके अपने हैं.यूँ कि ज्ञान देने की आदत तो हमारी है नहीं अब अगर मेरी बातों से आपके दिमाग का दीपक जला है तो फिर इन्तजार किस बात का  चलिए गर्मियों का लुत्फ़ उठाया जाए.
आई नेक्स्ट में 14/05/13को प्रकाशित 

Monday, May 13, 2013

क्या कुपोषण से लड़ पायेगा खाद्य सुरक्षा बिल

खाद्य सुरक्षा विधेयक अभी भी कानून बनने के इंतज़ार में हैं जिसके अंतर्गत गरीबों को सस्ता अनाज मुहैया कराने का वायदा किया गया है ग्रामीण क्षेत्र में इस विधेयक के दायरे में 75 प्रतिशत आबादी आएगी, जबकि शहरी क्षेत्र में इस विधेयक के दायरे में 50 प्रतिशत आबादी आएगी,वहीं देश में प्रति व्यक्ति खाद्यान्न उपलब्धता 2010 के मुकाबले 2011 में 25.8 ग्राम बढ़कर 462.9 ग्राम प्रतिदिन हो गई। 2010 में यह 437.1 ग्राम थी,यानि देश में खाद्य संकट नहीं है पर जो लोग अनाज उपजा रहे हैं वही भुखमरी और कुपोषण का शिकार हैं|किसी भी देश के अन्नदाता वहां के किसान होते हैं| जिनके खेतों में उगाए अन्न को खा कर राष्ट्र स्वस्थ मानव संसाधन का निर्माण करता है|आंकड़ों के आईने में देश ने काफी तरक्की की है पर वास्तविकता के  धरातल पर इस प्रश्न का उत्तर मिलना अभी बाकी है कि भारत के किसानों का परिवार कुपोषण और खराब स्वास्थ्य  का शिकार कब और कैसे होने लग गए |इस देश का कृषक मजदूर वर्ग पोषित खाद्य पदार्थ से महरूम क्यों है जिसका सीधा असर बच्चों के स्वास्थ्य और बढ़ती बाल म्रत्यु दर में हो रहा है|साल 2011 में, दुनिया के अन्य देशों की मुकाबले भारत में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की सबसे ज्यादा मौतें हुईं।ये आंकड़ा समस्या की गंभीरता को बताता है जिसके अनुसार भारत में  प्रतिदिन 4,650 से ज्यादा पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु होती है|संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनिसेफ की नई रिपोर्ट यह बताती है कि बच्चों के स्वास्थ्य के मामले में अभी कितना कुछ किया जाना है| भारत डायरिया से होने वाली मौतों के मामले में सबसे आगे  है। 2010 में जितने बच्चों की मृत्यु हुई, उनमें 13 प्रतिशत की मृत्यु वजह की डायरिया ही था| दुनिया में डायरिया से होने वाली मौतों में अफगानिस्तान के बाद भारत का ही स्थान  है।रिपोर्ट के मुताबिक भारत जैसे देशों में डायरिया की मुख्य वजह साफ़ पानी की कमी, और निवास के स्थान के आस पास गंदगी का होना है जिसकी एक वजह खुले में मल त्याग भी है |गंदगी ,कुपोषण और मूलभूत स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव मिलकर एक ऐसा दुष्चक्र रचते हैं जिनका शिकार ज्यादातर गांवों में होने वाले बच्चे बनते हैं| सरकार का रवैया इस दिशा में कोई खास उत्साह बढ़ाने वाला नहीं रहा है देश के सकल घरेलु उत्पाद (जी डी पी ) का 1.4 प्रतिशत स्वास्थ्य सेवाओं  पर खर्च किया जाता है जो कि काफी कम है सरकार ने इसे बढ़ाने का वायदा तो किया पर ये कभी पूरा हो नहीं पाया |2008 में आयी स्टेट फ़ूड इनसिक्योरिटी इन रूरल इंडिया की ये रिपोर्ट आँखें खोल देने का काम करती है जिसके अनुसार भारत की कुल जनसँख्या का इक्कीस प्रतिशत हिस्सा कुपोषण का शिकार है जाहिरा तौर पर इस संख्या में बड़ा हिस्सा भारत के ग्रामीण तबके का है|सवाल उठना इसलिए भी लाजिमी है कि जो अन्न वो अपने खेतों में उपजाता है उसकी सही कीमत उसे नहीं मिलती और उसका फायदा बिचौलिए उठाते हैं,अन्न की सही कीमत न मिल पाने का कारण आर्थिक रूप से किसान की  स्थिति में कोई आश्चर्यजनक बदलाव नहीं होते, वो अपने ही उगाए अन्न से दूसरों को पोषण देता है पर खुद का परिवार कुपोषित होता रहता है|कुपोषण का परिणाम स्वास्थ्य संबंधी विभिन्न समस्याओं के रूप में सामने आता है और गावों में स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत किसी से छुपी नहीं है|ऐसे में किसान सब कुछ नियति का खेल मान निर्धनता,कुपोषण और अशिक्षा के दुष्चक्र में घूमने के लिए अभिशप्त रहता है| इसके  सबसे ज्यादा शिकार छोटे और मझोले किसान होते हैं| कृषि उत्पादन में स्थिरता  और कृषि लागत में  बढोत्तरी के  परिणाम स्वरूप पैदा हुए आर्थिक संकट ने किसानों की आय घटा दी है। सस्ते कर्ज की अनुपलब्धता स्थिति को और भी जटिल बना देती है|सरकारी नीतियां बड़े किसानों, चुनिंदा नगदी फसलों और ऊँची  लागत वाली कृषि उत्पादन पद्धति को महत्त्व देती हैं।देश को अभी भी अपने अन्नदाता का पेट ही नहीं भरना है बल्कि उसे एक बेहतरीन मानव संसाधन में भी बदलना है जिससे भारत गर्व से कह सके कि हमारी अर्थव्यवस्था कृषि आधारित है |

गाँव कनेक्शन के 12/05/13 अंक में प्रकाशित 

Sunday, May 12, 2013

चिट्ठी माँ के नाम

"पूजनीय माता जी के चरणों में बहुतेरा 
करता है प्रणाम यह प्यारा बेटा तेरा 
आशा है अच्छे होंगे सब लोग वहां पर 
राहुल जी हम लोग सभी हैं कुशल यहाँ पर 
बिन तुम्हारे माँ यहाँ न कोई बात सुहाती 
क्या जाने क्यों तेरी सुधि मुझको आती 
जब भोजन करने जाता हूँ 
और वहां तुझे बैठा नहीं पाता हूँ 
क्या जाने क्यूँ मुझको भोजन नहीं भाता 
खाता हूँ पर स्वाद नहीं आता है 
यह न समझना मुझे कष्ट देता है कोई
या मेरी सुधि नहीं लेता कोई
तेरी याद में ,मैं दिन भर रोया करता हूँ
                                                                     जीवन के अगणित क्षण यूँ ही खोया करता हूँ "


Tuesday, May 7, 2013

पसंद आया हो तो