एक रात उनींदी पलकों ने
मीठा सा एक स्वप्न बुना
जीवन की मधुर स्मृतियों में से
महका सा एक पुष्प चुना
फिर तुम्हारी यादें तुम्हारी बातें
मीठी रातें स्वप्निल सौगातें
नदी किनारा साथ तुम्हारा
सुंदर उपवन
महका तन मन
हाथों की नरमी
साँसों की गर्मी
तुम्हारा आलिंगन
जीवन बंधन
ढेरों बातें ढेरों कहानी
तुम सुनते थे मेरी जबानी
3 comments:
ढेरों बातें ढेरों कहानी...
kavita kahani ko zubaan de rhi h sir ji..
अनुभव का बेहतरीन कोलाज। बीते दिन इसी तरह महकते हैं-भावों में, शब्दों में, वाक्यों में। यह जताते हैं कि आप बीते लम्हों में क्या कुछ देख-गुन चुके हैं....ये बातें शिद्दत से याद आती हैं। अपने यादास्त को ‘कोल्डड्रिंक’ पिलाने की जरूरत नहीं पड़ती है।
यह कविता दर्शाती है कि कैसे पुरानी यादें आज भी रातों की नींद चुरा सकती हैं। लेखक आज भी पुरानी बातों को याद कर ग़महीन हो जाता है, और कैसे उसे अपने प्रिय के साथ बिताए सारे लम्हे ऐसे याद हैं जैसे की कल की ही बात हो।
-Sumbul Imran
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