अतीतविहीन पीढ़ी के भविष्य की कल्पना कीजिए...! एक तरफ जहां हम सिनेमा के सौ साल का जश्न मना रहे हैं, वहीं एक प्राइवेट एफ एम् रेडियो चैनल हमें उस स्वर्णिम समय के गीतों से महरूम रखने की कोशिश कर रहा है। सोचिए क्या हो जब गुलाबी नींद में हों और एकदम से गीत बजने लगे, 'मेरी फोटो को सीने से यार चिपका ले सैयां फेवीकोल से...बजाते रहो कि टैग लाइन के साथ आज के ज़माने का रेडियो स्टेशन होने का दावा करने वाला रेड एफ एम् चैनल कहता है कि अगर उसके चैनल पर 2005 के पहले के गाने बज गए तो वे श्रोता को 935,000 रुपैये देंगे उनका मानना है कि “पापा तो बैंड बजायेगा” क्योंकि “पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा” पुरानी बात हो गयी तो आधुनिक होने के लिए पापा को बैंड बजाना पड़ेगा |भारत अद्भुत देश है जहाँ सारी दुनिया भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष पूरे होने का जश्न मना रही है|बी बी सी सबसे महानतम हिन्दी गीत पर ऑनलाइन वोटिंग करा रही है वहीं रेड एफ एम् चैनल का यह निर्णय कि वे 2005 के बाद के ही फ़िल्मी गीत अपने रेडियो चैनल पर बजायेंगे यह बताता है कि अभी भारत में एफ एम् रेडियो को एक लंबा रास्ता तय करना है और इस रास्ते के केंद्र में सिर्फ मुनाफा और बाजार है|वह मानते हैं कि उनका टारगेट ग्रुप (टीजी) युवा हैं। क्या इस तर्क पर आप कुछ कह सकते हैं? नहीं।भाई आपकी चीज है आप जिसे चाहें उसे बेंचे। लेकिन सवाल तो उठता ही है कि क्या कुछ भी मांग के नाम पर बेचेंगे? क्या इससे किसी का सहज अधिकार छीन लेंगे क्योंकि चीज आपकी है? यह ठीक वैसा है, जैसे हम आपके लिए विकल्प सीमित कर दें और फिर कहें कि आप केवल यही ले सकते हैं क्योंकि इसके अलावा हमारे पास से तो कुछ मिलेगा ही नहीं।जिसमे आप युवाओं पर अपना ध्यान केंद्रित कर सकें पर मुद्दा यह है कि एजेंडा सेटिंग अवधारणा के हिसाब से और मीडिया में बढ़ती यह विशेषी करण की प्रवृति जनमाध्यम के दर्शन के हिसाब से गलत है यदि कोई अखबार या चैनल यह फैसला कर ले तो दर्शकों और पाठकों को महज एक पक्षीय जानकारी ही मिलेगी सूचना समाज के इस युग में इस तरह का निर्णय यह बताता है कि सूचना साम्रज्यवाद किस तरह से अपना नकारात्मक असर डाल रहा है और रेड एफ एम् का एक मात्र लक्ष्य अपने लाभ को अधिकाधिक करना है इसके लिए अगर श्रोताओं के हितों से समझौता करना पड़े तो भी कोई बात नहीं है |हमारे समाज में फ़िल्मी गानों का बड़ा असर रहा है कम से काम मॉस के स्तर पर, क्लास को इससे परेशानी होती रही है पर तू हिंदू बनेगा न मुसलमान बनेगा इंसान की औलाद है इन्सान बनेगा या इंसान का इंसान से हो भाईचारा यही पैगाम हमारा, जैसे गीत अब कहाँ रचे जाते हैं रेडियो का एक माध्यम के रूप में सिर्फ मनोरंजन करना ही काम नहीं है बल्कि उनकी रुचियों को बेहतर बनाना भी है ऐसे में अगर सारे निर्णय सिर्फ बाजार को ध्यान में रखकर किये जायेंगे तो इसमें कोई शक नहीं कि हम जल्दी ही एक बाजारू समाज में तब्दील हो जायेंगे गाने किसी वर्ग समुदाय या काल के नहीं होते हैं वे कालातीत हैं किशोर ,रफ़ी जैसे गायक किसी पीढ़ी के गायक नहीं है |रेड एफ एम् का यह निर्णय एक पूरी पीढ़ी को हमारे गानों की सम्रद्ध विरासत से वंचित कर देगा हम बगैर इतिहास जाने अपने भविष्य का निर्माण नहीं कर सकते गानों में दौर आते जाते रहते हैं और इसका बड़ा कारण यह होता है कि हमें अपनी विरासत का पता होता है जिससे हम प्रेरणा लेते हैं | युवाओं को उनकी विरासत से काटने की नींव तैयार हो रही है,साथ ही उन्हें वह परोसा जा रहा है जिसका वह चाहकर भी विरोध नहीं कर सकते।यह दरअसल ताकत के प्रदर्शन से ज्यादा इस बात की ओर इशारा है कि एफएम अभी भी भारत में शैशवास्था में है, जहां लोगों को रिझाने के लिए ऐसे हथकंडे और दांव पेच का सहारा लिया जा रहा है। दुनिया जब उस दौर में आगे बढ़ रही है, जहां एफएम का अर्थ एक ऐसे मीडिया के रूप में लिया जा रहा है, जोश्रोताओं को गीतों के साथ जानकारी का खजाना सौंप रहा है वहां, इस प्रकार का हल्कापन...। क्या कहा जा सकता है बाजार के सौदागरों के बारे में जिनका मकसद केवल पैसा हो, फिर उसका खामियाजा भले ही कोई भुगते.लोग यही पसंद करते हैं का घटिया तर्क रेड एफ एम् के इस निर्णय के पीछे भी दिया जा रहा है वास्तव में भारत में रेडियो श्रोता अनुसंधान में कोई कांतिकारी कार्य नहीं हुआ इसीलिये हर एफ एम् चैनल अपने आप को किसी भी शहर में नंबर वन खुद ही घोषित कर लेता है कुछ सौ लोगों पर शहर के विभिन्न मॉल में किये गए ये सर्वे अवैज्ञानिक पद्धतियों पर आधारित होते हैं|जिसमे शोध की व्यवस्थित प्रणाली को नहीं अपनाया जाता है|विविध भारती के श्रोता अनुसंधान एकांश की रिपोर्ट देखने से साफ़ पता चलता है कि जिन शहरों में विविधभारती एफ एम् बैंड पर आया है लोग इन निजी प्राइवेट एफ एम् चैनलों से मुंह मोड रहे हैं |इसके कई कारण है विविध भारती के पास गानों का विशाल संग्रह है और कार्यक्रमों में पर्याप्त रूप से विविधता छाया गीत को शुरू हुए चार दशक से ज्यादा का वक्त बीत गया पर उसकी लोकप्रियता आज भी बरकरार है|लोग नए गाने पसंद करते हैं इस तर्क को अगर मानकर विविध भारती के फोन इन कार्यक्रमों से इसकी तुलना की जाए तो स्थिति साफ़ हो जायेगी विविध भारती में साप्तहिक रूप से चार फोन इन कार्यक्रम आते हैं जिसमे सारे भारत से श्रौता गानों की फरमाईश करते हैं उसमे नब्बे प्रतिशत से ज्यादा गाने पुराने होते हैं,जबकि किसी शहर के प्राइवेट एफ एम् चैनल के पास इतनी श्रोता विविधता नहीं फिर भी इस तरह के कुतर्क का सहारा लिया जाता है कि लोग नए गाने ही सुनना चाहते हैं |यह गिरने सम्हलने का दौर है पर अगर बाजार के दबाव में गिरना है तो तथ्य यह भी है कि रेडियो एफ एम् स्टेशन के तृतीय चरण की नीलामी जून में शुरू होगी जिसमे 227 नए शहर जुडेंगे ,अभी वर्तमान में 86 शहर रेडियो की एफ एम् सेवा का लुत्फ़ उठा रहे है इसके बाद भारत में कुल एफ एम् चैनलों की संख्या 839 हो जाने की उम्मीद है सरकार को उम्मीद है कि इससे 17|33 बिलियन रुपैये की आमदनी होगी|भारत में सर्वाधिक पहुँच वाला माध्यम रेडियो है इस नीलामी के बाद एफ एम् चैनलों की पहुँच में कई नए शहर आयेंगे व्यवसाय की दृष्टि से भले ही यह फायदे का सौदा हो पर कंटेंट के स्तर पर भारत के एफ एम् चैनल एक ठहरे मनोरंजक माध्यम के रूप में तब्दील हो गए हैं |
जनसंदेश टाईम्स में 19/05/13 को प्रकाशित
जनसंदेश टाईम्स में 19/05/13 को प्रकाशित
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