Thursday, December 23, 2021
कार्यक्षेत्र में घटती महिलाओं की हिस्सेदारी
Monday, December 20, 2021
ओ टी टी वही आगे ,जिसमें लगा है देशी तड़का
उदाहरण के लिए, बालाजी टेलीफिल्म्स की सहायक कंपनी ऑल्ट बालाजी ने सितंबर 2021 तक 1.8 मिलियन उपभोक्ताओं को जोड़ा , जो तीन साल पहले के 280,000 से कई गुना अधिक है। जी फाईव और सोनी लिव जैसे अन्य प्लेटफार्मों को न केवल भारत में बल्कि प्रवासी विदेशी दर्शकों ने सर माथे पर बिठाया है |ये भारत की विविधता का ही कमाल है कि सारी दुनिया में अपने उपभोक्ताओं की संख्या के मामले में बड़ा नाम बन चुके नेटफ्लिक्स और अमेजॉन के सितारे भारत में इतने बुलंद नहीं हैं |स्ट्रीमिंग गाईड जस्ट वाच की एक रिपोर्ट के अनुसार 2021 की तीसरी तिमाही में डिज्नी प्लस हॉटस्टार पच्चीस प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ पहले स्थान पर है। इस सूची में दूसरे स्थान पर अमेजन प्राइम वीडियो है, जिसकी वृद्धि दर उन्नीस प्रतिशत है और वहीं नेटफ्लिक्स इन तीनों में सबसे पीछे तीसरे स्थान पर है और उसकी वृद्धि दर सत्रह प्रतिशत है, जिसमें पहले के मुकाबले कमी आई है। डिज्नी प्लस हॉटस्टार लगातार तीसरी बार सबसे ज्यादा वृद्धि के साथ पहले स्थान पर बना हुआ है। इसी साल जनवरी में डिज्नी प्लस हॉटस्टार की वृद्धि दर बीस प्रतिशत थी जो तीसरी तिमाही यानी सितंबर तक बढ़कर पच्चीस प्रतिशत हो गयी |
इसका सीधा असर नेटफ्लिक्स के ऊपर हुआ , जिसकी वृद्धि दर दूसरी तिमाही के मुकाबले तीसरी तिमाही में दो प्रतिशत कम हुई है। डिज्नी प्लस हॉटस्टार और अमेजन प्राईम की सफलता का एक बड़ा कारण इन प्लेटफोर्म पर लगातार भारतीय भाषाओं में कंटेंट ओरिजनल कंटेंट का उपलब्ध कराया जाना भी है जबकि नेटफ्लिक्स पर उपलब्ध ज्यादातर कंटेंट अंग्रेजी या अन्य यूरोपीय भाषाओं में हैं हालाँकि नेटफ्लिक्स अपने कंटेंट को भारतीय भाषाओं में डब कर रहा है पर क्षेत्रीयता के मामले में डिज्नी प्लस हॉटस्टार के कंटेंट में ज्यादा भारतीयता दिखती है और अमेजन भी भारतीय दर्शकों को ध्यान में रखते हुए कार्यक्रम परोस रहा है |दूसरा कारण अमेज़ॅन प्राइम परिवार के सदस्यों के लिए अलग-अलग खातों का उपयोग नहीं करता है - क्योंकि यह सब अमेज़ॅन प्राइम छतरी के नीचे है। आप अलग-अलग डिवाइस पर एक ही शो और फिल्में देखने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन अगर एक ही समय में आपके खाते पर बहुत से लोग स्ट्रीमिंग कर रहे हैं तो आपकी स्क्रीन पर एक संदेश आएगा ।नेटफ्लिक्स आपके प्लान के आधार पर, एक से चार दर्शकों के बीच कहीं भी कार्यक्रम देखने की सुविधा देता है। इस सबमें अपेक्षाकृत रूप से डिज्नी प्लस हॉटस्टार सेवा सबसे उदार है। जो अपनी सदस्यता चार उपकरणों पर स्ट्रीमिंग की अनुमति देती है, जिसमें सात अलग-अलग प्रोफाइल बनाने का विकल्प भी होता है और भारत में इसकी लोकप्रियता का यह एक बड़ा कारण भी है |
आंकड़ों से इतर इतिहास गवाह है कि इंसानी व्यवहार में परिवर्तन कभी पीछे की ओर नहीं लौटता |कोविड काल ने हमारी जीवन की दिनचर्या के हर क्षेत्र में असर डाला है और इनमें से बहुत सी चीजें अब हमेशा हमारे जीवन का हमेशा के लिए अंग बन जायेंगी |ओटीटी प्लेटफोर्म पर समय बिताना उनमें से ही कुछ एक है |हालाँकि ओटी टी पर अश्लीलता फैलाने के आरोप भी हैं पर कंटेंट के तौर पर जो विविधता है वो अब टेलीविजन के पास नहीं है उपर से असमय विज्ञापनों की भरमार दर्शकों की कार्यक्रम में तल्लीनता को तोडती है |तथ्य यहं भी है कि पारम्परिक रूप से फिल्मों को पहली टक्कर टेलीविजन से मिली फिर वी सी आर उसके बाद सी डी/डी वी डी आया पर हमारे सिनेमा हाल रूप बदल बदल कर इन सब चुनौतियों का समाना करते रहे |ओटीटी प्लेटफोर्म से मिलती इस चुनौती का सामना टीवी और फिल्म उद्योग कैसे करेगा इसका फैसला अभी होना है |
नवभारत टाईम्स में 20/12/2021 को प्रकाशित लेख
Saturday, December 18, 2021
साइबर हमला और भारत
हालंकि केन्द्रीयसरकार ने इस तरह के साइबर हमले को नहीं माना था | अमेरिकी कंपनी आईबीएम (IBM) की साइबर हमलों की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में साल 2020 में भारत एक तरफ कोरोना महामारी से लड़ रहा था,तो उसे दूसरी तरफ साइबर हमलों से पूरे एशिया-प्रशांत इलाके में भारतको जापान के बाद सबसे ज्यादा साइबर हमले झेलने पड़े| महतवपूर्णहै कि सबसे ज्यादा साइबर हमले बैंकिंग और बीमा क्षेत्र से जुडी हुई कंपनियों परहुए| 2020 में एशिया में हुए कुल साइबर हमलों में से सातप्रतिशत भारतीय कंपनियों पर हुए | इंटरनेट के बढते विस्तार ने सायबर हमले की सम्भावना को बढ़ाया है|साइबर हमले कई तरह से हो सकते है जैसेवेबसाइट डिफेंसिंग इसमें किसी सरकारी वेबसाइट को हैक कर उसकी द्रश्य दिखावट को बदलदिया जाता है।जिससे यह पता चलता है कि अमुक वेबसाईट साइबर हमले का शिकार हुई है |दूसरा तरीका है फिशिंग या स्पीयर फिशिंग अटैक जिसमे हैकर ईमेल या मैसेज के जरिए लिंकभेजता है , जिस पर क्लिक करते ही कंप्यूटर या वेबसाईट कासारा डाटा लीक हो जाता है।इसके अलावा बैकडोर अटैक भी एक तरीका है जिसमें कम्प्यूटरमें एक मालवेयर भेजा जाता है, जिससे उपभोक्ता की सारीसूचनाएं मिल सके। देश को साइबर हमलों से बचाने के लिए भारत में दो सस्थाएं हैं। एकहै सी ई आर टी जिसे कंप्यूटर इमरजेंसी रेस्पॉन्स टीम के नाम से जाना जाता है। इसकी स्थापना साल 2004 में हुई थी। दूसरी संस्था का नाम नेशनल क्रिटिकल इंफॉर्मेशन इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोटेक्शन सेंटर है | जो रक्षा ,दूरसंचार,परिवहन ,बैंकिंग आदि क्षेत्रों की साइबर सुरक्षा के लिए उत्तरदायी है | ये 2014 से भारत में काम कर रही है। भारत में अभी तक साइबर हमलों के लिए अलग से कोई कानून नहीं है। साइबर हमलों के मामले में फिलहाल आईटी एक्ट के तहत ही कार्रवाई होती है जिसमें वेबसाइट ब्लॉक तक करने तक केप्रावधान हैं लेकिन न तो प्रावधान प्रभावी हैं और न ही पर्याप्त ।
केंद्रीय शिक्षा,संचार तथा इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अनुसारदेश में जनवरी से मार्च, 2020 के बीच देश में 1,13,334,अप्रैल से जून के बीच 2,30,223 और जुलाई सेअगस्त से बीच 3,53,381 साइबर हमले हुए हैं।वहीं साल 2017-18में साइबर अटैक से निपटने के लिए 86.48 करोड़दिए गए जिनमें से 78.62 करोड़ रुपये खर्च किए गए। साल 2018-19में 141.33 करोड़ रुपये जारी किये गए हुए,जबकि खर्च 137.38 करोड़ रुपये ही हुए। साल 2019-20में साइबर फंड के नाम पर 135.75 करोड़ रुपयेदिए गए हैं जिनमें से मात्र 122.04 करोड़ रुपये ही खर्च हुएहैं।कंप्यूटर की दुनिया ऐसी है जिसमें अनेक प्रॉक्सी सर्वर होते हैं और दुनिया भरमें फैले इंटरनेट के जाल पर दुनिया की कोई सरकार हमेशा नजर नहीं रख सकती ऐसे मेंजागरूकता के साथ बचाव की रणनीति ही देश को इन साइबर हमलों से बचा सकती है |एक आँकड़े के मुताबिक़ भारत दुनिया के उन शीर्षपाँच देशों में है, जो साइबर क्राइम से सबसेज़्यादा प्रभावित हैं| पहले हैकर्स जहाँ भारतीय वेबसाइटों पर उन देशों के समर्थन में नारे लिख देते थे|जिस देश के लिए वो काम कर रहे होते थे | पर ये परम्परा साल 2013-14के बाद से बदली है और चुपचाप किए गए साईबर हमलों की मदद से जासूसी की जाती है| ऐसे समय जब साइबर दुनिया में चुनौतियाँ लगातार बढ़ रही हैं, इन चुनौतियों से निपटने केलिए एक स्पष्ट रणनीति की कमी साफ़ दिखती है|भारत में साइबर ख़तरों से निपटने के लिए पिछली राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति 2013में आई थी, लेकिन पिछले आठ सालों में इंटरनेटकी दुनिया में भारी बदलाव आए हैं| स्पष्ट नीति के न होने से वजह से बहुत सारी असैन्यसंस्थाएँ उन पर हुए साइबर हमलों के बारेमें जानकारी नहीं देती, क्योंकि उनके लिए क़ानूनी तौर पर ऐसा करना ज़रूरी नहीं है| साइबर हमलों से बचने के लिए देश के लिए यह जरुरी है कि इंटरनेटके लिए जरुरी महत्वपूर्ण तकनीकी मूलभूत सुविधाओं जैसे राऊटर्स, स्विच , सुरक्षा उपकरणों के उत्पादन में आत्मनिर्भर बने|वर्तमान स्थिति में यह देश के लिए ये आसान नहीं होगा, क्योंकि भारतीय ऊर्जा स्टेशंस, मोबाइल नेटवर्क जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में चीनी उपकरणों का वर्चस्व है| इसी तरह रक्षा क्षेत्र में पश्चिम से आयातित उपकरणों का इस्तेमाल होता है |
दैनिक जागरण राष्ट्रीय संस्करण में 18/12/2021 को प्रकाशित
Wednesday, December 8, 2021
आओ चलें गाँव की ओर
मई लगते ही सूरज अपने तेवर दिखाना शुरू कर देता है। स्कूल
कॉलेज की छुट्टियाँ जहाँ समर कैंप्स की रौनक बढ़ा देती है वहीं आर्थिक रूप से
समर्थ लोग किसी हिल स्टेशन पर सुक़ून भरे समय की तलाश में निकल पड़ते हैं। जब ऐसे
ज़्यादातर लोग गर्मियाँ एंज्वॉय कर रहे होते हैंठीक उसी समयकिसी सुदूर गाँव में
हमारा अन्नदाता अपनी अपनी नंगी झुलसी चमड़ी पर सूरज का तापमान माप रहा होता है।
लहलहाती पकी फ़सल को देखकर आंखो में चमक के साथ चेहरे पर चिंता की झुर्रियां उसके
किसान होने का प्रमाण देती हैं। एक ऐसे देश का किसान जिसके खुरदुरे कंधों पर टिकाकर हम तरक्की की सीढ़ियाँ
चढ़ रहे है। पर खुद उसकी आजीविका अभी भी सूर्य और इंद्रदेवता की मेहरबानी पर टिकी
है|गाँव तो बेचारा है यादों में रहने वाले गाँव की हकीकत उतनी
रूमानी नहीं है इस तथ्य को समझने के लिए
किसी आंकड़े की जरुरत नहीं है| गाँव में वही लोग बचे हैं जो पढ़ने शहर
नहीं जा पाए या जिनके पास अन्य कोई विकल्प नहीं है| दूसरा
ये मिथक कि खेती एक लो प्रोफाईल प्रोफेशन है जिसमे कोई ग्लैमर नहीं है फिर क्या
गाँव धीरे धीरे हमारी यादों का हिस्सा भर हो गए हैं | जो एक दो दिन पिकनिक
मनाने के लिए ठीक है | शायद इसीलिये गाँव खाली हो
रहे हैं और शहर जरुरत से ज्यादा भरे हुए |आखिर समस्या कहाँ है |गाँव को पुरानी
पीढ़ी ने इसलिए पीछे छोड़ा क्योंकि तरक्की
का रास्ता शहर से होकर जाता था | फिर जो गया उसने मुड़कर गाँव की सुधि नहीं
ली |क्योंकि गाँव के लोग शहर जाकर कमा रहे
थे पर गाँव आर्थिक रूप से पिछड़े ही रहे |एक तरफ 6 लाख छोटे
गाँव और दूसरी तरफ 600 शहर, कोई भी
जागरूक और धन से संपन्न ग्रामीण शहर ही जाना चाहेगा और हुआ भी कुछ ऐसा ही| दुनिया
की हर विकसित अर्थव्यवस्था ऐसे ही आगे बढ़ी है जिसमे कृषि क्षेत्र की उत्पादकता को
बढ़ाया गया और बची श्रम शक्ति को औद्योगिकी करण में इस्तेमाल किया गया|भारत के गाँव के सामने विकल्प हैं पर यदि समय रहते इनको आज़मा लिया जाए|गाँव
से पलायन इसलिए होता है कि वहां सुविधाएँ नहीं है सुविधाएँ के लिए धन की जरुरत है,
और वो दो तरीके से आ सकता है| पहला सरकार
द्वारा दूसरा पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप से|सरकार अपनी प्राथमिकताओं के हिसाब से
काम करती है| इसमें अगर तेजी लानी है तो पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप को बढ़ावा
देना होगा| अब यहाँ समस्या ये है कि गाँव ,जनसंख्या के
अनुपात में शहरों से काफी छोटे होते हैं|
इसलिए आधारभूत सेवाओं के विकास में लागत बढ़ जाती है और इनकी वसूली में भी देर
होती है| जिससे निजी निवेशक पैसा लगाने से कतराते हैं| दूसरी समस्या ग्रामीण
जनसँख्या का आर्थिक रूप से कमज़ोर होना भी
है क्योंकि जो जनसंख्या वर्ग दो वक्त की रोटी के लिए जूझ रहा हो |उसे सुविधाओं की जरूरत
बाद में होगी |इसी मानक को आधार बना कर शहरों की ओर ज्यादा ध्यान दिया जाता है| जिससे गाँव विकास की दौड में पीछे छूट जाते हैं |
इससे ग्राम पलायन के एक ऐसे दुष्चक्र का निर्माण होता है जिससे देश आज तक जूझ रहा
है| सुविधाओं के अभाव में जिसको मौका मिलता है वो लोग गाँव छोड़ देते हैं| क्योंकि
शहर में बिजली पानी और सडक की स्थिति गाँव
से बेहतर है | ऐसे लोग दुबारा गाँव नहीं लौटते|खेती
छोटे और मझोले किसानों के लिए अब फायदे का सौदा नहीं रही |जोत छोटी होने के कारण खेती
में लागत ज्यादा आती है और लाभ कम होता है , एक और कारण गाँव
में आधारभूत सुविधाओं का अभाव समस्याओं को बढाता है और ये दुष्चक्र चलता रहता है |ग्रामीण
अर्थव्यवस्था इस हद तक खेती के के इर्द गिर्द घूमती है कि कोई और विकल्प उभर ही
नहीं पाया, हमारे खेत और गाँव के
उत्पाद अपनी ब्रांडिंग करने में असफल रहे. खेती में नवचारिता वही किसान कर पाए
जिनकी जोतें बड़ी थीं और आय के अन्य स्रोत थे| ऐसे लोग आज भी सफल हैं और अक्सर
मीडिया की प्रेरक कहानियों का हिस्सा बनते हैं किन्तु ऐसे लोगों की संख्या
बहुत कम है.सहकारी आंदोलन की मिसाल लिज्जत पापड और अमूल दूध जैसे कुछ गिने चुने
प्रयोगों को छोड़कर ऐसी सफलता कहानियां दुहराई नहीं जा सकीं.जिसका परिणाम ये हुआ
कि गाँवों को शहर लुभाने लग गए और गाँव शहर बनने चल पड़े गाँव शहरों की संस्कृति
को अपना नहीं पाए पर अपनी मौलिकता को भी नहीं बचा पाए जिसका परिणाम ये हुआ कि अपनी
चिप्स और सिरका दोयम दर्जे के लगने लग गए पर यही ब्रांडेड चीजें अच्छी पैकिंग में
हमें लुभाने लग गयीं हम अपनी सिवईं को भूल कर नूडल्स को दिल दे बैठे आखिर इनके
विज्ञापन टीवी से लेकर रेडियो तक हर जगह हैं पर अपना चियुड़ा,गट्टा किसी और देश का लगता है पारम्परिक कुटीर उद्योग और कला ब्रांडिंग और मार्केटिंग के अभाव में
रोजगार का अच्छा विकल्प नहीं बन पाए तो पर्यटन के अवसरों को कभी पर्याप्त दोहन
किया ही नहीं गया नतीजा एक ऐसे गाँव में रहना जहाँ सुविधाएँ नहीं वहां के लोग
शहर जाकर मजदूरी करना बेहतर समझते हैं बन्स्बत अपने गाँव में रहकर खेती करना,
सुविधाएँ किस तरह लोगों को आकर्षित करती हैं इसको पंजाब के खेतों
में देखा जा सकता है |जहाँ बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाँव के किसान,खेतों मजदूरी और अन्य कार्य करने हर साल आते हैं|पर
अब तस्वीर थोड़ी बदल रही है हर बदलाव जहाँ कुछ चुनौतियाँ लाता है वहीं कुछ अवसर भी
उदारीकरण की बयार से गाँव के लोगों की क्रय शक्ति बढ़ रही है|नेशनल सैम्पल सर्वे संगठन और क्रिसिल की एक रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण
भारत शहरी भारत के मुकाबले ज्यादा खर्च कर रहा है|, यानि
गाँव उस दुष्चक्र से निकलने की कोशिश में कामयाब हो रहा है जो उसकी तरक्की में
सबसे बड़ी बाधा रही है ग्रामीण भारत की क्रय शक्ति बढ़ रही है| गाँव में अब बिजली की उपलब्धता अब सहज है |सड़कों
से अब सभी गाँव का जुड़ाव है | उन्नत भारत अभियान योजना तहत गाँव को उन्नत
बनाने के लिए वहां के बुनियादी विकास और शिक्षा पर ज़ोर दिया गया है। शिक्षण
संस्थानों द्वारा गाँव के विकास से सम्बंधित स्थानीय आर्थिक, समाजिक व अन्य समस्याओं का भी समाधान
किया जाएगा। इस अभियान के अंतर्गत उच्च शिक्षा संस्थानों को गाँव से जोड़ा जा रहा
है जहाँ वो अपने ज्ञान के आधार पर गाँव के विकास में भागीदार बन सकें। उच्च शिक्षा
संस्थान ज्यादा से ज्यादा जिलों में पहुंचकर विकास कार्यों को आगे बढ़ा रहे हैं ।
ये संस्थान अनेक प्रकार के प्रोग्राम जैसे कि मशरुम खेती ,धुआं
रहित चिमनी, ग्रामीण ऊर्जा , हस्त
शिल्प ,स्वास्थ्य सेवा और जल प्रबंधन, ग्रामीण
आवास , और अन्य विकासात्मक पहलुओं में सहायता प्रदान कर रहे
हैं।
पहले विभिन्न खतरनाक रोगों से गांव के गांव ही समाप्त हो जाते थे। लेकिन चिकित्सा
विज्ञान में हुई अभूतपूर्व क्रांति एवं ग्रामीणों में अपने स्वास्थ्य के प्रति
बढ़ती जागरूकता से ग्रामीणों के स्वास्थ्य स्तर में सुधार हुआ है। इसके अतिरिक्त गाँवों में इंटरनेट की पहुँच ने शहर और गाँव के बीच के अंतर
को काफी हद तक कम किया है |ग्रामीण उत्पाद अब इंटरनेट के माध्यम से दुनिया के किसी
भी कोने में पहुंच रहे हैं |
आधुनिक तकनीक और जीवन-शैली की धमक वहां साफ सुनाई देने लगी है। गांवों में अब भी बहुत कुछ शेष है। गांव का विकास एक सुखद
अनुभूति है। लेकिन हमें कोशिश करनी होगी कि विकास की प्रक्रिया में गांवों की
आत्मा नष्ट न होने पाए, तभी गांव से
जुड़ी सुखद अनुभूतियां जिंदा रह पाएंगीं।
आकाशवाणी लखनऊ में दिनांक 08/12/2021 को प्रसारित रेडियो वार्ता
Wednesday, December 1, 2021
वो रातों की मीठी नींद
Tuesday, October 19, 2021
यादों की सुनहरी धूप
बचपन में साल का ये महीना यादों का भी महीना हुआ करता था| जिसमें बहुत कुछ समेटा जाता था | त्यौहार बस आने वाले ही होते हैं तो घर की साफ़ सफाई लाजिमी है | ऐसे में घर से सिर्फ कबाड़ ही नहीं निकलता था बल्कि बहुत सी ढंकी छुपी यादें भी उस कबाड़ के रूप में हमें हमारे सामने आ खडी होती था |वो फटी किताब जो कभी एकदम नई थी और हमें बहुत प्यारी भी ,बीते साल की वो डायरी जिसमें जिन्दगी के हिसाब -किताब दर्ज रहा करते थे |वो टूटी टोर्च, कुछ अधजली मोमबत्तियां ,चाय की प्यालियाँ जिसके किनारे टूट चुके हुआ करते थे | कहने को वो कबाड़ होता है पर एक पूरे जीवन का लेखा जोखा उसमें निकला करता था |पर इस डिजीटल होती हुई दुनिया में कबाड़ भी अपना रंग बदल रहा है| अब बीते साल की डायरी नहीं मिलती जिसको फेंकने से पहले एक बार यूँ ही हाथ फिराना अच्छा लगता था| अब कबाड़ में बाकी चीजों के साथ मिलती है,मोबाईल और लैपटॉप की खराब बैटरियां ,न सुनाई देने वाले हेडफोन, कुछ उखड़ते की बोर्ड जिनको देख के न कोई भावनाएं उमड़ती न कोई साझा यादों का सिलसिला |इस डिजीटल दुनिया ने इस दावे के साथ कि नए यंत्र और तकनीक अपनाने से इंसानों का बहुत समय बचेगा | हम सब को अपना गुलाम बनाया |लेकिन बदले में हमें मिला क्या गूगल से कट पेस्ट की संस्कृति? जिसमें कबाड़ से कुछ बनाना बेकार सोच है |नया खरीदो नया बनाओ यही मूलमंत्र है|तकनीक समय तो जरुर बचा रही है पर वो समय जा कहाँ रहा है|वो कुछ न करते हुए भी बहुत कुछ करने का सुख, हर कोइ इतना समय बचने के बाद भी क्यों न उठा पा रहा है ?
यादों के
इस सितम्बर की ढलती दोपहरी में,
मैं इसी उधेड बन में हूँ कि उम्र के इस पड़ाव पर अब कितने नए रिश्ते बनाये
जा सकते हैं? वो लोग
जिनके साथ से हमारे दशहरा दीवाली गुलजार रहा करते थे |वो अब धीरे
-धीरे साथ छोड़ कर जा रहे हैं|नए
रिश्ते पकने में वक्त मांगते हैं और वक्त है कि हाथों से सरका जा रहा है |नया हमेशा नया नहीं रहेगा
तो आते त्योहारों
के मौसम में
नए के प्रति दीवानगी जरुर रखी जाए पर पुरानो को भी न भूला जाए| फिलहाल गर्मी तो
ढल रही है पर यादों में जाड़ा कभी आएगा ही नही क्योंकि मेरा दिल तो उन लोगों की
यादों की गर्मी से धड़क रहा है जो चले गए ।
प्रभात
खबर में 19/10/2021 को
प्रकाशित
Friday, August 20, 2021
सावन का महीना
यूँ तो सावन सिर्फ साल का एक महीना है लेकिन इसका जिक्र आते ही जो तस्वीर हमारे जेहन में उभरती है. वो है बरसात,हरियाली और झूले. जब इतनी सारी चीजें एक साथ हों तो हो गया न मामला पूरा फ़िल्मी.तो फिल्मों का सावन से गहरा रिश्ता रहा है. या यूँ कहें बगैर बारिश के हमारी हिंदी फिल्में कुछ अधूरी सी लगती हैं.अगर बारिश है तो गाने भी होंगे. तो क्यों न इन गानों के बहाने ही सही जाते हुए सावन को याद किया जाए. सबसे पहले 1949 में सावन शीर्षक से पहली फिल्म बनी उसके बाद सावन आया रे , सावन भादों , `सावन की घटा´, `आया सावन झूम के´, `सावन को आने दो´ और `प्यासा सावन´ नाम से फिल्में बनीं.अब सावन का महीना है तो पवन तो शोर करेगा ही .शोर नहीं बाबा सोर जी हाँ ये गाना आज भी हमारे तन मन को मोर सा नचा देता है .सावन का महीना पवन करे सोर (मिलन).जब पवन शोर करेगा तो बादल , बिजली और बरसात आ ही जायेंगे. ये सारे सावन राजा के दरबारी हैं. तभी तो सावन को राजा का खिताब दिया गया है “ओ सावन राजा कहाँ से आये तुम” (दिल तो पागल है) .कहते हैं आग और पानी का भी रिश्ता होता है. चौंकिए मत इस रिश्ते को हमारे गीतकारों ने बड़ी खूबसूरती से गीतों में ढाला है. "दिल में आग लगाये सावन का महीना " (अलग -अलग ) या फिर "अब के सजन सावन में आग लगेगी बदन में " (चुपके -चुपके ) एक फिल्म में “रिम झिम गिरे सावन, सुलग सुलग जाए मन” (दहक) एक खूबसूरत सा गीत और है जो सावन की रूमानियत का जिक्र करता है "तुझे गीतों में ढालूँगा सावन को आने दो"(सावन को आने दो).
Sunday, August 15, 2021
मेरे पिता, मेरा दोस्त , मेरा माशूक
टैगोर पुस्तकालय भारत ही नहीं दुनिया के समर्द्ध पुस्तकालयों में से एक है जिसका वास्तु अमेरिकन वास्तुकार वाल्टर बरले ग्रिफिन ने डिजाइन किया था | बरले ग्रिफिन ने ऑस्टेलिया का केनबरा शहर भी डिज़ाइन किया था और उनकी योजना इस पुस्तकालय के साथ एक क्लोक टावर बनाने की भी थी पर इससे पहले ही उनका निधन हो गया |टैगोर पुस्तकालय में कई हस्तलिखित भोजपत्र पांडुलिपियाँ भी संरक्षित हैं |यह विश्वविद्यालय एक और मामले में ख़ास हैं इसके चार विभागों के पास अपने खुद के संग्रहालय हैं जिनमें प्राणी विज्ञान ,भूगर्भ विज्ञान विभाग ,मानव शास्त्र विभाग और प्राचीन भारतीय इतिहास विभाग शामिल हैं |विश्वविद्यालय के शताब्दी वर्ष में इसे टैगोर पुस्तकालय में राधा कमल मुखर्जी संग्रहालय और आर्ट गैलरी के रूप में पांचवां संग्रहालय मिला है |
अपनी स्थापना से लेकर अब तक ये विश्वविद्यालय कई बदलावों का गवाह रहा है.एक अंग्रेज गवर्नर की याद में इसकी नींव पड़ी. अंग्रेजी हुकूमत के विरोध का बिगुल भी यहाँ से फूंका गया.बीरबल साहनी जैसे वैज्ञानिक यहाँ के शिक्षक रहे तो डॉक्टर शंकर दयाल शर्मा जैसे राजनीतिज्ञों ने पढ़ाई के साथ-साथ राजनीति का ककहरा भी यहीं से सीखा | एक मई 1864 को हुसैनाबाद में हुसैनाबाद कोठी में शुरू होने के बाद ये शहर के विभिन्न स्थानों से होते हुए वर्तमान परिसर तक पहुंचा.इसी कैनिंग कॉलेज को 25 नवंबर 1920 को विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया और 1921 में यहां पढ़ाई की शुरुआत हो गई.कॉलेज को यूनिवर्सिटी का दर्जा देने के लिए लखनऊ मेडिकल कॉलेज को इससे संबद्ध किया गया जबकि 1870 से शुरू हुए आईटी गर्ल्स कॉलेज को इसका पहला एसोसिएट कॉलेज बनाया गया.|इसके बनने की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है वैसे अधिकारिक तौर पर लखनऊ विश्वविद्यालय में पढ़ाई की शुरुआत जुलाई 17 ,1921 से शुरू हुई पर उससे काफी पहले ही लखनऊ में उच्च शिक्षा की अलख कैनिंग कॉलेज के रूप में जगाई जा चुकी थी |जिसकी स्थापना में अवध के तालुकेदारों का विशेष योगदान रहा जिन्होंने लार्ड कैनिंग की स्मृति में 27 फ़रवरी 1864 को लखनऊ में कैनिंग कालेज के नाम से एक विद्यालय स्थापित करने के लिए पंजीकरण कराया। 1 मई 1864 को कैनिंग कालेज का औपचारिक उद्घाटन अमीनुद्दौला पैलेस में हुआ। शुरुआत में 1887 तक कैनिंग कालेज कलकत्ता विश्वविद्यालय से सम्बद्ध किया गया। उसके बाद1888 में इसे इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संबद्धता दे दी गयी । सन 1905 में प्रदेश सरकार ने गोमती की उत्तर दिशा में लगभग नब्बे एकड़ का भूखण्ड कैनिंग कालेज को स्थानांतरित किया गया , जिसे बादशाहबाग के नाम से जाना जाता है। वास्तव से यह अवध के नवाब नसीरूद्दीन हैदर का निवास स्थान था ।कैनिंग कॉलेज की शुरुआत ताल्लुकेदार्स ने कर के रूप में वसूली गई धनराशि में से आधा फीसदी चंदा देकर की थी.ताल्लुकेदार्स के प्रस्ताव पर अंग्रेजी हुकूमत ने भी इसके बराबर राशि देने पर सहमति जताई.वर्ष 1921 में लखनऊ यूनिवर्सिटी की स्थापना के समय भी इसके लिए चंदा दिया गया.चंदे की ये रकम 30 लाख रुपये के बराबर थी. उससे इस विश्वविद्यालय की शुरुआत की गई.उन्हीं दिनों महमूदाबाद के नवाब मोहम्मद अली मोहम्मद खान ,खान बहादुर ने उन दिनों के प्रसिद्द अखबार पायनियर में “लखनऊ विश्वविद्यालय” की स्थापना को लेकर एक लेख लिखा जिसने उन दिनों संयुक्त प्रांत के गवर्नर सर हरकोर्ट बटलर का ध्यान अपनी ओर खींचा और दस नवम्बर 1919 को इस विषय पर एक सम्मेलन हुआ जिसकी अध्यक्षता हरकोर्ट बटलर ने की जिसमें लखनऊ विश्वविद्यालय की स्थापना का खाका खींचा गया | धीरे –धीरे लखनऊ विश्वविद्यालय ने आकार लेना शुरू किया शुरुआती दौर में तीन महाविद्यालय इसके अधीन लाये गए जिनमें किंग जोर्ज मेडिकल कॉलेज (अब किंग जोर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी ),कैनिंग कॉलेज (अब लखनऊ विश्वविद्यालय मुख्य परिसर ) और आई टी कॉलेज जोड़े गए |विश्विद्यालय का लोगो वाक्य “लाईट एंड लर्निंग” अंगरेजी के ख्यातिप्राप्त साहित्यकार एच जी वेल्स उपन्यास “जोंन एंड पीटर” से उद्घृत है | माननीय श्री ज्ञानेन्द्र नाथ चक्रवर्ती लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति, मेजर टी० एफ० ओ० डॉनेल प्रथम कुल सचिव और श्री ई० ए० एच० ब्लंट प्रथम कोषाध्यक्ष नियुक्त हुए। विश्वविद्यालय कोर्ट की पहली बैठक 21 मार्च 1921 को हुई। अगस्त से सितम्बर 1921 के मध्य कार्य परिषद (एक्जीक्यूटिव काऊंसिल) तथा अकादमिक परिषद(एकेडेमिक काउन्सिल ) का गठन किया गया। सन 1922 में पहला दीक्षान्त समारोह आयोजित किया गया। सन 1991 से लखनऊ विश्वविद्यालय का द्वितीय परिसर सीतापुर रोड पर प्रारम्भ हुआ, जहाँ अभी में विधि,इंजीनियरिंग तथा प्रबंधन की कक्षाएँ चलती हैं।लखनऊ विश्वविद्यालय छात्र संघ के आजीवन मानद सदस्यों में पूर्व प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू ,लालबहादुर शास्त्री ,खान अब्दुल गफ्फार खान ,मोरारजी देसाई एवं इंदिरा गांधी जैसे नेता शामिल हैं और इनके दिए हुए सहमतिपत्र आज विश्वविद्यालय की धरोहर का हिस्सा हैं |पिछले पचहतर सालों में दुनिया बहुत बदली और जाहिर इसका असर हमारे कैम्पस के हर क्षेत्र पर पडा है लड़कों के बेलबॉटम और बैगी पैंट के ज़माने से आगे बढ़ते हुए अब युनिवर्सल पहनावा जींस का है जिसमें लिंग भेद नहीं है|अब सलवार कमीज की जगह टीशर्ट और सूट हैं |जींस तो अब छात्रों के जीवन का अंग बन ही चुकी है |बालों में तेल चुपड़े लड़के लडकिया अब इतिहास हो चुके हैं |वो कैंटीन जहाँ पहले सिर्फ समोसा चाय या गुलाब जामुन ही मिला करते थे अब वहां चाउमीन ,बर्गर घुसपैठ कर चुके हैं|उस अलमस्ती के दौर में जहाँ बहसों के केंद्र में ज्यादातर राजनीति के मुद्दे ही हावी रहते थे अब कौन सा वीडियो वाइरल रहा है या क्लास के व्हाट्स एप ग्रुप पर क्या चल रहा है की गोसिप्स के बीच में कैंटीन के कोने अब भी गुलजार रहते हैं |मोबाईल पर उंगलियाँ थिरकाते हुए छात्र अब अपने भविष्य के प्रति ज्यादा संजीदा रहते हैं | बात कैम्पस में आये बदलाव की चल रही है तो पढ़ने के तौर तरीके भी बदले हैं और टेक्नोलॉजी पर हमारी निर्भरता बढ़ी है|तीन का स्क्वायर रूट रटने या कागज कलम से निकालने की जरुरत नहीं|किसी जगह की राजधानी पता करनी हो| समस्या कोई भी हो समाधान एक है गूगल कर लो |कुछ जोड़ना या घटाना है, मोबाईल निकला जेब से और उँगलियाँ उसके टच पर थिरकने लग गयीं|सेकेंडो में जवाब हाजिर अब नोट्स एक्सचेंज करने के लिए व्हाट्स एप पर ग्रुप है तो क्लासेज की सूचना के लिए फेसबुक पेज,सब कुछ इतना आसान हो गया है |आप हर पल हर क्षण कनेक्टेड हैं हमारी निर्भरता “गूगल” और तकनीक पर ज्यादा बढ़ी है और सेल्फ स्टडी पर जोर कम हुआ है| एक जमाना था जब हार्बेरियम फाईल बनाना हो या घर की बेकार की चीजों से कोई मॉडल कितना तेज़ हमारा दिमाग चलता था पर अब वो दिमाग गूगल का मोहताज है|खड़िया डस्टर की जगह व्हाईट बोर्ड, मार्कर आ गए हैं क्लास रूम अब स्मार्ट हो गए हैं जहाँ पढ़ाई आडिओ वीडिओ के साथ होती है|ऑनलाईन क्लास भी हो सकती है ये इस सौ साल के विश्वविद्यालय में पहले कभी किसी ने नहीं सोचा होगा पर आज ऑनलाईन पढ़ाई कैम्पस की हकीकत है |कैम्पस के स्टैंड में एक वक्त जहाँ साइकिलों की भरमार हुआ करती थी और स्कूटर लक्जरी अब वहां की दुनिया भी बदल चुकी है| साइकिल अब नहीं दिखती हैं मोटरसाइकिल और चौपहिया वाहनों की भरमार है | बदलाव की ये बयार लगातार बहती जा रही है पर यह इस गौरवशाली विश्वविद्यालय की महानता है कि वक्त कैसा भी हो यह लगातार बढ़ता जा रहा है और फैलता भी |
नवभारत टाईम्स के लखनऊ संस्करण में 15/08/2021 को प्रकाशित
Saturday, July 31, 2021
सोचना जरुरी है ,इंटरनेट पर कैसे बचाएं अपनी निजता !
भारत के
सहित दुनिया भर
में पेगासस स्पाईवेयर एक बार फिर चर्चा में हैं. इसराइली सर्विलांस कंपनी एनएसओ ग्रुप के
सॉफ्टवेयर पेगासस का इस्तेमाल कर कई पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, नेताओं, मंत्रियों और सरकारी अधिकारियों के
फ़ोन की जासूसी करने का दावा किया जा रहा है|पचास हज़ार नंबरों के एक बड़े डेटा बेस
के लीक की पड़ताल द गार्डियन, वॉशिंगटन पोस्ट,द वायर, फ़्रंटलाइन, रेडियो फ़्रांस जैसे सोलह मीडिया संस्थान के पत्रकारों ने की है|यूँ तो दुनिया भर में सरकारों द्वारा
देश की राष्ट्रीय सुरक्षा के उद्देश्य से या किसी भी सार्वजनिक आपातकाल की घटना
होने पर या सार्वजनिक सुरक्षा के लिए इस तरह की गतिविधियाँ की जाती रही हैं
पर यह मामला कई मायनों में अलग है और इसके कई आयाम हैं पहला यह कि इंटरनेट के युग
में हमारी
निजता कितनी सुरक्षित है और दूसरा देश में साइबर अपराधियों से बचने के लिए कैसा
तंत्र विकसित किया है |
सरकार ने पेगासस जासूसी सम्बन्धी
मीडिया रिपोर्ट को खारिज किया है पर संसद के माध्यम से सरकार ने ये माना कि "लॉफ़ुल
इंटरसेप्शन" या क़ानूनी तरीके से फ़ोन या इंटरनेट की निगरानी या टैपिंग की
देश में एक स्थापित प्रक्रिया है जो बरसों से चल रही है| देश में एक स्थापित प्रक्रिया मानक है जिसके माध्यम से केंद्र और राज्यों की एजेंसियां इलेक्ट्रॉनिक संचार को
इंटरसेप्ट करती हैं| भारतीय टेलीग्राफ़ अधिनियम,
1885 की धारा 5 (2) और सूचना
प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69 के प्रावधानों के तहत प्रासंगिक नियमों के अनुसार इलेक्ट्रॉनिक संचार के
वैध अवरोधन के लिए अनुरोध किए जाते हैं, जिनकी
अनुमति सक्षम अधिकारी देते हैं| आईटी (प्रक्रिया और
सूचना के इंटरसेप्शन, निगरानी और डिक्रिप्शन के लिए
सुरक्षा) नियम, 2009 के अनुसार ये शक्तियां राज्य
सरकारों के सक्षम पदाधिकारी को भी उपलब्ध हैं| वर्तमान
परिवेश में ऐसे अवरोधन को लेकर क़ानून काफ़ी स्पष्ट है जो हर एक संप्रभु
राष्ट्र अपनी अखंडता और सुरक्षा के लिए करता है|
लेकिन पेगासस का मामला थोड़ा पेचीदा है |पेगासस एनएसओ समूह जो एक साइबर सिक्योरिटी कंपनी का
एक स्पाईवेयर है | एनएसओ समूह दुनिया भर में सरकारों और
कानून प्रवर्तन एजेंसियों को अपराध और आतंकवाद से लड़ने में मदद करने का दावा करती
है|इस कम्पनी का यह भी दावा है कि वह विभिन्न देशों के
सरकारों की मदद करती है और पेगासस का इस्तेमाल अन्य देशों में सिर्फ संप्रभु
सरकारों या उनकी सस्थाओं द्वारा किया जाता है|भले ही सरकार
ने इस पूरे मामले से अपने आपको अलग करते हुए मीडिया रिपोर्ट की सत्यता पर ही सवाल
उठा दिया है |भारत में यह मामला इसलिए ज्यादा चर्चित हो रहा
है क्योंकि यह मामला संसद के मानसून सत्र के शुरू होने के दिन ही सुर्ख़ियों में
आया और इस मुद्दे पर सरकार और विपक्ष में तीखी नोंक झोंक देखने को मिली | इस तेजी से डिजीटल होती दुनिया में इस
तरह की खबरों से इस आशंका को बल मिलता है कि इंटरनेट की दुनिया में कुछ भी गुप्त
नहीं है पर भारत में इंटरनेट पर निजता अभी भी कोई मुद्दा नहीं है |सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बी
एन श्री कृष्णा की अध्यक्षता में गठित समिति ने पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन बिल का
ड्राफ्ट बिल सरकार को सौंप दिया है जो फिलहाल अभी कानून बनने के इन्तजार में संसद
में विचाराधीन है |इस बिल में “निजी” शब्द को परिभाषित किया गया है.इसके अतिरिक्त इसमें सम्वेदनशील निजी डाटा को
बारह भागों में
विभाजित किया गया है.जिसमें पासवर्ड,वित्तीय डाटा,स्वास्थ्य डाटा,अधिकारिक नियोक्ता,सेक्स जीवन,जाति/जनजाति,धार्मिक ,राजनैतिक संबद्धता जैसे क्षेत्र जोड़े गए हैं.इस बिल को अगर संसद बगैर किसी
संशोधन के पास कर देती है तो देश के प्रत्येक नागरिक को अपने डाटा पर चार तरह के
अधिकार मिल जायेंगे .जिनमें पुष्टिकरण और पहुँच का अधिकार, डाटा को सही करने का अधिकार, डाटा पोर्टेबिलिटी और डाटा को बिसरा
देने जैसे अधिकार शामिल हैं .इस समिति की रिपोर्ट के अनुसार यदि इस बिल का कहीं उल्लंघन
होता है तो सभी कम्पनियों और सरकार को स्पष्ट रूप से उन व्यक्तियों को सूचित करना
होगा जिनके डाटा की चोरी या लीक हुई है कि चोरी या लीक हुए डाटा की प्रकृति क्या
है ,उससे कितने लोग प्रभावित होंगे ,उस चोरी या लीक के क्या परिणाम हो सकते हैं और प्रभावित लोग जिनके डाटा
चोरी या लीक हुए हैं वे क्या करें .ऐसी स्थिति में जिस व्यक्ति का डाटा चोरी या
लीक हुआ है वह उस कम्पनी से क्षतिपूर्ति की मांग भी कर सकता है |तथ्य यह भी है कि इंटरनेट की बड़ी कम्पनियां अगर चाहे तो फोन में मौजूद
अपने एप के जरिये वो किसी भी व्यक्ति की तमाम जानकरियों के अलावा उसके जीवन में
क्या चल रहा है यह सब जानकारी निकाल सकती हैं|फोन पर हम किसी
से कुछ चर्चा करते हैं और फिर उसी चर्चा से जुडी हुई वस्तुओं के विज्ञापन आपको
दिखने लगने का अनुभव साझा करते लोग हमारे आस पास ही मिल जायेंगे यानि ये काम तो
पहले से ही हो रहा है|बस किसी व्यक्ति से जुडी जानकरियों का
व्यवसायिक इस्तेमाल होता है विज्ञापन दिखाने में |सरकार के
पास तो पहले से ही तमाम संसाधन और तंत्र मौजूद हैं पर इंटरनेट की बड़ी कम्पनियां इस
तरह के खेल में शामिल हैं और वे इसका इस्तेमाल अपने व्यवसायिक हितों की पूर्ति के
लिए करती हैं |कैंब्रिज एनालिटिका मामला सोशल नेटवर्किंग साईट फेसबुक के
लिए ऐसा ही रहा. इस कंपनी पर आरोप है कि इसने अवैध तरीके से फेसबुक के करोड़ों
यूजरों का डेटा हासिल किया और इस जानकारी का इस्तेमाल अलग-अलग देशों के चुनावों को
प्रभावित करने में किया. इनमें 2016 में हुआ
अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव भी शामिल है. इस विवाद का बड़ा पक्ष इंटरनेट पर मौजूद ऐसी कम्पनियों के लगातार बड़े होते
जाने का है और इस विषय पर यदि समय रहते ध्यान न दिया गया तो अभिव्यक्ति की आजादी ,निजता जैसे अधिकार सिर्फ कानून की किताबों में ही पढने को मिलेंगे | इंटरनेट के फैलाव के साथ आंकड़े बहुत महत्वपूर्ण हो उठें .लोगों के बारे में सम्पूर्ण जानकारियां को एकत्र करके बेचा जाना एक
व्यवसाय बन चुका है और इनकी कोई भी कीमत चुकाने
के लिए लोग तैयार बैठे हैं | जैसे ही आप इंटरनेट पर आते
हैं आपकी कोई भी जानकारी निजी नहीं रह जाती और इसलिए इंटरनेट पर सेवाएँ देने वाली
कम्पनिया अपने ग्राहकों को यह भरोसा जरुर दिलाती हैं कि आपका डाटा गोपनीय रहेगा पर
फिर भी आंकड़े लीक होने की सूचनाएं लगातार सुर्खियाँ बनी रहती हैं |इंटरनेट के फैलाव के साथ आंकड़े बहुत
महत्वपूर्ण हो उठें|पेगासस के मामले के बहाने ही सही लोगों
को इंटरनेट पर अपनी निजता कैसे बचाएं इस पर भी सोचने की जरुरत है|
राष्ट्रीय सहारा हस्तक्षेप में 31/07/2021 को प्रकाशित
Saturday, July 17, 2021
महिलाओं की बढ़ती हिस्सेदारी
Tuesday, July 13, 2021
सौगत और मैं राजौरी यात्रा पंचम भाग(यात्रा संस्मरण)
अगला दिन धर्म कर्म के नाम पर था दोनों परिवारों ने वैष्णो देवी जाने का निश्चय किया ।मैं वैष्णो देवी करीब दस साल पहले आया था । ये मेरी तीसरी वैष्णो देवी यात्रा होने वाली थी । हम अभी राजौरी से तीस किलोमीटर आगे चले होंगे तो रास्ते में एक भयानक एक्सीडेंट हुआ देखा मोटरबाईक औए एक कार में ।
एक घायल युवक रोड पर पड़ा था उसको देख कर तो ऐसा लगा कि उसके जीवन की अंतिम सांसें चल रही हों, हमारे साथ चल रहे पुलिस वालों ने कई गाड़ियाँ रोक कर उस युवक को अस्पताल पहुंचवाने की कोशिश की,लेकिन कोई फायदा नहीं वे लोगों से निवेदन कर रहे थे तभी भाभी ने फैसला किया कि उस युवक को अपनी गाड़ी में सवार कराया जाए । राजौरी का जिला अस्पताल वहां से दूर था और हम लोग विपरीत दिशा में जा रहे थे । जहां कोई अस्पताल पास में नहीं था । ड्राईवर रशीद ने बताया कि यहां से पाँच किलोमीटर दूर एक सेना का अस्पताल था पता नहीं वे उस युवक का इलाज करेंगे या नहीं । भाभी ने फैसला किया कि किसी भी हालात में इसे अस्पताल ले चलेंगे और हमारी दोनों गाड़ियां अपनी अधिकतम गति से उन पहाड़ी सड़कों पर दौड़ने लगीं । तब मुझे एहसास हुआ कि इस खूबसूरत जगह पर जीवन कितना दुश्वार है चारों और पहाड़ उन पर घूमती हुई कम चौड़ी सड़कें और हर तरफ जंगल । ऐसे में कोई भी दुर्घटना खतरनाक हो सकती है । दोनों गाड़ियां सेना के बैरीकेटिंग को नजरंदाज करते हुए सेना के अस्पताल पहुंची । वहां तुरंत उसको भर्ती कर लिया गया हम सेना के मानवीय रूप से प्रभावित हुए बगैर ना रह सके चूंकि सेना वहां लंबे समय से है इसलिए जगह-जगह उनके कैम्प और अस्पताल बने हैं । सड़कों और पुलों के मामले में सीमा सड़क संगठन (बी आर ओ) ने बहुत अच्छा काम किया है ऐसी मुश्किल जगहों पर सड़क बनाना आसान काम नहीं है ।
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