Friday, May 2, 2014

कुदरती क्षमताओं को पंगु बनाते मोबाइल ऐप

मोबाइल ऐप (ऐप्लीकेशन) विश्लेषक कंपनी फ्लरी के मुताबिक, हम मोबाइल ऐप लत की ओर बढ़ रहे हैं। स्मार्टफोन हमारे जीवन को आसान बनाते हैं, मगर स्थिति तब खतरनाक हो जाती है, जब मोबाइल के विभिन्न ऐप का प्रयोग इस स्तर तक बढ़ जाए कि हम बार-बार अपने मोबाइल के विभिन्न ऐप्लीकेशन को खोलने लगें। कभी काम से, कभी यूं ही। फ्लरी के इस शोध के अनुसार, सामान्य रूप से लोग किसी ऐप का प्रयोग करने के लिए उसे दिन में अधिकतम दस बार खोलते हैं, लेकिन अगर यह संख्या साठ के ऊपर पहुंच जाए, तो ऐसे लोग मोबाइल ऐप एडिक्टेड की श्रेणी में आ जाते हैं। पिछले वर्ष इससे करीब 7.9 करोड़ लोग ग्रसित थे। इस साल यह आंकड़ा बढ़कर 17.6 करोड़ हो गया है, जिसमें ज्यादा संख्या महिलाओं की है।
रिपोर्ट के अनुसार, ऐसे लोग मोबाइल का इस्तेमाल कपड़ों की तरह करते हैं और 24 घंटे उसे अपने से चिपकाए घूमते हैं। हमारे देश के संदर्भ में यह रिपोर्ट इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत मोबाइल उपभोक्ताओं के मामले में हम दुनिया में दूसरे स्थान पर हैं और यहां स्मार्ट फोन धारकों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। जाहिर है, इसी के साथ देश में ऐप के लती लोगों की संख्या भी बढ़ेगी। भारत में सबसे लोकप्रिय मोबाइल एप के रूप में सोशल नेटवर्किग साइट फेसबुक और चैटिंग ऐप व्हाट्सअप प्रमुख हैं। आंकड़ों के मुताबिक, दुनिया भर में व्हाट्स अप के 50 करोड़ उपभोक्ता हो गए हैं, जिनमें दस प्रतिशत भारतीय हैं। इनमें बड़ा हिस्सा युवाओं का है, जो लोगों से हमेशा जुड़े रहना चाहते हैं, जिसका परिणाम मोबाइल ऐप के अधिक इस्तेमाल और उसकी लत के रूप में सामने आ रहा है। बार-बार फेसबुक या व्हाट्स अप खोलकर देखना, मोबाइल के बगैर बेचैनी होना, इस लत के खास लक्षण हैं। इसके परिणामस्वरूप एकाग्रता में कमी आती है।
इनका ज्यादा इस्तेमाल वह युवा वर्ग कर रहा है, जो इस तकनीक का प्रथम उपभोक्ता बन रहा है। उसे ही इस तकनीक के इस्तेमाल के मानक भी गढ़ने हैं। मोबाइल ऐप हमारे जीवन को व्यापक रूप से प्रभावित कर उसे आसान बना रहे हैं, लेकिन इन पर बढ़ती निर्भरता हमारी कई कुदरती क्षमताएं भी हमसे छीन सकती है। चैटिंग ऐप (चैप) के अधिक इस्तेमाल से लिखित शब्दों पर हमारी निर्भरता बढ़ जाती है, जिससे मौखिक संचार में शारीरिक भाव भंगिमा के बीच संतुलन के बिगड़ने का खतरा रहता है। भारत जैसे देश में, जहां हम तकनीक का सिर्फ अंधानुकरण कर रहे हैं, वहां इस लत के बारे में जागरूकता की भारी कमी है और ऐसे केंद्रों का भी अभाव है, जो लोगों को इससे उबरने में मदद करे। तकनीक हमेशा अच्छी होती है, पर उसका इस्तेमाल कौन और कैसे कर रहा है, इस बात से उसकी सफलता या असफलता मापी जाती है। इससे पहले कि हम किसी मोबाइल ऐप के लती हो जाएं, अपने आप पर थोड़ा नियंत्रण भी जरूरी है।
हिन्दुस्तान में 2/05/14 को प्रकाशित 


5 comments:

Unknown said...

यह मानवीय सहजवृत्ति है

राजीव कुमार झा said...

बहुत सुंदर प्रस्तुति.
इस पोस्ट की चर्चा, शनिवार, दिनांक :- 03/05/2014 को "मेरी गुड़िया" :चर्चा मंच :चर्चा अंक:1601 पर.

Asha Joglekar said...

जो नया है वह चाहिये। पुराना पड जायेगा तो लत भी खत्म।

Mohita Tewari said...

after reading it ,mind has moved in the direction that being technology savvy can turn into an addiction also have never given a thought about it before,and worry some for me as females are leading the score when its about being too appy

Sudhanshuthakur said...

हर समय फेसबुक, खबरें और वॉट्सऐप चेक करना या गेम खेलना जिसे हम मार्कोवेत्स कहते हैं हमारा स्मार्टफोन एक छोटी मशीन की तरह है। एक छोटी सी प्रक्रिया से लीजिए फोन स्टार्ट हो गया। क्या इस बार कोई मेल आएगा? कोई नई खबर है क्या? क्या ईमेल में अच्छी बात होगी या क्या खबर अच्छी नहीं होगी? बस इन्हीं सब बातों के बीच फंसे हम बार बार अपना फोन चेक करते रहते हैं।

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