Friday, July 24, 2015

ऑनलाइन विज्ञापनों में छिपे खतरे

                            नया मीडिया अपना कारोबार व इश्तिहार भी बढ़ा रहा है। इंटरनेट ऐंड मोबाइल एसोसिएशन और आईएमआरबी इंटरनेशनल के एक संयुक्त शोध के अनुसार, मार्च 2015 में भारत में ऑनलाइन विज्ञापन का बाजार 3,575 करोड़ रुपये का हो चुका है, जो 2014 के आंकड़े से करीब 30 प्रतिशत ज्यादा है। ऑनलाइन विज्ञापन की इस बढ़त में भारत में स्मार्ट फोन की बढ़ती संख्या का बड़ा योगदान है। लेकिन विज्ञापनों का यह बढ़ता बाजार अपने साथ समस्याएं भी ला रहा है। भारत जैसे देश में यह समस्या ज्यादा गंभीर इसलिए हो जाती है, क्योंकि यहां इंटरनेट का विस्तार बहुत तेजी से हो रहा है, मगर नेट जागरूकता की खासी कमी है। भारत में इंटरनेट के ज्यादातर प्रयोगकर्ताओं के लिए यह एक नई चीज है और वे कुछ चालाक विज्ञापनदाताओं की चाल का शिकार भी बन जाते हैं।भारत में विज्ञापनों का नियमन करने वाले संगठन भारतीय विज्ञापन मानक परिषद, यानी एएससीआई ने भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ शिकायत करने के लिए बाकायदा एक व्यवस्था बना रखी है। लेकिन इंटरनेट अन्य विज्ञापन माध्यमों जैसा नहीं है। इंटरनेट के विज्ञापनों पर नजर रखना कहीं ज्यादा चुनौतीपूर्ण काम है, क्योंकि ऐसा भी हो सकता है कि भ्रामक विज्ञापन का शिकार बनने वाला भारत के किसी शहर में हो, जबकि विज्ञापनदाता सात समंुदर पार किसी दूसरे देश में। प्रिंट माध्यम के लिए तो इंडियन न्यूजपेपर सोसायटी जैसी संस्था है, जो विज्ञापन एजेंसी को मान्यता देती है और किसी शिकायत पर वह  मान्यता खत्म भी कर सकती है।
                                  इंटरनेट के लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है।
दूसरा पहलू डाटा के उपभोग से जुड़ा है। इंटरनेट पर जब भी कोई काम किया जाता है, तो कुछ डाटा खर्च होता है, जिसका शुल्क इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनियां वसूलती हैं, पर किसी-किसी  वेबसाइट पर जाते ही उपभोक्ता से बगैर पूछे अचानक कोई वीडियो चलने लगता है, तो काम भी बाधित होता है और उपभोक्ता का कुछ अतिरिक्त डाटा भी खर्च होता है, जिसके पैसे तो उससे वसूल लिए जाते हैं, पर उस विज्ञापन को देखने या सुनाने के लिए उससे अनुमति नहीं ली जाती है। यू-ट्यूब के वीडियो में शुरुआती कुछ सेकंड आपको मजबूरी में देखने पड़ते हैं, जिसमें आपका अतिरिक्त डाटा खर्च होगा। निजता का मामला भी इसी से जुड़ा मुद्दा है। हम क्या करते हैं इंटरनेट पर, क्या खोजते हैं, इन सबकी जानकारी के हिसाब से हमें विज्ञापन दिखाए जाते हैं। अमेरिका की चर्चित संस्था नेटवर्क एडवर्टाइजिंग इनिशिएटिव (एनआईए) ने ऐसे मामलों के लिए भी संहिता बनाकर कंपनियों को निर्देश दिया है कि वे उपभोक्ताओं को ऐसे विज्ञापनों को न देखने का विकल्प भी उपलब्ध कराएं। निजता की रक्षा के लिए भी यह जरूरी है। भारत में इंटरनेट का बाजार अभी आकार ले रहा है, इसलिए सतर्कता बरतने का यह सबसे सही समय है।
हिन्दुस्तान में 24/07/15 को प्रकाशित 

2 comments:

anjali said...

bilkul shi aj kl paise kamane k liye log samne wale k kharche k bare mein bilkul nhi sochte...

Sudhanshuthakur said...

नैटसर्फिंग आज हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुका है. बैडरूम तक इंटरनैट अपनी पैठ बना चुका है. इंटरनैट की दुनिया से आज कोई भी अनजान नहीं है, चाहे वह स्टूडैंट हो, किसान हो, गृहिणी हो या फिर रिकशा चालक. विभिन्न देशीविदेशी कंपनियों के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने इंटरनैट बाजार के लिए भारत में एक बड़ा प्लेटफौर्म तैयार किया है. यह सुविधा आज सहज ही सब के लिए उपलब्ध है. एक सर्वे के अनुसार 18 से 30 वर्ष की उम्र के 60% से भी ज्यादा युवा अपने कीमती 3-4 घंटे इंटरनैट सर्फिंग, चैटिंग, व्हाट्सऐप, यूट्यूब इंस्टाग्राम, गूगल और अन्य इंटरनैट से जुड़ी साइट्स पर बिताते हैं, जिस में ज्यादातर समय विभिन्न एजेंसियों से जुड़े औनलाइन विज्ञापनों को देखने में बीतता है. हैरानी की बात है कि हम इन की लगातार अनदेखी करते हैं.

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