लेह (लद्दाख ) भारत
का प्रमुख पर्यटक स्थल है |इसकी खूबसूरती को हिन्दी की कई फिल्मों में उतारा गया है वो
चाहे “जब तक है जान” हो या “थ्री ईडियट”| पर्यटक जब लेह लद्दाख घूमने आते हैं तो
फिल्मों की शूटिंग की जगहों पर बड़े चाव से जाते हैं |थ्री
ईडियट की शूटिंग यहाँ के ड्रुक व्हाईट लोटस स्कूल में हुई थी जिसे अब रैंचो स्कूल
के नाम से पूरे लेह में जाना जाता है|पैन्गोंग झील को पूरे
देश में लोकप्रिय बनाने का श्रेय भी थ्री ईडियट फिल्म को ही जाता है इस फिल्म की
शूटिंग के बात यहाँ आने वाले पर्यटकों की संख्या में खासी बढ़ोत्तरी हुई है|
पर अगर किसी पर्यटक की तरह आपका मन इन फिल्मों को लेह में देखने का
मन करे तो आपको निराशा हाथ लगेगी क्योंकि लेह में कोई सिनेमा हाल है ही नहीं|
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सिनेमा हाल |
दशकों पहले दर्शकों की कमी के चलते लेह का एकमात्र सिनेमा हाल बंद
हो गया था और यहाँ की एक पूरी पीढी सिनेमा हाल में फिल्म देखे ही बड़ी हो गयी |कश्मीर घाटी में जहाँ
सिनेमा हाल बंद होने का कारण राजनैतिक और कट्टरपंथियों का हस्तक्षेप था वहीं लेह
लद्दाख में सिनेमा हाल का बंद हो जाना पूरी तरह सामाजिक|यहाँ सिनेमा को हॉल में
देखने का चलन नहीं रहा जब जिले का एकमात्र सिनेमा हाल था भी तो वहां नयी फ़िल्में
कभी नहीं लगती थीं,उन पुरानी फिल्मों को देखने जाने वालों में ज्यादातर वे बिहारी
और नेपाली मजदूर रहा करते थे जो रोजी रोटी की तलाश में यहाँ आया करते हैं|ऐसे में
यहाँ फिल्म देखने की कोई संस्कृति विकसित नहीं हो पायी|उदारीकरण के रंग में अब लेह
भी रंगने लग गया है और लोगों को मल्टीप्लेक्स सिनेमा हाल की कमी खलती है|जहाँ लेह
लद्दाख की खूबसूरती को बड़े देखा जा सके |पर अब स्थिति में थोडा बदलाव आता दिख रहा
है |
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फिल्म देखते बच्चे |
फिल्मों के शौक़ीन और
पूर्व में पत्रकारिता एवं जनसंचार के प्रोफ़ेसर रहे लेह के जिलाधिकारी सौगत बिस्वास
ने जब बीती फरवरी में यहाँ का कार्यभार ग्रहण किया तो लेह में कोई सिनेमा हाल न
होने से बहुत निराश हुए उन्होंने जब शहर के लोगों से बात की तो पता चला कि यहाँ के
लोग सिनेमा हॉल में जाकर फ़िल्में देखने के शौक़ीन नहीं हैं चूँकि कोई बाजार है नहीं
इसलिए कोई सिनेमा हाल या मल्टीप्लेक्स के इस व्यवसाय में निवेश नहीं करना चाहता|इस
नवनियुक्त जिलाधिकारी ने अपने पुराने ज्ञान का प्रयोग करते हुए एक अभिनव कदम उठाने की शुरुआत कर दी|उन्होंने लेह के एक कभी कभार प्रयोग होने वाले सभागार को एक छोटे सिनेमा
हाल में बदल दिया और शहर के सभी सरकारी और निजी स्कूलों के लिए हफ्ते के हर शनिवार हिन्दी,अंग्रेजी की फ़िल्में और वृत्तचित्र
बच्चों को सिनेमा हॉल के अनुभव के साथ मुफ्त में दिखाना
शुरू किया और जिला प्रशासन ने सरकारी स्कूलों के
बच्चों के सभागार तक आने के लिए वाहन भी मुफ्त उपलब्ध कराये |
लैमडॉन मोडल सीनियर सैकेंडरी स्कूल के प्रिंसिपल एशे तुन्दुप कहते
है सिनेमा बच्चों की जरुरत के हिसाब से दिखाया जा रहा है वो जोर देकर कहते हैं
पीएसबीटी के द्वारा बनाये गए वृत्तचित्र जो बनने के बाद सिर्फ अकादमिक जगत के बीच
ही रह जाते थे आज उन्हें लेह के लोग देख रहे हैं|
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जिलाधिकारी सौगत बिस्वास |
लेह-लद्दाख के ऊपर कई शानदार वृत्तचित्र बने हैं पर यहाँ के
लोग उनके बारे में जानते ही नहीं थे|लेह के ये बच्चे
भाग्यशाली हैं जो सिनेमा हॉल में फ़िल्में देख रहे हैं |इन
फिल्मों से वे सिनेमा के माध्यम के साथ –साथ ये लद्दाख की
संस्कृति के बारे में परिचित हो रहे हैं | लैमडॉन में ही
पढने वाली दसवीं की छात्रा सोनम फिल्म देखने के अनुभव के बारे में कहती हैं सिनेमा
कैसा होता है इसका आइडिया पहली बार लगा |स्तेंजिन को शिकायत
है कि फिल्म पहली बार देखी पर पोपकोर्न नहीं मिला |लेह गवर्नमेंट
गर्ल्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल की ज़ाहिरा के लिए डाक्यूमेंट्री हॉल में देखने का
अनुभव बहुत मजेदार रहा और रोज की बोरिंग लाईफ से मुक्ति मिली |इसी स्कूल की छात्रा शहर को उम्मीद है कि इस तरह के प्रयासों से एक दिन
लेह में फिर से सिनेमा हॉल खुलेगा |
जिलाधिकारी सौगत
बिस्वास का मानना है कि उनके इस प्रयास से सिनेमा देखने की संस्कृति विकसित होगी
और ये बच्चे जो आज मुफ्त में फ़िल्में देख रहे हैं बड़े होकर फिल्मों पर पैसा खर्च
करने से नहीं हिचकेंगे वहीं अभी फिल्मों से इनका एक्सपोजर बढेगा और दिमाग का
विस्तार होगा |
बहरहाल हम तो यही
उम्मीद करेंगे की सौगत बिस्वास के प्रयासों से यहाँ के लोग भी कभी बड़े परदे पर लदाख की खूबसूरती को देख पायेंगे | अब
शहर के बच्चे उन्हें फिल्म वाले अंकल कहने लग गए हैं |
जनसत्ता में 21/07/15को प्रकाशित
2 comments:
bhut acha likha hai maza a gya pd ke...
saugat wisvas sir k dwara kiya gya prayas bhut saraahnea hai.
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