Friday, July 17, 2015

सोशल मीडिया और हमारी अभिव्यक्ति

सोशल मीडिया के आगमन से जनमत आंकलन का एक नया पैमाना मिला .पहले जनमत निर्माण का कार्य जनमाध्यम जैसे रेडियो ,टीवी अखबार आदि किया करते थे पर सोशल मीडिया ने इस परिद्रश्य को हमेशा के लिए बदल दिया है अब ख़बरों के लिए मुख्य धारा का मीडिया सोशल मीडिया पर रहने लग गया है और इसमें बड़ी भूमिका ट्विटर की है  बड़े नेताओं और लोगों की विभिन्न मुद्दों पर राय अब ट्विटर के जरिये खबर बनती है और इसीलिये  सोशल नेटवर्किंग साईट्स  जैसे फेसबुकट्विटरआदि को सामान्य जनता  के विचारों और आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में देखा जाता है। यह माना जाता है कि सोशल मीडिया सही मायने में एक ऐसा मीडिया हैजो किसी भी तरह के दबाव से मुक्त है। लेकिन सूचना साम्राज्यवाद के इस दौर में इंटरनेट भी सूचना के मुक्त प्रवाह का विकल्प बनकर नहीं उभर पा रहा । मुद्दों के लिए सोशल मीडिया से जिस तरह की विविधता की उम्मीद की जाती है तथ्य इसके इतर इशारा करते हैं | अमेरिकी शोध पत्रिका पलोस’ में छपे ब्रायन कीगनद्रेव मगरेलिन और डेविड लजेर के शोध पत्र के मुताबिक किसी महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम में ट्विटर जैसी प्रमुख सोशल मीडिया साइट्स में अंतर-वैयक्तिक संवाद का स्थान प्रसिद्ध हस्तियों एवं उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों ने ले लियाजिससे आम जनता के विचार उनके सामने दब के रह गए। नामचीन लोगों के ट्वीट या उनके विचारों को सोशल मीडिया ने ज्यादा तरजीह दीजिससे सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय वही मुद्दे बनेजो पारंपरिक मीडिया में अथवा बड़ी हस्तियों द्वारा उठाए गएन कि वे मुद्देजो वास्तव में जनता के मुद्दे थे।
सोशल मीडिया में चर्चित विषय को रेडियोटीवी और अखबार भी प्रमुखता से आगे बढ़ाते हैं। भारत कोई अपवाद नहीं है।
वर्ष 2009 में जहां सिर्फ एक भारतीय नेता के पास ट्विटर अकाउंट थावहीं अब हर राजनैतिक दल और नेता ट्विटर से संचार कर रहे हैं । इस शोध में 1,93,532 राजनीतिक रूप से सक्रिय लोगों के दो सौ नब्बे मिलियन ट्वीट को अध्ययन का क्षेत्र बनाया गया। ट्वीट्स के माध्यम से आती हुई सूचना इतनी आकर्षक व भ्रामक थी कि जनता उसमें उलझकर रह गई। लोग यह समझ ही नहीं पाए कि जिन मुद्दों को वे री-ट्वीट के माध्यम से आगे बढ़ा रहे हैंवे वास्तव में किसी और के मुद्दे हैं। जनता का ध्यान आपसी संवाद एवं मुद्दों के विश्लेषण से हटकर विशिष्ट व्यक्तियों द्वारा किए गए ट्वीटस पर केंद्रित हो गयाजिससे न केवल स्वतंत्र विचारों पर कुठाराघात हुआ हैबल्कि अफवाहों के फैलने की आशंका भी बढ़ गई है।

इस तथ्य के बावजूद कि सोशल मीडिया ज्यादा लोगों की विविध आवाज को लोगों के सामने ला सकता हैकिसी महत्वपूर्ण घटनाक्रम में यह सोशल चौपाल वास्तविक चौपाल के उलट कुछ खास जनों तक सिमटकर रह जाता है। इस प्रक्रिया में बहुसंख्यक ध्वनियों की अनदेखी हो जाती हैजिससे सही जनमत का निर्माण नहीं हो पाता। उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले वक्त में इसमें परिवर्तन आएगा और किसी महत्वपूर्ण घटनाक्रम में विविध ध्वनियां मुखरित होंगी।
प्रभात खबर में 17/07/15 को प्रकाशित 

2 comments:

HARSHVARDHAN said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन निर्मलजीत सिंह सेखों और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

Unknown said...

Well said! No source can be trusted blindly in today’s time be it newspapers, new channels or social networking sites. Since social networking sites are accessible by anybody and everybody, things get a little more confusing here. Perhaps its time the viewers should learn not to believe anything and everything they hear or read.
The social networking sites have given a portal to the ‘aam janta’ to express their views but we cannot deny that the voice of the nation’s common man sometimes goes unheard as the opinions of VIPs, politicians, celebrities, etc are given more importance. Let’s hope that the social networking site do not turn into portals displaying opinions of a special few. Instead of the common sharing tweets and posts initiated by VIPs on issues bothering them, let’s hope that these special few speak out about the issues affecting the ‘aam janta.’

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